परिसीमन या ध्रुवीकरण? वाराणसी नगर निगम चुनाव के पहले उठ रहे सवाल आम लोगों का कहना है की नए वार्डों के नाम हिन्दू धार्मिक स्थलों पर रखना और वहां महिला रिजर्वेशन कर देना लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हनन है और ध्रुवीकरण की कोशिश है
12, Dec 2022 | फ़ज़लुर रहमान अंसारी
एक तरफ जहां परिसीमन आने के बाद नये वार्ड नगर निगम सीमा में शामिल कर पुराने वार्डों को इनमें मर्ज करते हुए इनके नए नामकरण किए गए हैं. तो वहीं, कई नए वार्ड भी बना दिए गए हैं बनारस में वार्ड परिवर्तन के नाम पर हिंदू और मुस्लिमों के बीच दूरी बढ़ाई जा रही है इसकी बड़ी वजह यह है कि, एक तरफ जहां 10 नए वार्ड बनने के बाद इनके नाम वहां मौजूद हिंदू धर्म के प्राचीन मंदिरों के नाम पर कर दिए गए हैं. वहीं, ज्ञानवापी आदि विश्वेश्वर समेत बिंदुमाधव और कृति वाशेश्वर जैसे धार्मिक स्थल जो विवादित माने जाते हैं उनके नाम पर नए वार्डों का नाम रख दिया गया है. जो ध्रुवीकरण की वजह बनता जा रहा है.
दरअसल, वाराणसी में नए परिसीमन के बाद बेनियाबाग क्षेत्र जो मुस्लिम बाहुल्य इलाका माना जाता है, उस वार्ड का नाम परिवर्तन करके आदि विश्वेश्वर कर दिया गया है. आदि विश्वेश्वर का स्थान ज्ञानवापी को माना जाता है. जो विवादित है इसका केस कोर्ट में है. वहीं, पंचगंगा घाट के निकट मौजूद विवादित धरहरा मस्जिद जिसे बिंदु माधव मंदिर के रूप में जाना जाता रहा है, उस स्थान के नाम पर गढ़वासी टोला का नाम रखा गया है. जो पुराने वार्ड के रूप में पहचान बना चुका था. इसके अलावा अनार वाली मस्जिद के रूप में कतुआपुरा वार्ड के नाम में भी परिवर्तन कर दिया गया है. अब इस वार्ड को यहां इस विवादित स्थल पर मौजूद कृति वाशेश्वर महादेव वार्ड के नाम से जाना जाएगा.
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इन वार्डों के नाम परिवर्तन को भले ही बड़े ही सामान्य तरीके से सत्तारूढ़ पार्टी देख रही हो, लेकिन इस पर मुस्लिमों में काफी नाराजगी है. ये ऐसे तीन स्थल हैं जो विवादित माने जाते हैं हिंदुत्व की राजनीती करने वालो का मानना है कि औरंगजेब ने वाराणसी के इन्ही तीन स्थानों पर प्राचीन मंदिरों को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था.
कुछ ऐसे वार्ड भी हैं जो मुस्लिम बाहुल्य इलाके माने जाते थे. यहां मतदाताओ के हिसाब से मुस्लिम समुदायों की आबादी भी बहुत अच्छी-खासी संख्या में थी. लेकिन, इन वार्डों को पुराने वार्डों में मिलाते हुए वहां मौजूद मंदिरों के नाम पर कर दिया गया है. जिसमे जैतपुरा वार्ड का नाम बागेश्वरी देवी, नवाबगंज वार्ड का नाम दुर्गाकुंड, लहंगापुरा वार्ड नाम पितृकुण्ड, छितनपुरा का नाम ओमकालेश्वर, लक्सा वार्ड का नाम सूर्यकुंड, हबीबपुरा वार्ड का नाम पिशाचमोचन, नवापुरा का नाम हनुमान फाटक कर दिया गया है.
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता, बाबू नियाज़ जो एक बुनकर है उनका कहना है कि यह सिर्फ और सिर्फ जनता को भ्रमित करने का तरीका है. काम किया नहीं गया है, हाउस टैक्स बढ़ा दिया गया है. गड्ढा मुक्ति सड़को की बात करके गड्ढा युक्त सड़के अब तक बनी हुई है. मुस्लिम वार्डो में सफाई हफ्ते में एक ही बार होती है बाकी दिनों में सफाई कर्मी को घाटों पर या वीआईपी ड्यूटी पर लगा दिया जाता है. मुस्लिम वार्डों में विकास जो हुए ही नहीं उसकी सच्चाई को छुपाने के लिए नाम परिवर्तन कर दिया गया है. पहले जिले के नाम और अब वार्ड स्तर पर नाम बदलकर नफरत फैलाई जा रही है और भाईचारे को खत्म करने का काम हो रहा है. निगम के चुनाव पूरी तरह से स्थानीय मुद्दों पर होना चाहिए। ज्ञानवापी और धौरहरा मस्जिद जिस क्षेत्र में है, उनका नाम बदल कर आदिविश्वेश्वर और बिंदु माधव करना कही ना कही इनकी मंशा को दर्शाता है
वहीं, और लोगो का भी यही मानना है कि नाम परिवर्तन से कुछ नहीं होने वाला. पुराने वार्ड का नाम रखकर भी विकास कार्य को आगे बढ़ाया जा सकता है. अब उत्तर प्रदेश शासन द्वारा जो आरक्षण की सूची वाराणसी नगर निगम के वार्डो की जारी की गई है उसमे भी मुस्लिम बाहुल्य वार्डो में ज़्यादातर महिला सीट घोषित कर दी गई है महिलाओं 33 प्रतिशत आरक्षण के हिसाब से दो बार पुरुष तो एक बार महिला होनी चाहिए पर जो पिछली बार महिला सीट थी उसको इस बार फिर से महिला सीट ही घोषित कर दिया गया है जो बिल्कुल भी न्याय संगत नहीं है
फ़ज़लुर रहमान अंसारी से मिलें
एक बुनकर और सामाजिक कार्यकर्ता फजलुर रहमान अंसारी उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। वर्षों से, वह बुनकरों के समुदाय से संबंधित मुद्दों को उठाते रहे हैं। उन्होंने नागरिकों और कुशल शिल्पकारों के रूप में अपने मानवाधिकारों की मांग करने में समुदाय का नेतृत्व किया है जो इस क्षेत्र की हस्तशिल्प और विरासत को जीवित रखते हैं।
Image Courtesy: jagran.com
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