जब कश्मीर में मस्जिदों ने संभाली पंडितों की हिफ़ाज़त की कमान.. अतिवादी तत्वों के भय के बीच श्रीनगर में शुक्रवार की नमाज़ के बाद अनेक मस्जिदों में जनता से कश्मीरी पंडितों को पनाह देने की गुज़ारिश की गई थी.

17, Oct 2023 | CJP Team

कश्मीरी पंडितों की समस्या लंबे समय से देश की ज्वलंत समस्याओं में से एक रही है. उन्हें लेकर आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला भी पुराना है लेकिन श्रीनगर की मस्जिदों ने एक विस्तृत, धर्मनिरपेक्ष रवैय्ये का परिचय देते हुए गहरे तनाव के बीच राहत का पैग़ाम दिया है.    

मस्जिद, जहां मुसलमान समुदाय के लोग नमाज़ अदा करते हैं पूरे मज़हब के लिए अक़ीदत का ठिकाना मानी जाती हैं, लेकिन कश्मीर जैसे नाज़ुक सियासी हालात वाले प्रदेश में मस्जिदों का राजनीतिक महत्व भी है. अनेक बार हमलों या आपदा के समय में मस्जिदों ने मुसलमानों को छत दी है लेकिन ऐसी मिसालें भी कम नहीं हैं जब इन मस्जिदों ने ग़ैरमुस्लिम समुदाय के लिए भी अपने दरवाज़े खोले हैं और देश में धार्मिक एकता की एक नई परिपाटी क़ायम की है. 

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जब मस्जिदों के इमामों ने संभाली पंड़ितों की सुरक्षा की कमान

2021 में तीन कश्मीरी पंडितों की हत्या के बाद घाटी के पंडित जान-माल खो देने के डर से जूझ रहे थे, जब एक मस्जिद ने बक़ायदा ऐलान करके पंडितों को शरण देने की अपील की. द सियासत डेली की रिपोर्ट के अनुसार, श्रीनगर में अनेक मस्जिदों के इमामों ने शुक्रवार के दिन इस ख़तरे भरे हालात में जनता को संबोधित किया. उन्होंने अपनी बस्ती के हिंदू पड़ोसियों से घाटी से पलायन न करने की अपील की और मुसलमनों से कहा कि वो संकट की घड़ी में पंडितों को पनाह दें और उनकी हर मुमकिन मदद करने की कोशिश करें. पहले हिंसक झड़प में केमिस्ट माखनलाल, स्कूल प्रिंसिपल सुपेंदर कौर और अध्यापक दीपक चंद को अतिवादियों द्वारा मार डाला गया था, जिसके बाद इलाक़े की अल्पसंख्यक आबादी लगातार भय के दौर से गुज़र रही थी. असुरक्षा के मद्देनज़र मस्जिदों ने माहौल को महफ़ूज़ बनाने के लिए ये ज़रूरी क़दम उठाया. इसके अलावा सरकार ने भी कमेटी बनाकर कश्मीरी पंडितों के घर का दौरा किया और उनके हालात का संज्ञान लेकर उन्हें तसल्ली देने की कोशिश की.   

यह अपने आप में ऐसी कोई अकेली पहल नहीं है. इसके अलावा भी कश्मीर में मस्जिदों ने इंसानियत का पुख़्ता सबूत पेश किया है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में कश्मीर में हैदरपुरा की जामा मस्जिद ने बाढ़ से परेशान हिंदू आबादी के लिए कपड़े, भोजन, बसेरा सहित राहत कार्य की बागडोर संभाली थी. इसका सीधा सा अर्थ है कि न सिर्फ़ आतंक के साये में बल्कि प्राकृतिक आपदा के समय भी अनेक बार मस्जिदों ने धर्मनिरपेक्ष नज़रिए का परिचय दिया है.

आपसी प्रेम की गवाही है कश्मीर की क़ुदरत

अत्याचार और ख़ून-ख़राबे की गहरी चोटों के बावजूद कश्मीर की क़ुदरत प्रेम और एकता की गवाही देती है. जिस तरह कश्मीरी जनता ने बिना किसी भेदभाव के ख़ुशी, उल्लास और त्योहारों के रंग साझा किए हैं उसी तरह वो एक-दूसरे के दुखों में भी लगातार शामिल रहे हैं. 

कश्मीर की आम जनता अमनपरस्त है भाईचारे में यक़ीन रखती है. अमरनाथ यात्रा के दौरान भी मुसलमान समुदाय के लोग हिंदू श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं. इसके अलावा व्यापार का भी एक पहलू है जो उनके आपसी ताने-बाने को मज़बूत बनाता है.  

कश्मीर के दामन पर लगे दाग़ों का रंग चिनार के पेड़ों के सुर्ख़ पत्तों से ज़्यादा गहरा है लेकिन इंसानियत के प्रेम का उजलापन यक़ीनन सबसे बड़ा है. धर्म का असल मक़सद भेदभाव की दीवारें गिराकर लोगों को जोड़ना ओर एक-दूसरे की मदद के लिए तैयार करना है, घाटी की ये कहानियां पूरे हिंदुस्तान के लिए धार्मिक एकता का उदाहरण हैं. 

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