ज़किया जाफ़री मामला: तीस्ता सीतलवाड़ को लेकर क्या बदल गया है सुप्रीम कोर्ट का रुख़ BBC Hindi

09, Jul 2022 | रॉक्सी गागडेकर छारा

तीस्ता सीतलवाड़

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मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की साल 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े मामले में सुबूतों से छेड़छाड़ के आरोप में गिरफ़्तारी सुप्रीम कोर्ट के रूख में उन्हें लेकर आए नाटकीय बदलाव के बाद हुई.

सुप्रीम कोर्ट ने 24 जून के अपने आदेश में जो कड़ी टिप्पणी की उसी के आधार पर गुजरात पुलिस ने अगले ही दिन तीस्ता सीतलवाड़ और पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार को गिरफ़्तार किया. ये वाकया पिछले मामलों से अलग था.

पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों से जुड़े कई मामलों में तीस्ता सीतलवाड़ और उनके एनजीओ सिटिजन्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) की कई याचिकाओं और दलीलों को मंजूर किया था.

तीस्ता के ख़िलाफ़ जब एफ़सीआरए के तहत मामला दर्ज किया गया तो साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के उन्हें गिरफ़्तार करने पर रोक लगाई थी.

इस बार 25 जून 2022 को अहमदाबाद में क्राइम ब्रांच ने उनके ख़िलाफ़ जो प्राथमिकी दर्ज की वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के ठीक बाद लिखी गई.

ज़किया जाफ़री की ओर से लगाए गए ‘व्यापक षडयंत्र’ के आरोप के मामले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य लोगों को बरी किए जाने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने बहाल रखा. ज़किया के पति एहसान जाफ़री कांग्रेस के पूर्व सांसद थे. वो गुजरात दंगों में मारे गए थे.

प्राथमिकी में कोर्ट के आदेश के 88 वें पैराग्राफ में लिखी बातों को दर्ज किया गया. इसी के आधार पर क्राइम ब्रांच ने तीस्ता सीतलवाड़, श्रीकुमार और एक अन्य पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को नामजद किया. संजीव भट्ट हिरासत में मौत से जुड़े एक पुराने मामले में उम्र क़ैद की सज़ा काट रहे हैं.

तीस्ता सीतलवाड़

विशेषज्ञों के सवाल

उधर, आदेश के पैराग्राफ़ 88 को लेकर क़ानून के जानकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों के बीच एक विवाद शुरू हो गया क्योंकि इसकी वजह से उन लोगों पर छीटें आए हैं जिन्होंने न्याय पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है. तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के दौरान हुए गुजरात दंगों में आधिकारिक तौर पर एक हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई. मरने वालों में ज़्यादातर मुसलमान थे.

इस मामले में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम की जांच को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पैराग्राफ़ 88 में कहा कि ज़किया जाफरी की शिकायत पर सुनवाई “बीते 16 साल से चल रही है… इससे जुड़े हर अधिकारी की निष्ठा पर सवाल खड़ा करती है…. कि उन्होंने बेवजह इस मामले को गर्म किए रखा.”

कोर्ट ने कहा, “वो तमाम लोग जो प्रक्रिया के ऐसे दुरुपयोग में शामिल हैं, उन सभी के ख़िलाफ़ क़ानून के मुताबिक कार्रवाई होनी चाहिए.”

बीबीसी ने क़ानून के जिन जानकारों से बात की वो सभी इस पैराग्राफ़ में सुप्रीम कोर्ट की ओर से की गई ‘असाधारण टिप्पणी’ को लेकर चिंतित दिखे. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन लोकुर ने ‘द वायर’ को दिए एक इंटरव्यू में भी इस चिंता का समर्थन किया.

लोकुर ने उम्मीद जाहिर की कि जस्टिस ए एम खानविल्कर की अगुवाई वाली बेंच रजिस्ट्री के जरिए इसे स्पष्ट करेगी, “हमारी मंशा ये नहीं थी कि तीस्ता को गिरफ़्तार किया जाए और अहमदाबाद ले जाया जाए.”

वरिष्ठ वकील कामिनी जायसवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच को इस पर ‘दोबारा विचार’ करना चाहिए. बीबीसी से बातचीत में कामिनी जायसवाल ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि ज़किया जाफ़री के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय एमिकस क्यूरी राजू रामचंद्रन ने तीस्ता सीतलवाड़ पर भरोसा दिखाया था.

कामिनी जायसवाल ने कहा कि रामचंद्रन ने जब तीस्ता सीतलवाड़ से मुलाक़ात की तब, “उनके बारे में कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की.” बल्कि उनकी ओर से मिली जानकारी के मुताबिक एमिकस क्यूरी ने “ज़किया जाफ़री और एनजीओ सिटिजन्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) की ओर से लगाए गए व्यापक षडयंत्र के आरोपों की जांच की ज़रूरत पर बल दिया.”

अहमदाबाद के वकील आनंद याग्निक ने कहा, ”ऐसे कई मौके रहे जब सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ़ तीस्ता सीतलवाड़ को दलील पेश करने की अनुमति दी बल्कि उनकी दलीलों को मंजूर भी किया. लेकिन, अब हम सुप्रीम कोर्ट का बिल्कुल अलग रुख देख रहे हैं.”

सीतलवाड़ और जाकिया जाफरी

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इस मामले में न्याय पाने के लिए शुरुआत में तीस्ता सीतलवाड़ और सीजेपी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के साथ काम किया था. तब शुरुआत में इसकी अगुवाई पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा कर रहे थे बाद में एक और पूर्व मुख्य न्यायाधीश एएस आनंद ने अध्यक्षता की. जस्टिस आनंद के कार्यकाल के दौरान 2002 दंगों के एक और प्रमुख मामले में वड़ोदरा की ट्रायल कोर्ट ने 27 जून 2003 को बेस्ट बेकरी मामले में 14 लोगों के सामूहिक संहार के अभियुक्त सभी 21 लोगों को बरी कर दिया था.

इस हाई प्रोफ़ाइल मामले के कोर्ट में साबित न होने पाने का अहम कारण बेकरी मालिक की बेटी और शिकायतकर्ता ज़ाहिरा शेख और उनके परिवार के दूसरे सदस्यों का मुकर जाना था. लेकिन कोर्ट का आदेश आने के 10 दिन बाद तीस्ता सीतलवाड़ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई जिसमें ज़ाहिर शेख उनके बराबर बैठी थीं और उन्होंने कहा कि स्थानीय विधायक की ओर से बनाए गए दबाव की वजह से सुनवाई के दौरान वो अपने बयान से मुकर गईं.

मानवाधिकार आयोग के सामने ज़ाहिरा शेख ने अपने आरोपों को दुहराया. जस्टिस आनंद ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट के सामने स्पेशल लीव पिटीशन दाखिल की. उन्होंने गुजरात हाई कोर्ट में इस मामले में अपील किए जाने का इंतज़ार भी नहीं किया और इसके लिए उन्हें मनाने में तीस्ता सीतलवाड़ की भूमिका अहम थी. आयोग की याचिका में बेस्ट बेकरी मामले की सीबीआई से दोबारा जांच कराने और गुजरात के बाहर इस मामले की दोबारा सुनवाई कराने की गुजारिश की गई.

सुप्रीम कोर्ट की चीफ़ जस्टिस वीएन खरे की अगुवाई वाली बेंच ने बेस्ट बेकरी केस में हाई कोर्ट में की गई अपील पर फ़ैसले का इंतज़ार किया. हाई कोर्ट ने 26 दिसंबर 2003 को फ़ैसला सुनाया. हाई कोर्ट ने दोबारा सुनवाई की याचिका ख़ारिज कर दी और सभी अभियुक्तों को बरी किए जाने के फ़ैसले को बरक़रार रखा. हाई कोर्ट ने मानवाधिकार आयोग और तीस्ता सीतलवाड़ पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि वो अपने फ़ायदे के लिए पहले से बुझ चुकी आग में घी डालने की कोशिश कर रहे हैं और स्थिति को तनावपूर्ण बनाए हुए हैं.”

इसने ही सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक आदेश का स्टेज तैयार किया. ये आदेश 12 अप्रैल 2004 को आया. जस्टिस अरिजीत पसायत ने इस आदेश में ज़ाहिरा शेख की अपील को मंजूर करते हुए बेस्ट बेकरी मामले की गुजरात के बाहर दोबारा सुनवाई का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की ओर से मानवाधिकार आयोग और तीस्ता सीतलवाड़ को लेकर की गई टिप्पणियों को भी हटवा दिया.

तीस्ता सीतलवाड़

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बेस्ट बेकरी मामला

बेस्ट बेकरी मामले के बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधिकरण में स्थानांतरण बिल्किस बानो गैंगरेप और सामूहिक हत्या जैसे मामलों में ऐसे ही कार्यवाही के लिए नज़ीर बना. बेस्ट बेकरी मामले में गुजरात पुलिस की पक्षपातपूर्ण भूमिका को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नौ अन्य केस को लेकर दूरगामी असर वाला फ़ैसला सुनाया. इनमें गोधरा, गुलबर्ग सोसायटी और नारोदा पाटिया के मामले शामिल हैं. 21 नवंबर 2003 को सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी मामलों की सुनवाई पर रोक लगा दी. ये रोक पांच साल तक बनी रही जब तक 26 मार्च 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने उन नौ मामलों के लिए एसआईटी नहीं बना दी.

न्याय की इस लड़ाई में तीस्ता सीतलवाड़ की भूमिका एक और बार तब मजबूती से सामने आई जब सुप्रीम कोर्ट ने 27 अप्रैल 2009 को एसआईटी का दायरा बढ़ाते हुए ज़किया जाफ़री और सीजेपी की ओर से की गई शिकायत की जांच करने को कहा. ज़किया और सीजेपी ने आरोप लगाया था कि गुजरात दंगे में ‘मोदी और दूसरे प्रभावशाली व्यक्तियों ने व्यापक साजिश रची है.” तब किसी ने भी उम्मीद नहीं की होगी कि 13 साल के बाद इस जांच के नतीजे से तीस्ता सीतलवाड को ही झटका लगेगा.

इसकी वजह बताते हुए फादर सेड्रिक प्रकाश कहते हैं, “तीस्ता सीतलवाड़ की ओर से सामने लाए गए सुबूतों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार या फिर राज्य सरकार की आलोचना की.”

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वो गुजरात दंगों से जुड़े मामलों को लेकर तीस्ता के साथ काम कर चुके हैं. बेस्ट बेकरी मामले में 12 सितंबर 2003 को चीफ़ जस्टिस खरे की ओर मोदी सरकार की खिंचाई की याद दिलाते हुए फादर प्रकाश कहते हैं कि तब कोर्ट ने कहा था, “अगर आप दोषियों को सजा नहीं दिला सकते तो आपको पद छोड़ देना चाहिए.”

इससे अंदाज़ा होता है कि तब से अब तक स्थितियां कितनी बदल गई हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अब तीस्ता सीतलवाड़ को कठघरे में खड़ा किया है.

The original piece may be read here

 

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