NRC से गायब हुआ पूर्व राष्ट्रपति के परिजनों का नाम! NRC और चुनाव आयोग अधिकारीयों की गलतियों का खामियाज़ा भर रहे हैं निर्दोष लोग

31, Aug 2018 | ज़म्सेर अली

भारत के पांचवें राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के परिवार वालों का नाम NRC में नहीं है! अब सवाल ये उठता है कि NRC अधिकारियों ने सूची के अद्यतन में उस इलाके में आई बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा को ध्यान में रखा या नहीं, क्योंकि कई लोगों ने अपने महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बाढ़ के चलते खो दिए, जिसके बाद उन्हें NRC के में अपनी अपनी नागरिकता सिद्ध करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। ऐसे लोगों की संख्या हज़ारों में हैं। भारतीय चुनाव आयोग (ECI) अधिकारी भी इसके लिए ज़िम्मेदार पाए गए हैं, क्योंकि इतनी महत्वपूर्ण बात को लेकर उनका लापरवाह और मंद रवैय्या रहा है, जिसके चलते भारी संख्या में वैध नागरिकों पर ‘डी -वोटर’ और ‘विदेशी घोषित’ होने का ठप्पा लगा दिया गया है।

50 वर्ष के ज़िआउद्दीन अली अहमद एक मामूली किसान हैं। मगर सिर्फ उनके लिए किसानी कर के पूरे परिवार का पालन पोषण संभव नहीं है, इसलिए वे किसानी के साथ-साथ मछली पकड़ने का भी काम करते हैं। इतना साधारण जीवन जीने के बाद भी वे बरकुकुरिआ के ग्रामीणों में “ज़मींदार ” के रूप में जाने जाते हैं। बरकुकुरिआ कामरूप (ग्रामीण) जिले में बसा क्षेत्र है जो असम के रंगिआ पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आता है।  ज़िआउद्दीन का उनके दो बेटों के अलावा गाँव में कोई सगा-सम्बन्धी नहीं है, इसके बावजूद उन्हें गाँव वासियों का सम्मान और स्नेह मिलता आ रहा है।

हालांकि गाँव वालों ने मकान मालिकों के परिवार को 45 सालों से कोई ‘किराया’ नहीं दिया है और न ही ज़िआउद्दीन ने इस बात की कभी किसी अधिकारी से`शिकायत की है। वे एक असाधारण परिवार के असाधारण सदस्य हैं, क्योंकि वे कोई और नहीं, भारत के पांचवे राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के भतीजे हैं। साथ ही वे लेफ्टिनेंट कर्नल जलनूर अली अहमद के पोते भी हैं, जो असम में MBBS की डिग्री उत्तीर्ण करने वाले और डॉक्टर के रूप में योग्य पहले व्यक्ति हैं।

एक मशहूर परिवार से ताल्लुक रखने के बाद भी ज़िआउद्दीन अली अहमद 30 जुलाई, 2018 को NRC के अंतिम ड्राफ्ट के आने तक गुमनामी के अंधेरे में रह रहे थे। अब उनकी दुर्दशा की ‘कहानी ‘ राष्ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय मीडिया के कारण लोगों की नज़र में आ गई है। यह बात देश भर के सामने चुकी है कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के भतीजे ज़िआउद्दीन अली अहमद और उनके परिवार के साथ-साथ 40, 07, 707 अन्य लोग भी NRC ड्राफ्ट से हटा दिए गए हैं। NRC स्पष्ट रूप से असम में रह रहे सारे विदेशियों को डिटेंशन कैंप और देश के बाहर भेजने के उदेश्य से अपडेट किया गया है।

जब यह मामला सब के सामने आया तो हमने एक युवा पत्रकार नयनजीत कलिता के साथ मिलकर ने 1 अगस्त को ज़िआउद्दीन अली अहमद के घर पहुंचकर उनसे मुलाक़ात की। जब हम उनके घर पहुंचे तो सारे गाँववासी हमें घेर कर जमा हो गए और मिलकर अपनी व्यथा बताने लगे कि कैसे उनके सम्मानीय भारत के पूर्व राष्ट्रपति के भतीजे का नाम NRC से हटा दिया गया।  हमारे देश के पूर्व प्रथम नागरिक होकर भी जिस स्थति में रह रहे हैं, वह अपने आप में अविश्वसनीय है।  वो भी ऐसे दौर में जब एक सत्तारूढ़ पार्टी के नेता का बेटा का अपनी निजी संपत्ति को 1 साल में 5000 गुना बढ़ा रहा है।

विरासती डाटा

हमारी पूछताछ से यह सामने आया है कि विरासती डाटा की अनुपस्थिति के कारण वे NRC के लिए आवेदन नहीं कर सके। पूछताछ को आगे ले जाते हुए हमने यह जानने की कोशिश की कि अगर NRC  के लिए विरासती डाटा के अलावा अन्य (वैकल्पिक) दस्तावेज़ जैसे ज़मीन के कागज़, स्कूल, बोर्ड और विश्वविद्यालय के सर्टिफिकेट, जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट भी जमा कराए जा सकते हैं, तो उन्होंने इन वैकल्पिक दस्तावेज़ों के सहारे अपना आवेदन क्यों नहीं कराया? इसपर उनका जवाब बहुत ही विनम्र तथा चौकाने वाला था।  सच तो यह है कि NRC ने पूरी प्रकिया में इसे गंभीरता से लिया ही नहीं, जो उनके द्वारा हुई इन सब गलतियों से साफ़ दिखाई पड़ रहा है। अब सब जान चुके हैं कि जिस प्रक्रिया को पूरी तरह निष्पक्ष होना चाहिए, वह किस तरीके की ढीली पड़ती गयी। फखरुद्दीन अली अहमद के परिवार के दस्तावेज़ यहाँ देखे जा सकते हैं –

बाढ़ में बह गए दस्तावेज़

ज़ियाउद्दीन के अनुसार, उनके सारे दस्तावेज़ 1984 में आई खतरनाक बाढ़ में बह गए। उन्हें अपने विरासती डाटा और अन्य दस्तावेज़ों को पाने के लिए अपने बेटे के साथ राज्य भर के दफ्तरों में चक्कर काटने पड़े। सिर्फ असम ही नहीं, उन्होंने दिल्ली और उसके साथ-साथ उन सभी जगहों पर भी अपने दस्तावेज़ों को ढूढ़ने की कोशिश की जहां लेफ्टिनेंट कर्नल जलनूर अली अहमद और फखरुद्दीन अली अहमद रह चुके हैं। मगर उन्हें अपने पिता के बारे में भी कुछ नहीं पता चला।

ज़मीनी दस्तावेज़

कामरूप जिले के बरकुकुरिया गांव वासी लगातार फखरुद्दीन अली अहमद और उनके परिवार वालों की ज़मीन पर किरायदार होने का दावा कर रहे थे, तो हमने आगे गाँव के दस्तावेज़ों के बारे में और पता लगाया। पता लगाने पर उनके पिता और फखरुद्दीन अली अहमद के बीच के समबन्ध ख़राब होने की संदेह पैदा हुआ। हालांकि गांव वालों ने जब ज़मीन कर से जुड़ी रसीदें दिखाई तो यह ‘मिथ्य’ भी तब समाप्तहो गया।

उन सभी रसीदों में से कुछ में खुद फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर थे और बाकी में अहतरामुद्दीन अली अहमद के। कुछ मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा ज़ियाउद्दीन के पिता के नाम को गलत लिखकर अकरामुद्दीन अली अहमद बताने से भ्रम पैदा हो गया। गांव के बड़े-बुजुर्गों ने बताया कि अहतरामुद्दीन अली अहमद और अकरामुद्दीन अली अहमद एक ही व्यक्ति है। अहतरामुद्दीन अली अहमद (अकरामुद्दीन अली अहमद) इंजीनियर थे और अपने परिवार तथा संपत्ति को लेकर कभी गंभीर नहीं थे, इसलिए उन्हें पगला बाबा नाम से जाना जाने लगा।

उसी दौरान हमने बरकुकुरिया और उसके आस पास के गांव की भू-कर-सम्बन्धी रिपोर्टों के बारे में पता लगाया और तभी हमारा सारा भ्रम दूर हुआ। हमें यह मालूम हुआ कि 10 लोग उस पूरी भूमि के संयुक्तमालिक हैं: फखरूद्दीन अली अहमद, जलाउद्दीन अली अहमद, अहतरामुद्दीन अली अहमद, दो अन्य आदमी और पांच महिलाएं जो लेफ्टिनेंट कर्नल जलनुर अली अहमद के बच्चे।  यह सब जलाउद्दीन अली अहमद और उनके परिवार के लिए सुकूनदेह है क्यूंकि यह जानकारी कहीं न कहीं जलाउद्दीन अली अहमद के लिए एक ऐसा वैध दस्तवेज़ है जिसके बलबूते पर उनका नाम NRC में जुड़ सकता है।

चुनावी भूमिकाओं में बाहर होना

ज़िआउद्दीन अली अहमद की समस्याएं यही नहीं खत्म हुई। उनके पास अभी भी ऐसा कोई वैध दस्तावेज़ नहीं है जिससे उनके और उनके पिता के बीच सम्बन्ध को साबित कर पाए।  उनका वोटर आई-डी कार्ड ही एक मात्र ऐसा दस्तावेज़ था, मगर उनमें भी एक समस्या थी जिसका सामना वो कर रहे थे। हालांकि ज़मीनी दस्तावेज़ों के अनुसार ज़ियाउद्दीन अली अहमद के पिता अहतरामुद्दीन अली अहमद के नाम से दर्ज है और वोटर आईडी कार्ड तथा वोटर लिस्ट में ज़ियाउद्दीन अली अहमद के पुत्र का नाम अकरम अली दर्ज है।

ऐसी परिस्थितियों में केवल भारतीय चुनाव ही ‘विशेष अनुमति’ देकर वोटर लिस्ट में सुधार करने की अनुमति दे सकता है और ‘विशेष अनुमति’ के तहत निर्देश जारी कर ज़ियाउद्दीन अली अहमद के आईडी कार्ड में सुधार करने की अनुमति दे सकते हैं, ताकि वे NRC में अपना नाम जुड़वाने के लिए विशेष आवेदन जमा कर सकें।

क्या उन्होंने यह प्रक्रिया शुरू की है? ज़ियाउद्दीन अली अहमद के पुत्र, साजिद अली अहमद ने कहा कि “दो साल पहले हमारे दादाजी के रूप में मतदाता सूची में दर्ज नाम के आधार पर मैंने स्वयं और मेरे पिता के नाम में सुधार के लिए आवेदन किया था, पर चुनाव आयोग ने उनके आवेदनों पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया और अगर आगे चलकर हमें NRC से बाहर रखा गया, तो बताइये इसके लिए कौन ज़िम्मेदार माना जाएगा?”

यह सिर्फ साजिद अली अहमद की कहानी नहीं है, उनके जैसे लाखों असमियों की कहानी है जो भारतीय चुनाव आयोग के बेपरवाह रवैय्ये की वजह से गैर-कानूनी रूप से डी-वोटर और घोषित विदेशी बता दिए गए।

 

अनुवाद सौजन्य – मनुकृति तिवारी

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