सामाजिक कार्यकर्ताओं पर एक बार फिर सरकार का प्रहार लॉयर्स कलेक्टिव पर साधा निशाना!

11, Jul 2019 | CJP Team

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर पर CBI द्वारा मारे गए छापे की, सिटिज़ेन फॉर जस्टिस एंड पीस, कड़ी निंदा करता है। इस घटना पर यहाँ हमारा आधिकारिक बयान है। अगर आप हमारी पहल से सहमत हैं और हमारा समर्थन (एंडोर्स) करना चाहते हैं, तो कृपया अपनी टिप्पणी कमेंट बॉक्स में लिखें। हस्ताक्षरकर्ताओं की सूची में हम आपका भी नाम जोड़ देंगे।

हम सभी लोग नीचे हस्ताक्षर कर के आज सुबह CBI द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर जी के घर और कार्यालय पर मारे गए छापे की भत्सना करते हैं।  दिल्ली और मुंबई दोनों जगह छापे मारे जा रहे हैं। लम्बे समय से इंदिरा जयसिंह और श्री ग्रोवर को निशाना बनाने के षड्यंत्र की श्रृंखला में यह नवीनतम प्रहार है, यह केवल सत्ता के नशे में चूर, डराने धमकाने और प्रशासन के दुरूपयोग का वीभत्स रूप है। ऐसा विशेष रूप से इसलिए है, कि दोनों अधिवक्ता, मानवाधिकार के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण काम के लिए जाने जाते हैं। जब से उन पर FCRA उल्लंघन को लेकर कथित अपराधिक आरोप लगाए गए हैं, तब से उनका NGO “लॉयर्स कलेक्टिव” अधिकारियों के साथ कार्रवाई में पूरी तरह से सहयोग कर रहा था। इस सहयोग के बाद भी, आज उनके घरों और दफ्तरों पर जो छापे पड़े हैं, वे चौंकाने वाले हैं।

CJP ने मानव अधिकार रक्षकों पर लगे झूठे इल्जामों के ख़िलाफ़ लगातार आवाज़ उठाई है. कई बार यह लड़ियाँ अदालतों में लड़ी गई हैं. आप भी इस संघर्ष में हमारा साथ दे सकते हैं. आप भी हमारी मुहीम से जुड़ सकते  हैं.

भारतीय NGO ‘लॉयर्स कलेक्टिव’ और इसके अध्यक्ष, वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आनंद ग्रोवर, और अन्य प्रतिनिधियों के खिलाफ एक महीने पहले आपराधिक आरोप दायर किए गए थे। केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) की जनवरी 2016 की जांच रिपोर्ट के आधार पर, 13 जून, 2019 को CBI द्वारा एक आपराधिक मामला दायर किया गया था।

लॉयर्स कलेक्टिव, नई दिल्ली स्थित एक मानवाधिकार संगठन, जिसका पंजीकृत कार्यालय मुंबई में है। इस संगठन की स्थापना विख्यात मानवाधिकार रक्षकों और वरिष्ठ वकीलों- सुश्री इंदिरा जयसिंघ और श्री आनंद ग्रोवर ने की थी। सुश्री जयसिंह और श्री ग्रोवर मशहूर वरिष्ठ वकील होने के साथ-साथ मानवाधिकार रक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर अपनी ईमानदारी और कार्यनिष्ठा के लिए जाने जाते हैं।

सुश्री जयसिंघ वर्ष 1986 में बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में आयुक्त की हुई पहली महिला बनीं और वर्ष 2009 में वे भारत की अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त होने वाली पहली महिला बनीं। सुश्री जयसिंह वर्ष 2009 से वर्ष 2012 तक महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के उन्मूलन (CEDAW) के लिए संयुक्त राष्ट्र समिति की सदस्य भी रही हैं। उन्हें वर्ष 2005 में भारत सरकार द्वारा देश के प्रतिष्ठित नागरिक पुरस्कार, पद्मश्री से सम्मानित किया गया है, और इसके अलावा राष्ट्र की सेवा में अहम योगदान के लिए रोटरी मानव सेवा पुरस्कार से भी नवाज़ा गया है।

श्री ग्रोवर को वर्ष 2008 से वर्ष 2014 तक स्वास्थ्य के अधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष जनादेश के तौर पर आयुक्त किया गया था। श्री ग्रोवर के नेतृत्व में HIV/AIDS लॉयर्स कलेक्टिव के वकीलों द्वारा अथक संघर्ष के कारण देश में HIV/AIDS के उपचार कार्यक्रम में काफी सुधार हुआ है।

सुश्री जयसिंह और श्री ग्रोवर ने, लॉयर्स कलेक्टिव, के माध्यम से बच्चों सहित भारत के  सबसे कमजोर और हाशिये पर के वर्गों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई है। कई अवसरों पर, बिना झिझके उन्होंने  राज्य के असंवैधानिक और जनविरोधी कार्यों और नीतियों को अदालतों में क़ानूनी चुनौती दी है। बाल अधिकार क्षेत्र में कार्यरत संस्था के तौर पर सबसे पहले गीता हरिहरन प्रसिद्ध मामले का स्मरण होता है। इस मामले के कारण ही पिता के जीवनकाल के दौरान भी नाबालिग बच्चों के प्राकृतिक अभिभावक के रूप में हिन्दू माताओं के अधिकारों को मान्यता मिली, और इस तरह बच्चों को भी बिना किसी अड़चन के अपनी मां का नाम इस्तमाल कर, अपने अधिकारों का उपयोग करने की अनुमति मिली। जब एमसी मेहता बनाम तमिल नाडु राज्य मामले के संदर्भ में बाल श्रम के खिलाफ कोई ठोस कानून नहीं था, और बाल श्रम से बचाए गए बच्चों के पुनर्वास के लिए कोई असरदार नीति नहीं थी, तब सुश्री जयसिंह ने, उच्च न्यायालय द्वारा गठित कमिटी में सहायक बन कर, बच्चों के पुनर्वास के लिए और कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए श्रम विभाग और अन्य प्राधिकारियों के लिए दिशा-निर्देश जारी किया था। लॉयर्स कलेक्टिव की महिला जननांग कर्तन (FGM) रिपोर्ट, यौन उत्पीड़न और अन्य अपराधों से जूझती महिलाओं के लिए पीड़ित मुआवजा योजना के लिए हुए संघर्ष के हर चरण में उनके योगदान, तीसरे लिंग (Third Gender) के अधिकारों के लिए लड़ाई, इत्यादि, सभी ने बच्चों के संरक्षण और कल्याण में योगदान दिया है। जिसकी सूची अंतहीन है और यह किसी से छुपा नहीं है।

यह दुर्भाग्य की ही बात है कि  भारत सरकार ने उन लोगों और संगठनों के खिलाफ अपनी ताकत का दुरूपयोग कर रही है, जिन्होंने देश में संवैधानिक मूल्यों और कानून की स्थापना के लिए बहुमूल्य योगदान दिया है। यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों और सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्धता का घोर उल्लंघन है।
वर्ष 2016 में लॉयर्स कलेक्टिव पर उनका FCRA लाइसेंस निलंबित कर के सत्ता द्वारा प्रतिशोध की श्रृंखला शुरू हुई थी। जिसके बाद FCRA निलंबित  करने और नवीकरण नहीं करने को लेकर लॉयर्स कलेक्टिव ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जो मामला आज तक वैसा ही बॉम्बे हाई कोर्ट में पड़ा हुआ है। CBI ने 13 जून, 2019 को, पहली बार, IPC के तहत आपराधिक षड्यंत्र, विश्वासघात, धोखाधड़ी, झूठे बयान और FCRA व भ्रष्टाचार निवारण (PC) अधिनियम 1988  के तहत कई आरोप लगाते हुए FIR दर्ज किया था। असल में लॉयर्स कलेक्टिव द्वारा मानवाधिकार के संघर्ष में किए गए कई संवेदनशील केस भारतीय मंत्रियों और सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ भी हैं। इसलिए हाईकोर्ट में मामला होने के बाद भी लॉयर्स कलेक्टिव व उसके प्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामला दायर कर उन्हें लक्षित किया जा रहा है, जो भारत सरकार द्वारा CBI जैसी एजेंसियों का सरासर दुरुपयोग है।

भारत सरकार द्वारा इस तरह की कार्रवाई संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में अपनी प्रतिज्ञा और कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों व घोषणाओं के तहत अपने दायित्वों और प्रतिबद्धताओं के विपरीत है, साथ ही भारत के संवैधानिक मूल्यों का उलंघन भी है। वर्ष 2016 में, असेंबली और एसोसिएशन की स्वतंत्रता के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के पूर्व विशेषअधिकारी, श्री माईना किआई ने यह निष्कर्ष निकाला था कि FCRA के कुछ प्रावधान अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के अनुरूप नहीं हैं “विदेशी मुद्रा सहित संसाधनों का इस्तमाल करना” अंतरराष्ट्रीय कानून, मानकों, और सिद्धांतों के तहत संघ की स्वतंत्रता के अधिकार का एक मूलभूत हिस्सा है, खासकर की कोई संस्था या संघ बनाने के लिए।“ श्री किआई ने प्रतिगामी FCRA को निरस्त करने के लिए सरकार से आह्वान भी किया था, क्योंकि इसका दुरूपयोग कर के सरकार उन संगठनों के कामों को रोकना चाहती है जिनके विचार सत्ता के विचार से मेल नहीं खाते हैं, और जो “नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय या सांस्कृतिक प्राथमिकताओं की रक्षा करने में समर्पित हैं।

हम, नागरिक होने के नाते दृढ़ता से आग्रह करते हैं कि:
• छापामारी जैसी घटनाओं पर तुरंत रोक लगा देनी चाहिए
लॉयर्स कलेक्टिव के खिलाफ लगाए गए आपराधिक आरोपों को तुरंत वापस लिया जाए जो बॉम्बे हाईकोर्ट में विचाराधीन हैं
• मानवाधिकार रक्षकों के खिलाफ देश के कानूनों और राज्य प्रशासन के दुरुपयोग पर रोक लगाई जाए
• श्री आनंद ग्रोवर, सुश्री इंदिरा जयसिंह और लॉयर्स कलेक्टिव के अन्य पदाधिकारियों के साथ-साथ भारत में सभी मानवाधिकार रक्षकों के खिलाफ हो रहे उत्पीड़न के सभी मामले को ख़ारिज किया जाए
• देश में सभी मानवाधिकार रक्षकों को बिना किसी बाधा के अपना कार्य करने दिया जाए
• भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग इस मामले का संज्ञान लेते हुए मानवाधिकार अधिनियम 1993 (PHRA) के तहत तत्काल कार्रवाई करे और साथ ही PHRA की धारा 12 (d) के तहत FCRA की समीक्षा करे और सुधार करे

हस्ताक्षरकर्ता:
तीस्ता सेतलवाड़, जावेद आनंद, प्रबीर पुर्कावस्था, माया के। राव, तारा राव, आनंद के। सहाय, विवान सुंदरम, गीता कपूर, जोया हसन, इरा भास्कर, मोहन राव, सुमित और गार्गी चक्रवर्ती, अनुराधा कपूर, कामिनी तन्खा, अंतरा देव सेन, पामेला फिलिपोस, अचिन वणिक, गीता सेशु, हसीना खान, हरीश अय्यर, मिहिर देसाई, फिरोज मीठीबोरवाला, एमए खालिद, गीता हरिहरन, सुधन्वा देशपांडे, विजय प्रसाद, मोलोयाश्री हाशमी।

और पढ़िए –

ट्रेड यूनियनिस्ट से ‘अर्बन नक्सल’ तक सुधा भारद्वाज की यात्रा

फ़ादर स्टैन स्वामी: झारखंड के वे पादरी जिन्होंने लोगों को ही अपना धर्म बना लिया

सत्ता के रथ तले रौंदा जा रहा है न्याय

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Go to Top
Nafrat Ka Naqsha 2023