
CJP विशेष: घर से बेघर तक! नागरिकता अधिकारों की बहाली के लिए लड़ रहे असम के निवासियों पर पुलिस की गैरकानूनी कार्रवाई जारी? असम पुलिस ने बिना कोई नोटिस दिए 300 लोगों को हिरासत में लिया; 145 को कथित रूप से बांग्लादेश सीमा के पार भेजा गया, मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन हुआ।
31, May 2025 | CJP Team
CJP टीम की ग्राउंड रिपोर्ट:
धुबरी जिले के मधुसैलमाड़ी पार्ट-II गांव की रहने वाली और मई 2021 में कोकराझार डिटेंशन कैंप से जमानत पर छोड़ी गई दोयजान बी, 1980 के दशक के दंगे में बचे और चिरांग जिले के सतीबर्गांव गांव के रहने वाले और 2021 में जमानत हासिल कर चुके अब्दुल शेख, रोजाना मजदूरी करने वाले और अपनी नागरिकता का हक पाने की लड़ाई लड़ते हुए गोआलपारा डिटेंशन कैंप में बंद और 2023 में जमानत पर रिहा हुए मोजिबुर शेख, चिरांग जिले के गांव नंबर 2 गोरैमाड़ी के रहने वाले और फरवरी 2020 में रिहा हुए शमसुल अली उन चार लोगों में शामिल हैं जिनके बारे में बताया जा रहा है कि इन्हें जबरदस्ती भारत से नो मैन्स लैंड में भेज दिया गया है। ये सभी भारतीय नागरिक हैं और अपनी नागरिकता के लिए लड़ रहे थे। इसके अलावा, खैरुल इस्लाम नाम के एक 54 साल के रिटायर्ड सरकारी स्कूल टीचर भी हैं जो मोरिगांव जिले के रहने वाले हैं। उनका मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है (अंतिम सुनवाई दिसंबर 2024 में हुई)। ये पांचों लोग असम पुलिस की बिना कोई उचित प्रक्रिया या नोटिस दिए की गई मनमानी कार्रवाई के शिकार हैं।
माटिया डिटेंशन सेंटर के बाहर जवाबों की प्रतीक्षा करतीं गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिए गए लोगों के परिवार
पिछले कुछ दिनों से परिवार वाले, एक्टिविस्ट और वकील काफी कोशिश कर रहे हैं लेकिन इन पांच लोगों और करीब 145 अन्य लोगों का अभी तक पता नहीं चल पाया है। साफ लगता है कि इन्हें जबरन भारत से बाहर, बांग्लादेश की तरफ भेज दिया गया है। वहां ये लोग बांग्लादेश की फोर्स या हमारे बीएसएफ की फायरिंग के सामने बिलकुल असहाय हो जाते हैं। असम और बांग्लादेश की सीमा के बीच जो जगह होती है जिसे ‘नो मैन्स लैंड’ कहते हैं, वहां फंसे लोग कई तरह के खतरे में रहते हैं। वहां की फायरिंग की वजह से ये बिना हथियार वाले लोग पूरी तरह कमजोर और बुरी हालत में होते हैं।
शुक्रवार 23 मई, शनिवार 24 मई,
माटिया डिटेंशन सेंटर: मंगलवार 27 मई
मंगलवार 27 मई को CJP की टीम ने करीब छह घंटे तक वहां बंद लोगों के बारे में पूछताछ की, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल सकी। बात तब और बिगड़ गई जब डिटेंशन सेंटर के बाहर आए उनके परिवार वाले, जो अपने रिश्तेदारों के लिए खाना और कपड़े लेकर आए थे, उन्हें अधिकारी बुरी तरह टोकने लगे। सेंटर का जिम्मा जेलर का होता है, लेकिन उसे भी परिवार वालों और एक्टिविस्ट्स से मिलने नहीं दिया गया क्योंकि असम बॉर्डर पुलिस ने पूरी जगह अपने कब्जे में ले रखी थी।
CJP की टीम मंगलवार सुबह माटिया डिटेंशन सेंटर पहुंची, क्योंकि सोमवार को उन्होंने जिले के पुलिस थाने और बॉर्डर ब्रांच से जानकारी हासिल की थी। जब टीम वहां के मेन गेट पर पहुंची तो वहां बंद लोगों के परिवार वाले बहुत परेशान और बेचैन खड़े थे। वे पुलिस से बात करना चाहते थे लेकिन उन्हें कोई ठीक जवाब नहीं मिला। सब बहुत निराश थे। ये लोग ऊपरी असम के अलग–अलग जिलों से लंबा सफर करके असम के निचले इलाके आए थे। अपने रिश्तेदारों के लिए उन्होंने खाना, कपड़े और पैसे भी लेकर आए थे। लेकिन पुलिस की तरफ से कोई बात नहीं हो रही थी और वे तेज धूप में खड़े–खड़े इंतजार कर रहे कि कोई बताए कि उनके परिवार वाले सुरक्षित हैं या नहीं।
गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिए गए लोगों के परिजन माटिया डिटेंशन सेंटर के बाहर खड़े हैं
जल्द ही साफ हो गया कि पुलिस को सख्त हिदायत दी गई थी कि किसी को कोई जानकारी नहीं देनी है। CJP की टीम ने अपने लीगल रिसर्चर्स की मदद से एक पूरा मेमोरेंडम तैयार किया था जिसमें गिरफ्तारी, हिरासत और कोर्ट के निर्देशों के उल्लंघन की तमाम बातें साफ तौर पर लिखी गई थीं।
टीम ने ये मेमोरेंडम अधिकारियों को सौंपने की कोशिश की। पहले तो उन्होंने उसे ले लिया, लेकिन थोड़ी देर बाद न तो उसकी कॉपी रखने को तैयार हुए, न ही ये मानने को कि उन्हें ये दस्तावेज मिला है। इस मेमोरेंडम की एक कॉपी यहां पढ़ी जा सकती है।
हमने कई बार कोशिश की कि पुलिस और अधिकारियों को कोर्ट के फैसलों और कानूनी नियमों के बारे में समझाया जाए, लेकिन गेट पर खड़ी पुलिस बिल्कुल भी सुनने को तैयार नहीं थी। वे लगातार अपने “सीनियर्स” एडीसी (एडिशनल डिप्टी कमिश्नर) तक को फोन कर रहे थे लेकिन ऊपर से कोई जवाब नहीं आया। जब CJP टीम के राज्य प्रभारी नंदा घोष ने जोर देकर कहा कि हमें जेलर से बात करनी है, तो पुलिस का रवैया अचानक और खराब हो गया। उन्होंने टीम को धक्का देकर पीछे कर दिया।
वकीलों और आम लोगों की तरफ से जो दस्तावेज सौंपा जा रहा था उसे लेने से भी मना कर दिया गया। इससे साफ दिखता है कि अब सरकार और सिस्टम आम जनता से कैसे बर्ताव कर रहा है। न कानून की इज्जत है, न संविधान की, न ही सही तरीके की कोई परवाह। आखिर में उन्होंने बस इतना कहा, “सात दिन बाद बताएंगे कि लोग कहां हैं!”
परिवार वालों की हालत बेहद दुखद थी। कोई बूढ़ी मां थी, कोई पत्नी जो सात महीने के बच्चे को गोद में लेकर आई थी, कोई छोटा भाई, तो कोई बुजुर्ग पिता। सबके चेहरे पर सिर्फ चिंता और बेबसी थी, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उनके अपने कहां हैं और कैसे हैं। CJP की टीम ने उन्हें कुछ खाने को दिया और पानी दिया ताकि कुछ राहत मिल सके। इसके बाद टीम पास की एक छायादार जगह पर गई, जहां उन्होंने आपस में बातचीत की और आगे की कार्रवाई को लेकर चर्चा की। वहीं कुछ स्थानीय पत्रकार भी मिले जो जानकारी इकट्ठा करने आए थे। असम में दूर–दराज इलाकों तक पहुंचना वैसे ही मुश्किल होता है और माटिया डिटेंशन सेंटर तो बहुत ही अंदरूनी इलाके में है। टीम शाम करीब 5 बजे वहां से निकली और कुछ पीड़ित परिवारों को भी अपने साथ ले गई। दोयजान बी के पति भी आए थे। वे कुछ सूखे खाने के सामान, दो जोड़ी कपड़े और थोड़े पैसे लेकर आए थे ताकि अपनी पत्नी को दे सकें। लेकिन जब कुछ पता नहीं चला तो वे भी उदास मन से गोलपारा वापस लौट गए। असम के हाशिये पर जी रहे इन लोगों की बस इतनी सी उम्मीद थी कि एक शाम अपने परिवार के साथ खाना खा लें। वो छोटी सी खुशी भी सरकार ने रात के अंधेरे में छीन ली।
माटिया डिटेंशन सेंटर के बाहर; गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिए गए लोगों के लिए परिजनों द्वारा लाया गया खाना और कपड़े
27 मई की दोपहर तक बीएसएफ ने एक प्रेस नोट जारी किया जिसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने बांग्लादेश से भारत में घुसने की कोशिश कर रहे लोगों को रोक लिया। बीएसएफ का कहना था कि 27 मई 2025 की सुबह असम के साउथ सलमारा–मानकाचर जिले में भारत–बांग्लादेश सीमा पर कुछ संदिग्ध लोग दिखाई दिए जो बांग्लादेश की तरफ से भारत में घुसने की कोशिश कर रहे थे। 27 मई 2025 की सुबह–सुबह, असम के साउथ सलमारा–मानकाचर ज़िले में भारत–बांग्लादेश सीमा पर तैनात बीएसएफ जवानों ने कुछ संदिग्ध लोगों की हलचल देखी। बीएसएफ का कहना है कि ये लोग बांग्लादेश की तरफ से आ रहे थे और भारत में घुसने की कोशिश कर रहे थे। बीएसएफ ने दावा किया कि उन्होंने वक्त रहते इस “घुसपैठ” को रोक लिया। उनका कहना है कि ये सभी बांग्लादेशी नागरिक थे जो अवैध रूप से भारत में घुसना चाहते थे। बीएसएफ प्रेस रिलीज की पूरी जानकारी नीचे पढ़ी जा सकती है।
अब तक हमें कम से कम 6 लोगों के बारे में पक्की जानकारी मिली है जिनके साथ गैरकानूनी तरीके से कार्रवाई हुई है। लेकिन गांवों से आ रही खबरों और परेशान परिवारों की बातों से पता चल रहा है कि शनिवार रात से शुरू हुई इस पुलिस कार्रवाई के बाद कम से कम 145 लोग अभी तक लापता हैं। बताया जा रहा है कि असम बॉर्डर पुलिस उन लोगों के घरों पर पहुंच रही है जिन्हें असम के विवादास्पद फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (FT) ने “विदेशी” घोषित किया है, या जिन्हें पहले जमानत पर छोड़ा गया था। अब पुलिस ऐसे लोगों को फिर से पकड़कर थानों में ले जा रही है। इन सब गिरफ्तारियों के बाद पुलिस ने न तो किसी को कोई जानकारी दी है, न ही ये बताया है कि जिन लोगों को उठाया गया है वे कहां हैं, किस हालत में हैं। उनके परिवार वाले पूरी रात थानों के बाहर बैठे रहे लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं बताया गया। कुछ डिजिटल मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी दावा किया जा रहा है कि असम के DGP, हरमीत सिंह ने सभी थानों को आदेश दिया है कि वे अपने इलाके के “संदिग्ध नागरिकों” की लिस्ट बनाएं।
जैसे ही CJP टीम को पुलिस की इस गैरकानूनी कार्रवाई की खबर मिली, हमारी टीम तुरंत प्रभावित इलाकों और उन लोगों से संपर्क करने लगी जो कोर्ट में अपनी नागरिकता को लेकर लड़ रहे हैं या जिनको जमानत पर छोड़ा गया है। हमने ये सुनिश्चित करने की कोशिश की कि वे सब अपने ऊपर मंडराते खतरे से वाकिफ रहें। दोयजान के पति ने रविवार की शाम 6 बजे से लगातार पुलिस से उनकी स्थिति और उनके स्थान की जानकारी लेने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। ऐसा ही हाल बाकी लोगों का भी है। इन लोगों में अब्दुल शेख, जो राज्य में हुए जातीय दंगों के दौरान घर जलने के बाद बचे हैं, मोजिबुर शेख और शमसुल अली, जिन्हें CJP टीम की मदद से जमानत पर छोड़ा गया था, शामिल हैं। इन सभी की पूरी जानकारी आप यहां पढ़ सकते हैं। यहाँ, यहाँ, यहाँ और यहाँ
इसी बीच, 54 साल के रिटायर्ड स्कूल टीचर खैरुल इस्लाम ने एक वीडियो इंटरव्यू में बताया (जो Scroll.in ने भी रिपोर्ट किया है) कि वो मंगलवार सुबह, 27 मई को भारत की बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) द्वारा बांग्लादेश की तरफ “भेजे” गए 14 लोगों में शामिल थे। खैरुल इस्लाम ने कहा कि ये सब रात के अंधेरे में हुआ और उसी अंधेरे की वजह से BSF और बांग्लादेश की बॉर्डर गार्ड (BGB) के बीच गोलीबारी भी हो गई।
अस्सलामु अलैकुम, मेरा नाम मोहम्मद खैरुल इस्लाम है। मैं असम में रहता हूं, मोरिगांव जिले के मिकिरभिटा पुलिस थाने के अधीन खंडापुखुरी गांव का रहने वाला हूं। मैं एक प्राथमिक स्कूल में शिक्षक हूं। 23 मई को मिकिरभिटा बॉर्डर पुलिस मुझे गोपालपुर के माटिया डिटेंशन कैंप ले आई।
कल, असर की नमाज से ठीक पहले, मुझे यहां लाया गया और जब मैं जाने से मना किया तो पुलिस वालों ने मुझे बहुत मारा। मेरे हाथ और शरीर के कई हिस्से पर चोट लगी, और यह बहुत दर्दनाक था।
मैंने बार–बार उन्हें बताया कि मैं एक शिक्षक हूं, मेरा सम्मान करें, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं सुना।
उन्होंने मुझे लात मारी और जबरदस्ती गाड़ी में धकेल दिया। मेरे हाथ पीछे से रस्सी से बांधे गए जैसे मैं कोई चोर हूं। हम 14 लोग थे, जो लगभग सुबह 4 बजे फज्र की नमाज के वक्त BSF की सीमा को पार कर बांग्लादेश में भेजे गए।
आपके स्कूल का क्या नाम है
मैं थेंगखली खंडापुखुरी एलपी स्कूल में पढ़ाता हूं।
आपको कहां से उठाया, बॉर्डर के पास से या शहर के किसी जगह से?
वे मुझे मेरे घर से उठाए, जो सीमा से काफी दूर है और फिर कैम्प ले गए।
क्या आपका घर बॉर्डर के पास है?
मेरे माता–पिता भारत में जन्मे थे, यहां की जमीन पर, भारत की आज़ादी से पहले से।
आप भारत में कब से रह रहे हैं?
मेरे माता–पिता भारत में पैदा हुए थे, वो भी आजादी से पहले। हम सब भारत के ही निवासी हैं।
आपके स्कूल का नाम क्या है?
मेरे स्कूल का नाम है थेंगखली खंडापुखुरी एलपी स्कूल।
जब आपको इस तरफ भेजा गया तो उन्होंने क्या कहा?
हम कुछ कह नहीं सकते थे, बंदूक की वजह से हम डर गए थे। हमें डर था कि कहीं वे गोली न मार दें। आखिर में मेरे हाथ भी बंध दिए गए थे। मुझे लगा मैं सीमा पार नहीं कर पाऊंगा और शायद मेरी जान भी चली जाएगी। मैंने बहुत दुआ की।
क्या आपके पास कोई पहचान पत्र (ID कार्ड) है?
नहीं, उन्होंने सब रख लिया। सब कुछ डिटेंशन कैंप में रखा गया। मेरे पास खाने के लिए 8,000 रुपये थे, और जो सामान था, वो भी सब रख लिया।
क्या आपके परिवार को इस बारे में पता है?
शायद मेरे परिवार को अभी तक कुछ पता नहीं है। हो सकता है कोई उन्हें बता दे तो पता चल जाए।
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU), असम जातीय युवा छात्र परिषद (AJYCP), और लछित सेना की नेतृत्व ने इस मानवीय संकट के दौरान सरकार की बर्बर, गैर–लोकतांत्रिक और संविधान के खिलाफ की गई कार्रवाई का समर्थन किया है।
हालांकि अरिंदम देव, फारुक लस्कर और मृणाल कांती शोमे जैसे स्वतंत्र लोग जो फोरम फॉर सोशल हार्मनी और असम मज़दूर श्रमिक यूनियन के सदस्य हैं, ने इस अमानवीय और जबरन की गई कार्रवाई की कड़ी निंदा की है। इसके अलावा, सीपीआई (एम) के प्रदेश इकाई ने भी सरकार की इन गैरकानूनी हरकतों की आलोचना की है।
हर हफ्ते, असम में CJP की टीम में शामिल समाजसेवी, जिला स्तर के वालंटियर्स और वकील करीब 24 जिलों में नागरिकता संकट से प्रभावित लोगों को जरूरी कानूनी मदद, सलाह और सहयोग देती है। हमारी कोशिशों की वजह से 2017 से 2019 के बीच 12 लाख से ज्यादा लोगों ने अपने NRC फॉर्म सफलतापूर्वक जमा किए। हम हर महीने जिला स्तर पर विदेशी ट्रिब्यूनल के मामलों में लड़ाई लड़ते हैं। इन सब प्रयासों से हमने सालाना लगभग 20 मामलों में लोगों को उनकी भारतीय नागरिकता दिलाने में सफलता पाई है। ये जमीन से जुड़ी जानकारी हमें संवैधानिक अदालतों में सही और समझदारी से कदम उठाने में मदद करती है। आपका समर्थन हमारे इस अहम काम को आगे बढ़ाता है। सभी के बराबर के अधिकारों के लिए हमारे साथ खड़े हों। #HelpCJPHelpAssam. Donate NOW!
इसी बीच, इंडियन नेशनल कांग्रेस (INC) के वकील अमान वादुद ने मंगलवार 27 मई को, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के पास एक शिकायत दर्ज कराई है। इसमें उन्होंने NHRC से ये मांग की है कि—
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) से अपील की गई है कि वो खुद से (सुओ मोटो) इस मामले पर ध्यान दे, जिसमें 23 मई 2025 से असम में भारतीय नागरिकों और पहले से रिहा किए गए “घोषित विदेशियों” को बिना किसी वजह के दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया है और उन्हें हिरासत में रखा गया है।
- असम के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को तुरंत नोटिस भेजे जाएं ताकि ये बताया जाए कि ये गिरफ्तारी किस आधार पर हुई है, गिरफ्तार लोगों की लिस्ट क्या है और कानूनी वजह क्या है।
- बिना सही कानूनी प्रक्रिया और अदालत की मंजूरी के जबरन लोगों को देश से निकालने से रोका जाए।
- असम सरकार को आदेश दिया जाए कि जो लोग बिना किसी गलती के फिर से पकड़े गए हैं, उन्हें तुरंत छोड़ दिया जाए और उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाए।
- संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत विवादित नागरिकता के मामलों में उचित, मानवता वाली और पारदर्शी नीति बनाई जाए।
- जिन लोगों को बिना वजह लंबे समय तक जेल में रखा गया और फिर से गिरफ्तार किया गया, उन्हें मुआवजा और पुनर्वास दिया जाए।
शिकायत की कॉपी यहां पढ़ी जा सकती है।
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