ज़किया ज़ाफ़री मामला फिर आया सुर्ख़ियों में प्रेस विज्ञप्ति

18, Nov 2018 | CJP Team

ज़किया ज़ाफरी द्वारा दायर स्पेशल लीव पिटिशन, जिसे गुजरात हाईकोर्ट ने 5 अक्टूबर 2017 को ख़ारिज कर दिया था वो मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है, जिसकी सुनवाई सोमवार 19 नवम्बर को होगी. अपनी याचिका में ज़किया ज़ाफरी ने गुजरात दंगों में नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट दिए जाने का विरोध किया था. 8 दिसंबर 2012 को एसआईटी द्वारा पेश क्लोज़र रिपोर्ट के आधार पर सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था.

सिटिज़न फ़ॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) 8 जून 2006 को दायर की गई आपराधिक याचिका के समय से ही ज़किया ज़ाफरी के इस मामले में सहायक बना हुआ है. सीजेपी की सचिव तीस्ता सेतलवाड़ इस मामले में द्वीतीय याचिकाकर्ता हैं. निचली अदालतों (मजिस्ट्रेट और गुजरात उच्च न्यायालय) के निर्णयों में सकल विसंगतियों के स्पष्टीकरण की मांग किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आठ खंडों में ये एसएलपी दाखिल की गई है. ये याचिका कानूनी विसंगतियों आयर तथ्यों, दोनों के आधार पर बनाई गई है.

हमारा वर्तमान एसएलपी में तर्क है कि, गुजरात हाईकोर्ट का आदेश मजिस्ट्रेट की एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट का अभिलेख करता है परन्तु 8.6.2006 की याचिकाकर्ता की शिकायत पर ध्यान नहीं देता है. उसके बाद अदालत द्वारा कही गई ये बात भी ग़लत है कि मजिस्ट्रेट ने ज़किया ज़ाफरी की विरोध याचिका को स्वीकार नहीं करने के लिए विस्तृत आधार प्रदान किए हैं. हमारे सब्मिशन के तथ्य इसे बिलकुल ग़लत पाते हैं.

हमारे मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा यह कह देना कि आगे की जांच पड़ताल के लिए निर्देश देना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है, ग़लत है. मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसे पर्याप्त व महत्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत किए गए थे जिससे साफ़ तौर पर संकेत मिलते हैं कि ये मामला आपराधिक साज़िश और उत्पीड़न का है. हमारा तर्क ये है कि मजिस्ट्रेट और उच्च न्यायलय द्वारा इस मामले पर उचित और गंभीरता से विचार नहीं किया गया है.

ज़किया ज़ाफरी की जानकारी में लाए बगैर ही एसआईटी ने 2012 में क्लोजर रिपोर्ट दायर कर दी थी, जबकि रिपोर्ट की जानकारी होना उनका वैधानिक अधिकार है. इसके बाद उन्हें पूर्ण जांच रिकॉर्ड, और रिपोर्ट तथा दस्तावेजों को हासिल करने के लिए एक नए एसएलपी (न० 8989/2012)  सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दोबारा याचिका दायर करनी पड़ी थी. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से 7.2.2013 को प्राप्त दस्तावेजों के बाद हमें विरोध याचिका दायर करने के लिए दो महीने दिए गए.

फरवरी 2013 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही सीजेपी की कानूनी टीम ने 23000 पृष्ठ के दस्तावेज़ों का गहन विश्लेषण किया. और यह भी विरोध याचिका के तर्कों का आधार बना. इस विरोध याचिका के माध्यम से याचिकाकर्ता ने एसआईटी की जांच में गंभीर ख़ामी होने की बात कही है. घटना के पीछे बड़ी साज़िश के होने का व्यापक प्राइमा-फेसि केस बनता है, जिसमे समाज में नफ़रत फैलाने, वैधानिक जिम्मेदारियों का उचित निर्वहन न करते हुए उनके अपमान करने की भी बात कही गई है. याचिकाकर्ता द्वारा ये बातें उपलब्ध दस्तावेज़ों का अच्छी तरह से अध्यन करने के बाद दस्तावेज़ों के आधार पर कही गई हैं.

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वर्तमान मामले में हमारा तर्क है कि विरोध याचिका के विस्तृत अध्ययन से ये स्पष्ट होता है कि ज़किया ज़ाफरी ने 27.02.2002 के पहले से ही समाज में एक अस्थिर माहौल तैयार करने की मंशा से किये गए प्रयास और षड्यंत्र को प्रमाणित करने वाले तथ्य प्रस्तुत किये हैं. जिसमे सांविधिक प्रावधानों का धड़ल्ले से उल्लंघन करते हुए खुले में पोस्टमोर्टम किया जाना, 27.2.2002 को अहमदाबाद में हिंसा फैलने के बाद भी कर्फ्यू में देरी बरतना, कोई भी निवारक गिरफ्तारियां नहीं होना और हिंसा रोकने में विलम्ब इत्यादि के अलावा अन्य मुद्दे भी शामिल हैं.

इसके अलावा, हम तर्क देते हैं कि, पुलिस कंट्रोल रूम (पीसीआर रिकॉर्ड्स) का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि फर्स्ट रेस्पॉन्डर्स द्वारा अपनी ड्यूटी नहीं निभाई गई है. विरोध याचिका से साफ़ ज़ाहिर है कि साज़िश रची गई है तथा संवैधानिक और सांविधिक प्राधिकरणों को भ्रमित करने और बहकाने वाली रिपोर्टिंग की गई है. और 2002 में सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों द्वारा बैठक के मिनटों (मिनट्स ऑफ़ दी मीटिंग) से संबंधित रिकॉर्ड्स, पुलिस लॉगबुक, वायरलेस संदेश से संबंधित रिकॉर्ड्स इत्यादि दस्तावेज़ नष्ट किये गए हैं.

गुजरात उच्च न्यायालय ने 5.10.2017 के आदेश में नोट किया है कि,

“निस्संदेह, 08.6.2006 को श्रीमती ज़किया जाफ़री द्वारा गुजरात राज्य के डीजीपी को लिखित में दी गई शिकायत 27 फरवरी, 2002 से मई 2002 के बीच की अवधि के बारे में थी, जहां आरोप लगाया गया है कि बड़े पैमाने पर अधिकारियों और नौकरशाहों (की संख्या 63) द्वारा साज़िश रची गई है, जिसके कारण हजारों लोगों की जाने गईं, और जो आईपीसी की धारा 302 के साथ 120 (बी) के तहत किया गया अपराध है. कथित शिकायत के अनुसार, इस तरह के कृत्यों ने पूरे राज्य के लिए बड़ी साजिश का संकेत दिया है जो किसी एक विशेष केस या एक दंगे की घटना तक सीमित नहीं है.”

जबकि कोर्ट ने स्वीकारा था कि 8.6.2006 की शिकायत और 15.4.2013 की विरोध याचिका 27 फरवरी से मई 2002 के बीच की घटनाओं के बारे में थी, मगर इन सब के पीछे बड़े षड्यंत्र को उजागर करने वाले किसी भी महत्वपूर्ण पहलुओं की पर्याप्त जाँच नहीं की गई, और मजिस्ट्रेट द्वारा इसकी उपेक्षा करने की जाँच करने की हमारी मांग का निवारण नहीं हुआ है और हम अब तक न्याय-विहीन हैं.

उपरोक्त मामलों के अलावा यह एसएलपी ज़किआ जाफ़री की शिकायत याचिका को जानबूझ कर गलत तरीके से गुलबर्ग केस (जो 28.2.2002 को हुई 300 आपराधिक घटनाओं में से केवल एक है) के साथ जोड़ देने के बारे में भी है. जो निचली अदालतों की गलती है, हम उन त्रुटियों का सुधार और अपनी याचिका में वर्णित मांग का निवारण चाहते हैं.

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NHRC INterim Report April 1- 2002

CEC Report (August 2002)

CEC Report on Gujarat Violence

Election Commission August 16 2002 Order Postpones Elections

Editor’s Guild Report 2002

Excerpts from Editors Guild Report 2002

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SIT Preliminary Report May 12 2010 (in SLP 1088/2008, Zakia Jafri & CJP versus State of Gujarat)

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SIT Closure Report dated 8.2.2012
Volume 1

SIT Closure Report Volume 1 Page 1 to 100

SIT Closure Report Volume 1 Page 101 to 200

SIT Closure Report Volume 1 Page 201-270

Volume 2

SIT Volume 2 Page 271-370

SIT Volume 2 Page 371-458

SIT Volume 2 Page 459-541

 

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