दलित महिलाओं को पुजारी तैनात कर इस मंदिर ने क़ायम की अनूठी मिसाल मंदिरों पर आम तौर पर पुरूषों और ब्राह्मण वर्ग का प्रभुत्व रहा है, ऐसे में इस क्षेत्र में दलित महिलाओं का दाख़िल होना एक बेहतर बदलाव की शुरूआत है.

27, Sep 2023 | CJP Team

भारत ज़मीन के लिहाज़ से एक कृषि प्रधान और समाज के नज़रिये से एक धर्मप्रधान देश है. धार्मिक विविधता के बावजूद पूजा स्थलों में महिलाओं को मुख्य पुजारी के रूप में रखना अभी तक दूर की कौड़ी रहा है.

बहुत सारे मंदिरों में महिलाओं को पूजा से भी वंचित किया जाता है लेकिन उड़ीसा के केंद्रपाड़ा में मां पंचबड़ही मंदिर पुराने क़ायदों को तोड़कर एक नई लीक बना रहा है. टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़, इस मंदिर में दलित महिलाओं को पुजारी तैनात किया गया है और मुख्य पूजा परिसर में पुरूषों के दाख़िल होने पर भी पाबंदी है.

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एक क्रांतिकारी पहल का रास्ता

मध्यकाल में धर्म और राजनीति को एक ही प्याले में पेश में किया जाता था लेकिन आज के आधुनिक लोकतंत्र में भी धर्म समाजिक प्रतिष्ठा और सत्ता का प्रतीक है. इसका राजनीति तय करने में भी अहम योगदान होता है. ऐसे में क़रीब 6.28 लाख मंदिरों वाले देश में एक जाति को और आधी आबादी को धार्मिक पदों से दूर रखना उन्हें नियंत्रित करने का औज़ार बन जाता है. ‘ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी, सकल ताड़न के अधिकारी’ जैसी अमानवीय हिंदुत्ववादी सूक्तियां भी दलित वर्ग, महिलाओं, सहजीविता और संगीत का अपमान करती रही हैं. ऐसे में उड़ीसा के पंचबड़ही मंदिर ने न सिर्फ़ भेदभाव की राजनीति को चुनौती दी है वरन धर्म पर सभी का समान अधिकर भी सुनिश्चित किया है. ये सदियों से दलितों को उपासना के हक़ और बुनियादी सम्मान से बेदख़ल रखने के ख़िलाफ़ एक महत्वपूर्ण क़दम है.

पहले ये मंदिर बंगाल की खाड़ी के किनारे क़रीब 15 किलोमीटर के इलाक़े में फैला हुआ था लेकिन समुद्र का विस्तार बढ़ने के कारण काफ़ी लोगों को विस्थापित होना पड़ा. जिसके नतीजे में 2018 में इस मंदिर की भी जगह बदल दी गई. मंदिर की जगह बदलना क़ुदरत के क़हर का परिणाम है जबकि सोच बदलने की कोशिश इस मंदिर के खाते की असल कमाई है.  

स्थानीय लोगों के बीच मान्यता है कि सालों पहले पुरूष पुजारियों ने नशे में धुत्त होकर देवी की प्रतिमा का अपमान किया था तबसे इलाक़े की जनता ने तय किया कि इस मंदिर में सिर्फ़ महिला पुजारियों को तैनात किया जाएगा. धार्मिक पदों पर महिलाओं के हक़ और दावे के साथ ये मंदिर एक नए संघर्ष का धरातल तैयार कर रहा है.

मंगलवार के अवकाश की शुरूआत

सामान्य रूप से मंदिरों में पुजारियों के लिए अवकाश का कोई दिन निर्धारित नहीं होता है लेकिन इस मंदिर ने मंगलवार के दिन अवकाश घोषित करके भी एक नए बदलाव का संदेश दिया है. उड़ीसा के केंद्रपाड़ा में राजनगर ब्लॉक की बागपतिया पुनर्स्थापन कॉलोनी में ये मंदिर अपनी दलित महिला पुजारियों को मंगलवार के दिन छुट्टी भी देता है जिससे उन्हें भी फ़ुरसत के पल मुहैय्या हो सकें. मंदिर बंद होने के दिन वहां घी का दीपक जलाने की पंरपरा है. टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए पूर्व सरपंच सस्मिता राउत ने कहा कि –  ‘सभी कारख़ानों, ऑफ़िसेज़ और काम की जगहों पर साप्ताहिक छुट्टी दी जाती है. ये मंदिर पुजारियों के लिए काम की जगह है इसलिए उन्हें यहां साप्ताहिक अवकाश मिलता है.’

जब शिक्षा के लिए कन्या विद्यालय हैं, खेल में हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए महिला क्रिकेट और महिला हॉकी है तो फिर धर्म से महिलाओं को दरकिनार क्यों किया जाए? हमारे सामने गार्गी और अपाला जैसी महिलाओं के उदाहरण हैं जिन्होंने शास्त्रार्थ में ब्राम्हण पुरूषों को पराजित कर दिया था, हमारे सामने राबिया अल बसरी की ख़ूबसूरत कहानी है जिन्होंने ख़ुदा की मुहबब्त में सूफ़ी धारा को एक नया आयाम दिया, ऐसे में ये बेहद ज़रूरी है कि बराबरी क़ायम करने के लिए मंदिरों और मस्जिदों में महिलाओं की जगह तय की जाए. इबादत के हक़ के साथ ये महत्वपूर्ण है कि उन्हें धार्मिक ज़िम्मेदारियों की कमान भी सौंपी जाए जिससे उनका आत्मविश्वास और सामाजिक प्रतिष्ठा मज़बूत हो. पंचबड़ही मंदिर एक बड़ी मुहिम की शुरूआत भर है, आगे एक लंबी लड़ाई हमारा रास्ता देख रही है.

Image Source- Times of India

 

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