दलित महिला ‘संदिग्ध नागरिक’ घोषित, CJP ने की मदद असम में वंचित ग़रीब तबक़े से ताल्लुक़ रखने वाली दलित समुदाय की एक महिला नागरिकता संकट के कारण निराशा की कगार पर

18, Sep 2023 | CJP Team

असम में वंचित ग़रीब तबक़े से ताल्लुक़ रखने वाली दलित समुदाय की एक महिला नागरिकता संकट के कारण निराशा की कगार पर

असम में CJP की टीम वंचित पिछड़े समुदयों को न्याय दिलाने के लिए लगातार काम कर रही है. अभी बस कुछ हफ़्ते पहले हर सप्ताह की तरह टीम की तरफ़ से DVM (District Voluntary Motivator) हबीबुल बेपारी और कम्युनिटी वॉलंटियर राहुल रॉय का सुमोती दास की निराशा भरी कहानी से सामना हुआ.

हफ्ते दर हफ्ते, हर एक दिन, हमारी संस्था सिटिज़न्स फॉर पीस एण्ड जस्टिस (CJP) की असम टीम जिसमें सामुदायिक वॉलेन्टियर, जिला स्तर के वॉलेन्टियर संगठनकर्ता एवं वकील शामिल हैं, राज्य में नागरिकता से उपजे मानवीय संकट से त्रस्त सैंकड़ों व्यक्तियों व परिवारों को कानूनी सलाह, काउंसिलिंग एवं मुकदमे लड़ने को वकील मुहैया करा रही है। हमारे जमीनी स्तर पर किए काम ने यह सुनिश्चित किया है कि 12,00,000 लोगों ने NRC (2017-2019) की सूची में शामिल होने के लिए फॉर्म भरे व पिछले एक साल में ही हमने 52 लोगों को असम के कुख्यात बंदी शिविरों से छुड़वाया है। हमारी साहसी टीम हर महीने 72-96 परिवारों को कानूनी सलाह की मदद पहुंचा रही है। हमारी जिला स्तर की लीगल टीम महीने दर महीने 25 विदेशी ट्राइब्यूनल मुकदमों पर काम कर रही है। जमीन से जुटाए गए ये आँकड़े ही CJP को गुवाहाटी हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक अदालतों में इन लोगों की ओर से हस्तक्षेप करने में सहायता करते हैं। यह कार्य हमारे उद्देश्य में विश्वास रखने वाले आप जैसे नागरिकों की सहायता से ही संभव है। हमारा नारा है- सबके लिए बराबर अधिकार। #HelpCJPHelpAssam. हमें अपना सहियोग दें।

सुमोती दास असम के उत्तर रायपुर की 52 वर्षीय महिला हैं और कठिनाईयों से गुज़रना उनके लिए कोई नई बात नहीं हैं.  एक दलित परिवार में जन्म लेने वाली सुमोती पिछले कई सालों से गिरती हुई सेहत और बढ़ते हुए दिमाग़ी दबाव का सामना कर रही हैं. सुमोती जन्म से ही उत्तर रायपुर की निवासी हैं जहां उन्होंने कुछ दशकों पहले नारायण दास से विवाह किया था.

सुमोती का शुरूआती जीवन ग़रीबी से जूझते हुए बीता है. बचपन के दिनों में पेट की भूख के सामने तालीम उनके लिए एक ऐसा ख़्वाब था जिसे पूरा नहीं किया जा सकता था. विवाह के बाद भी उन्हें इन हालात से निजात नहीं मिली बल्कि इससे उनके सामने नई चुनौतियां खड़ी हो गईं. कम संसाधनों के साथ दो वक्त की रोटी जुटाने, ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा ख़रीदने और घर बनाने के सपने के लिए पूरे परिवार को कठिन संघर्ष करना पड़ता था.

ऐसे में सुमोती की सेहत ज़्यादा बिगड़ने के बाद उनकी मुश्किलें और भी बढ़ गईं. कुछ समय बाद उन्हें चलने और खड़े होने में भी परेशानी होने लगी लेकिन फिर भी उन्होंने इसका पूरी बहादुरी से सामना किया. पैसों के अभाव के कारण मेडिकल ट्रीटमेंट हासिल करना मुमकिन नहीं था.
इसके बाद जब उन्हें ‘संदिग्ध नागरिक’ घोषित किया गया तो सुमोती का जीवन राज्य द्वारा पैदा अनेक अनिश्चितताओं में घिर गया. सड़क के किनारे उनके घर के सामने से पुलिस की गाड़ी का गुज़रना भी उन्हें सिहरन से भर देता था. टीम से बात करते हुए आंसू भरी आंखों के साथ उन्होंने कहा कि – ‘मैं या तो घर में मर जाउंगी या जेल में मरूंगी.’

उनके काग़ज़ात की पड़ताल करने पर पता चला कि उनके पिता और दादा दोनों का नाम 1951 के डाटा में रिकार्ड है.  माता-पिता और दादा-दादी के काग़ज़ात के बावजूद वो इन हालात में बंधी हुई थीं.

इतने वर्षों से वो राज्य की कल्याणकारी योजनाओं से बेदख़ल थीं और राशन कार्ड पर उनका नाम स्क्रूटनी में था क्योंकि वोटर लिस्ट पर उनके नाम के आगे ‘D’ (Doubtful Voter) चिन्ह है. इस संकट ने उनके जीवन के हर हिस्से और परिवार को  साथ प्रभावित किया. इस घने अंधेरे में CJP ही सुमोती के लिए उम्मीद और राहत का इकलौता सहारा थी. CJP टीम ने उन्हें आश्वासन दिया कि वो इस संघर्ष में अकेली नहीं है और नागरिकता साबित करने की इस इंसाफ़ की लड़ाई में CJP पूरे संकल्प के साथ उनके साथ है. घोर निराशा में गुज़रे लंबे अरसे के बाद ये उनके लिए उम्मीद की एक रौशनी थी.

CJP टीम असम के वंचित और कमज़ोर वर्गों में अधिकारों की सशक्त वकालत करती है. इस मक़सद के एवज़ CJP टीम हर हफ़्ते नागरिकता संकट से पीड़ित लोगों से संपर्क करती है. असम के नागरिकता संकट में नौकरशाही तंत्र से हलकान सुमोती दास जैसे लोगों का लीगल सहयोग देने के साथ ही टीम काउंसलिंग सेशन्स और वर्कशॉप्स आदि भी आयोजित कराती जिससे कि वंचित समुदाय के भारतीयों के लिए ये प्रक्रिया आसान हो जाती है.

सुमोती दास की कहानी एक असम में नागरिकता संकट से पीड़ित लोगों की चुनौतियों का एक महत्वपूर्ण नमूना है. उनका संघर्ष इंसाफ़ की बुनियादी ज़रूरत और व्यवस्था में सुधार की मांग पर बल देते हैं.

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