क्या भारत में ‘खुली जेल’ से व्यक्तिगत आजादी मज़बूत होगी? भारत में कैसी है बिना दीवारों और बिना सलाखों की जेल की तस्वीर?

14, Aug 2023 | Shirin Jaiswal

भारत में खुली जेल की व्यवस्था आज़ादी और समाजिक व्यवस्था में सुधार की संभावना पर आधारित है. भारत में ऐसी व्यवस्था वाली कुल 63 जेलों में से 29 जेल राजस्थान में मौजूद हैं. 

‘लोग ग़लतियां करते हैं और मैं सोचता हूं कि उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए लोकिन उन्हें क्षमा और दूसरा मौक़ा मिलना चाहिए. हम सब इंसान हैं.’

डेविड मिलर 

काले क़ानून के शब्दकोश में जेल – ‘एक सार्वजनिक बिल्डिंग होती है जिसे क़ानून द्वारा जारी सज़ा या प्रशासन द्वारा जारी न्याय की प्रक्रिया के तहत कारावास या सुरक्षित हिरासत के लिए इस्तेमाल किया जाता है.’ सबसे पहले इस वाक्य को सुनकर परंपरागत 3 दीवारों वाली जेल का नक्शा ज़ेहन में उभरता है जिसमें पत्थर या कंक्रीट का बिस्तर दिया जाता है. 

अपराधियों या हमलावरों को समाज से दूर रखना और उनके सामाजिक जीवन पर बंदिश लगाना जेल का मुख्य मक़सद है. अपराध की गुंजाइश को घटाने के लिए अपराधी को उसके दोस्त, परिवार, रिश्तेदार सबसे दूर रखा जाता है. परंपरागत जेल दण्ड के इसी कांसेप्ट का फैलाव है, हालांकि बदलते वक्त में सुधारात्मक रवैय्या अपनाते हुए अब इसे मानवीय रूप देने की कोशिश की जा रही है. इसे न्यूनतम सुरक्षा जेल, ओपन एयर कैंप्स और बिना सलाखों की जेल भी कहा जा रहा है. जेल में क़ैदियों की बढ़ती तादाद, जेल के इंतज़ाम के आर्थिक बोझ के अलावा, अच्छे व्यवहार के लिए इनाम देने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी मुक्त जेलों की बात हो रही है. 

संक्षिप्त इतिहास

सबसे पहले स्विट्जरलैंड में 1891 में खुली जेल की स्थापना की गई, फिर 1916 में संयुक्त राज्य अमेरिका में। 1952 में आयोजित हेग सम्मेलन में खुली हवा में शिविरों का सुझाव दिया गया। क्रांति के बाद के अमेरिका में दंड नीति इस सवाल पर विकसित की गई थी कि “अपराधी द्वारा अपनी आपराधिक गतिविधि को दोहराने की संभावना को कम करने के लिए जेलों को कैसे व्यवस्थित किया जा सकता है।” इस दृष्टिकोण ने मनुष्य के प्रति एक निश्चित दृष्टिकोण व्यक्त किया कि यदि उचित अवसर दिया जाए तो वे सुधार करने में सक्षम हैं। 18वीं शताब्दी में जॉन हॉवर्ड और जेरेमी बेंथम नाम के दो जेल सुधारकों द्वारा निवारण के सिद्धांत पर राय व्यक्त की गई थी। उन्होंने यह विचार साझा किया कि अपराधियों के पुनर्वास के लिए बनाए गए संस्थान अपराध की रोकथाम में मदद करेंगे। सुधार के इस विचार का 18वीं सदी के अंत में कई संस्थानों द्वारा परीक्षण किया गया। हालाँकि, सुधार लाने का यह प्रयास अभ्यास परीक्षणों के दौरान विफल रहा। हालाँकि, जेलों के भीतर सुधार लाने के निरंतर प्रयासों के साथ, 1891 में स्विट्जरलैंड में एक विट्ज़विल प्रतिष्ठान की स्थापना की गई थी। विट्ज़विल के खुलने के साथ ही खुली जेल के विचार को धीमी गति से स्वीकार करना शुरू हुआ।

The International Covenant on Civil and Political Rights (ICPPR) कैदियों के अधिकारों की सुरक्षा पर मुख्य अंतरराष्ट्रीय संधि है। भारत ने 1979 में अनुबंध की पुष्टि की और इसके प्रावधान को घरेलू कानून और राज्य अभ्यास में शामिल करने के लिए बाध्य है। इसके अनुसार आज़ादी से वंचित सारे लोगों से मानवता और मानव होने के मूल सम्मान का लिहाज़ करते हुए पेश आया जाएगा. इसके तहत नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के अलावा सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और मानवाधिकारों का निर्धारण किया गया जिसके अनुसार क़ैदियों को भी बेहतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पूरा हक़ है. संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘स्टैंडर्ड मिनिमम रूल्स फॉर द ट्रीटमेंट ऑफ़ प्रिज़नर्स, 1955’ में ऐसी कुछ ग़ैरबाध्यकारी शर्ते तय की गई थीं जिसमें निम्न बातों का उल्लेख किया गया- 

  • धर्म, नस्ल, रंग, लिंग और भाषा, राजनीतिक या अन्य राय के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
  • पुरूषों और महिलाओं को अलग कारावासों में बंद किया जाएगा.
  • क़ैदियों के वर्गीकरण का प्रयास किया जाएगा. 
  • बच्चों और कम उम्र के क़ैदियों को वयस्क क़ैदियों से अलग रखा जाएगा. 

मानवाधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय घोषणा, 1948 में कहा गया कि -‘किसी को भी क्रूर अमानवीय और अपमानजानक सज़ा नहीं दी जा सकती है.’ जेल सुधार पर अखिल भारतीय समिति की सिफ़ारिशों के कार्यान्वयन की धारा 24 के तहत, यह सहमति हुई कि जिन कैदियों ने अपनी सजा की अवधि का एक निश्चित हिस्सा संतोषजनक ढंग से बिताया है, उन्हें खुली हवा वाले शिविरों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए ताकि वे सामुदायिक जीवन बिता सकें। इन कार्य-आधारित शिविरों में कैदियों की संख्या कम होगी और इनमें न्यूनतम सुरक्षा व्यवस्था होगी। इसके अलावा, कैदी काम करेंगे और वेतन अर्जित करेंगे।[3] कैदियों के साथ व्यवहार के लिए संयुक्त राष्ट्र मानक न्यूनतम नियम (एसएमआर) को शुरू में 1955 में अपराध की रोकथाम और अपराधियों के उपचार पर संयुक्त राष्ट्र कांग्रेस द्वारा अपनाया गया था, और 1957 में संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद द्वारा अनुमोदित किया गया था। 17 दिसंबर, 2015 को मानक न्यूनतम नियमों को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा “नेल्सन मंडेला नियम” के रूप में संशोधित और सर्वसम्मति से अपनाया गया। भारत ऐसे दस्तावेज़ का हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते, ये मानक न्यूनतम नियम भारत में जेल प्रणाली और सुधारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

भारत में, खुली जेल प्रणाली की अवधारणा 1836 में देखी गई जब पहली अखिल भारतीय जेल समिति की स्थापना की गई थी। हालाँकि, परिणाम संतोषजनक नहीं थे और तब से कई समितियाँ नियुक्त की गईं, जिनमें से जेल सुधार पर अखिल भारतीय समिति 1956 महत्वपूर्ण है। सबसे महत्वपूर्ण समिति जिसने भारत में खुली जेल प्रणाली के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई वह थी मुल्ला समिति.[4] समिति रिपोर्ट के अध्याय XIX के तहत ओपन इंस्टीट्यूट के बारे में बताती है।

भारत में सबसे पहले 1905 में बॉम्बे प्रसीडेंसी में पहली खुली जेल का गठन किया गया था. इसके लिए ठाणे संट्रल जेल से कुछ क़ैदियों को चुना गया था लेकिन 1910 में इसे बंद कर दिया गया. 

भारत में पहली खुली जेल 1905 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी में शुरू की गई थी। कैदियों का चयन बॉम्बे के ठाणे सेंट्रल जेल के विशेष श्रेणी के कैदियों में से किया गया था। हालाँकि, इस खुली जेल को 1910 में बंद कर दिया गया। उत्तर प्रदेश में 1953 में बनारस के पास चंद्रप्रभा नदी पर एक बांध के निर्माण के लिए पहला खुला जेल शिविर स्थापित किया गया। इस बांध को पूरा करने के बाद, पेन शिविर के कैदियों को कर्मनाशा नदी पर बांध के निर्माण के लिए पास के स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया। इन अस्थायी शिविरों की सफलता से उत्साहित होकर, चुर्क, मिर्ज़ापुर में उत्तर प्रदेश सरकार की सीमेंट फैक्ट्री के लिए पत्थर निकालने के काम में कैदियों को नियोजित करने के उद्देश्य से 15 मार्च, 1956 को मिर्ज़ापुर में एक स्थायी शिविर शुरू किया गया था। इस शिविर में कैदियों की प्रारंभिक संख्या 150 थी जो बढ़कर 1,700 हो गई लेकिन अब घटकर 800 रह गई है। सम्पूर्णानद शिविर नामक एक और स्थायी शिविर 1960 में उत्तर प्रदेश में नैनीताल जिले के सितारगंज में स्थापित किया गया था। अपनी स्थापना के समय, संपूर्णानंद शिविर के पास 5,965 एकड़ भूमि थी, लेकिन बाद में विस्थापितों के पुनर्वास के लिए 2,000 एकड़ पुनः प्राप्त भूमि उत्तर प्रदेश सरकार को सौंप दी गई। इस प्रकार, वर्तमान में, सितारगंज शिविर के पास 3,837 एकड़ भूमि है और यह दुनिया की सबसे बड़ी खुली जेलों में से एक है।[5]

भारत में खुली जेल

भारत में, कुल 63 खुली जेलें हैं और राजस्थान में खुली जेलों की अधिकतम संख्या 29 है। जेलों को जेल अधिनियम 1900 द्वारा विनियमित किया जाता है और प्रत्येक राज्य जेलों पर अपने मैनुअल और नियमों का पालन करता है। भारत में हर राज्य का अपना जेल कानून है, जैसे राजस्थान कैदी नियम, 1979। खुली जेल की अवधारणा इसलिए लाई गई ताकि अच्छे आचरण और व्यवहार वाले कैदी समाज में घुल-मिल सकें, बिना इस डर के कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा। साथ ही, यह कैदियों को अपने परिवार के सदस्यों से मिलने और समाजीकरण की प्रक्रिया में शामिल होने का मौका देता है। यह नियंत्रित जेलों में भीड़भाड़ को भी कम करता है। आम तौर पर, यह देखा गया है कि नियंत्रित जेलों में कैदियों को अच्छी रहने की स्थिति प्रदान नहीं की जाती है और उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। खुली जेलें उन्हें बेहतर स्थिति में रहने का मौका देती हैं और वहां कोई या न्यूनतम सुरक्षा नहीं होती है जिससे बुरे व्यवहार की संभावना कम हो जाती है और उन्हें सम्मान के साथ जीने में मदद मिलती है।

नेल्सन मंडेला नियम

 संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा ने 17 दिसंबर, 2015 को 5 सालों तक समीक्षा के बाद यूनाइटेड नेशन्स स्टैन्डर्ड मिनिमम रूल्स फॉर द ट्रीटमेंट ऑफ़ प्रिज़नर्स (मंडेला रूल्स) को अपनाया था. इसमें सांस्थानिक समानता और जेल सहित क़रीब 122 नियमों को ग्रहण किया गया.

ये न्यूनतम रूल्स SMR बंदियों के प्रति उचित व्यवहार का मानक तय करने का एक वैश्विक पैमाना हैं. ग़ैरबाध्यकारी होने के बावजूद इन नियमों ने व्यवस्थापिकाओं की बुनियाद में ज़रूरी भूमिका निभाई है. यह अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर क़ैदियों के लिए मानक तय करते रहे हैं. यह इस नियम पर आधारित है कि- नस्ल, रंग, लिंग, भाषा, क्षेत्र, राजनीतिक या अन्य विचार, राष्ट्रीय और सामाजिक उत्पत्ति, संपत्ति, जन्म और स्टेटस के आधार पर किसी से कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा.मंडेला नियमों ने क़ैदियों की बुनियादी अस्मिता के लिए पैमाने तय किए हैं.  इसमें मेडिकल सेवा, सामान्य स्वास्थ्य, जेल स्टॉफ़ के लिए अनुशासनात्मक नियम, हिरासत में रह रहे क़ैदियों की मृत्यु और उत्पीड़न की जांच से लेकर क़ानूनी प्रतिनिधित्व तक शामिल है.

 सुधारात्मक सिद्धांत के रूप में खुली जेल

 इस सिद्धांत के मुताबिक़ दण्ड का मक़सद अपराधी को सुधारना होना चाहिए जिसके लिए वैयक्तिक तरीक़ों का इस्तेमाल किया जाता है. मानवीय तरीक़ा ये तय करता है कि अगर कोई अपराध भी करता है तो भी उससे इंसान होने का हक़ नहीं छीना जा सकता. इसलिए जज के लिए ज़रूरी है कि अपराध के मद्देनज़र अपराधी की उम्र, परवरिश, माहौल, हालात और चरित्र का ख़्याल रखा जाए. इसका मक़सद है कि न्यायाधीश हालातों से सही ढंग से परिचित हो सकें और फिर उसके मुताबिक़ दण्ड तय कर सकें.  

 भारत में खुली जेल कैसे चलती है?

  •       बंदी किसी भी समय काम के मक़सद से कहीं जा सकते हैं लेकिन उन्हें शाम तक लौटना होता है.
  •       इसमें सलाखों और दीवारों का अभाव होता है, सुरक्षा उपाय न्यूनतम होते हैं.
  •       परिवार के सदस्य आसानी से क़ैदियों से मिल सकते हैं.

भारत में खुली जेल के लिए आर्हताएं 

  • उम्मीदवार को खुली जेल के नियमों का पालन करना चाहिए और मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए.
  • यह ज़रूरी है कि उन्होंने जारी सज़ा का एक चौथाई हिस्सा पूरा कर लिया हो और इस दौरान उनका बर्ताव अच्छा रहा हो.
  • उनकी उम्र 21 साल से ज़्यादा और 50 साल से कम हो.
  • उनपर जघन्य अपराध जैसे रेप, हत्या, जालसाज़ी, डकैती आदि आरोप न हो. उनपर कोर्ट में पेंडिग मामले न हों.

(ये मुख्य शर्तें हैं जिनके अलावा अन्य शर्तें भी जेल नियमों के तहत लागू होती हैं.)

जैसे कि ये क़ैदी सरकारी ख़र्चे पर IGNOU या अन्य मुक्त विश्वविद्यालयों से कोर्स कर सकते हैं. इस हेतु बेंगलुरू विश्वविद्यालय ने बंदियों के लिए दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम भी शुरू किया है. जेल के लिए तय व्यवस्था के अनुसार इनमें 100 से 1000 क़ैदी हो सकते हैं. असम, केरल, हिमाचल प्रदेश, की खुली जेलों में परमानेंट बैरकों का इंतज़ाम है जबकि मैसूर जेल में पूर्वनिर्मित ढांचा है और महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश की जेलों में कटरैनों की छत वाली डोरमेट्रीज़ हैं.

खुली जेलों के लिए क़ैदियों को चुनने का फ़ैसला कमेटी द्वारा लिया जाता है. सबसे पहले जेल सुप्रीटेंडेंन्ट्स क़ैदियों की लिस्ट तैयार करते हैं फिर यह सूची सेल्क्शन कमेटी को भेजी जाती है.

खुली जेल का स्वरूप

 

CONTROLLED PRISON

 

 

·         Fort like Structures

·         24 hours surveillance

·         3-4 times roll call

·         Staff required to manage prison, store house and kitchen

·         Inhuman and overcrowding of jails

 

 

 

 

Operational Cost p.a. (Jaipur Central Jail)

Rs. 18,72,60,000

 

OPEN PRISON

 

 

·         Open structure

·         No surveillance or minimum

·         Morning and Evening roll call

·         Minimum or no staff required

 

·         Village like setup

 

 

 

 

Annual Expenses p.a. (Sanganer Open Prison )

Rs.24,00,000

(यह आंकड़ा 20 दिसंबर, 2020 की टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट से लिया गया है.)

इस टेबल से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सरकार को नियंत्रित जेलों के मुक़ाबले खुली जेलों पर अधिक व्यय करना चाहिए. नियंत्रित जेल के संचालन का सालाना ख़र्च 18 करोड़ है जबकि खुली जेलों पर सिर्फ़ 24 लाख ख़र्च किया जाता है. खुली जेल क़ैदी को समाज से जुड़ने का भी अवसर देती है. खुली जेलों पर रिसर्च कर रहीं स्मिता चक्रवर्ती का मानना है कि जेल में अत्यधिक दबाव का माहौल होता जिससे कि अपराध करने का ख़तरा कहीं बढ़ जाता है. उन्होंने कुल 428 क़ैदियों का इंटरव्यू लिया था जिसमें से 15 खुली जेल से संबंधित थे.

 जेल में क़ैदियों की बढ़ती संख्या

 NCRB के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में 2016 से कारावासों की क्षमता में इज़ाफ़ा हो रहा है जबकि इस मुक़ाबले क़ैदियों की संख्या उचित अनुपात में नहीं है. 2016 में जेल क्षमता 3,80,876 थी जो 2018 में बढ़कर 3,96,223 हो गई है. यानि कि इसमें 4.08 % का इज़ाफ़ा हुआ है. इस दौरान इन जेलों में बंद बंदियों की संख्या 4,33,003 से बढ़कर 4,66,084 हो गई है, यानि इसमें 113.7 %  का इज़ाफ़ा हुआ है. उत्तर प्रदेश में अक्यूपेंसी रेट  सबसे अधिक 113.7% से बढ़कर 117.6% हो गई है  जबकि सिक्किम के लिए ये आंकड़ा 157.3% और दिल्ली के लिए 154.3% था.

2018 के आंकड़े के मुताबिक़ भारत में 628 सब जेल, 404 ज़िला जेल, 144 सेंट्रल जेल, 77 खुली जेल, 24 महिला जेल और 19 कारावास स्कूल हैं.

 महिला क़ैदियों से संबंधित आंकड़ा

 आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में क़रीब 2000 बच्चे अपनी माताओं के साथ जेल में हैं. इन 1,999 बच्चों (1,732 माताओं की संतान) में से क़रीब एक चौथाई (509 बच्चे) केवल उत्तर प्रदेश में हैं. जबकि बंगाल, झारखंड औऱ मध्य प्रदेश मिलाकर ये आंकड़ा 1,201 (60%) है. कुल 19,242 महिला क़ैदियों में से 1,732 के साथ बच्चे रहते हैं. इनमें से 3,245 24 क़ैदी महिला जेलों में हैं जबकि शेष 15,999 अन्य जेलों में हैं. इन महिला जेलों में ये संख्या क्षमता (5,593 की क्षमता में 58%) से कम है.  21,668 की क्षमता के साथ अन्य जेल में यह आंकड़ा 73.8 % है. 

 जेल में क़ैदियों की बढ़ती तादाद

 

Year Prisons Capacity Prisoners Occupancy Rate
2016 1412 3,80,876 4,33,003 113.7%
2017 1361 3,91,574 4,50,696 115.1%
2018 1339 3,96,223 4,66,084 117.6%

(Source: Data from NCRB)

 

NCRB के आंकड़ों के मुताबिक़ 2018 के अंत तक भारत में कुल 77 खुली जेल थीं जो 17 अलग राज्यों में मौजूद थीं. इन 17 राज्यों में भी सिर्फ़ 66.6 % हिस्सा ही अधिग्रहित किया गया था.

एक अन्य ग़ौरतलब बात ये है कि इस आंकड़े के हिसाब से खुली जेलों के लिए अधिकतर पुरूष क़ैदियों का चुनाव किया गया था. केवल 4 राज्यों झारखंड, केरल, महाराष्ट्र और राजस्थान में खुली जेलों में महिला क़ैदी थीं. बाक़ी 14 राज्यों में सिर्फ़ पुरूष क़ैदी थे जो कि संविधान के आर्टिकल 14 में दर्ज समानता के अधिकार के विरुद्ध है. इसके अलावा ये ओपन मॉडल रूल्स, 2016 की खुली जेलों के प्रावधानों के ख़िलाफ़ भी था.

 क़ानूनी नज़र

 न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने हमेशा जेल सुधारों की वकालत की है जिसे अनेक निर्णयों में भी देखा जा सकता है. उनके मुताबिक़- अपराध एक पैथोलॉजिकल रूकावट की तरह है जिसमें अपराधी का हनन होता है लेकिन राज्य का फ़र्ज़ है कि वह बदला लेने की जगह उन्हें पुनर्वास में मदद करे.एक उपसंस्कृति जो असामाजिक व्यवहार को बढ़ावा देती है उसपर क्रूरता से नहीं बल्कि संस्कृति को नए सिरे से सुधारकर लगाम लगाना मुमकिन है. इस दंडशास्त्र का मक़सद उस व्यक्ति को समाज के लिए बचाना है. क्योंकि कठोर निर्मम दण्ड पुराने दौर की रिवायत है.

इस बेंच में न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर के अनुसार इन जेलों में क्षमता से 150%  अधिक भीड़ है. 2014 के आंकड़ों के मुताबिक़ असम की 8, केरल की 21, मध्य प्रदेश की 5 और उत्तर प्रदेश की 47 जेल में जगह से अधिक भीड़ है. इसके लिए नई जेलों को बनाना और ज़मीन हासिल करना काफ़ी पेचीदा काम है जबकि इसके मुक़ाबले खुली जेल आम तौर पर शहर से दूर होती होती हैं जिनमें कम कर्मचारियों की ज़रूरत होती है और कभी कभी किसी भी कर्मचारी की ज़रूरत नहीं होती है. ये साझा विश्वास पर काम करते हुए क़ैदियों को बदलाव का अवसर प्रदान करती हैं.

1996 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने रामा मूर्ति बनाम कर्नाटक राज्य मामले में खुली जेलों की सशक्त पैरवी की थी. इस दौरान शीर्ष अदालत ने ज़िला जेलों और खुली जेलों का संज्ञान लिया था. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के मुताबिक़ 1994-95 की सालाना रिपोर्टस और 2000-01 की रिपोर्टस ने भी जेल में बढ़ती भीड़ के लिए खुली जेलों का उपाय पेश किया था. 

 खुली जेल का राजस्थान मॉडल कैसे काम करता है?

 राजस्थान में क़ैदी सुबह काम पर जाते हैं और शाम तक लौट आते हैं. कैंप में वो परिवार के साथ रह सकते हैं. 5 साल तक की सज़ा पाने वाला कोई क़ैदी जिसने सज़ा का एक तिहाई हिस्सा काट लिया हो खुली जेलों के लिए मान्य होता है.

 खुली जेल व्यवस्था में सुधार के लिए कैसे कारगर हैं?

 खुली जेल आपसी विश्वास पर काम करती है. इसमें क़ैदी के मानवीय पक्ष को ध्यान में रखते हुए उसमें सामाजिक ज़िम्मेदारी का भाव जगाने की कोशिश की जाती है. ये जेल उन्हें शारिरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखकर परिवार के साथ रहने और सहयोग करने क अवसर भी देती हैं. सामाजिकता मानव जीवन का एक अभिन्न अंग है इसलिए कहा जा सकता है कि खुली जेलों में उन्हें बेहतर मानव बनने का अवसर मिलता है.

सुप्रीम कोर्ट भी इन खुली जेलों के पक्ष में है. हाल ही में गौरव अग्रवाल ने क़ैदियों के अधिकार के संबंध में याचिका दायर की थी जिसमें कोर्ट ने कहा था कि सरकारों को निर्देश जारी करते हुए कहा जाए कि क़ैदियों के प्रति मानवीय रवैय्या अख़्तियार करना चाहिए. IndiaSpend ने खुली जेलों के कुछ क़ैदियों का इंटरव्यू भी लिया था जिसमे क़ैदियों ने बताया कि कैसे खुली जेल के वातावरण ने उनके जीवन को बदला है.

खुली जेल क़ैदियों को नया जीवन शुरू करने, बदलाव और सुधार लाने का मौक़ा देती है जिससे वो भविष्य में बेहतर इंसान बन सकें. इस सिंद्धांत का मानना है कि सिर्फ़ सज़ा से ही सुधार मुमकिन नहीं बल्कि अपराधियों को सुधार का अवसर भी मिलना चाहिए ताकि एक बेहतर इंसान के तौर पर वो समाज में अपनी भूमिका निभा सकें. इसके साथ ही गंभीर अपराध करने वालों को खुली जेल व्यस्था के दायरों से दूर रखना ये भी बताता है कि गंभीर अपराध को किसी भी हाल में सहन नहीं किया जाएगा और उन्हें इसका दण्ड भुगतना पड़ेगा.

(लेखकइन दिनों किरीट पी. मेहता स्कूल ऑफ लॉ NMIMS से BA-LLB कर रहे हैं. इसके साथ ही वे सिटिज़न्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस के साथ बतौर इंटर्न सक्रिय हैं.)

 

संदर्भ:

[1] Revised 4th Edition

[2] Resocialisaton of Prisoners – A Concept of Open Prison, Nrupathunga Patel, Dr.G.S.Venumadhav

[3] Section 24,  Implementation of the Recommendations of All-India Committee on Jail Reforms (1980-83):Volume 1,  Prepared by: Bureau of Police Research & Development, Ministry of Home Affairs, New Delhi, 2003.

[4] All India Committee on Jail Reforms, 1983

[5] Anju Sinha, Open Prisons, Their Working And Utility As Institutions Of Reformation And Rehabilitation, International Journal Of Humanities And Social Science Invention, Volume 2 /Issue 11 | November. 2013

[6] www.rlsa.gov.in/pdf/OpenPrisonBook17.PDF

[7] Mohammed Giasuddin v. State of Andhra Pradesh, A.I.R. 1977 S.C.1926

[8] In re Inhuman Conditions in 1382 Prisons

[9] https://www.indiaspend.com/why-open-prisons-are-the-solution-to-indias-overcrowded-prisons/

 

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