Ask Me Anything: आपके सवाल, तीस्ता सेतलवाड़ के जवाब कठिन प्रश्न, कड़ी निंदा या झूठे इलज़ाम - डट कर किया सामना
23, Jun 2018 | CJP Team
सिटीज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) की सचिव तीस्ता सेतलवाड़ ने शनिवार June 9, 2018 को स्टैंड-अप कमेडियन कुनाल कामरा से अपने काम और उनपर लगे आरोपों पर बात की. उन्होंने कुनाल को भारत में मानवाधिकार की स्थिति के बारे में भी बताया. यह हमारा पहला Ask Me Anything था, जिसमें तीस्ता सेतलवाड़ ने लोगों से ‘ट्रोल’ और उनसे नफरत करने वालों के द्वारा पूछे जाने वाले सवालों का जवाब दिया और साथ ही उनके समर्थकों और देश में बढ़ती साम्प्रदायिकता को लेकर चिंतित लोगों के भी सवालों का भी जवाब दिया.
ऐसे दौर में जब सरकार के इशारों में चलने वाले सारे मीडिया वर्ग तीस्ता पर लगे आरोपों के खिलाफ आवाज़ उठाने और उनके पक्ष की कहानी बताने की बजाए चुप रहे, तब तीस्ता ने खुद इस Ask Me Anything के माध्यम से सार्वजनिक रूप से अपने आलोचकों और जिज्ञासापूर्ण समर्थकों के सवालों के जवाब में उनसे बातें की और अपने विचार लोगों तक पहुंचाए.
यदि आप मानते हैं की प्रजातंत्र की सेहत बनाए रखने के लिए हमारे निर्वाचित नेताओं को भी तीस्ता सेतलवाड़ की तरह बेझिझक हर सवाल का जवाब देना चाहिए, तो आइये, हमारे विभिन्न मानवाधिकार सत्याग्रहों से जुड़िये. देश में सभी के संवैधानिक अधिकारों को कायम रखने में हमारी मदद करने के लिए यहाँ योगदान दीजिये.
पूरी बात-चीत में एक से बढ़कर एक सवाल उनसे पूछे गए जिनका खुल कर तीस्ता ने जवाब दिया. सबसे पहला और बहुत ही अहम सवाल पूछा गया “कौन है तीस्ता?” जिसके जवाब में उन्होंने ने कहा “तीस्ता एक नदी का नाम है जो सिक्किम से बहती है है और पूरे बंगाल से होते हुए बांग्लादेश तक जाती है तथा बहुत ही ख़ूबसूरत नदी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है. तो यही है तीस्ता!”
तीस्ता और कामरा ने आज के दौर के बारे में बात करते हुए कहा- “हम टाइम बॉम में बैठे हुए हैं और अब तो ऐसा समय आ गया है कि देश के प्रभावशाली बहुसंख्यक वर्ग उल्टा हमें ही देश में डर और दहशत फैलाने वाला समझने लगा है. फिर यह सवाल करने पर कि ऐसी कौन सी चीज़ है जो आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है, इस पर तीस्ता सेतलवाड़ ने बताया कि यह उनके अपने मन के भीतर इस बात का विश्वास है कि यह देश हर किसी का है. हर किसी के लिए है. “और मेरा यह दृढ विश्वास है कि अगर हम इसके लिए कुछ भी प्रयास नहीं करें तो हम वास्तव में देश बहुत ही खतरनाक रास्ता पर चलने लगेगा.“
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तीस्ता सेतलवाड़ ने समझाया कि यदि यह देश औपचारिक रूप से धर्मशासित निरंकुश देश में परिवर्तित हो जाता है तो निश्चित तौर पर आने वाली पीढ़ी के लिए यह एक दहशत और हिंसा के पथ पर होगा, जो उन्हें चारो ओर से भय की स्थिति में घेरा रहेगा. और ऐसे हिंसक से रास्ते से देश को बचाने वाली बात मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है.”
यह पूछे जाने पर कि 2002 के गुजरात दंगो के मामलों में कितनों को इन्साफ मिला है, पर उन्होंने यह बताया कि वे पाने काम की सफलता को इस तरीके से देखती है कि अब तक गुजरात दंगों से संबधित 170 से ज्यादा लोगों को सज़ा मिली है, मगर कई बार काम की प्रगति भी अपने आप में एक चुनौती होती है,खासकर तब जब हमारा प्रयास “लोकतांत्रित प्रणाली को उत्तरदायी बनाना हो”. तीस्ता सेतलवाड़ ने इस बात को भी स्वीकार कि उनके खिलाफ लगाए आरोपों और किये गए केसों ने न सिर्फ अल्पसंख्यकों के अधिकारों के हक में लड़ने में समय दिया बल्कि खुद के लिए भी लड़ने के लिए अवसर दिया.
अपने एक “कठोर आलोचक” के प्रश्न को संबोधित करते हुए तीस्ता सेतलवाड़ और कामरा ने दंगा पीड़ितों के लिए एकत्रित की गयी धनराशी पर उनके कथित व्यक्तिगत उपयोग के सम्बन्ध में उनके खिलाफ लगे आरोपों पर चर्चा की (नीचे क्लिप में उपलब्ध है):
सेतलवाड़ ने अपने पति जावेद आनंद के साथ मिलकर 1993 में साम्प्रदायिक हिंसा क मुक़ाबला करने के लिए कम्युनिज्म कॉम्बैट (Communism Combat) की शुरुआत की, जिसके बारे में उन्होंने लोगों को बताकर धार्मिक भेदभाव के सवाल और समाधान के बारे में एक प्रश्न को संबोधित किया. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस संघर्ष की लम्बी लड़ाई को घर-घर ले जाना होगा, हर गाँव-कस्बों से लेकर बच्चों के पाठ्यक्रम तक इस बात को लाना होगा और यह सवाल लोगों के मन-मस्तिष्क में उठाना होगा कि “क्या सच में ऐसे राक्षस हमारे बीच हैं जिनसे हमें लड़ना है ? क्या वाकई में ये हमारे बीच पाए जाते है?”
ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमंस एसोसिएशन (AIPWA) की कविता कृष्णन ने सेतलवाड़ से ये पूछने पर कि ऐसे देश में जहां दूसरे धर्म से नफरत करने का मतलब देशप्रेम कहा जाता है, पर तीस्ता की इसपर अपनी राय दृढ़ रही. “नफरत पर कभी भी राष्ट्र की बुनियाद नहीं हो सकती है और किसी भी नागरिक को देश के ‘अन्य’ समुदाय समझना कभी देशभक्ति का आधार नहीं हो सकता.”
मीडिया के इतनी बार अनदेखा करने के बाद भी तीस्ता सेतलवाड़ और उनका काम लोगों तक पहुँच ही गया और शायद ज्यादा से ज्यादा आक्रामक रूप से देश भर के समुदायों द्वारा अपने मूलभूत मानवाधिकारों के लिए लड़ते देख सेतलवाड़ इतना ज़रूर जानती हैं कि देश में अल्पसंख्यक कमज़ोर है और “अल्पसंख्यक कहीं भी हो सकते हैं.” तथा हमारा यह विश्वास है कि इंसाफ की नींव रखे बगैर एक शांतिपूर्ण समाज को स्थापित नहीं किया जा सकता.”
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