CJP इम्पैक्ट: दावा-आपत्ति की प्रक्रिया में NRC प्राधिकरण की नर्मी महिलाओं और बच्चों द्वारा सही जा रही परेशानियों को उजागर करने वाले CJP के Facebook Live के बाद आया बदलाव

03, Dec 2018 | CJP Team

21 नवंबर को CJP की सचिव तीस्ता सेतलवाड़ और हमारी असम परियोजना समन्वयक ज़मशेर अली एक साथ एक फेसबुक लाइव प्रसारण में दिखाई दिए. इस प्रसारण में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) में दावा दर्ज कराने की प्रक्रिया के उन पहलुओं की जानकारी दी गई जिसके कारण कई लोगों को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. हमारे इस प्रसारण के एक दिन बाद ही एनआरसी राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला ने सभी स्थानीय एनआरसी अधिकारियों को 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और विवाहित महिलाओं के निवास निर्धारण के विषय में एक नोटिस जारी किया.

फ़ेसबुक लाईव का वो प्रसारण जिसमें नागरिक सेवा केंद्र द्वारा उन लोगों के साथ किए जा रहे अनैतिक बर्ताव का वर्णन है जिनके पास पहचान के प्रमाणपत्र के नाम पर केवल ग्राम पंचायत सचिव का दिया प्रमाणपत्र मात्र ही है.

असम में हमारे निरंतर अभियान के दौरान हमने पाया था कि 31 जुलाई 2018 को प्रकाशित एनआरसी के अंतिम मसौदे से बाहर किये गए 40 लाख लोगों में लगभग आधे से ज़्यादा महिलाएं और बच्चे थे. ऐसा इसलिए क्योंकि इनमे से अधिकतर के पास ऐसे दस्तावेज़ नहीं हैं जो एनआरसी अधिकारियों को स्वीकार्य हों.

NRC के अंतिम मसौदे से 40 लाख से ज़्यादा लोगों को बाहर कर दिया गया है. उनमें से अधिकतर सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों से संबंधित हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं. उनमें कई महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं. गुजरात में कानूनी सहायता प्रदान करने के अपने पिछले अनुभव के आधार पर अब सीजेपी वकीलों और स्वयंसेवकों की बहु-पक्षीय टीम के साथ यहां भी ज़रूरी कदम उठा रहा है, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि इन लोगों को कुछ अति-प्रभावित ज़िलों में दावा दायर करते समय उचित एवं पर्याप्त अवसर मिल सकें. आपका योगदान कानूनी टीम, यात्रा, दस्तावेज़ीकरण और तकनीकी ख़र्चों की लागत को थोड़ा आसान करने में हमारी मदद कर सकता है. सहायतार्थ योगदान कीजिए!

सीजेपी के सहायक कार्यकर्ता पूरे राज्य में घूम-घूम कर लोगों को सलाह और सहायता प्रदान कर रहे हैं. ताकि अधिक से अधिक लोगों को एनआरसी प्रक्रिया में दावा प्रस्तुत करने के पर्याप्त अवसर मिल पाएं. हमने पाया कि यहां महिलाएं और बच्चे अव्यवस्था का शिकार होकर सबसे ज़्यादा परेशानी झेल रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार किसी महिला के लिए उसके विवाह पूर्व, ग्रामपंचायत सचिव के द्वारा जारी किए गए प्रमाणपत्र को विवाह के बाद उसका निवास स्थान बदल जाने की स्थिति में भी वैध दस्तावेज़ माना जाएगा, परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि असम में सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की अवहेलना करते हुए नागरिक सेवा केंद्र (एनएसके) के अधिकारी इन दस्तावेज़ों को स्वीकार करने से इनकार कर रहे हैं.

अपने फ़ेसबुक लाईव प्रसारण में हमने इस बात का विस्तार से वर्णन किया है कि कैसे एनएसके इन दस्तावेज़ों की प्रमाणिकता पर सवाल उठा कर इन्हें स्वीकार नहीं कर रहा है, और ये भी कि कैसे इसका खामियाज़ा बच्चों और विवाहित महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है.

हालांकि, हमारे प्रसारण के एक दिन बाद ही एनआरसी राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला ने नागरिक पंजीकरण (डीआरसीआर) के सभी ज़िला रजिस्ट्रारों, नागरिक पंजीकरण के स्थानीय रजिस्ट्रारों (एलआरसीआर) और एनएसके के अधिकारियों को, महिलाओं और बच्चों के लिए दावे और आपत्ति प्रक्रिया में एक मानक ऑपरेटिंग प्रक्रिया अपनाए जाने का निर्देश जारी किया है. जारी किया गया निर्देश्पत्र यहां पढ़ा जा सकता है:

14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और विवाहित महिलाओं की दावा प्रक्रिया के सम्बन्ध में प्रतीक हजेला द्वारा जारी निर्देश्पत्र

इसका मतलब है कि माता-पिता द्वरा मौखिक कही बात या लिखित निवेदन को, उनके बच्चों के वंश की प्रमाणिकता मानकर उसे दावा प्रक्रिया के हिस्से की तरह शामिल किया जाएगा. बच्चों के मामलों में यह तथ्य ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि अक्सर इनके पास जन्म प्रमाणपत्र या स्कूल छोड़ने का कोई प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं होता है. इसी प्रकार, ग्राम पंचायत सचिव के द्वरा जारी सर्टिफिकेट की स्वीकृति के बारे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के प्रति अपनी वचनबद्धता दोहराकर, एनआरसी प्राधिकरण ने लाखों ग्रामीण गृहिणियों की जो वास्तविक भारतीय नागरिक हैं, चिंता को कुछ हद तक कम कर दिया है.

CJP की निरंतर जांच और ज़मीनी रिपोर्टिंग का ये एक प्रत्यक्ष प्रभाव है. हमें उम्मीद है कि एनआरसी अधिकारी हमारी रिपोर्ट्स का संज्ञान लेना जारी रखेंगे, और यह सुनिश्चित करने के लिए काम करेंगे कि NRC के अंतिम मसौदे से बाहर निकाले गए सभी लोगों को दावा दायर करने का उचित अवसर मिलता रहे.

 

अनुवाद सौजन्य – अनुज श्रीवास्तव

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