
विभाजनकारी बयान: भाजपा सांसद के भागलपुर भाषण में मुसलमानों को निशाना बनाया गया, CJP ने चुनाव कानूनों के उल्लंघन का दावा करते हुए शिकायत दर्ज कराई राज्य चुनाव आयोग को दी गई सीजेपी की शिकायत में चेतावनी दी गई है कि इस तरह की बयानबाजी लोकतांत्रिक सभ्यता को नष्ट करती है और सामाजिक शांति को खतरे में डालती है।
19, Nov 2025 | CJP Team
बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी और भारत के चुनाव आयोग को 12 नवंबर, 2025 को सौंपी गई एक विस्तृत शिकायत में सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) ने भाजपा सांसद अश्विनी कुमार चौबे के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने 9 नवंबर को भागलपुर के पीरपैंती में एक चुनाव प्रचार के दौरान “सांप्रदायिक, अपमानजनक और जनसंख्या को लेकर टिप्पणी” की।
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) लागू होने के बीच, वरिष्ठ भाजपा नेता और वर्तमान सांसद चौबे ने एक ऐसा भाषण दिया जिसका सीधा निशाना राज्य की मुस्लिम आबादी थी। अपने संबोधन में, उन्होंने “मुस्लिम भाइयों” से “अपनी आबादी कम करने” की अपील की और दावा किया कि “सीमा पार से घुसपैठिये आ रहे हैं।” सीजेपी ने कहा कि इस टिप्पणी में जानबूझकर भारतीय मुसलमानों को अवैध प्रवासियों के साथ जोड़ दिया गया और मतदाताओं में डर और पूर्वाग्रह पैदा करने के लिए सांप्रदायिक रूढ़िवादिता का इस्तेमाल किया गया।
सीजेपी हेट स्पीच के उदाहरणों को खोजने और प्रकाश में लाने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि इन विषैले विचारों का प्रचार करने वाले कट्टरपंथियों को बेनकाब किया जा सके और उन्हें न्याय के कटघरे में लाया जा सके। हेट स्पीच के खिलाफ हमारे अभियान के बारे में अधिक जानने के लिए, कृपया सदस्य बनें। हमारी पहल का समर्थन करने के लिए, कृपया अभी दान करें!
सीजेपी ने चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और अखंडता की रक्षा के लिए चुनाव आयोग और राज्य प्राधिकारियों से तत्काल हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है।
धर्म और विदेशी पहचान का एक खतरनाक घालमेल
शिकायत के अनुसार, चौबे की टिप्पणियां चुनावी बयानबाजी से कहीं आगे जाती हैं। ये नफरत फैलाने वाली एक सोची–समझी कार्रवाई हैं, जिसमें भारतीय मुसलमानों को जनसांख्यिकीय खतरा और विदेशी घुसपैठियों के रूप में चित्रित किया गया है – एक ऐसा नारेटिव जो चुनाव अभियानों में चिंताजनक रूप से बार–बार इस्तेमाल किया जाने लगा है।
उन्होंने यह कहा कि, “हमारी जनसंख्या भी घट रही है। मैं अपने मुस्लिम भाइयों से भी अपील करता हूं कि अपनी जनसंख्या कम करें। घुसपैठिये सीमा पार से आ रहे हैं… हमारी सरकार उन्हें हटाने के लिए काम कर रही है।” सांसद ने नागरिक और गैर–नागरिक के बीच की सीमा को खत्म कर दिया, जिसका मतलब था कि मुसलमानों की मौजूदगी ही संदिग्ध है।
सीजेपी की शिकायत इस बात पर जोर देती है कि इस तरह की बयानबाजी भारतीय मुसलमानों का राष्ट्र–विहीन करती है, उन्हें अपने ही देश में बाहरी लोगों के रूप में पेश करती है – एक ऐसा कदम जो चुनावी फायदा हासिल करने के लिए धार्मिक पहचान को हथियार बनाता है।
चुनावी और आपराधिक कानून का स्पष्ट उल्लंघन
सीजेपी की शिकायत में विस्तार से बताया गया है कि यह भाषण किस तरह कानून के कई प्रावधानों का उल्लंघन करता है:
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत:
– धारा 123(3) और (3ए) – धार्मिक आधार पर अपील करने और समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने पर रोक लगाता है।
– धारा 125 – चुनावों के संबंध में नफरत को बढ़ावा देना दंडनीय अपराध है।
– धारा 123(2) – धमकी या सांप्रदायिक डर के जरिए से मतदाताओं पर अनुचित प्रभाव डालने से संबंधित है।
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अंतर्गत:
– धारा 196 – समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना।
– धारा 297 – सार्वजनिक शरारत को बढ़ावा देने वाले बयान।
– धारा 356 – समूह की गरिमा को ठेस पहुंचाना।
संगठन ने आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का भी हवाला दिया, जो स्पष्ट रूप से धर्म की दुहाई देने या सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाले कार्यों पर रोक लगाती है और अनुच्छेद 14, 15, 19, 21 और 25 के संवैधानिक उल्लंघनों का भी हवाला दिया – जो सभी नागरिकों को समानता, सम्मान और अंतःकरण की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं।
इस्लामोफोबिक बयानबाजी का एक पैटर्न
भागलपुर जिले का एक निर्वाचन क्षेत्र, पीरपैंती, मिलीजुली आबादी वाला क्षेत्र है और सांप्रदायिक संवेदनशीलता का इतिहास रहा है। इस संदर्भ में, सीजेपी ने चेतावनी दी कि इस तरह की भड़काऊ टिप्पणियों में “खतरनाक ध्रुवीकरण क्षमता” होती है जैसे मुस्लिम नागरिकों को अलग–थलग करना, पूर्वाग्रह को सामान्य बनाना और चुनाव को नीति के बजाय पहचान की लड़ाई तक सीमित कर देना शामिल है।
शिकायत में चौबे की टिप्पणियों को चुनावी इस्लामोफोबिया के एक व्यापक और चिंताजनक पैटर्न के अंतर्गत रखा गया है, जहां जनसांख्यिकीय मिथकों और सीमा संबंधी चिंताओं का बार–बार भारत के मुस्लिम नागरिकों को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें चेतावनी दी गई है कि नफरत से प्रेरित राजनीति का यह रूप धर्म और डर की भाषा के जरिए नागरिकता को ही पुनर्परिभाषित करने का प्रयास करता है कि कौन नागरिकता का हकदार है और कौन नहीं।
चौबे के बयानों को “शासन और राष्ट्रवाद की आड़ में फैलाया गया नफरती प्रचार” बताते हुए, शिकायत में जोर देकर कहा गया है कि इस तरह का आचरण लोकतंत्र की मूल भावना को ही नष्ट कर देता है। इसमें कहा गया है कि सांप्रदायिक अपीलें न केवल मतदाताओं की पसंद को विकृत करती हैं, बल्कि कट्टरता को शासन के एक रूप में वैध भी बनाती हैं, जिससे भारत की धर्मनिरपेक्ष नींव कमजोर होती है।
सीजेपी ने सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख उदाहरणों का हवाला दिया, जिनमें अभिराम सिंह बनाम सी.डी. कॉमाचेन (2017) शामिल है जो चुनावों में धार्मिक अपीलों पर रोक लगाता है और प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारत संघ (2014), जिसने अभद्र भाषा को समानता और बंधुत्व पर हमला माना है।
सीजेपी की प्रार्थना और मांगें
शिकायत के जरिए सीजेपी ने भारत के चुनाव आयोग और बिहार के चुनाव अधिकारियों से आग्रह किया है कि:
- इस शिकायत का तत्काल संज्ञान लें।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत अश्विनी कुमार चौबे के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करें।
- जांच लंबित रहने तक उन्हें आगे चुनाव प्रचार करने से रोकें।
- सभी राजनीतिक दलों को सांप्रदायिक अपीलों से दूर रहने के लिए सार्वजनिक निंदा और सलाह जारी करें।
शिकायत का समापन चुनाव आयोग से अनुच्छेद 324 के तहत स्वतंत्र, निष्पक्ष और धर्मनिरपेक्ष चुनाव कराने के संवैधानिक आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने का आह्वान करते हुए किया गया है।
शिकायत यहां पढ़ी जा सकती है।
Image Courtesy:hindustantimes.com
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