सत्ता के रथ तले रौंदा जा रहा है न्याय झूठे अभियोगों के जाल में मानव अधिकार के रक्षकों को फंसाया जा रहा है

26, Apr 2018 | CJP Team

अपने आलोचकों और मानवाधिकार रक्षकों (HRDs) को चुप कराने के लिए सरकार अक्सर अपने संस्थान, तंत्र और कानूनी प्रावधान का उपयोग करती है. निम्नलिखित कुछ मामले हैं, जहां राज्य ने HRDs को परेशान करने के लिए झूठे, नकली या दुर्भावनापूर्ण आरोपों का इस्तेमाल किया है या उन्हें खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए एक छोर से दूसरे छोर भागने पर मजबूर किया है.

 

CJP ने मानव अधिकार रक्षकों पर लगे झूठे इल्जामों के ख़िलाफ़ लगातार आवाज़ उठाई है. कई बार यह लड़ियाँ अदालतों में लड़ी गई हैं. आप भी इस संघर्ष में हमारा साथ दे सकते हैं. आप अपना योगदान यहाँ कर सकते हैं .

सोनभद्र के किसान और ग्रामीण

कनहर बाँध का विरोध कर रहे सोनभद्र, उत्तर प्रदेश के ग्रामीणों और किसानों की आवाज़ दबाने के लिए उनपर कई गढ़े हुए मामलों को थोप दिया गया है. बाँध की ऊँचाई कई गुना बढ़ा दी गयी है जिससे कि आसपास में बसे गाँव और बस्तियों पर बाढ़ का खतरा गहरा गया है. ग्रामीणों ने ऑल इंडिया यूनियन फॉर फ़ॉरेस्ट वर्किंग पीपल (AIUFWP) के साथ हाथ मिलाकर वन अधिकार अधिनियम को कार्यान्वयन करने की भी मांग की हैं. मगर उन्हें अक्सर पुलिस द्वारा गिरफ्तार करके ले जा लिया जाता है, औरतों पर भी कोई रियायत नहीं बरती जाती है. रोमा और सुकोलो जैसे आंदोलन की नेताओं को अक्सर अवैध रूप से हिरासत में लिया जाता है और एक बार शोभा नाम की एक नेता के नाबालिग बेटे को जबरन कैद कर लिया गया था. जिस प्रकार से हर आन्दोलनकारी पर कई झूठे मुकदमें दर्ज कराये गए है, यह दर्शाता है कि अधिकारियों का इरादा उन्हें कानूनी पेचीदगियों  में उलझाना और डराना है. और जानकारी के लिए इसे पढ़ें.

Amir Rizvi

ओडिशा के ग्रामीण और आदिवासी

2700 एकड़ गांव और वन भूमि पर फैक्ट्री की स्थापना का विरोध कर रहे 402 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है और 2000 और लोगों के खिलाफ वारंट लंबित हैं. उनमें से कुछ पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति (PPSS) के सदस्य हैं,  जिसका गठन 2005 में, कोरियाई कंपनी पोस्को जो उसी स्थान पर एक इस्पात संयंत्र स्थापित करना चाहती थी,के विरोध में हुआ था. पोस्को के योजना को छोड़ने के बाद भी आंदोलन जारी रखा गया क्योंकि अन्य कंपनियां भी इस भूमि पर नजर गड़ाए हुए हैं. CJP ने ओडिशा के मुख्य मंत्री नवीन पटनायक का विरोध कर रहे ग्रामीणों और आदिवासियों के खिलाफ सारी एफ़आईआर वापस लेने के लिए पत्र लिखा है.उनके संघर्ष के विषय में आप यहाँ पढ़ सकते हैं. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को लिखे हमारे पत्र को भी आप यहाँ पढ़ सकते हैं और याचिका पर हस्ताक्षर कर सकते हैं.

प्रोफेसर साईंबाबा

दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी के पूर्व प्रोफेसर डॉ जीएन साईबाबा को माओवादियों से तार जुड़े होने का दोषी मानने के बाद 14 महीनों से नागपुर सेंट्रल जेल में रखा गया है. भारतीय प्रतिबंधित संविधानवादी डेमोक्रेटिक फ्रंट (RDF), जो प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से जुड़ी मानी जाती है, के साथ संबंधों के लिए भारतीय दंड संहिता के क्रूर गैरकानूनी गतिविधियां प्रतिबन्ध कानून (UAPA) और धारा 120 बी के कई वर्गों के तहत उन्हें दोषी ठहराया गया था. हर क्षेत्र में काम कर रहे कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने इस फैसले को दोषपूर्ण बताकर इसकी आलोचना की है.

यह कहा गया है कि, अप्रासंगिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए निर्णय लिया गया और बचाव पक्ष द्वारा प्रस्तुत किये वैध साक्ष्य और तर्कों को नजरअंदाज कर दिया है, और अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत किए गए संदिग्ध संस्करणों को स्वीकार किया गया. प्रोफेसर साईंबाबा व्हीलचेयर बाध्य है और 90 प्रतिशत से अधिक विकलांगता से पीड़ित है. उन्हें अन्य महत्वपूर्ण स्वास्थ  से जुड़ी समस्यायों के कारण तत्काल देखभाल और शल्य चिकित्सा की आवश्यकता है. यहाँ और पढ़ें.

दामोदर तुरी

विस्थापन प्रतिरोधी कार्यकर्ता दामोदर तुरी, जिन्हें 15 फरवरी को रांची से गिरफ्तार किया गया था और अन्य कैदियों के एकान्त कारावास में स्थानांतरण करने के विरोध में 27 मार्च, 2018 के बाद से भूख हड़ताल पर है. एकान्त कारावास में दिए हुए कक्ष अँधेरे, बिना हवा के और बेहद गंदे होते हैं. मार्च 23 को तुरी और उनके साथियों को एकान्त कारावास में डाल दिया गया था. दामोदर तुरी विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन (VVJVA) के संयोजक हैं, जिसकी छत्रछाया में पूरे राज्य में, ग्रामीणों के विस्थापन के विरोध में, 30 संगठन काम करते है. यहाँ और पढ़ें.

चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’

चंद्रशेखर आजाद एक मुख्य दलित अधिकार कार्यकर्ता हैं जिन्हें जून 2017 को अवैध तरीके से कैद कर लिया गया था. 5 मई, 2017 को सहारनपुर के शब्बीरपुर और रामपुर के गांवों में दलित समुदाय के सदस्यों के खिलाफ दलित विरोधी हिंसा फूट पड़ी.  9 जून, 2017 को यूपी पुलिस ने चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया. उन पर अन्य आपराधिक मामलों के अलावा जो अन्यायपूर्ण रूप से लगाये गए थे, 29 अन्य मामलों में उन्हें जमानत मिलने के एक दिन बाद ही, नवंबर 2017 के बाद से क्रूर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) भी लगा दिया गया. जनवरी 2018 के अंत में,  सरकार ने अधिनियम के धारा 12(1) के तहत एनएसए की अवधि को और बढ़ा दिया. 2 नवंबर, 2017 से 6 महीने की अवधि के लिए उनकी हिरासत बढ़ा दी गई है जिसका अर्थ यह है कि उन्हें मई 2018 तक हिरासत में रखा जाएगा.

शीतल साठे और सचिन माली

यह प्रतिभाशाली और गतिशील जोड़ी कभी कबीर कला मंच का हिस्सा होती थी, जो कलाकारों का एक समूह था , जो  लोक संगीत और कविता के माध्यम से हाशिये पर पड़े समुदायों की दुर्दशा को उजागर करते थे. मुंबई पुलिस के एंटी- टेररिज्म स्क्वाड (ATS) ने इनपर नक्सली होने का आरोप लगाया और 2013 में कैद कर लिया गया था. मामला उस स्तर तक बढ़ गया कि शीतल को आठ महीने की गर्भवती होने के बावजूद जमानत नहीं मिली थी! दक्षिणपंथी  गुंडों ने नियमित रूप से शीतल के प्रदर्शन को बाधित करने की कोशिश की है. यहां और पढ़ें. आप यहां दोनों के साथ सबरंग इंडिया के साथ हुई बातचीत भी देख सकते हैं.

तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद

1993 में, तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद ने कम्युनल कॉम्बैट प्रकाशित करना शुरू किया, एक पत्रिका जिसने सांप्रदायिक हिंसा और उसके अंतर्निहित कारणों के उदाहरणों को उजागर करने के लिए गहन जांच वाली पत्रकारिता का उपयोग किया. 2002 के गुजरात नरसंहार के बाद, दोनों अदालतों और उससे बाहर के पीड़ितों और बचे हुए लोगों के अधिकारों की लड़ाई में शामिल हुए और गहन काम किया. उन्होंने नागरिक समाज के सदस्यों के सामूहिक संगठन के साथ सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस का गठन किया. इस संगठन ने राहत, पुनर्वास और न्याय को सुनिश्चित करने के क्षेत्र में काम किया. सीजेपी ने उत्तरजीवियों को कानूनी सहायता और नैतिक समर्थन प्रदान किया. उनकी दृढ़ता के कारण, दंगों से संबंधित कई मामलों में 172 को सजा सुनाई गयी. लेकिन इसके कारण उनको एक झुंझलाई राज्य सरकार के गुस्से का सामना करना पड़ा जिसने राजनीतिक कठपुतलियों द्वारा लगाये गए गलत इल्जामों से और झूठे मामलों का उपयोग करके उन्हें प्रताड़ित किया. 2014 से उत्पीड़न और बढ़ गया,  यहाँ तक कि केंद्रीय जांच ब्यूरो को सेतलवाड़ और आनंद को परेशान करने के लिए घसीट लिया गया, साथ ही खोज फाउंडेशन जैसे अन्य संगठनों को भी निशाना बनाया गया. आप यहाँ और पढ़ सकते हैं.

अनुवाद सौजन्य – सदफ़ जाफ़र

 

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