
क्या एनारसी दावा-आपत्ति दर्ज कराने की अस्पष्ट प्रक्रियाएं, भ्रष्टाचार के लिए ज़मीन तैयार करेंगी? इन अस्पष्ट प्रावधानों की वजह से लोगों के भाग्य पर फ़ैसला करने का एकाधिकार एनआरसी अधिकारियों के हाथों में चला गया है.
17, Dec 2018 | CJP team
एनआरसी के राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला ने, एक नए राज्यव्यापी निर्देश में दावा-आपत्ति प्रक्रिया के लिए कुछ मानक संचालन प्रक्रियाएं बताई हैं. सामान्य के आलावा कुछ विशेष परिस्थितियों/लोगों के लिए ये दिशानिर्देश जारी किए गए हैं, जैसे 14 वर्ष के कम उम्र के बच्चों, विवाहित महिलाओं और भारत के अन्य हिस्सों से असम में आ कर बसे लोगों की नागरिकता के सम्बन्ध में. हालांकि इनमे से कुछ प्रावधानों का वर्णन, बहुत अस्पष्ट तरीके से किया गया है, इस वजह से बहुत से लोगों की नागरिकता के सम्बन्ध में मनचाहे और अनाप-शनाप तरीके से निर्णय लेने का पूरा अधिकार एनआरसी अधिकारियों पर छोड़ दिया गया है और इसी वजह से इस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है.
नागरिक पंजीकरण (डीआरसीआर) के सभी जिला रजिस्ट्रारों को 1 दिसंबर को जारी एक नोटिस में, हजेला जी भारत सरकार द्वारा जारी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग सिस्टम की कुछ प्रमुख बातों पर ध्यान आकर्षित करते हैं जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमोदित की गई हैं.
एनआरसी के अंतिम मसौदे से 40 लाख से ज़्यादा लोगों को बाहर कर दिया गया है. उनमें से ज़्यादातर सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों से संबंधित हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं. उनमें कई महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं. गुजरात में कानूनी सहायता प्रदान करने के अपने पिछले अनुभव के आधार पर अब सीजेपी वकीलों और स्वयंसेवकों की बहु-पक्षीय टीम के साथ यहां भी ज़रूरी कदम उठा रहा है, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके ताकि सबसे ज़्यादा प्रभावित 18 ज़िले के लोगों को दावा दायर करते समय उचित एवं पर्याप्त अवसर मिल सके. आपका योगदान कानूनी टीम, यात्रा, दस्तावेज़ीकरण और तकनीकी ख़र्चों की लागत को थोड़ा आसान करने में हमारी मदद कर सकता है. सहायतार्थ दान कीजिए!
सूचना के पैराग्राफ़ 4 (viii) (ए) और 4 (viii) (ए) (i) 24 मार्च 1971 के बाद अन्य भारतीय राज्यों से असम में स्थानांतरित होने वाले लोगों से जुड़ी प्रक्रिया के सम्बन्ध में बताता है.
स्टैन्डर्ड ऑपरेटिंग सिस्टम के अनुसार ऐसे लोग, उनके बच्चे और उनके वंशज, एनआरसी में शामिल होने की योग्यता रखेंगे यदि वे 24 मार्च 1971 से पहले असम के बाहर, भारत के किसी भी अन्य हिस्से में रहने का प्रमाण प्रस्तुत करने में सक्षम होते हैं. हालांकि, यदि वे ऐसा करने में असमर्थ हैं,तो उनके मामलों को नागरिकों के पंजीकरण के नियम 4, राष्ट्रीय पहचान पत्र नियम 2003 और इसकी अनुसूची के खंड 3 (3) के प्रावधानों के तहत निपटारा किया जाएगा. ये निम्नानुसार वर्णित किया गया है:
“भारत के वे नागरिक, जिनका ओरिजन भारत के अन्य राज्यों से है, और जिनके ओरिजन का सम्बन्ध निर्दिष्ट क्षेत्र (बांग्लादेश) से नहीं है, जो 24 मार्च 1971 से पहले या बाद में असम राज्य में बस गए हैं, यदि ऐसे व्यक्तियों की नागरिकता, दावों और आपत्तियों का निपटान करने वाले अधिकारियों की दृष्टि में संदेह से परे है तो उन्हें एनआरसी में शामिल किया जाएगा”
ये वाक्य कि “दावों और आपत्तियों का निपटान करने वाले अधिकारियों की दृष्टि में संदेह से परे है” अपने आप में संदेहास्पद और अस्पष्ट है. ये वाक्य एनआरसी आधिकारियों को उचित प्रक्रिया की अनदेखी कर सकने की शक्ति प्रदान करता है. इस वाक्य से साफ़ तौर पर ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती कि अनआरसी में शामिल होने के लिए कौन से दस्तावेज़ स्वीकार्य हैं और कौन से अमान्य. ये अस्पष्टता एक बड़ी समस्या का सबब हो सकती है, वो ये कि इसका फ़ायदा उठाकर, पक्ष में निर्णय देने की बात कह कर, घूस मांगने के मौके बेतहाशा बढ़ जाएंगे. आर्थिक रूप से पिछड़े और हाशिए पर जीवन बसर कर रहे समुदाय के लोगों को ये अस्पष्टता और ज़्यादा पीड़ित करेगी.
हालांकि, बेसहारा और अनाथ लोगों के लिए अच्छी ख़बर ये है कि उनके लिए ऐसे कोई दस्तावेज ज़रूरी नहीं होंगे. डीआरसीआर, एनआरसी के, अतिरिक्त आयुक्त प्रभारी, सीआरसीआर और जिला समाज कल्याण अधिकारी द्वारा वैकल्पिक साक्ष्यों के आधार पर उनकी नागरिकता का पता लगाया जाएगा. 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए भी इसी तरह की राहत दी गई है, इसलिए उनके सम्बन्ध में माता-पिता के द्वारा मौखिक रूप से दिए गए सबूत स्वीकार्य होंगे. इसी प्रकार ग्राम पंचायत के सचिव द्वारा जारी प्रमाणपत्र जमा करने वाली विवाहित महिलाओं द्वारा किए गए दावों को भी सर्वोच्च न्यायालय के प्रावधानों के अनुसार स्वीकार किया जाएगा. इसके अतिरिक्त, दावों और आपत्तियों की सुनवाई के लिए स्थल का निर्णय दावेदारों को सुरक्षा, रसद और स्थान तक पहुंचने की क्षमता के आधार पर तय किया जाएगा.
पूरी सूचना यहां पढ़ी जा सकती है:
* फ़ीचर इमेज: मोहिबुल इस्लाम, उदलगुड़ी जिले के सीजेपी स्वयंसेवी प्रेरक, लोगों को एनआरसी दावा आवेदन भरने में मदद करते हैं.
अनुवाद सौजन्य – अनुज श्रीवास्तव
और पढ़िए –
NRC दावा-आपत्ति प्रक्रिया में मौजूद हैं कई ख़ामियां
NRC दावा-आपत्ति प्रक्रिया: हटाए गए 5 दस्तावेज़ों पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगी रिपोर्ट
CJP इम्पैक्ट: दावा-आपत्ति की प्रक्रिया में NRC प्राधिकरण की नर्मी