एक इमामबाड़ा जहां मोहर्रम के मातम में है एकता का पैग़ाम दुख के दिन को सद्भावना का दिन बनाने की एक बेहद ख़ूबसूरत परंपरा! कैसे एक इमामबाड़े ने तैयार की एकता की परिपाटी?
25, Sep 2023 | CJP Team
मोहर्रम यानि करबला में हज़रत मोहम्मद साहब के परिवार की शहादत के ग़म के त्योहार ! हिंदुस्तान की ज़मीन पर ये सामूहिक मातम सब धर्मों की भागीदारी के साथ और भी विस्तृत हो जाता है.
कोलकाता के नजदीक मुर्शिदाबाद में मौजूद हुगली इमामबाड़ा एक ऐसा ही इमामबाड़ा है जहां 10 दिनों तक चलने वाले मोहर्रम में हिंदू समुदाय के लोग भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. यह इमामबाड़ा बंगाल का सबसे बड़ा इमामबाड़ा है जिसे हाजी मोहम्मद मोहसिन नामक एक व्यापारी ने 1841 में बनवाना शुरू किया था. इस विशाल योजना पर काम करने में पूरे 20 सालों का समय लगा और आख़िरकार 1861 में ये इमारत पूरे वैभव के के साथ बनकर तैयार हो गई. आज तक हुगली नदी के किनारे पर खड़ी इस ख़ूबसूरत इमारत ने न सिर्फ़ धार्मिक भेदों को दूर किया है, बल्कि इससे इस्लाम के भीतर भी शिया-सुन्नी संप्रदाय के आपसी अंतर मिट रहे हैं.
Image Source- Wikipedia
एक मातम जिसमें गिरती है मज़हब की दीवार
मुहर्रम में मातम मनाने के लिए ताज़िया के साथ अद्भुत झांकी भी निकाली जाती है. हुगली इमामबाड़े में ये जलूस मोहर्र्म के सातवें दिन आयोजित किया जाता है जिसमें बड़ी तादाद में ग़ैरमुस्लिम लोग भी शिरकत करते हैं. कुछ को यहां मन्नतें और दुआएं खींच लाती हैं तो कुछ को इस जलूस की ख़ूबसूरती. आवाज़, द वॉइस की रिपोर्ट के मुताबिक़, इस दिन अलग अलग तबक़ों से आने वाले क़रीब 50,000 लोग यहां मौजूदगी दर्ज कराते हैं. यहां तक कि इस आयोजन के इंतज़ाम में भी गंगा-जमुनी तहज़ीब की झलक मिलती है. इमामबाड़े की देखभाल करने वाले मोहम्मद रिज़वान कहते हैं- ‘यहां का जलूस इराक़ के करबला के जलूस की तरह होता है. मातम का वक़्त भी करबला के वक़्त से मेल खाता है.’
सच भी है कि ख़ुशी बांटने से ख़ुशी बढ़ती है लेकिन दुख बांटने से दुख कम हो या ना हो लोगों के बीच आपसी प्यार, एकता और भरोसा ज़रूर मज़बूत होता है.
Image Source- Wikipedia
इमारत के इतिहास में सद्भावना का पैग़ाम
हाजी मोहम्म्द मोहसिन एक उदार शख्सियत के मालिक थे. बंगाल में भुखमरी के दौरान भी उन्होंने काफ़ी लोगों की मदद की थी. मुश्किल हालात में उनसे मदद पाने वालों में सभी धर्मों के लोग थे. उन्होंने हुगली इमामबाड़े के अलावा एक मदरसा, कॉलेज और अस्पताल भी बनावाया जिसके चलते लोगों में उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई.
शिक्षा, स्वास्थ्य और मज़हब से परे सभी की सेवा का ये इतिहास आज इमामबाड़े में मिली-जुली तहज़ीब और एकता का अध्याय है जो बंगाल की मिट्टी से देशभर के लिए एक बेहतरीन मिसाल पेश कर रहा है. आज नफ़रत और अलगाव पैदा करने वाली राजनीति के दौर में ऐसी कहानी और उदाहरण और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
Clock tower- Image Source- Wikipedia
तालीम, तहज़ीब और आपसी प्रेम की जागीर
इसके साथ ही हुगली इमामबाड़ा अपने ऊंचे, नायाब क्लॉक टॉवर के कारण भी मशहूर है जहां से हुगली नदी को भी बहते हुए देखा जा सकता है. इस इमामबड़े की शेल्फ़ में हदीस की दुलर्भ किताबें महफ़ूज़ हैं लेकिन इन सभी विशेषताओं से ऊपर यक़ीनन लोगों में त्योहर को लेकर भाईचारे की भावना सर्वोपरि है. इस जज़्बे का ही नतीजा है कि ग़म की घड़ी भी यहां शांति के संदेश में घुल-मिल जाती है. ऐसी परंपराएं जो लोगों में सद्भावना जगाती हों असल मायनों में समाज और देश की हिफ़ाज़त करती हैं.
Image Courtesy: hindi.livehistoryindia.com
और पढ़ें :
जहां कांवड़ों की जान बचाते हैं मुसलमान
भगवान जगन्नाथ, मुसलमान भक्त सालबेग और मशहूर पुरी रथयात्रा
Hate Hatao: CJP’s Campaign Against Division and Discrimination