आदिवासी मानवाधिकार रक्षकों को मिली ज़मानत – किस्मतिया और सुखदेव आए घर, सुकालो भी जल्द होंगी रिहा UP के वन अधिकार रक्षकों को अलाहाबाद उच्च न्यायलय द्वारा न्याययिक विधि की अनुमति दिए जाने के बाद मिली ज़मानत

12, Oct 2018 | CJP Team

आदिवासी मानवाधिकार रक्षकों सुकालो और किस्मतिया गोंड के लिए चलाए गए रिहाई अभियान में CJP और ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फ़ॉरेस्ट वर्किंग पीपल (AIUFWP) को महत्वपूर्ण सफलता हासिल हुई है. सुकालो, सुखदेव और किस्मतिया गोंड को अवैध रूप से कई महीनों तक बंदी बना कर रखे जाने के बाद अब ज़मानत मिल गयी है. सुखदेव और किस्मतिया को ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है और अब हम AIUFWP की कोषाध्यक्ष सुकालो गोंड की रिहाई का इंतजार कर रहे हैं.

 

AIUFWP की महासचिव रोमा ने CJP को बताया, “हम इस सफलता से बहुत ख़ुश हैं. ज़मानत जैसी छोटी सी चीज़ के लिए भी इतना समय लगा, लेकिन हमारे लगातार और सामूहिक प्रयासों ने आखिरकार इसे संभव कर ही लिया है. दस्तावेजों के सत्यापन में बहुत समय लगा. हालांकि, सभी बाधाओं के बावजूद उन्हें अंत में रिहा किया जा रहा है. अब हम सुकालो की रिहाई का इंतज़ार कर रहे हैं. हम सभी बहुत खुश और अच्छे परिणाम की उम्मीद में हैं.

ये सफलता CJP द्वारा दायर हबियास कॉर्पस पेटिशन (बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका) के चलते AIUFWP की कोषाध्यक्ष सुकालो और वन अधिकार समिति (FRC) की सचिव किस्मतिया गोंड को बीते 7 सितम्बर को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किए जाने के बाद हासिल हुई है. इसके बाद ही अदालत ने दोनों महिलाओं को न्यायिक सहायता प्राप्त करने की सुविधा दी. याचिकाकर्ताओं सुकालो व किस्मतिया के वकील फ़रमान नकवी ने कहा है कि “चूंकि ये दो महिला नेता न्यायिक हिरासत में हैं, इसलिए वे हबियास कॉर्पस याचिका के लिए लागू कानून के अनुसार अपनी रिहाई की मांग कर सकती हैं.”

जो आदिवासी मानव अधिकार कार्यकर्ता, अपने जंगलों की हिफाज़त के लिए लड़ते हैं जिनपर उनका ही अधिकार है, उन्हें झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है, केवल इसलिए क्योंकि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. CJP ऐसे लोगों की हिफाज़त के लिए काम कर रही है. हम वन अधिकारों के संघर्ष में उनके साथ खड़े हैं. हमारे अभियान का समर्थन करने के लिए, कृपया यहां दिल खोल कर योगदान करें.

अदालत ने प्रासंगिक पूछताछ करते हुए पुलिस द्वारा प्रस्तुत हलफ़नामे में अदालत को गुमराह करने की कोशिश के लिए स्थानीय पुलिस को फटकार लगाई. मामले से सम्बंधित राज्य सरकार के अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का मौखिक आदेश देते हुए न्यायधीशों ने कहा कि “यदि आप अदालत के समक्ष प्रस्तुत शपथपत्र जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ में गड़बड़ी कर के अदालत को गुमराह करने जैसा गंभीर दुस्साहस कर रहे हैं तो हम उस भयानक दहशत की कल्पना मात्र कर सकते है जो आप स्थानीय स्तर पर फैलाते होंगे”.अदालत ने दोनों महिलाओं से ये भी पूछा कि कैद की अवधि के दौरान उनके साथ “उचित बर्ताव” किया गया या नहीं. दोनों ने जवाब दिया कि उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं किया गया व भोजन वगैरह नियमित रूप से दिया गया. अदालत ने सुकालो और किस्मतिया दोनों को ही परिवार से मिलने की इजाज़त दी है.

सुकालो गोंड, सुखदेव गोंड, किस्मतिया गोंड व दो अन्य लोगों को शुक्रवार 8 जून को गिरफ़्तार किया गया था. सोनभद्र (यूपी) पुलिस ने उन्हें चोपन रेलवे स्टेशन से बड़े ही गुप्त और संदिग्ध तरीके से तब उठाया जब वे यूपी के वनमंत्री दारा सिंह चौहान और वन सचिव के साथ मीटिंग कर के लखनऊ से लौट रहे थे. दरअसल, बैठक में चौहान ने लिलासी के ग्रामीणों पर पिछले हमलों की जांच करने का वादा किया था, जिन्हें कथित रूप से वन विभाग के साथ मिलकर आयोजित किया गया था. एफआईआर में हिरासत में ली गई महिलाओं के नामों का भी उल्लेख नहीं किया गया था.

सुकालो और किस्मतिया के लिए लगभग तीन महीने का ये समय कठिन परीक्षा वाला रहा. सीजेपी और एआईयूएफडब्लूपी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष हबियास कॉर्पस याचिका दायर करने के लिए मजबूर होना पड़ा. सीजेपी और एआईयूएफडब्लूपी के अभियान के बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे राजनीतिक दलों ने भी इन दोनों महिलाओं की रिहाई के लिए सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों पर अपना समर्थन दिया. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 28 अगस्त को ट्वीट किया कि वे महिलाओं के बारे में चिंतित हैं और स्थानीय कांग्रेस नेताओं से इस मामले को संज्ञान में लेने की अपील की. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोनभद्र पुलिस केएसपी को निर्देशित किया कि 7 सितंबर को अदालत में इन दोनों महिलाओं को पेश किया जाए. हाल ही में यूपी के विधायक संजय गर्ग ने भी मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की और उन्हें पत्र के ज़रिए सोनभद्र के ग्रामीणों पर लगातार हो रही पुलिसिया हिंसक कार्रवाई से अवगत करया. उन्होंने AIUFWP के मानवाधिकर कार्यों को ग़लत तरीके से प्रचारित किए जाने के मुद्दे पर भी प्रकाश डाला.

 

अनुवाद सौजन्य – अनुज श्रीवास्तव

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