बापू के आख़िरी कुछ साल | तुषार गांधी Mahatma Gandhi's great-grandson Tushar Gandhi speaks about his final years
01, Oct 2023 | CJP Team
उनके जीवन के आख़िरी चार साल, महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांत की सबसे कठिन परीक्षा साबित हुई । डायरेक्ट एक्शन डे से बँटवारे तक जब पूरा हिंदुस्तान क़ौमी नफ़रत और हिंसा की आग में झुलस रहा था, और कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेता अपनी-अपनी रोटी सेंक रहे थे, अकेले बापू , अपनी जान जोखिम में डालते हुए, दिल्ली से नोआख़ाली, बिहार से कलकत्ता तक, अहिंसा की लाठी का सहारा लेते हुए, हिंदुस्तान की एकता के लिए लड़ते रहे । इतिहास गवाह है की इस क़वायद से तो देश के पूर्वी हिस्सों में वे शांति क़ायम करने में सफल हुए पर ख़ुद को नाथूराम गोडसे की गोली का शिकार होना पड़ा। अपनी किताबों में और इस इंटरव्यू में भी, बापू के परपोते तुषार गांधी उनके आख़िरी सालों के बारे में कहते है की इस जाँबाज़ कोशिश के चलते, ख़ासकर उनकी शहादत के फलस्वरूप लगभग पचास साल तक क़ौमी नफ़रत की हवा इस देश में चली तो पर टिक नहीं पाई।
क्योंकि अब समय बदल रहा है, और हिंसा का एक नया दौर मानो आरंभ हो रहा है, बापू के वो आख़िरी कुछ सालों को याद करना ज़रूरी हो चला है।
सिटीज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP), पिछले तीस साल से हिंदुस्तान में क़ौमी एकता के लिए काम कर रही है। इस लड़ाई में हम गांधीजी के अनुयायी है । तुषार गांधी के साथ ये खास वीडियो सीरीज, फेक न्यूज़ और हिंसा के ज़माने में, जनमानस के पास गांधीजी के विचारों को पहुँचाने की एक कोशिश मात्र है।
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