तीस्ता सेतलवाड़ को फिर क्यों और कैसे प्रताड़ित किया जा रहा है सीजेपी का अधिकारिक बयान

08, Apr 2018 | CJP Team

सीजेपी सचिव तीस्ता सेतलवाड़ जी पर एक बार फिर से हमला किया जा रहा है, इस बार उनकी शिक्षा से संबंधित गैर सरकारी संगठन ‘खोज’ पर झूठे आरोपों के सैलाब के साथ. सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) के असंतुष्ट पूर्व कर्मचारी रईस खान ने तीस्ता सेतलवाड़ जी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि सेतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद ने यूपीए सरकार के कार्यकाल में मानव संसाधन विकास मंत्रालय से 1.4 करोड़ रुपये का धन प्राप्त करने के लिए गलत तरीक़ों का इस्तेमाल किया था. हालांकि, सीजेपी इन अरोपों को झूठा और आधारहीन बताती है.

खान के मंसूबे तभी मुंह के बल गिर पड़े थे जब 2 मई को, दोनों तीस्ता और जावेद आनंद, सीजीपी और सबरंग ट्रस्ट के प्रमुख कार्यकर्ताओं, को पारगमन जमानत (transit bail) मिल गयी थी. हम पारगमन जमानत का स्वागत करते हैं और तीस्ता और जावेद दोनों के समर्थन में अडिग हैं.

हम सीजेपी के माध्यम से तीस्ता और जावेद दोनों की निजी स्वतंत्रता पर गुजरात पुलिस की अपराध शाखा द्वारा गढ़े संकट, धमकाने और अभित्रस्त करने के लिए अपनाये गए  हताश उपायों की कड़ी निंदा करते हैं. हमारा मानना ​​है कि यह केवल विदेशों में मानवाधिकार व्याख्यानों के लिए एक लंबी योजनाबद्ध यात्रा पर जाने से सेतलवाड़ जी को रोकने का षड्यंत्र है. और सीजेपी से निष्कासित पूर्व कर्मचारी, मूल शिकायतकर्ता, रईस खान पठान ने ऐसे  कठोर हथकंडे को अपनाया है.

भारतीय मूल के सिखों द्वारा जलियाँवाला बाग नरसंहार के 100 वर्षों की याद में तीस्ता जी को कनाडा में आमंत्रित किया गया है. सेतलवाड़ जी के परदादा, सर चिमनलाल सेतलवाड़, उस समिति का हिस्सा थे जिसने जनरल डायर द्वारा करवाए नरसंहार की जांच की और अदालत में जनरल डायर के विरुद्ध जिरह की थी. इसके बाद तीस्ता सेतलवाड़ को हार्वर्ड और अमेरिका के कई अन्य शहरों में व्याख्यान देने के लिए भी जाना है.

रईस खान द्वारा सेतलवाड़ जी को परेशान करने का एक संक्षिप्त विवरण

रईस खान को सीजेपी में एक लाभप्रद पद के साथ किराए पर आवास भी उपलब्ध कराया गया था. 2010 में सीजेपी के क्षेत्रीय संयोजक की नौकरी से निष्कासन के बत्तीस महीने पश्चात, खान हर मंच पर जा जा कर पहले तीस्ता सेतलवाड़ जी को बदनाम करने के लिए उनके खिलाफ कई दुर्भावनापूर्ण और झूठे मामलों की चर्चा की और अफवाह फैलाई, इस से भी दिल नहीं भरा तो आनंद और सेतलवाड़ दोनों के खिलाफ अपनी मुहिम और तेज़ कर दी. सेतलवाड़ जी को पहली बार 2004 में गुजरात राज्य के विभागों के माध्यम से लक्षित किया गया था, जिसमे ज़ाहिरा शेख को उनके खिलाफ भड़काया गया था. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट ने सेतलवाड़ और सीजेपी को इन बेबुनियाद आरोपों से पूरी तरह से बरी कर दिया और ज़ाहिरा को प्रभावशाली राजनेताओं के द्वारा दिए प्रलोभन का दोषी पाया गया. जाहिरा शेख को 2006 में एक वर्ष की साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी. सेतलवाड़ जी के खिलाफ आरोपों की श्रंखला में अपहरण और झूठी गवाही से लेकर अभी वाले वित्तीय गबन भी शामिल है.

जिस प्रकार आज दिल्ली सरकार के संरक्षण का लाभ उठाते हुए रईस खान को केन्द्रीय वक्फ बोर्ड में नियुक्त किया गया है, और उसके लिए वे वरिष्ठ वकील जुटाए गए हैं जिनकी निकटता सत्तारूढ़ दल के साथ है, इस से सरकार और रईस खान की सांठ-गांठ का षड्यंत्र साफ़ साफ़ उभर कर आता है. सितंबर 2010 के बाद से रईस खान एक न्यायाधिकरण के बाद दूसरे में जाकर जांच और न्याय की प्रक्रिया को बहकाने की कोशिश की. रईस खान अपनी हरकत से बाज़ ही नहीं आते, वे गुजरात के 2002 मामलों में विशेष तौर पर पांच अदालतों की सुनवाई में, नानावती शाह आयोग के समक्ष, एसआईटी और अब गुजरात पुलिस की अपराध शाखा तक जा पहुंचे हैं. सरदारपुरा मामले और नरोडा पाटिया मामले के दो फैसलों में, न्यायाधीशों ने रईस खान के आचरण पर न्यायालय के कामों में हस्तक्षेप करने की टिप्पणी तक की है.

स्पष्ट रूप से सीजेपी ने अपने सचिव, सेतलवाड़ के नेतृत्व में, 172 व्यक्तियों की सजा सुनिश्चित करवाई है – जिनमें 124 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. इस क्रूर और विनाशकारी शासन द्वारा उन्हें निशाने पर लिए जाने का यह एकमात्र कारण है. ज़किया जाफ़री मामले में जारी ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई, सत्ता में बैठे लोगों को शूल की तरह चुभ रही है.

रईस खान ने अब एक नई प्राथमिकी में, आधारहीन आरोपों की एक श्रृंखला बनाई है, जिसमें सेतलवाड़ जी और आनंद पर इलज़ाम लगाया है कि उन्होंने सर्व शिक्षा अभियान के तहत अपने शिक्षा से जुड़े गैर सरकारी संगठन ‘खोज’ के लिए प्राप्त राशि को व्यक्तिगत प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया है. शिकायत में यह भी कहा गया है कि राशि का इस्तेमाल ऐसे सामग्री को छापने और बांटने के लिए किया जाता था जो सांप्रदायिक असंतोष फैलाने का कारण बन सकती थी. खान ने पहले सीबीआई द्वारा केस दर्ज कराने की कोशिश की, फिर एमएचआरडी में इस शिकायत को दर्ज करने का प्रयास किया. जब वहाँ काम नहीं बना तब अपराध शाखा में अपने सहयोगियों की सहायता से अपने लक्ष्य को प्राप्त किया.

अब तक, तीस्ता सेतलवाड़ जी, जो पिछले तीन दशकों से साहसी कामों द्वारा मानवाधिकार रक्षा कर रहीं हैं, आठ बार झूठे आपराधिक मामलों में अग्रिम जमानत की अर्जी दे चुकी हैं. उनकी निजी स्वतंत्रता को बाधित करना और कारागार की धमकी देना स्पष्ट रूप से इस शासन का पसंदीदा तरीका है. आनंद को भी, अबतक तीन बार झूठे मामलों में फंसाया जा चुका है.

अब, सीजेपी मामले के तथ्यों का सारांश प्रस्तुत करके सीधे तौर पर सच सामने रखना चाहती है -:

1994 में, सेतलवाड़ और आनंद ने स्कूली बच्चों के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया था जिसे ‘खोज’: एक विविध भारत के लिए शिक्षा’ नाम दिया गया था. सबरंग ट्रस्ट की एक परियोजना के रूप में, उनके द्वारा विकसित किए गए खोज परिवर्तनात्‍मक शैक्षिक मॉड्यूल, वर्षों से मुंबई में और अन्य जगहों पर, निजी तौर पर चलाये जाने वाले और नगर निगम द्वारा चलाये जाने वाले स्कूलों में सफलतापूर्वक लागू किए गए हैं. उदाहरण के लिए, मुंबई महानगर निगम द्वारा चलाये जाने वाले स्कूलों की कक्षाओं को चलाने के लिए, खोज शिक्षकों की एक टीम के लिए पूर्व अनुमति, दी जाती रही है. खोज 1994 से सक्रिय रहा है और सामाजिक अध्ययन और इतिहास के पाठ्यक्रम और पाठ-पुस्तकों के लोकतांत्रिकरण से संबंधित शिक्षा नीति के महत्वपूर्ण क्षेत्र पर काम कर रहा है.

शिक्षा के क्षेत्र में तीस्ता सेतलवाड़ जी का काम व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है और 2004 में उन्हें केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (सीएबीई) समिति (सीएबीई संसद द्वारा गठित एक बोर्ड है) के लिए नियुक्त किया गया था और उन्होंने वर्ष 2014 तक बोर्ड के लिए काम किया. तीस्ता सेतलवाड़ को ”पाठ्य प्रणाली के लिए विनियामक तंत्र और सरकारी प्रणाली के बाहर के स्कूलों में समानांतर पाठ्यपुस्तकों” पर सीएबीई के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था.

. समिति के संदर्भ (टीओआर) की शर्तें इस प्रकार थीं:

  • उन सरकारी स्कूलों में पाठ्यपुस्तकों पर अध्ययन और रिपोर्ट तैयार करना जो सीबीएसई पाठ्यक्रम का उपयोग नहीं करते हैं.
  • सरकारी तंत्र के बाहर के स्कूलों की पाठ्यपुस्तकों और पाठ्यक्रमों का अध्ययन करना, जिनमें धार्मिक और सामाजिक संगठनों द्वारा चलाए जाने वाले स्कूल भी शामिल हैं;
  • पाठ्यपुस्तकों और पाठयक्रम सामग्री तैयार करने के मुद्दे को संस्थागत बनाने के लिए उपयुक्त नियामक तंत्र का सुझाव देना.

अपने काम के दौरान, तीस्ता को इनोवेशन और प्रायोगिक शिक्षा कार्यक्रम (सर्व शिक्षा अभियान) के अंतर्गत सहायता योजना के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा अनुदान के बारे में पता चला. सबरंग ट्रस्ट की ओर से, तीस्ता ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से 8 मार्च 2010 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तत्कालीन संयुक्त सचिव श्रीमती अनीता भटनागर के समक्ष अनुदान प्राप्त करने का प्रस्ताव पेश किया. यह प्रस्ताव निर्धारित रूप में आवश्यक आवेदन पत्र के साथ था.

सबरंग ट्रस्ट ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से तीन साल की, अर्थात 2009-10, 2010-11 और 2011-12 की अवधि के लिए 100% अनुदान की मांग की थी. इस प्रोजेक्ट में अनुदान के जरिये ट्रस्ट ने 75 स्कूलों में 6000 छात्रों तक पहुंचने के लिए उम्मीद ज़ाहिर की थी, जिसमें महाराष्ट्र के 2000 छात्र जो 33 स्कूलों में पढ़ते हैं शामिल होंते, जहां खोज कक्षाएं पहले से ही आयोजित की जा रही थीं. दिए गए आवेदन पत्र में वित्तीय वर्ष 2009 -10 के लिए परियोजना पर ट्रस्ट के खर्च का बजटीय विवरण और वित्तीय वर्ष 2010-11 के लिए कुल अनुमानित व्यय भी निर्धारित किया गया था. वित्तीय वर्ष 2010-11 के लिए मांगे गए अनुदान की कुल राशि रु. 1,00,55,400/- (केवल एक करोड़ पचास पांच हजार चौदह सौ रुपए) थी.

सबरंग के प्रस्ताव की जांच पड़ताल किये जाने के बाद, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग ने अनुमोदित परियोजना के पहले वर्ष के लिए अनुदान की पहली किस्त रु.58,72,500 /-को दिनांक 03.02.2011 को एक पत्र द्वारा दे दिया. परियोजना की प्रगति का मूल्यांकन 09-10.02.2012 को श्रीमती विनिता कौल (सदस्य, अनुदान सहायता समिति), एके तिवारी (भारत सरकार के प्रतिनिधि) और श्री नंदन नांगरे (महाराष्ट्र राज्य प्रतिनिधि) का एक संयुक्त मूल्यांकन दल (जेएटी) Joint Evaluation Team (JET) के द्वारा किया गया. यह सबरंग के हक में रहा और कुछ बदलाव सुझाए गए थे जिन्हें सबरंग ने स्वीकार किया था.

इस योजना के अंतर्गत, 16 शिक्षकों को परियोजना की अवधि के दौरान नियोजित किया गया. इस प्रोजेक्ट ने सीधे तौर पर शिक्षण और शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से 1 92 स्कूलों को फायदा पहुंचाया. महाराष्ट्र में 10 पुस्तकालय स्थापित किए गए थे और पुस्तकालयों के लिए अधिकांश पुस्तकों को सरकारी प्रकाशन गृहों से खरीदा गया था. एक ऑनलाइन प्रोजेक्ट शुरू किया गया था, वही अभी भी अस्तित्व में है. 7 लघु फिल्म बनाई गई और 5वीं कक्षा के छात्रों के लिए पाठ्यक्रम के रूप में एक पुस्तक को अवधारणा कर प्रकाशित किया गया था. इस पाठ्यक्रम के माध्यम से, जो कि एक बच्चे पर केंद्रित शिक्षाशास्त्र था, भारत के संवैधानिक मूल्यों और बहुलतावाद को महाराष्ट्र राज्य भर में लगभग 6000 छात्रों को पढ़ाया गया.

वास्तव में संयुक्त मूल्यांकन दल (जेट) Joint Evaluation Team (JET) ने कहा,

कुल मिलाकर, ‘खोज’ प्रोजेक्ट के तहत उद्देश्य और प्रयास निस्संदेह प्रशंसनीय हैं क्योंकि वे धर्मनिरपेक्षता और शांति की शिक्षा को बढ़ावा देते हैं, जो प्राथमिकता होनी चाहिए, लेकिन मुख्यधारा के स्कूलों में इस तरह के पहलुओं पर शायद ही कोई प्रयास हो रहा है. कितना ज़रूरी है बच्चों तक पहुचना, ख़ासतौर पर शहरी गरीब बच्चों तक जो उपाख्यानों के रूप में ‘खोज’ की शिक्षिकाओं द्वारा जेट से साँझा की गयी.

तीन वर्ष की अवधि में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने कुल मूल्य अनुदान राशि रु.1,42,23,797 /-(बैंक का ब्याज शामिल है) जारी किया. जिसमें से ट्रस्ट ने कुल 1,36,31,686/- रुपए का उपयोग किया और बिना उपयोग किया गया धन जो रु. 59, 871/- था उसे को 12.06.2014 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय को वापस कर दिया था. मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने रुपये 58,72,500/- रु. 26,66,57 /- और रु.54,20,848/- का अनुदान दिया था वर्ष 2011-12, 2012-13 और 2013-14 में क्रमशः और आवेदकों ने प्रासंगिक उपयोग प्रमाणपत्र प्रस्तुत किए थे.

यह पूरी प्रक्रिया कानून के अनुसार की गयी थी. इसलिए सीजेपी मामले पर रिपोर्ट करने से पहले मीडिया से उनके तथ्यों की जांच करने का अनुरोध करती है. सीजेपी कुछ प्रकाशनों द्वारा छपे जाने वाले घृणित लेखों के प्रति पाठकों को सचेत करना चाहती है. हमारे पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है और सभी तथ्यों को इस कथन में स्पष्ट रूप से रखा गया है.

 

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