चुनार – कैसे एक मुगलकालीन ऐतिहासिक शहर बना सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक एक ओर है देवी-देवताओं की पारंपरिक मूर्तियां, वहीं गंगा किनारे है सूफी संत सुलेमान शाह की दरगाह

10, Oct 2022 | फ़ज़लुर रहमान अंसारी

वाराणसी जिले से सटे हुए जिले मिर्जापुर के चुनार में लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों का बाजार दिवाली से पहले सज गया है। दिवाली पर यहां की मूर्तियां देशभर में पूजी जाती हैं।

इन मूर्तियों की सप्लाई उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र के साथ नेपाल तक होती है। चुनार उत्तर प्रदेश का बेहद अहम और प्राचीन शहर है। इसकी गिनती भी पुराने शहरों में की जाती है। मुगल काल से ही यहां मूर्तियां बनना शुरू हो गई थी मूर्ति बनाने के काम  में हर धर्म के लोग थे। लेकिन वक्त के साथ ही धर्म की कट्टरता की वजह से मुस्लिम धर्म के लोगों ने अब मूर्ति बनाना छोड़ दिया है।

चुनार में किले के साथ ही दरगाह और राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाली लक्ष्मी गणेश की बनी मूर्तियां आज पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। दिपावली के पहले चुनार की मूर्तियां खरीदने के लिए देश के कई राज्य से लोग यहां पहुंचते हैं और मूर्तियां खरीदते हैं और अपने अपने क्षेत्र में ले जाकर दिपावली के समय बेचते हैं। चुनार की पहचान बन चुके प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्ति उद्योग को इस बार बाजार से काफी उम्मीदें हैं। क्योंकि हर वर्ष दिवाली पर गणेश लक्ष्मी पूजने के लिए तैयार होने वाली मूर्तियों की डिमांड बढ़ती ही जा रही है।

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मूर्ति उद्योग से जुड़े लोगों में से एक अशफाक अहमद उर्फ बब्लू साहब हैं जिनकी दुकान इसी मार्किट में है। उन्होंने बताया कि कारीगर पूरे वर्ष मूर्ति बनाने का काम करते हैं और नवंबर के महीने में इन मूर्तियों की बिक्री करते हैं। बिक्री से मिले पैसों से वो अपने पूरे परिवार का साल भर का खर्च चलाते हैं।

उन्होंने बताया यहां पर पत्थर और लाल मिट्टी के बने सामान ज्यादा मशहूर थे।  समय के साथ इसकी मांग धीरे-धीरे बंद होती गयी।  चीनी मिट्टी से बने बर्तनों के सजावटी सामान यहां बनने लगे। इसकी भी जब डिमांड आधुनिकता के दौर में कम हुई तो यहां पर लोग दिवाली के समय पूजी जाने वाली लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाने लगे।  धीरे-धीरे इन मूर्तियों की मांग बढ़ने लगी आज यह व्यवसाय करोड़ों रुपए तक पहुंच गया है।

गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां खरीदने आए दुकानदार मनोज मौर्य का कहना है, ‘’इस तरह की मूर्तियां कोलकाता और कानपुर में भी नहीं मिलती हैं। यहां की सुंदरता और मजबूती को देखते हुए हम लोग 15 वर्षों से यहां की मूर्ति ले जाते हैं और दिवाली के समय बेचते हैं।‘’

मूर्ति खरीदने आए रोहित विश्वकर्मा और अजय कुमार ने बताया, ‘’हम पितृपक्ष में मूर्ति खरीदकर अपने जनपदों में ले जाते हैं। वहां पर नवरात्रि से दुकान लगाकर बेचने लगते हैं।  यहां की सुंदरता और मजबूती को देखते हुए हर जगह इनकी मांग है।‘’

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चुनार मूर्ति व्यापार से जुड़े लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों की सप्लाई करने वाले व्यापारी अवधेश कुमार वर्मा और अखिल जोशी ने बताया, ‘’लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों का बाजार हर दिन बढ़ता जा रहा है।  पूरे देश में अब इसकी डिमांड होने लगी है।  पूरे एक वर्ष काम किया जाता है।  दिवाली के पहले सारी मूर्तियां बिक जाती हैं हम लोग फिर से तैयारी में जुट  जाते हैं।  बढ़ती डिमांड की वजह से आज कई यूनिट यहां पर लग चुकी हैं।  यहां पर रहने वाले ज्यादातर लोग मूर्तियां बनाते हैं।  इसी की बिक्री करके अपना पूरा परिवार चलाते हैं।‘’ यहां पर लगभग 20 करोड़ तक का कारोबार दिवाली के महीने में हो जाता है। पहले यहां पर पॉटरी उद्योग का काम होता था, लेकिन ज्यादा लागत आने के चलते और सरकार का सहयोग नहीं होने के चलते वह उद्योग पूरी तरह से अब बंदी के कगार पर पहुँच  गया है। जिससे व्यापारी और कारीगर बेरोजगार होते चले जा रहे थे। उसके विकल्प में प्लास्टर ऑफ पेरिस से लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां बना रहे हैं। कई राज्यों से लोग यहां पर मूर्तियां खरीदने आते हैं, जो अपने जनपदों में ले जाकर बेचते हैं।

चुनार दरगाह हजरत सुलेमान शाह

साथ ही पूर्वांचल भर में शायद ही किसी जगह पर ऐसी दरगाह होगी जहाँ अनेकों सूफी संतो की दरगाह हो और वहां पर की गयी पत्थरों पर नक्काशी और वास्तु कला के लिए  प्रसिद्ध हो।

बादशाह अकबर के समय में मिर्ज़ापुर जनपद इलाहाबाद के अंतर्गत आता था। स्थानीय लोगों में प्रचलित मान्यता के अनुसार जहाँगीर के शासन के समय शाह कासिम सुलेमानी अफगान मौलवी साहब को बादशाह के आदेश से उन्हें कैद कर चुनार किले में रखा गया था। 1607ई.में  इनकी मृत्यु के बाद इनके अनुयायियों ने दरगाह को बनवाया जो स्थापत्य कला का बेहतरीन उदहारण है। इस दरगाह में अनेको सूफी संतों की दरगाह है। क्या हिन्दू क्या मुस्लिम सभी धर्मो के लोग भारी संख्या में यहाँ आते हैं तथा यहाँ पूर्वांचल  के सभी जिलों समेत बिहार और झारखंड से भी भारी संख्या में जायरीन दरगाह पर आते हैं और चादर चढाते हैं। मान्यता है कि इस दरगाह में आने मात्र से ही लोगों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और उनकी मन्नतें पूरी होती हैं। यह दरगाह जिले की प्रमुख धरोहरों में से एक है

फ़ज़लुर रहमान अंसारी से मिलें

Fazlur Rehman Grassroots Fellow

एक बुनकर और सामाजिक कार्यकर्ता फजलुर रहमान अंसारी उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। वर्षों से, वह बुनकरों के समुदाय से संबंधित मुद्दों को उठाते रहे हैं। उन्होंने नागरिकों और कुशल शिल्पकारों के रूप में अपने मानवाधिकारों की मांग करने में समुदाय का नेतृत्व किया है जो इस क्षेत्र की हस्तशिल्प और विरासत को जीवित रखते हैं।

इस रिपोर्ट को पूरा करने में फ़ज़लुर रहमान अंसारी के साथ अंकित वर्मा ने भी उनकी मदद की

 

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