Pride month 2023: देश भर में बदलाव की मशाल के साथ लैंगिक विविधता का अनोखा जश्न जून 2023 के सतरंगी महीने में ग्रामीण और शहरी भारत में समलैंगिक समुदायों के जश्न की झांकी

28, Jun 2023 | CJP Team

जून महीने का रंग सतरंगी है. यह LGBTQIA+ समुदाय की पहचान और योगदान के जश्न का महीना है. LGBTQIA+ यानि हमारे समाज का ही एक ऐसा तबक़ा जिसे उसकी लैंगिक पहचान की वजह से दरकिनार किया जाता रहा है. एक वर्ग जिसकी मौजूदगी को स्वीकार करने से ज़माने ने अब तक इंकार किया है. Pride month में LGBTQIA+ समुदाय के लोग सड़क और गलियों में खुलकर सामने आ रहे हैं. देश भर में क्वीर समुदाय के हक़ का लहराता हुआ परचम लैंगिक ग़ैरबराबरी के ख़िलाफ़ उठती एक खरी आवाज़ है.  

जून को Pride month के तौर पर अलग-अलग रचनात्मक और मुखर तरीक़ों के साथ सेलिब्रेट किया जा रहा है. ये दुनिया भर में LGBTQIA+ समुदाय (लेस्बियन, बाईसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स और असेक्शुअल) की पहचान, इतिहास और दुनिया बनाने में उनके बड़े-छोटे योगदान को याद करने का समय है. इस सतरंगी जश्न में पिकनिक, परेड, पार्टी से लेकर सेमिनार, वर्कशॉप और कंसर्ट तक हर अभिव्यक्ति को बराबर अहमियत दी जा रही है. कुल मिलाकर ये हक़ की आवाज़ बुलंद करने और लैंगिक अल्पसंख्यकों के बुनियादी हक़ की पैरवी करने का मौक़ा है. हर जेंडर का सम्मान और हर क़िस्म की लैंगिक पहचान को बिना किसी भेदभाव के क़बूल करना लोकतंत्र का तकाज़ा है. ये सतरंगी जश्न सिर्फ़ LGBTQIA+ के दायरे तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें LGBTQIA+ के क़ानूनी और सामाजिक हक़ का समर्थन करने लैंगिक बहुसंख्यक आबादी भी बड़ी तादाद में हिस्सा लेती है.    

जून में Pride Month के जश्न की वजह क्या है?

जून में सतरंगी जश्न के पीछे एक ऐतिहासिक वजह है. सबसे पहले 1969 को अमेरिका के न्यूयार्क शहर में स्टोनवॉल क्रांति के साथ लैंगिक अल्पसंख्यकों के हक़ की मांग उठी थी. ‘स्टोनवॉल इन’ उन दिनों समलैंगिक समुदाय के लोगों का Bar था, जहां अमेरिकी पुलिस के छापे के बाद उन्होंने अपने हक़ के लिए आवाज़ बुलंद की थी. उस वक़्त Illinois राज्य के अलावा पूरे United States में समलैंगिक रिश्तों पर पाबंदी थी. समलैंगिक कर्मचारी रखना जायज़ नहीं था और छापेमारी के ज़रिए उन्हें तंग करने का चलन आम था. लेकिन ‘स्टोनवॉल इन’ में छापेमारी के बाद पहली बार इस तबक़े के लोगों ने प्रतिरोध ज़ाहिर किया. छापेमारी की रात मर्शा पी. जॉनसन और स्लॉविया रिवेरा नामी दो ट्रांसजेंडर महिलाओं ने पहली बार गिरफ़्तारी का विरोध किया और कांच की बोतल और पत्थर का टुकड़ा फेंककर अपनी नाराज़गी का इज़हार किया. ये घटना आज भी समलैंगिक रिश्तों की आज़ादी के सफ़र में नींव की ईंट की तरह देखी जाती है. ‘स्टोनवॉल इन’ की घटना जून में होने की वजह से Pride month के लिए जून का चुनाव किया गया है. ये क्रांति की बहादुर अगुवा शख़्सियतों को याद करने का तरीक़ा है. 

भारत में क्या है LGBTQIA+ का मुक़ाम?   

अमेरिका के मुक़ाबले भारत में लैंगिक अल्पसंख्यकों का संघर्ष अधिक बड़ा है. भेदभाव, नफ़रत और हिंसा का सामना करने के साथ ही ये समुदाय शिक्षा, रोज़गार, परिवार हर जगह निचले पायदान पर रहने को मजबूर है. LGBTQIA+ की लड़ाई और मांगें तो पुरानी हैं लेकिन क़ानूनी तौर पर सबसे पहले नवतेज सिंह जोहर बनाम भारतीय संघ मामले में 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को जुर्म के दायरे के बाहर किया था. इस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक रिश्तों को अपराध क़रार देने वाले Indian Panel Code के सेक्शन 377 को भारतीय संविधान के ख़िलाफ़ और उपनिवेशवादी बताया था. 

विवाह, तलाक़, आरक्षण, साथी चुनना, परिवार बसाना, बच्चे गोद लेना जैसे बुनियादी हक़ किसी भी इंसान की तरह LGBTQIA+ तबक़े की भी ज़रूरत हैं. भारतीय नागरिक होने के नाते LGBTQIA+ वर्ग के लोग भी सम्मान, शिक्षा, रोज़गार, समानता के बराबर के हक़दार हैं. उन्हें समाज का हिस्सा मानना, समान दर्जा देना और लैंगिक पहचान को क़बूल करना हक़परस्ती का तकाज़ा है. ऐसे में Pride month उन्हें तयशुदा सामाजिक खांचों से बाहर आने का एक ख़बसूरत मौक़ा और मंच देता है. पूरे जून माह के दौरान अनेक संगठन और कार्यकर्ता जश्न, परेड और विभिन्न रचनात्मक तरीक़ों से जागरूकता की अलख जलाने के लिए सक्रिय रहते हैं. LGBTQIA+ समुदाय के सतरंगी आसमान की जगह हाशिए पर नहीं बल्कि मुख्य धारा में है. 

भारत में Pride month का जश्न –

”The Kolkata Rainbow Pride Walk के साथ 2 जुलाई, 1999 को भारत ने दक्षिण एशिया की पहली ‘प्राईड वॉक’ का आयोजन किया था, इसके बाद 21 दूसरे शहरों में भी प्राईड वॉक का आयोजन किया गया था. इसी तर्ज़ पर 2008 में दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में पहली बार ‘प्राईड वॉक’ का आयोजन किया गया. भुवनेश्वर और चेन्नई में भी इसी साल समलैंगिक समुदाय ने शान से जलूस निकाला. केरल ने 2010 में, पुणे ने 2011 में और गुवहाटी ने 2014 में पहली दफ़ा समलैंगिक हक़ की पैरवी में जश्न मनाया. इसके बाद गंगा-यमुना तहज़ीब की ज़मीन अवध के अलावा भोपाल और देहरादून ने 2017 में ‘प्राईड मार्च’ का आयोजन किया. जमशेदपुर ने इस दौड़ में 2018 में नाम दर्ज किया. 

हिंदुस्तान ने इस आयोजन के ज़रिए समलैंगिक समुदाय की उभरती आवाज़ों को पहचाना है. जागरूकता के साथ ही एक समाज के तौर पर लोगों को साथ लाने और जोड़ने में Pride month ने अहम रोल निभाया है. 2023 के जश्न के लिए ‘क्रोध और प्रतिरोध’ (Rage & Resilience) को थीम को तौर पर चुना गया है. इस उत्सव में समान अधिकारों की पैरवी के साथ LGBTQIA+ विरोधी नीतियों और क़ानूनों पर चर्चा जारी है. अप्रैल महीने में पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को क़ानूनी मान्यता देने से जुड़ी ढेरों याचिकाओं की सुनवाई की है. 2023 में Pride month का नायाब जश्न रंग-बिरंगे आयोजनों के साथ जगमग है. 

  1. मुंबई इंटरनेशनल क्वीर फ़िल्म फ़ेस्टिवल-
    8 जून से चालू ‘कशिश कशिश’ ने भारत के पहले LGBTQIA+ फ़िल्म फ़ेस्टिवल के तौर पर शानदार मौजूदगी दर्ज की है.
    ‘BE FLUID, BE YOU!’ थीम के साथ भारतीय सूचना एंव जनसंचार विभाग से मान्यता प्राप्त इस प्रोग्राम ने नई समलैंगिक पीढ़ी को कला, कविता और फ़िल्मों के ज़रिए जेंडर पर मुखर होने का हौसला दिया है. 
  2. LGBTQ प्राईड समिट
    21 जून को मुंबई के ITC मराठा में सुबह 9 से शाम 6 तक जारी इस सम्मेलन में इंडस्ट्री के दिग्ग्जों ने विवधता पर गहरी चर्चा की. इस सम्मेलन में किसी भी संस्थान की तरक़्क़ी में विविधता की अहमियत पर ख़ास ज़ोर दिया गया.
  3. क्वीर मेड वीकेंड, दिल्ली
    दिल्ली में डेटिंग ऐप Tinder India और Gaysi Family की अगुवाई में 17 से 18 जून तक DLF में क्वीर वीकेंड का जश्न मनाया गया. इस मौक़े पर क्वीर समुदाय के लोगों ने क्वीर कारोबारियों के उत्पादों का सौदा किया और यह जगह क्वीर समुदाय के बीच दोस्ती, प्रेरणा और मुहब्बत की कहानियों से रौशन रही.
  4. चेन्नई रेनबो प्राईड परेड
    चेन्नई में समलैंगिकता के सतरंगी जश्न का ये 15वां मौक़ा है. 25 जून को इस जलसे में समलैंगिक तबक़े के आत्मसम्मान को सबसे ज़रूरी मुद्दे के तौर पर देखा जा रहा है. इस परेड में अलग-अलग लैंगिक पहचान के लोग बड़ी तादाद मे शिरकत कर रहे हैं.
  5. पुणे प्राईडसियो बाज़ार
    पुणे की  FC रोड पर प्राईड मंथ की अनोखी धूम है. पुणे का ये बाज़ार इस मौक़े पर बेहतरीन क्वीर कलाकारों के उत्पादों के अलावा क्वीर म्यूज़िक आदि को भी प्रमोट कर रहा है.
  6. सतरंगी मेला, इंदिरानगर सोशल, बैंगलेरु
    बेंगलुरू ने 18 जून को 12 बजे दोपहर सतरंगी मेला के साथ Pride month के जश्न की शुरूआत की. बेंगलुरू में ये अपनी तरह का तीसरा मेला है. इसकी सबसे ख़ास बात ये है कि इसे क्वीर लोगों ने क्वीर लोगों के लिए आयोजित किया है. इसमें समलैंगिकों के सबसे कम चर्चित मसअलों पर गंभीर चर्चा की गई है.

भारत की ज़्यादातर आबादी गांवों में निवास करती है लेकिन गांवों में LGBTQIA+ समुदाय के लोगों के हालात सबसे ख़राब हैं. 2023 के Pride month के जश्न में गांवों में सम्मान के साथ सिर उठाकर जीने के ख़ातिर रोज़ाना संघर्ष कर रहे लैंगिक अल्पसंख्यकों को जोड़ने और मंज़र पर सामने लाने की भी कोशिश गई है. आज़ादी, समानता और सम्मान हर तबक़े का हक़ है, इसमें शहरी और ग्रामीण हर इलाक़े की आबादी का शामिल होना ज़रूरी है. 

इसके अलावा इस वर्ष Pride month के पहले भी समलैंगिक समुदायों नें देश भर में क़ाबिलेग़ौर सक्रियता दर्ज की है. 

  1. 27 मई को महाराष्ट्र के वसेई-विरार में LGBTQIA+ की विविधता को सहेजता एक दिवसीय प्रोग्राम आयोजित किया गया. मराठा समलैंगिक समुदाय ने इसमें बढ़-चढ़ कर मौजूदगी दर्ज की. इस जश्न के दौरान Pride Walk की रूपरेखा भी तैयार की गई जो कि चर्च, मंदिर और वसेई रोड से गुज़रते हुए बड़ी तादाद के साथ LGBTQIA+ की सशक्त मौजूदगी दर्ज करेगा . 
  2. 19 मार्च को मैसूर में गवर्नमेंट गेस्ट हाउस से जगनमोहन पैलेस तक एक शानदार Pride Walk का आयोजन हुआ. दोपहर 2.30 से शुरू ये प्रोग्राम सालाना ‘नम्मा प्राईड और क्वीर फ़ेस्ट’ का एक हिस्सा था. क़रीब 3 घंटे तक जारी इस परेड में क्वीर समुदाय ने शहर के बीच अपनी मज़बूत मौजूदगी दर्ज करते हुए एकता का परिचय दिया. 
  3. धर्मशाला में 30 अप्रैल 2023 को पोस्टर्स और नारों के साथ समलैंगिक अधिकारों के पक्ष में ख़ूबसूरत मार्च निकाला गया. मैक्लॉडगंज के दलाईलामा मंदिर से शुरू होकर इस जूलूस ने क़स्बे को कोतवाली बाज़ार तक की दूरी पूरी की. धर्मशाला में ये LGBTQIA+ का पहला प्रदर्शन था. इसमें आस पास की बस्तियों और गांवों के लोगों ने भी हिस्सा लिया.  

क्वीर समुदाय की चुनौतियां और हल – 

भारत में ख़ासकर ग्रामीण इलाक़ों में क्वीर समुदाय अपने हक़ को लेकर सचेत नहीं है. इस तबक़े के लोग अलग-अलग सामाजिक-सांस्कृतिक माहौल से आते हैं. ग्रामीण बस्तियों में उन्हें अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है. अपनी लैंगिक पहचान को सामाजिक तौर पर स्वीकार कर पाना उनके लिए बड़ी चुनौती है. दबाव, हिंसा, भेदभाव के अलावा उनके पास ख़ुद को व्यक्त करने के लिए कोई मंच नहीं है. समलैंगिक समुदायों की मदद करना और उनसे मदद हासिल करना उनके लिए टेढ़ी खीर है. ऐसे में वो मुख्यधारा से दूर समाज से छिटककर रहने को मजबूर हैं. डर और अभावों के बीच झूलता उनका आत्मसम्मान बार-बार रिवायती ढांचों का शिकार बनता है. 

इन्हें संगठित, मज़बूत और आत्मनिर्भर बनाने के लिए संबंधित मुद्दों और अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी ज़रूरी है. लोकल स्कूल, यूनिवर्सिटी और सामुदायिक संगठनों की ज़िम्मेदारी है कि वो वर्कशॉप्स, कैंपेन्स और आपसी योगदान के ज़रिए इस दिशा में काम करें. LGBTQIA+ को सशक्त बनाने के लिए समुदाय के नेताओं, शिक्षकों, कारोबारियों और चिकित्सकों की बेहतर ट्रेनिंग महत्वपूर्ण है. क्वीर समुदाय के अधिकारों की जंग लड़ रहे संगठनों का फ़र्ज है कि वे बेहतर सहयोग और अभियान से दूर-दराज़ काम कर रहे कार्यकर्ताओं को मज़बूत बनाएं. इसके अलावा LGBTQIA+  संगठनों, ग़ैरसरकारी संगठनों और सामुदायिक समूहों के गठजोड़ से गांवों में बसर कर रहे लैंगिक अल्पसंख्यकों के हालात में बड़ा सुधार मुमकिन है. तस्वीर बदलने के लिए ज़रूरी है कि मीडिया के ज़रिए समलैंगिकता की सकारात्मक अक्कासी की जाए. आज टेलिविज़न, रेडियो, पत्रिका आदि को समलैंगिकता को लेकर संवेदनशील होने की ज़रूरत है जिससे कि मौजूदा पूर्वाग्रहों और ख़राब परंपराओं को तोड़ा जा सके.  

एक सतरंगी आसमान का रास्ता

भारत में LGBTQIA+ समुदाय की मुश्किलें पेचीदा हैं, उनकी परख और उपाय का रास्ता भी चुनौतियों से भरा है. ऐसे अनेक मौक़े आए हैं जब सरकार ने क्वीर परेड की इजाज़त नहीं दी है लेकिन 2023 में ऐसी कोई भी पाबंदी दर्ज नहीं की गई है. ये इस बात की तरफ़ इशारा है कि हम धीरे-धीरे बदलावों की तरफ़ बढ़ रहे हैं, हालांकि केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को ‘अप्राकृतिक’ क़रार देकर अब तक मंजूरी नहीं दी है.

लेकिन क़ानूनी समानता, संवैधानिक वसूलों और आज़ादी की विरासत का तकाज़ा है कि एक भारतीय नागरिक होने के हवाले से LGBTQIA+ तबक़े को भी सभी बुनियादी हक़ हासिल हों. घिसी-पिटी परंपराओं और पूर्वाग्रहों के ख़िलाफ़ अभी तक क्वीर समुदाय ने शानदार हौसले का प्रदर्शन किया है. सामाजिक और क़ानूनी ढांचों में बदलाव का रास्ता लंबा है पर पांवों पर भरोसा हो तो हर मंज़िल को पाना मुमकिन है.     

Image Courtesy: english.jagran.com

     

 

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