असम में मानवीय त्रासदी के खिलाफ CJP का अभियान भारतीय नागरिकों की मदद के लिए उतरी CJP टीम
23, Sep 2019 | CJP Team
असम में NRC की ड्राफ्ट लिस्ट प्रकाशित होने से पहले से ही सिटिजन फॉर जस्टिस एंड पीस, यानी CJP को समझ आ गया था कि राज्य में किस पैमाने की मुसीबत आएगी. तब से लेकर अब तक असम में CJP ने कई पहलकदमियां कीं. आइए उन पर एक नजर डालते हैं.
दिसंबर 2017 में असम में NRC ड्राफ्ट का एक हिस्सा प्रकाशित हुआ. इस ड्राफ्ट लिस्ट में एक करोड़ से ज्यादा लोग बाहर थे. साफ था कि लोगों ने जो वाजिब अनुमान लगाया था उससे ये काफी ज्यादा था. 1 मार्च 2018 में CJP ने वरिष्ठ मानवाधिकार वकील विपिन त्रिपाठी के जरिये विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की. इसके बाद हमने राज्य में पैदा होने जा रहे सिटिजनशिप संकट का बारीकी से अध्ययन करना शुरू किया. हमने यह जानने प्रयत्न किया कि किन आधारों पर लोगों को इस लिस्ट से निकाला जा सकता है. निष्कासन किस तरह के हैं और वे कौन से हालात हैं, जिनसे किसी का नाम इस लिस्ट से बाहर हो सकता है.
हमने जमीनी स्तर पर एक नेटवर्क बनाना शुरू किया ताकि डी-वोटर्स (D-Voters) घोषित विदेशी (Declared Foreigner) जैसे मुद्दों पर निगरानी रखी जा सके. हमने फॉरनर्स ट्रिब्यूनल में अपने नागरिकता के दावों का बचाव करने वालों और डिटेंशन कैंपों में कैद लोगों से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना शुरू किया है.
अब NRC की फाइनल लिस्ट आ चुकी है और 19,06,657 लोग इससे बाहर कर दिए गए हैं. CJP का काम अब और केंद्रित हो गया है. हमारा मकसद अब इस लिस्ट से बाहर किए गए लोगों की मदद करना है. साथ ही हम लोगों को फॉरनर्स ट्रिब्यूनल को अपनी नागरिकता के दावों को मजबूती से रखने में मदद कर रहे हैं. इसके लिए हमने पैरा लीगल कार्यकर्ताओं के लिए वर्कशॉप की एक पूरी सीरीज चलाई. हम मल्टीमीडिया ट्रेनिंग मैनुअल भी पब्लिश करने जा रहे हैं, जिसमें हम NRC के कानूनी पहलुओं, सबूतों से जुड़े नियमों और अदालती दृष्टांतों का जिक्र करेंगे, जिससे फॉरनर्स ट्रिब्यूनलों में दाखिल किए जाने वाले दावे कानूनी और तथ्यात्मक तौर पर पूरी तरह मजबूत हों. इससे हमारे पैरालीगल कार्यकर्ताओं को भी मदद मिलेगी. इससे वकीलों और असम में बड़े पैमाने पर समुदायों के भीतर NRC की लंबी प्रताड़ना से भरी प्रक्रिया से जूझने में लोगों को मदद मिलेगी. असम के लोगों की मदद की हमारी मुहिम की सहायता के लिए कृपया दान दें.
2018 के जून महीने में हमने नागरिकता के मुद्दे से प्रभावित लोगों के मामले सामने लाने के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग टीम असम भेजी थी. इस टीम की मुलाकात साकेन अली से हुई, जो सिर्फ अलग-अलग दस्तावेजों में अपने नाम में मामूली अंतर की वजह से डिटेंशन सेंटर में पांच साल तक डाल दिए गए थे. दो दस्तावेज में उनके नाम की स्पेलिंग अलग-अलग थी. इस वजह से उन्हें डिटेंशन सेंटर में पांच साल बंद रहना पड़ा. टीम की मुलाकात रश्मिनारा बेगम से हुई. जब उन्हें डिटेंशन सेंटर ले जाया गया, उस वक्त वे तीन महीने की गर्भवती थीं. उनके दस्तावेजों में सिर्फ जन्मतिथि के मामूली अंतर होने के कारण डिटेंशन सेंटर में डाल दिया गया. फैक्ट फाइंडिंग टीम ओनिमा दे से भी मिली. चाय बेचकर जीविका चलाने वाले उनके बेटे सुब्रत की लाश संदिग्ध परिस्थितियों में गोलपाड़ा डिटेंशन कैंप में मिली थी. असम में अपने दौरे के वक्त फैक्ट फाइंडिंग टीम को चिंता, लाचारी और निराशा का माहौल दिखा. यहां तक कि असम विधानसभा के पहले डिप्टी स्पीकर का परिवार भी इस त्रासदी से अछूता नही था. उनके परिवार को भी विदेशी घोषित कर दिया गया था.
जैसे-जैसे असम में फाइनल ड्राफ्ट प्रकाशित होने की तारीख नजदीक आ रही थी. वैसे-वैसे माहौल में चिंता बढ़ती जा रही थी. 30 जुलाई 2018 को एनआरसी का फाइनल ड्राफ्ट प्रकाशित हो गया. इसमें 40 लाख से ज्यादा लोगों को बाहर दिखाया गया था. इससे पूरे राज्य में सदमे की लहर फैल गई. हमने पाया कि जिन लोगों के नाम बाहर थे, उनमें में से 55 फीसदी महिलाएं थी. इनमें से कई बंगाली हिंदू थे. एक लाख लोग गोरखा समुदाय के थे और बड़ी तादाद में मुस्लिम कामगार वर्ग के लोग थे. लोगों में फैली इस अफरातफरी और डर को रोकने के लिए CJP ने कई स्तरों पर अपनी कोशिश शुरू की. इनमें टोल फ्री हेल्पलाइन स्थापित करने से लेकर, कम्यूनिटी वॉलंटियर्स का नेटवर्क, जिलों में काम करने वाले वॉलंटियर्स को उत्साहित करने वालों की टीम और फॉरनर्स ट्रिब्यूनल में दावों और उनकी सुनवाई के दौरान लोगों की मदद करने के लिए टीम का गठन शामिल है.
CJP की टोलफ्री हेल्पलाइन
हमने चार भाषाओं : असमिया, बांग्ला, हिंदी और अंग्रेजी में टोल-फ्री हेल्पलाइन शुरू की, ताकि लोगों को सही जानकारी देकर उनका डर दूर किया जा सके, यह फोन लगातार बजता रहता है, एक बार तो हमें एक ही दिन में 500 फोन कॉल मिले.
डिस्ट्रिक्ट वॉलंटियर मोटिवेटर्स
मुसीबत में लोगों की मदद करने की इच्छा से प्रेरित होकर आगे आने वाले लोगों की बदौलत हमने वॉलिंटयर्स मोटिवेटर्स की एक बड़ी टीम बनाई. क्योंकि हमने महसूस किया कि दूर दराज गांव में भी एक न एक परिवार NRC से प्रभावित हुआ था. कोई भी जातीय, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक समुदाय ऐसा नहीं था, जो इससे प्रभावित न हुआ हो. NRC से जुड़े सभी बिंदुओं पर हमने मिल कर काम किया. असम में मौजूद मानवाधिकार ग्रुप के साथ हमने मिलकर काम करने का जज्बा कायम किया, और उनके साथ गठजोड़ की. यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स और संविधान की समझ पर बने ऐसे गठजोड़ तुरंत मददगार और कारगर साबित हुए. आगे के हमारे काम के लिए अभी कई चुनौतियां हैं.
कम्यूनिटी वॉलंटियर्स
हमारा अगला चरण NRC में भारतीय लोगों का नाम जुड़वाने की जटिल और यंत्रणादायक प्रक्रिया में लोगों की मदद करने का था. CJP ने इसके लिए वॉलंटियर्स की पूरी टीम जोड़ी ताकि NRC प्रक्रिया से प्रभावित 19 जिलों में लोगों की मदद की जा सके. हमारे वॉलंटियर्स घर-घर जाकर लोगों को दस्तावेज हासिल करने में मदद कर रहे थे. उन्हें सही दस्तावेज दिलवा रहे थे ताकि ठीक तरीके से अपना दावा पेश कर सकें. इन वॉलंटियर्स ने जागरुकता कैंप चलाए ताकि लोगों को तथ्यों का पता चले. वे अफवाह या गलत जानकारी के चक्कर में न फंसें.
जब दावे और उन पर आपत्तियों की प्रक्रिया शुरू हुई तो हमने लोगों को उनके क्लेम फॉर्म भरने में मदद की ताकि दावे सही तरीके से किए जा सकें और उनका नाम NRC की फाइनल लिस्ट में आने से न चूक जाए.
फर्ज से ज्यादा
हमारे डिस्ट्रिक्ट वॉलंटियर्स मॉटिवेटर और कम्यूनिटी वॉलंटियर्स की टीम ने अभूतपूर्व काम किया है. विश्वनाथ जिले के दूर-दराज के इलाके में नवंबर 2018 में सिर्फ 40 घंटे के अंदर दस हजार फॉर्म भरे गए. हमने कोकराझार में सामंती तत्वों की बड़ी साजिश का पर्दाफाश किया, जहां लोगों का एक समूह ड्राफ्ट NRC में शामिल किए गए लोगों के खिलाफ झूठे आपत्ति पत्र भरने के लिए लोगों पर दबाव डाल रहा था. हमारा काम चुनाव के वक्त भी नहीं रुका. आपत्ति के लिए गए दावों की सुनवाई के दौरान भी हमने असम में बड़ी तादाद में परिवारों की मदद की. जब एक सुनवाई केंद्र के बाहर वहीं के एक जातीय मुस्लिम परिवार पर हमला किया गया तो हमने न उस परिवार के इलाज में मदद की, बल्कि प्रशासन से यह भी सुनिश्चित करवाया कि इस परिवार को पूरी तरह सुरक्षा मिले.
इस काम में हर कदम पर असम की सिविल सोसाइटी के स्थानीय समस्याओं से संघर्ष करते आ रहे अनुभवी सदस्यों और वरिष्ठ नागरिकों से हमें मदद मिली. CJP के असम स्टेट कोऑर्डिनेटर जमशेर अली का काम इस दिशा में बेहद महत्वपूर्ण है. उन्होंने इस दिशा में काफी गहराई तक काम किया है. हर तरह के सामंती और उपद्रवी तत्वों से लड़ने में हमारे समावेशी रुख ने बेहद मदद की. CJP की मौजूदगी ने जमीन पर भेदभाव और झगड़े की स्थिति पैदा नहीं होने दी. यह काम ऐसे वक्त में हुआ जब असम के गरीब और गैर साक्षर वर्ग के लोग सिटिजनशिप की दावेदारी के लिए ब्यूरोक्रेसी से जूझ रहे थे.
आगे की योजना
CJP ने बेहद प्रतिबद्ध वकीलों की मदद से असम में अपनी पहलकदमियों की योजना बनाई है. असहाय और आशंकित लोगों की मदद के लिए हमने उनकी काउंसिलिंग के साथ ही कई जिलों में लोगों को कानूनी सहायता मुहैया कराने की योजना बनाई है. हमारा यह अभियान बारपेटा, बोगाईगांव, कछार, चिरांग, दरांग, गोलपाड़ा, कामरूप, मोरीगांव, नागांव और सोनितपुर में शुरू होगा. हमारी टीम के एक्सपर्ट्स की ओर से एक विस्तृत मल्टीमीडिया मैनुअल बनाया जा रहा है. जिसे बड़े पैमाने पर प्रकाशित और वितरित किया जाएगा. हमारा केंद्र बिंदु फॉरनर्स ट्रिब्यूनल में लोगों के सिटिजनशिप दावों में कानूनी सहायता करने पर होगा.
CJP ने वकीलों और पत्रकारों को असम का दौरा कराया
जुलाई, 2019 में अतिरिक्त एक्सक्लूजन लिस्ट प्रकाशित होने के ठीक बाद CJP सीनियर वकीलों और पत्रकारों के एक दल को जमीनी हालात दिखाने असम ले गया. साथ ही उसने वास्तविक भारतीय नागरिकों खास कर कम आय वर्ग के लोगों की मदद के लिए एक रणनीति तय की ताकि फॉरनर्स ट्रिब्यूनल की जटिल प्रक्रिया के दौरान लोगों की सहायता की जा सके. यह दौरा फॉरनर्स ट्रिब्यूनल के कामकाज पर केंद्रित था. फॉरनर्स ट्रिब्यूनल से जुड़े कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनको सुलझाना बेहद जरूरी है
- फॉरनर्स ट्रिब्यूनल के कामकाज में ज्यादा पारदर्शिता की जरूरत है
- मीडिया को फॉरनर्स ट्रिब्यूनल के केस कवर करने की अनमुति मिलनी चाहिए
- जब फॉरनर्स ट्रिब्यूनल्स में ट्रायल की कार्यवाही हो तो वहां मदद करने वाले किसी मददगार की मौजूदगी को मंजूरी दी जाए
- “Projected Mother”, “Projected Father” जैसे शब्द खत्म किए जाएं. डीएनए टेस्ट के लिए प्रावधान होना चाहिए. इस प्रक्रिया के लिए लोग अपनी अनुमति दें, और इसकी व्यवस्था हो.
- भले ही नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी लोगों पर हो, लेकिन इस मामले में साक्ष्य अधिनियम के प्रावधान लागू होने चाहिए
- प्रशासन को इस बात को संज्ञान में लेना चाहिए किफॉरनर्स ट्रिब्यूनल में नागरिकता साबित करने की प्रक्रिया में लोगों के पास क्या सुविधाएं हैं. खास कर आधिकारिक दस्तावेजों की प्रोसेसिंग के दौरान यह देखना जरूरी है. उसे इस चीज को मानना होगा कि कम आय वर्ग और गैर साक्षर लोगों के लिए ये दस्तावेज हासिल करना अत्यंत मुश्किल काम है.
हमारी मुलाकात विश्वनाथ दास से भी हुई. रिक्शा चालक विश्वनाथ दास की 70 वर्षीय मां पार्वती दास, दो साल आठ महीने से कोकराझार के डिटेंशन कैंप में बंद हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पार्वती अगले चार महीने में वहां से रिहा हो जाएंगी. लेकिन दास को इस बात की आशंका है, बाहर निकलने के बाद उनकी मां ज्यादा दिन तक नहीं बचेंगी क्योंकि डिटेंशन कैंप में उनका स्वास्थ्य बुरी तरह खराब हो गया है. उन्हें विदेशी घोषित कर दिया गया था कि क्योंकि वह इस बात का सबूत नहीं दे पाई थीं कि उनके पिता कौन थे. यह कम आय वर्ग और सामाजिक तौर पर पिछड़े समुदाय की महिलाओं के साथ आम उत्पीड़न है.
मोरीगांव के ही हांसछाड़ा गांव में हमारी ऐसी ही कई महिलाओं से मुलाकात हुई. इनमें से कुछ गृहणियां थीं. कुछ मजदूरी करती थीं और कुछ घरेलू नौकरानी थीं. कुछ की काफी उम्र हो गई थी, और कुछ विधवा थीं. सभी बेहद कमजोर और गरीब. शायद ही इनमें से किसी के पास बर्थ सर्टिफिकेट है. उनकी शादियां छोटी उम्र में हो गई थी. इनमें से अधिकतर महिलाओं का जन्म अस्पताल में नहीं हुआ था. ये महिलाएं गैर साक्षर हैं और इसलिए उनके पास स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट भी नहीं है. इनकी शादियां जल्दी हो गई थीं और इनका नाम सिर्फ गांव के वोटर लिस्ट में है. उस गांव के वोटर लिस्ट में जिनमें उनके पति का परिवार रहता है. पंचायत सेक्रेट्री या ग्राम प्रधान का सर्टिफिकेट एक कमजोर दस्तावेज माना जाता है. इसलिए नागरिकता के प्रमाण के लिए इससे ज्यादा मजबूत सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ती है.
CJP सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
अगस्त, 2019 में CJP ने यह तय किया कि कोई भी वास्तविक भारतीय नागरिक को दिक्कत नहीं होनी चाहिए. लिहाजा हमने सुप्रीम कोर्ट में वाद दायर कर सिटिजनशिप के विचार पर गौर करने और गैरकानूनी आप्रवासियों की परिभाषा तय करने की दरख्वास्त की. पिटिशन में सेक्शन 3 (जन्म से नागरिकता) सेक्शन 6 (स्वाभाविक्ता से नागरिकता), जिसमें सिटिजन एक्ट 1955 का सेक्शन 6 (ए) भी जुड़ा है, की ओर कोर्ट का ध्यान खींचा. पिटिशन ने सिटिजनशिप रूल्स, 2003 के रूल नंबर 4 ए उजागर करते हुए हमने बताया कि इसका सिटिजनशिप एक्ट के साथ अंतर्विरोध दिख रहा है. लिहाजा नागरिकता तय करने में असम में इसे लागू नहीं किया जा सकता है.
CJP ने पैरालीगल वर्कशॉप का आयोजन किया
सिटिजन फॉर जस्टिस एंड पीस की यह कार्यशाला 22 से 24 अगस्त 2019, तक गुवाहाटी में हुई थी. और इसमें आशीष दासगुप्ता (कानूनी मामलों के विद्वान और सीनियर एडवोकेट, एचआरए चैधुरी (लेखक, कानूनी मामलों के विद्वान और गुवाहाटी हाई कोर्ट के सीनियर एडवोकेट), बिजन चंद्र दास (त्रिपुरा के पूर्व एडवोकेट जनरल), बिकास रंजन भट्टाचार्य (त्रिपुरा के पूर्व एडवोकेट जनरल), मिहिर देसाई (सीनियर एडवोकेट, बांबे हाई कोर्ट), अब्दुल रहमान सिकदर (सीनियर एडवोकेट, गुवाहाटी हाई कोर्ट और मृणमय दत्ता (एडवोकेट, गुवाहाटी हाई कोर्ट) ने हिस्सा लिया. इनके अलावा जाने-माने विद्वान प्रोफेसर अब्दुल मन्नान (गुवाहाटी यूनिवर्सिटी), अमल कांति राहा (पांडु कॉलेज में बांग्ला भाषा के पूर्व एचओडी) ने भी वर्कशॉप में हिस्सा लिया.
जाने-माने अर्थशास्त्री अनंत कलिता (पूर्व चेयरमैन, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स, एसबीआई), सिविल सोसाइटी मेंबर हरेश्वर बर्मन (पूर्व सदस्य AASU और संमिलिता जनोगोस्थीय संग्राम समिति के संस्थापक सदस्य) और सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल बतिन खांडाकर ने भी अपने बहुमूल्य विचार रखे. इनामउद्दीन, मुल हक, अजीजुर्र रहमान, मुस्तफा खद्दाम हुसैन जैसे जाने-माने वकीलों ने पैरालीगल कर्मियों के लिए आयोजित सत्र में उन्हें NRC से जुड़े मुद्दों की जानकारी दी.
इस कार्यशाला में कानूनी क्षेत्र में काम करने वाले 100 वकीलों, पैरालीगल कर्मियोयं और अलग-अलग पृष्ठभूमियों के कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया. आपसी संवाद और ट्रेनिंग मुहैया कराने वाले सत्रों में उन्हें NRC से जुड़े मुद्दों की बारीकियां समझाई गईं. ट्रेनिंग सत्र में पूरे असम से प्रशिक्षु आए थे. इनमें से कई तो दूर-दराज के इलाकों बारपेटा, बक्शा, चिरांग, धेमाजी, सोनितपुर और बोंगाईगांव से आए थे. कार्यशाला में NRC से जुड़ी सभी बारीकियों के अलावा सिटिजनशिप से जुड़े मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले की जानकारी दी गई ताकि 31 अगस्त को NRC के पब्लिकेशन के बाद जटिल प्रक्रियाओं को समझा जा सके और नागरिकता के दावों को अच्छी तरह से पेश किया जा सके.
हताशा, मौतें और डिटेंशन सेंटर
असम में डिटेंशन कैंप फॉरनर्स रूल्स 1964 के तहत बनाए गए थे. इनकी खराब हालातों ने लोगों में एक हताशा भर दी है. असम के साथ अपने गहरे नातों की वजह से CJP ने एक फिल्म Behind Shadows, Tales of Injustice from Assam’s Detention Camp बनाई है.
CJP ने नागरिकता से सम्बंधित मृत्युओं की सूची बनाई
हमने असम में नागरिकता और NRC से जुड़ी मौतों की सूची तैयार की है. इसके मुताबिक 18 जुलाई 2019 तक मारे गए 60 लोगों की मौतों की वजह सिटिजनशिप का मुद्दा था. कुछ लोगों की मौत सदमे की वजह से हो गई. कुछ लोगों ने हताश होकर आत्महत्या कर ली. कुछ ने चिंता और NRC में नाम शामिल कराने में नाकाम होने पर खुदकुशी कर ली. कुछ ने डिटेंशन कैंपों के भय से मौत को गले लगा लिया. कुछ लोग डिटेंशन कैंपों में रहस्यमयी परस्थितियों में मरे पाए गए. जैसे-जैसे असम में NRC की फाइनल लिस्ट आने का वक्त हो रहा था. मगर कुछ लोगों के लिए उम्मीद की किरण भी दिख रही थी. कम से कम दस और शायद एक महिला समेत 13 लोगों को डिटेंशन कैंप से मुक्ति मिली थी. ऐसा सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस साल सुनाए गए एक फैसले की वजह से संभव हुआ था
CJP ने हासिल किए मौतों के आंकड़े
CJP की निर्भिक पत्रकारिता ने इस मुद्दे के आंकड़ों पर बारीक नजर रखी. असम विधानसभा में राज्य सरकार ने स्वीकार किया कि डिटेंशन कैंपों में कैद किए लोगों में से 25 लोगों की मौत हो गई. इनमें सुब्रत दे, जोब्बार अली और अमृत दास जैसे लोग थे. इन तीनों लोगों की दिल दहलाने वाली कहानियां हमने आपके सामने रखी थी. दे और अली की मौत रहस्यमयी माहौल में हुई. दोनों के परिवारों का मानना है कि उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई. लेकिन सरकार की ओर से कहा गया कि उनकी मौत बीमारी की वजह से हुई.
हमने उन लोगों की सूची हासिल की जिनकी डिटेंशन कैंपों में मौत हुई थी. हमने पाया कि गोलपाड़ा डिटेंशन कैंप की स्थिति सबसे खतरनाक थी और यहाँ रहने वाले दस लोगों की मौत हो गई थी. तेजपुर कैंप में नौ लोगों की मौत हुई थी. कछार जिले के सिलचर डिटेंशन कैंप में तीन लोगों की मौत हुई थी. एक महिला समेत दो लोगों की मौत कोकराझार डिटेंशन कैंप में हुई थी. जबकि जोरहाट कैंप में एक शख्स की मौत हुई थी. मरने वाले लोगों में चैदह मुस्लिम, दस हिंदू और एक चाय बागान में काम करने वाले आदिवासी समुदाय के थे.
अभी असम में छह डिटेंशन कैंप हैं. गोलपाड़ा, कोकराझार, सिलचर, जोरहाट, तेजपुर और डिब्रूगढ़ में ये डिटेंशन कैंप हैं. खबर है कि राज्य के दूसरे इलाकों में भी इस तरह के डिटेंशन सेंटर बनेंगे.
संसद में असम
लोकसभा में गृह मंत्रालय ने एक चैंकाने वाला आंकड़ा देकर स्वीकार किया कि राज्य में फॉरनर्स ट्रिब्यूनल ने इकतरफा कार्रवाई करते हुए 60 हजार से अधिक लोगों को विदेशी घोषित कर दिया है. गृह मंत्रालय, कांग्रेस नेता शशि थरूर के सवाल के जवाब में यह जानकारी दे रहा था. गृह मंत्रालय ने यह स्वीकार किया कि 1985 से लेकर 28 फरवरी 2019 तक 63,959 लोगों को फॉरनर्स ट्रिब्यूनल ने अपनी ओर से विदेशी घोषित कर दिया है.
गृह मंत्रालय ने कहा कि असम में इस वक्त छह डिटेंशन सेंटर हैं. 25 जून 2019 तक उनमें 1133 लोग बंद थे. इनमें से 769 लोग एक साल से बंद हैं और 335 लोग तीन साल से अधिक वक्त से. गृह मंत्रालय ने कहा कि यहां बंद कैदियों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता मुहैया की जा रही है. डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी यह काम कर रही है.
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