नीला रंग चंद्रशेखर आज़ाद से एक मुलाक़ात, विमल जी के शब्दों में

04, Oct 2018 | Vimal

विमल जी, जो जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय समन्वयक हैं, ने हाल ही में रिहा हुए चंद्रशेखर से मुलाक़ात की. यहाँ पढ़िए उनका दिल को छू लेने वाला ब्यौरा|

अचानक 13 -14 सितंबर की रात को 2:30 बजे सहारनपुर जेल से चंद्रशेखर को रिहा कर दिया गया। भीम आर्मी का युवा कोई बहुत लंबी-चौड़ी सोच लेकर देश की राजनीति में नहीं कूदा था। मगर जाति का दवाब, स्थानीय ऊंची जाति के लोगों का दवाब ये इस युवा से नहीं सहन हुआ।

चंदशेखर देखने में साधारण सी कॉलोनी वाले युवाओं जैसे ही दिखते है। पर ऐसा जरूर है कि मिलने पर आप पहली बार में ही इनको अपना लेंगे। महीनों से बार-बार मन में बात थी की ऐसा क्या कारण है कि उत्तर प्रदेश का वह मुख्यमंत्री जिसने अपने सारे मुकदमे हटवा दिए, जिन मुकदमों के लिए वह संसद में फूट फूट कर रोए थे । जो आज भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपराधियों के एनकाउंटर के नाम पर मुस्लिम और दलितों को निशाना बना रहे हैं ।जिनके एक हाथ में मठ है और एक हाथ में सत्ता की मूठ है । वह फिर ऐसे युवा से किस बात से डर रहे थे कि जो घटनास्थल पर मौजूद भी नहीं था । उसकी जमानत होने पर उस पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत मुकदमा लगा दिया। जेल में सताने की पूरी कोशिश की।  पर वह टूटा नही। मजबूत बनकर बाहर आया।

चंद्रशेखर क्या है ? ये उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के पास छुटमलपुर कस्बे की देहरादून  – रुड़की वाली सड़क से अंदर जाती गलियों में बने दलित घरों में से एक घर के पास पहुंचे तब समझ मे आ गया। घर का दरवाजा बंद था, हमें कुछ युवाओ ने आकर हमारा परिचय पूछा । हम श्री एस आर दारापुरी जी जो उत्तर प्रदेश के पूर्व इंस्पेक्टर जर्नल है, के साथ थे। उन्होंने अपना नाम बताया फिर हमें साधारण से घर की दूसरी मंजिल पर छत पर ले जाया गया । पहली मंजिल की दीवार पर नीले रंग पर भीम आर्मी का नाम लिखा था । छत पर एक तरफ बिस्तर पर चंदशेखर लेटे थे। हमें देख कर थोड़ा उठने की कोशिश की फिर बताने लगे की लगातार बोलना हो रहा है सोना हो नहीं पा रहा इसलिए बदन में दर्द है और थकान ।

हमने उन्हें आंदोलनों की ओर से एक हल्की सी सादी शाल देनी चाही तो वे तुरंत उठे और बहुत सम्मान से उसको स्वीकार किया। लगभग आधे घंटे से ज्यादा हमारी खूब बात हुई। हमने कहा कि देश को आप युवाओं की बहुत जरूरत है। मन को एक आंतरिक खुशी और तसल्ली थी कि बहुत समय सोच कर भी नहीं जा पाए थे मगर आज हम मिल ही लिए । बिना कुछ जाने पूछे ही बहुत कुछ समझ में आ रहा था। वह बड़ी मौज से बता रहे थे की एक डेढ़ महीने तो मैंने मिलना बहुत कम कर दिया, बंद ही कर दिया था। बस मैं खाता था और पढ़ता था। मैंने खूब पढ़ा। दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सरोज गिरी जी से बात करते हुए भी उनकी विद्वता जाहिर हो रही थी।

उनके साथी बार बार उन्हें आराम करने के लिए कह रहे थे और इशारे से हमें भी विदाई के लिए कह रहे थे किंतु हम थोड़ी देर और बैठे रहने का लोभ नहीं छोड़ पा रहे थे। चंदशेखर भी बोले कि मुझे पूरी बात करनी है। छोटी सी छत के चारों और युवा मुंडेर पर बैठे थे ।

चंदशेखर पूरी तरह स्पष्ट है वह भाजपा की सांप्रदायिकता समझते हैं। दलित सम्मान की बात से पीछे नहीं हटने वाले हैं। साथ ही सहज रूप में बड़ों को सम्मान देने की परंपरा को भी मानते हैं। मुझे नहीं लगता कि उन्होंने किसी राजनीतिक मंतव्य से मायावती जी को बुआ कहां होगा। उन्होंने अपनी सरलता से ही उन्हें बुआ का सम्मान दिया है । ये युवा सच्चे लगते हैं इनमें कुछ कर गुजरने की इच्छा और हिम्मत भी है। यह नेताओं के भ्रष्टाचार से परेशान हैं। सदियों से बहुजन समाज को दबाए जाने से परेशान है और यह सहने वाले कतई नहीं लगते । चंद्रशेखर के जेल से बाहर आने पर युवाओं में उत्साह है

चंद्रशेखर अंग्रेजी के पत्रकार जिग्नेश मेवानी जैसे तेज तर्रार नहीं है, वे अल्पेश ठाकुर या हार्दिक पटेल जैसे भी नही है। ना ही कन्हैया जैसे है जिनके पीछे पूरी पार्टी खड़ी है। वे सरल औऱ जमीन से बहुत गहरे जुड़े हैं उनकी जड़ें बहुत गहरी बैठी है। जिसको वे समझते भी हैं। वे बहुत हंस कर बता रहे थे कि उनको 7:30 बजे शाम को बताया गया रिहाई के बारे में।  फिर कहा गया कि अभी तो भाई 8-9 हजार लोग बाहर हैं। तो मैं आराम से सो गया फिर मुझे रात को दो ढाई बजे जगाया और तो मैंने पूछा क्या सच में रिहा कर रहे हो तो रुको मैं ऐसे नहीं जाऊंगा और मैं नहा धोकर अच्छी तरह जाऊंगा आखिर मेरे लोग मेरा इंतजार कर रहे हैं। यह कहते हो उनके चेहरे की जो निश्छल मुस्कान आई  उससे हमारे हृदय भी पुलक गए।

बहुत अच्छी मीठी ठंडी वाली साफ़ हवा में भरपूर सांस ले पाए हम। देश के युवाओं में जो फेसबुक व्हाट्सएप टि्वटर की दुनिया से आईटी सेल जहर भर रहा है उसको इस हवा ने काफी हद तक उड़ाया।

महीनों से उत्तराखंड के बांध क्षेत्रों में जाते जाते हरिद्वार रुड़की पार करने पर चंद्रशेखर से मिलने की इच्छा होती थी।  दिल्ली में 13 सितंबर की एक बैठक में पंजाब के बहुजन समाज के पूर्णकालिक युवा नेता कुश जी से मुलाकात हुई उन्होंने बताया की वे  जल्दी ही चंद्रशेखर को जेल में मिलने वाले हैं । जन आंदोलनो का राष्ट्रीय समन्वय के साथी उनसे मिलने की सोच रहे थे। इसी क्रम में हमने गुजारिश की कि जब भी जाए हमें बताएं और उन्होंने बताया कि चंदशेखर को जल्दी छोड़ा जाएगा। रात तक टीवी पर खबर आ गई की सरकार छोड़ रही है और सुबह खबर आ गई कि छोड़ दिया। चंदशेखर की शब्दों में शेर बाहर आ गया। कुश भाई ने बताया था कि चंदशेखर कॉलेज में पढ़ाई  कर रहे हैं और उनके साथी स्थानीय राजपूतों के तौर तरीके नहीं सहन करते, टक्कर देने की हिम्मत भी रखते हैं ।

यह देश का दुर्भाग्य है कि आज आरक्षण के नाम पर भी बहुजन समाज को बहुत कुछ नहीं मिल पाया ।  वे उतने ही अपमान और पीड़ाओं के बीच जीते हैं । खासकर जो आगे बढ़ना चाहते हैं उन्हें अप्रत्यक्ष बंदिशें का सामना करना पड़ता है । बहुजन समाज के उत्पीड़न की खबरों को तलाशने के लिए किसी भी अखबार का पन्ना या सोशल मीडिया पर जरा सा ही जाने की जरूरत है।

बसपा ने जो बहुजन समाज की ताकत खड़ी की उत्तर प्रदेश में वह सभी पार्टियों के लिए एक खजाने की तरह है। जिस को वे चुनाव के समय लूटने के लिए तत्पर होते हैं। अभी प्रश्न है कि चंद्रशेखर उसी जातिगत राजनीति में जाएंगे या जैसा दारापुरी जी जैसे समाज कर्मियों की अपेक्षा पर खरे उतरेंगे । उत्तर प्रदेश के बहुत प्रसिद्ध पूर्व डीआईजी जो अंबेडकर जी को मानते हुए समाज में  बहुत सक्रियता से काम करते हैं  उनका कहना है  कि चंद्रशेखर को अपने एजेंडे के साथ आना होगा। युवाओं को रोजगार और जैसा अंबेडकर साहब का सपना था कि बहुजन समाज का हर व्यक्ति शिक्षित हो। सम्मान देने से नहीं मिलता सम्मान छीनना ही पड़ेगा ।

चंद्रशेखर, अल्पेश ठाकुर की तरह मात्र एक विधायक बन कर रह जाएं और राज्य सत्ता की तैयार मलाई पर बैठे या वे लंबी लड़ाई की तैयारी करें। यह समय उनके लिए बहुत कठिन है जब लोगों की उन से बहुत अपेक्षाएँ हैं वह बता रहे थे  कि उनको सैकड़ों चिट्टियां मिली । जेल से बाहर आकर भी चिट्टियां मिली। इस बात से भी अभिभूत थे की उनके जेल में होने के बावजूद भी लोग उनसे अपेक्षा रख रहे थे। हमने उनसे मुलाकात के बाद देखा भी, जब हम पतली सी सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे और वँहा बैठे युवा बोले की हम भी लगातार बैठे हैं । नीचे पतले लंबे दलान में किनारे बहुत से लोग गुलदस्ते लिए बैठे थे । कुछ मुस्लिम साथियों का छोटा जत्था भी था। उत्तर प्रदेश में पास व दूर के लोग होने मिलने आ रहे हैं । कुछ राजनेता भी आए हैं। राजनीतिक दल देख रहे हैं, पानी नाप रहे हैं । मायावती जी को यह कहने पर मजबूर होना पड़ा की उनका कोई रिश्ता नहीं है । पर यह बात भी एक रिश्ता है बताती है।

चंद्रशेखर को देश के विचार बंधुओं का एक समूह बनाना होगा। जिनसे उन्हें लगातार सलाह मशवरा करना होगा साथ ही राजनीतिक दलों से रिश्ता बनाए रखते हुए अपने बहुजन समाज की अपेक्षाओं को समझ कर आगे बढ़ना होगा।

हां ! चंदशेखर हमे तुम्हारा नीला रंग बहुत पसंद आया। आसमान करंट भी नीला है अपनी जगह पहचानो और आगे बढ़ो । जिंदाबाद शेर!!

विमल भाई

राष्ट्रीय समन्वयक

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय

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