वाराणसी: नौ दिवसीय शान्ति सद्भावना पदयात्रा का शानदार आगाज़ समाज में शांति, सद्भावना, प्रेम और भाईचारे का संदेश लेकर 9 दिवसीय शांति एवं सद्भावना यात्रा की शुरुआत शुक्रवार को वाराणसी के लहरतारा स्थित संत कबीर प्राकट्य स्थल से कि गयी।
08, Nov 2022 | फ़ज़लुर रहमान अंसारी
पदयात्रा का आयोजन साझा संस्कृति मंच वाराणसी एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। कबीरपंथ के महंत गोविंद दास जी ने हरी झंडी दिखाकर यात्रा की शुरुआत की। इस अवसर पर यात्रा का उद्देश्य बताते हुए यात्रा के संयोजक नंदलाल मास्टर ने कहा कि शांति और सद्भाव आदमी की बुनियादी जरूरत है। देश के नागरिक खुद को समृद्ध और सुरक्षित तभी महसूस कर सकते हैं जब उनके आस-पास शांति हो, सद्भाव हो। हालांकि भारत में सभी तरह के लोगों के लिए काफी हद तक शांतिपूर्ण माहौल है लेकिन अफ़सोस, विभिन्न कारणों से देश की शांति और सद्भाव कई बार बाधित हो जाता है। ऐसे में यह पदयात्रा लोगों में आपस में मिलजुल कर रहने का संदेश देने के लिए आयोजित की गयी है।
गांधीवादी चिंतक एवं इतिहासकार डॉ. मोहम्मद आरिफ ने कहा कि भारत की खासियत विविधता में एकता है। विभिन्न धर्मों, जातियों और पंथों के लोग यहां एक साथ रहते हैं। भारत का संविधान अपने नागरिकों को समानता और स्वतंत्रता की गारंटी देता है। शांति और सद्भाव सुनिश्चित रहें, इसके लिए विभिन्न कानून बनाए गए हैं।
सिटिजंस फॉर जस्टिस एंड पीस एवं दि गांधियन इंस्टिट्यूट ऑ़फ स्टडीज वाराणसी से डा मुनीज़ा रफीक खान ने कहा कि हम भारत के लोग एक चौराहे पर खड़े है। एक तरफ हिंसक, विभाजनकारी ताकतें हमारे दिल और दिमाग पर कब्जा करने की कोशिश में जुटी है, प्रचार बल के माध्यम से भारत की साझी विरासत को बेच रही है। दूसरी तरफ कुछ लोग लोकतन्त्र और संविधान को बचाने मे लगे है।
सीजेपी का ग्रासरूट फेलोशिप प्रोग्राम एक अनूठी पहल है जिसका लक्ष्य उन समुदायों के युवाओं को आवाज और मंच देना है जिनके साथ हम मिलकर काम करते हैं। इनमें वर्तमान में प्रवासी श्रमिक, दलित, आदिवासी और वन कर्मचारी शामिल हैं। सीजेपी फेलो अपने पसंद और अपने आसपास के सबसे करीबी मुद्दों पर रिपोर्ट करते हैं, और हर दिन प्रभावशाली बदलाव कर रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इसका विस्तार करने के लिए जातियों, विविध लिंगों, मुस्लिम कारीगरों, सफाई कर्मचारियों और हाथ से मैला ढोने वालों को शामिल किया जाएगा। हमारा मकसद भारत के विशाल परिदृश्य को प्रतिबद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ जोड़ना है, जो अपने दिल में संवैधानिक मूल्यों को लेकर चलें जिसभारत का सपना हमारे देश के संस्थापकों ने देखा था। CJP ग्रासरूट फेलो जैसी पहल बढ़ाने के लिए कृपया अभी दान करें
रही बात बनारस की तो बनारस एक ओर हिन्दुओं के पूज्य काशी विश्वनाथ की नगरी है तो दूसरी तरफ महात्मा बुद्ध के प्रथम उपदेश दिए जाने से बनारस बौद्धों का श्रद्धास्थल भी है । जैन धर्म के तीन तीर्थंकर यहीं जन्मे। बनारस संत कबीर, संत रविदास , बिस्मिल्लाह ख़ान और नज़ीर बनारसी की भी नगरी है । बनारस बुनकरो का शहर है और ताना बाना से जाना जाता है । आज ये ताना बाना कमज़ोर किया जा रहा है , नफ़रत फैलाई जा रही है शांति और सद्भाव ख़त्म किया जा रहा है । इसलिए आज इस शांति और सद्भावना यात्रा की ज़रूरत है ।
यह यात्रा संत कबीर के प्राकट्य स्थल से प्रारम्भ होकर वाराणसी के आठ विकास खण्डों से होती हुई 5 नवम्बर को भगवान बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ में समाप्त होगी।
इस यात्रा के दौरान सांस्कृतिक टीम प्रेरणा कला मंच के कलाकारों द्वारा विभिन्न जनवादी गीतों के माध्यम से प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया जा रहा है।
यह यात्रा बनारस के आठो विकास खण्डों के 100 गांव से गुजरते हुए 125 किमी का सफर 9 दिनो में तय करते हुए शांति, सद्भावना, प्रेम और भाईचारे के संदेश के साथ 9 दिवसीय “शांति सद्भावना यात्रा” का भव्य समापन शनिवार को सारनाथ में किया गया।
9 दिनों की यह पद यात्रा में वाराणसी के कुल आठों विकास खण्डों में होते हुए लगभग 100 गांव से गुजरी इस दौरान जनवादी गीत, नाटक, संवाद,कैंडल मार्च, मशाल जुलूस, जनसभा आदि का आयोजन किया गया और शांति सद्भावना का संदेश प्रसारित किया गया, सारनाथ में सभा के बाद विद्या आश्रम परिसर में “भारतीय लोक परम्परा में न्याय, शांति एवं सद्भावना ” विषयक संगोष्ठी का आयोजन और यात्रा का समापन किया गया।
सभा के बाद विद्या आश्रम परिसर में ‘भारतीय लोक परम्परा में न्याय, और शांति एवं सद्भावना‘ विषयक संगोष्ठी हुई। इसमें मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्त्ता डॉ. संदीप पाण्डेय ने कहा कि समाज में अशांति और नफरत फैलाने वाले लोकप्रिय नहीं हैं। सत्य और धर्म उनके साथ नहीं है, लेकिन वो संगठित और सक्रिय हैं। वह हमारी निष्क्रियता का लाभ उठाते हैं। हमे इंसान के बजाय भीड़ बनाने में और वोट बैंक बनाने में उनका फायदा है। एक-दूसरे के बारे में भ्रम और भय फैलाया जा रहा है। बहुत चालाकी से अधकचरे झूठ को सच बनाया जा रहा है। नयी टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया का गन्दा इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में हमे सचेत होकर रहना है। सत्य को जानना है और समाज में मिलजुल कर रहने की परंपरा का निर्वहन करना है।
वरिष्ठ समाजवादी चितंक विजय नारायण ने कहा कि तेजी से बढ़ रही असामाजिकता और अशांति के बुरे परिणामों को समझने की जरूरत है। अब हमारा गांव, गांव के लोगों का नही रहा, पहले छोटी बड़ी समस्याओं का निस्तारण आपस में मिल बैठकर कर लिया जाता था। लेकिन अब हम हर छोटे-बड़े विवाद में खर्चीले कोर्ट कचहरी और थाना पुलिस की मार जलालत झेलने को विवश हैं। हमें दवाई, पढाई, रोजगार की जरूरत है तो उसी पर बात करनी होगी
सामाजिक कार्यकर्ता हाजी इस्तियाक अंसारी ने कहा कि भारत की खासियत विविधता में एकता है। विभिन्न धर्मों, जातियों और पंथों के लोग यहां एक साथ रहते हैं। भारत का संविधान अपने नागरिकों को समानता और स्वतंत्रता की गारंटी देता है। शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाए गए हैं। नफरत और बांटने की राजनीति को बनारस को नकारना ही होगा। तभी यहां की गंगा-जमुनी तहजीब बची रहेगी।
साझा संस्कृति मंच के पूर्व अध्यक्ष डॉ. नीति भाई ने पदयात्रियों को बधाई देते हुए कहा कि यह बहुत ही उपयोगी अभियान रहा जिसके परिणाम सुखद होंगे। झारखंड से आये सामाजिक कार्यकर्त्ता शैलन्द्र भाई ने कहा कि आज से कुछ वर्ष पहले तक अखबारों, टीवी में गरीब की रोजी-रोटी की बात होती थी। मजदूरों, किसानों की परेशानियां, छात्रों की पढ़ाई और युवाओं के रोजगार की चिंता दिखती थी। मगर आज सिर्फ ये पार्टी या वो पार्टी तक सीमित होकर रह गयी है। मार – झगड़ा और चीन – पाकिस्तान करने में ही सब फंसे हुए हैं। मीडिया और सत्ता की इस रस्साकस्सी में समाज पिस रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता अरविन्द मूर्ति ने कहा कि पढाई, दवाई, काम धंधा की जगह हमारा गांव घर दिन- रात नौकरी की मांग को अगड़ा-पिछड़ा, आरक्षण समर्थक और विरोधी के खांचे में बांटकर आपस में ही लड़ा दिया जा रहा है। समाज को सचेत होना ही होगा। इस दौरान सांस्कृतिक दल प्रेरणा कला मंच की टीम ने जनवादी गीतों और नाटक का प्रस्तुतिकरण किया। सभा में जिला पंचायत सदस्य अनिता प्रकाश ने भी विचार व्यक्त किये।
इसके पूर्व संदहा से सारनाथ तक ग्रामवासियों ने पदयात्रियों का जोरदार स्वागत एवं अभिनंदन किया। सारनाथ में बुद्ध मंदिर के समक्ष औपचारिक समापन सभा में लोगों को संकल्प दिलाया गया कि समाज को नफरत नहीं बल्कि प्रेम और आपसी मेलजोल की जरूरत है। इसलिए हम शांति, सद्भाव, प्रेम और मेलजोल बढ़ाने की दिशा में दृढ़ संकल्पित होकर प्रयास करेंगे।
इस दौरान अरविंद मूर्ति, थेरो भंतो, रंजू सिंह, महेन्द्र राठौर, विनोद, रामबचन, अनिल, सुजीत, सूबेदार, सुरेंद्र, कन्हैया, सतीश सिंह, फादर जयंत, विजेता, रुखसाना,सोनी, नीति, मैत्री, पूनम, इन्दु, एकता, रवि शेखर,धनंजय, मुकेश, विनय सिंह, प्रदीप सिंह, फजलुर्रहमान अंसारी,रामधीरज भाई, आरिफ, रामजनम, राजकुमार पटेल, कमलेश,हौसिला, प्रियंका, पूनम आदि रहे। अध्यक्षता सर्व सेवा संघ के रामधीरज भाई, संचालन फादर आनंद ने और धन्यवाद ज्ञापन अनिता ने किया।
फ़ज़लुर रहमान अंसारी से मिलें
एक बुनकर और सामाजिक कार्यकर्ता फजलुर रहमान अंसारी उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। वर्षों से, वह बुनकरों के समुदाय से संबंधित मुद्दों को उठाते रहे हैं। उन्होंने नागरिकों और कुशल शिल्पकारों के रूप में अपने मानवाधिकारों की मांग करने में समुदाय का नेतृत्व किया है जो इस क्षेत्र की हस्तशिल्प और विरासत को जीवित रखते हैं।
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