
फुलवरिया की रामलीला: गंगा-जमुनी तहज़ीब और भाईचारे की अनोखी मिसाल “हमारे पूर्वजों ने जो सद्भाव का बीज यहां बोया है, वह आज भी कायम है। यहां की एकता काबिले तारीफ़ है, लेकिन दुनिया इसे माने तो समझे।”
03, Oct 2025 | सीजेपी टीम
ये गंगा-जमुनी तहज़ीब टूट कर नहीं बिखरने वाली,
नफ़रतें कितनी भी बढ़ जाएं,
मोहब्बतें कभी नहीं मरने वाली।
— खान सारिक
“राम और कृष्ण भी हमारे पैग़ंबर हैं। अच्छे लोगों को ही पैग़ंबर कहा जाता है।” यह कहना है 70 वर्षीय गुलामुद्दीन साहब का, जो स्वर्गीय नजमुद्दीन साहब के छोटे भाई हैं। वे सिटीज़न्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस की स्टाफ़ शमा बानो से एक वीडियो बातचीत में यह विचार साझा कर रहे थे। बता दें, वाराणसी के फुलवरिया (कैंट) आज साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल है।
सिटीज़न्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस की टीम को हाल ही में पता चला कि 1992 में, जब बाबरी मस्जिद गिराई गई और देशभर में सांप्रदायिक हिंसा फैली, उस समय फुलवरिया, कैंट के चार दोस्तों—स्वर्गीय नजमुद्दीन, जोगिंदर प्रसाद, दीपक सिंह और विजय प्रसाद गौड़—ने मिलकर अपने मोहल्ले में साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए रखने का प्रयास किया। उन्होंने नव चेतना कला एवं विकास समिति बनाई और इसके तहत एक रामलीला समिति गठित की।
नफ़रत, हिंसा और निराशा के समय में आपसी मेलजोल की सदियों पुरानी विरासत को संजोना बेहद ज़रूरी है. मज़हबी एकता और सद्भाव भारतीय संविधान और धर्मनिरपेक्षता की नींव हैं. भाईचारे की इन नायाब कहानियों के ज़रिए हम नफ़रत के दौर में संघर्ष के हौसले और उम्मीद को ज़िन्दा रखना चाहते है. हमारी #EverydayHarmony मुहिम देश के हर हिस्से से एकता की ख़ूबसूरत कहानियों को सहेजने की कोशिश है. ये कहानियां बताती हैं कि कैसे बिना भेदभाव मेलजोल के साथ रहना, मिल–बांटकर खाना, घर और कारोबार हर जगह एक–दूसरे की परवाह करना हिंदुस्तानी तहज़ीब की सीख है. ये उदाहरण साबित करते हैं कि सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनल्स के भड़काऊ सियासी हथकंड़ों के बावजूद भारतीयों ने प्रेम और एकता को चुना है. आईए! हम साथ मिलकर भारत के रोज़मर्रा के जीवन की इन कहानियों के गवाह बनें और हिंदुस्तान की साझी तहज़ीब और धर्म निरपेक्ष मूल्यों की हिफ़ाज़त करें! नफ़रत और पूर्वाग्रह से लड़ने के सफ़र में हमारे साथी बनें! डोनेट करें–
नजमुद्दीन समिति के संस्थापक अध्यक्ष बने और विजय जी सचिव। नजमुद्दीन के देहांत के बाद उनके छोटे भाई गुलामुद्दीन अध्यक्ष बने। तीन-चार साल पहले स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ दिया, लेकिन आज भी समिति के कामों में रुचि लेते हैं।
25 सितंबर 2025 को सीजेपी स्टाफ़ ने रामलीला समिति के संस्थापक अध्यक्ष स्वर्गीय नजमुद्दीन के छोटे भाई गुलामुद्दीन और सचिव विजय प्रसाद गौड़ से मुलाक़ात कर यह जानने की कोशिश की कि 1992 में फुलवरिया में रामलीला क्यों और कैसे शुरू की गई।
विजय प्रसाद ने याद किया—“1992 में माहौल बहुत खराब था। हिंदू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे। हम चार दोस्त पेड़ के नीचे बैठे चिंतित थे। सोच रहे थे कि हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई हैं, फिर भी दंगे क्यों हो रहे हैं। मोहल्ले की महिलाएं और बच्चे दूसरे गांव जाकर रामलीला देखते थे। हमें लगा कि दंगे की चपेट में हमारे लोग भी आ सकते हैं। इसलिए तय हुआ कि अपने ही मोहल्ले में रामलीला कराई जाए। इससे लोगों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा और सद्भाव का संदेश भी जाएगा।”
उस वक्त 60 फीट का रावण का पुतला नजमुद्दीन खुद बनाते थे। गांव का माहौल बिगड़े नहीं, इसी सोच से सबने मिलकर रामलीला की शुरुआत की। नजमुद्दीन को सर्वसम्मति से अध्यक्ष बनाया गया। आज भी फुलवरिया में हिंदू-मुस्लिम एकता कायम है।
नजमुद्दीन के बारे में उनके भाई गुलामुद्दीन ने बताया—“वे पहलवान थे, बड़े काश्तकार और समाजसेवी थे। सबका ख्याल रखते थे और सब उन्हें सम्मान देते थे। उन्हें संतान नहीं थी, लेकिन वे पूरे गांव को अपना परिवार मानते थे। रामलीला शुरू होते ही रावण बनाने में जुट जाते थे।”
आज और तब में फर्क के सवाल पर गुलामुद्दीन बोले—“हमारे मोहल्ले में आज भी शांति और एकता है। गंगा-जमुनी तहज़ीब कायम है।”
फुलवरिया में हिंदू समुदाय के दलित, ओबीसी, सामान्य जाति और मुस्लिम लोग साथ रहते हैं। गुलामुद्दीन कहते हैं—“आज भी हम एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहते हैं। हाल ही में मेरे बेटे की शादी में, पहले दिन हिंदू मेहमानों के लिए शाकाहारी भोजन और दूसरे दिन मुस्लिम मेहमानों के लिए मांसाहारी भोजन रखा गया। सभी समुदाय शामिल हुए।”
शादी-ब्याह और मौत जैसे अवसरों पर भी सभी समुदाय एक-दूसरे के साथ खड़े रहते हैं। गुलामुद्दीन कहते हैं—“हमारे पूर्वजों ने जो सद्भाव का बीज बोया था, वह आज भी जीवित है। यहां की एकता काबिले तारीफ़ है, बस दुनिया इसे स्वीकार करे।”
उन्होंने बताया कि रामलीला के वक्त जब नमाज़ का समय होता था, तो वे वहीं नमाज़ पढ़ लेते थे। कभी किसी ने विरोध नहीं किया, बल्कि दूसरे समुदाय के लोग सम्मान देते थे।
विजय प्रसाद गौड़ और गुलामुद्दीन का कहना है कि फुलवरिया गांव में आज भी सभी त्यौहार मिलजुल कर मनाए जाते हैं।
यही वह गंगा-जमुनी तहज़ीब है, जिसे हमें बचाए रखने की ज़रूरत है। आज हमें फुलवरिया से सीखना चाहिए और इस बगिया में सब रंगों का समावेश बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए।
वो गंगा-जमुनी तहज़ीब, वो अमन का दौर
ना मिलेगा मंदिर के राम में, ना मस्जिद के अली में…
हटा ज़रा सियासी धुंध और सुन अपने ख़ुद की,
सब मिलेगा उस मूर्ति बनाने वाले मियां की गली में…
— आशुतोष