असम: “रूटीन जांच” के बाद 14 लोगों को डिटेंशन कैंप भेजा गया 31 अक्टूबर 2023 को इन लोगों को हिरासत में लिया गया था, तब से ही सीजेपी पैरा लीगल सहायता मुहैया करा रही है

29, Nov 2023 | CJP Team

31 अक्टूबर 2023 को असम के बक्सा जिले के 14 लोगों को विदेशियों के लिए बने हिरासत शिविर में भेज दिया गया है।

इन 14 लोगों को मटिया डिटेंशन कैंप, जिसे हाल में “शरणार्थी शिविर” का नाम दिया गया है,  में भेज दिया गया। यह औचक कार्रवाई तब की गई जब फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (एफटी)1  ने अचानक इन सभी को “विदेशी” घोषित कर दिया जबकि इनके पास किसी अन्य वैध भारतीय नागरिक की तरह सभी आवश्यक दस्तावेज़ थे। एफटी की तरफ से कई लोगों को विदेशी घोषित करने के निर्णयों की गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने भी आलोचना की है। इन्हें कैद करने से क्षेत्र में चिंता और भय फैल गया है। हिरासत में लिए लोगों में बूढ़े और युवा – माएं, पिता, दादा-दादी – जैसे लोग हैं और बक्सा जिले के अलग-अलग हिस्सों जैसे सलबारी, गोबर्धन, बरमा आदि से हैं।

CJP की समर्पित असम टीम, कम्यूनिटी वॉलंटियर्स, डिस्ट्रिक्ट वॉलंटियर मोटिवेटर्स और वकीलों की टीम असम के क़रीब 24 ज़िलों में नागरिकता संकट से जूझ रहे लोगों को क़ानूनी सहयोग, काउंसलिंग और मनोवैज्ञानिक मदद के लिए लगातार काम कर रही है. 2017 से 19 के बीच हमारी अगुवाई में अभी तक क़रीब 12,00,000 लोगों ने सफलतापूर्वक NRC फ़ार्म भरे हैं. हम ज़िला स्तर पर भी प्रति माह फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के केस लड़ते हैं और हर साल क़रीब 20 ऐसे मामलों में कामयाबी हासिल करते हैं. हमारे अनवरत प्रयासों की बदौलत अनेकों लोगों की भारतीय नागरिकता बहाल हुई है. ज़मीनी स्तर के ये आंकड़े CJP द्वारा संवैधानिक अदालतों में सशक्त कार्रवाई और मज़बूत पैरवी सुनिश्चित करते हैं. आपका सहयोग हमें इस महत्वपूर्ण काम को जारी रखने में मदद करता है. समान अधिकारों के लिए हमारे साथ खड़े हों. #HelpCJPHelpAssam. हमें अपना सहियोग दें।

31 अक्टूबर, 2023 को क्या हुआ?

31 अक्टूबर को परिवारों को अधिकारियों ने जब सुबह आठ बजे स्थानीय सीमा शाखा में बुलाया तो उन्होंने समझा कि दस्तावेज़ों की रूटीन जांच होगी। लेकिन, उन्होंने खुद को भयावह हालात में पाया। दोपहर दो बजे तक लोगों के चिकित्सीय परीक्षण करवाकर मुशालपुर पुलिस स्टेशन ले जाया गया। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। उस रात मुशालपुर पुलिस स्टेशन में जिन्हें हिरासत में लिया जाना था, परिवारों से अलग करने का प्रयास किया गया। इससे और अफरातफरी मच गई जब परिवार के अन्य सदस्यों को पुलिस चौकी से बाहर कर दिया गया, जबकि उनके रिश्तेदार अंदर थे और उन्हें पता नहीं था कि निकट भविष्य में क्या होने वाला है। पुलिस स्टेशन से रोने-चिल्लाने की आवाज़ें सुनी गईं; वहाँ मौजूद लोग समझ गए कि बाकी लोगों को हिरासत शिविर ले जाया जाएगा। जिन्हें हिरासत में लिए गया था उन्हें अपना सामान सहेजने या घर पर अपने परिजनों को सूचना देने का कोई मौका नहीं दिया गया।

जैसे रात गहराने लगी, कुछ मीडियाकर्मी भनक लगते ही वहाँ पहुंचे और घटना की खबर सामने आई। इसके बाद अशरफ अली, जो पुलिस द्वारा अलग किए जाने से पहले अपने पिता जहूर अली और माँ सरीफा बेगम के साथ थे, ने सीजेपी टीम को घटना का विस्तृत विवरण दिया।

हिरासत में लिए गए लोगों के परिजनों से मुलाकात

सिटीजंस फॉर जस्टिस एण्ड पीस (सीजेपी) ने हिरासत में लिए 14 लोगों के नाम जुटाए। सीजेपी की एक टीम हिरासत में लिए गए कुछ लोगों के परिवारों से लगातार मिल रही है।

  • परिमाण नेस्सा – भकुमारी, सलबारी से
  • हौशी खातून – भकुमारी, सलबारी से
  • सिद्दीक अली – भरबेरी, बरमा से
  • फ़ज़ीरन बेगम – भरबेरी, बरमा से
  • अनोवारा खातून – भकुमारी, सलबारी से
  • रहिमान नेस्सा – भकुमारी, सलबारी से
  • जहूर अली – गढ़भितर, बरमा
  • सरीफा बेगम – गढ़भितर, बरमा
  • माइज उद्दीन रग़बबिल, गोबर्धन
  • अमजद अली – भकुमारी, सलबारी से
  • मकबूल हुसैन – कुठूरीझार, गोबर्धन
  • माफिदा खातून –  कुठूरीझार, गोबर्धन
  • हामिद खातून – कुठूरीझार, गोबर्धन
  • जहांआरा खातून आलेंगमरी, गोबर्धन

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सीजेपी ने मदद का हाथ बढ़ाया

असम में नागरिकता संकट प्रदेश के अधिकारियों के हाथों में गरीब और हाशिये के लोगों को प्रताड़ित करने का एक औजार बन गया है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सिद्धांतों के आधार पर सीजेपी के असम प्रभारी नंदा घोष और कानूनी टीम सदस्य अभिजीत चौधुरी इन्हें नैतिक समर्थन मुहैया कराने, परिजनों से मुलाकात करवाने और जहां संभव हो कानूनी मदद करने के प्रयास कर रहे हैं। ऐसे मामलों में जहां पीड़ित परिवारों को हिरासत में लिए गए अपने परिजनों से बंदी शिविर में जाकर मिलने में दिक्कत होती है, असम में सीजेपी की टीम ऐसी मुलाकातें कराने में मदद करती है। अपने परिजनों/रिश्तेदारों के हिरासत शिविरों में जाने के कारण परिवारों पर मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा है और पूरा माहौल हताशा और निराशा से भर गया लगता है। सीजेपी टीम की एक ऐसी मुलाकात के दौरान, एक चार वर्षीय बच्चा, जो समझ नहीं पा रहा था कि क्या हो रहा है, ने पूछा, ओरा मा’क निया गएसएगा?” (वह मेरी माँ को ले गए?”

सीजेपी के नंदा घोष कहते हैं कि जिन्हें हिरासत में लिया गया है उनमें से कइयों के पास किसी भी भारतीय नागरिक की तरह दस्तावेज़ हैं। लेकिन, हिरासत में लिए जाने की ऐसी दिल तोड़ने वाली कहानियों के सामने आने के बाद लगता है कि कोई प्रमाण नहीं चल रहा।

टीम के क्षेत्र के दौरे में कोरिमोन नेस्सा, जो देशी मुस्लिम समुदाय[2] की सदस्य हैं, की हृदय  विदारक दास्तान सामने आई। कोरिमोन (परिमोन) नेस्सा को बक्सा जिले के भकुमारी गाँव से ले जाया गया था। वह तीन बच्चों की माँ हैं और उनके हिरासत में जाने से परिजनों की बुरी हालत है। उनके पति बहुत बीमार और विकलांग हैं और तीन बच्चे किशोरावस्था में हैं। बच्चे ही अब पिता की देखभाल भी कर रहे हैं और घर के अन्य कार्य भी संभाल रहे हैं।

सीजेपी की टीम हौशी खातून के परिवार से भी मिली, जो हिरासत शिविर में हौशी से मिलने की कोशिश में लगा था। परिवार ने बेहद मुश्किल और महंगी यात्रा की और हिरासत शिविर गए जो बहुत दूर स्थित है। हौशी के पति ने बताया कि उनसे मिलने पर हौशी बेतहाशा रो पड़ीं। हौशी के 11 वर्षीय बेटे अब्दुला, जो अपनी माँ के बिना दुखी हो गया है, ने टीम को बताया, “माँ को रोते देखकर मैं भी रोने लगा। मैं कभी अपनी माँ से दूर नहीं रहा।”

इन 14 एफटी निर्णयों में से अधिकांश 2020 के अंत अथवा 2021 की शुरुआत में आए थे: कई परिवारों ने इन निर्णयों को गुवाहाटी उच्च न्यायालय में चुनौती दी हुई है।

अशरफ अली ने सीजेपी से बातचीत में बताया कि उनसे कैसे अमानवीय बर्ताव किया गया। अली अपने अभिभावकों जहूर अली और सरीफा बेगम के साथ थे जब दोनों को हिरासत में लेकर उन्हें अलग किया गया। मतदाता पहचान पत्र के अनुसार जहूर लगभग 85 वर्ष के हैं और सरीफा 79 वर्ष की हैं; दोनों गोरिया-मोरिया मुस्लिम समुदाय से हैं। उनके बेटे, अशरफ बताते हैं कि न सिर्फ उनके पास वह दस्तावेज़ हैं जो आज सरकार चाहती है, बल्कि उनके पास ऐसे दस्तावेज़ भी हैं जो भारत में उनकी मौजूदगी अंग्रेजी शासन के समय से साबित करते हैं। परिवार के अधिकांश विवरण की गाँव बुर्राह (प्रमुख) प्रभात दास भी पुष्टि करते हैं जो कहते हैं कि जहूर अली ने 1963 में मैट्रिक की परीक्षा दी थी और पहला वोट 1965 में दिया था। जहूर और सरीफा की छोटी नातिन अपने आँसू नहीं रोक पाई जब सीजेपी टीम परिवार से मिलने गई थी। नौ साल की बच्ची ने रोते हुए कहा- उनके दादा-दादी गैरकानूनी विदेशी या बांग्लादेशी नहीं हैं।

सीजेपी ने हाल ही में 50 से ज्यादा भारतीयों को फिर से अपनी नागरिकता दिलाने में मदद की है। सीजेपी की असम टीम इन 14 प्रभावित परिवारों में से भी कइयों को अपने अर्धकानूनी मदद, दस्तावेज़ संबंधी मदद और नैतिक समर्थन दे रही है, जिनमें से अधिकांश अब गुवाहाटी उच्च न्यायालय से कानूनी गुहार लगाएंगे।

इस समय, सीजेपी टीम कोरिमोन नेस्सा के परिवार से बात कर रही है और उनके दस्तावेज़ों पर कार्य कर रही है और उम्मीद है कि गुलाहाटी उच्च न्यायालय से गुहार लगाकर उन्हें और उनके परिवार को न्याय दिलाने की कोशिश की जाएगी। अन्य मामलों में भी जहां अर्धकानूनी सहायता और दस्तावेजीकरण संभव है, टीम सक्रिय रूप से मदद का प्रयास कर रही है।

(1) असम के फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल अर्ध न्यायिक इकाइयों की तरह काम करती हैं जिनके पास फॉरेनर्स एक्ट, 1946 के तहत विदेशियों, गैर नागरिकों और डी – वोटरों से संबंधित मामले निर्णीत करने की न्यायिक क्षमता है। इन हिरासत शिविरों के अंदर शोचनीय मानवाधिकार स्थितियों पर सवाल उठे हैं और बंदियों की शिनाख्त और इन्हें शिविर भेजे जाने की विवादास्पद कसौटी पर भी सवाल उठे हैं।

(2) 2022 में, असम सरकार ने आधिकारिक रूप से स्वीकार किया था कि प्रदेश में 40 लाख असमिया भाषी मुस्लिम “मूल असमिया मुस्लिम हैं” और उन्हें देशी असमिया समुदाय का विशिष्ट हिस्सा माना था।

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