भगत सिंह की 115वीं जयंती पर बीएचयू में सेमिनार भगतसिंह छात्र मोर्चा ने भगत सिंह के विचारों को याद किया

04, Oct 2022 | फ़ज़लुर रहमान अंसारी

भगत सिंह की 115वीं जयंती पर छात्र समूह भगतसिंह छात्र मोर्चा ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में सेमिनार आयोजित किया। दिनांक 28 सितंबर 2022 को बीएचयू के छात्र अधिष्ठाता कार्यालय (डीएसडब्ल्यू)/छात्र संघ भवन में सेमिनार का आयोजन किया गया। इस सेमिनार को आयोजित करने का उद्देश्य भगत सिंह के विचारों को लोगों तक पहुंचाना और आज की समस्याओं के खिलाफ संघर्ष करने के लिए भगत सिंह से प्रेरणा लेकर सभी में एक क्रांतिकारी भावना को जगाना था।

सेमिनार का विषय था: “भगत सिंह के सपनों का भारत और छात्र-छात्राओं के कार्यभार।”

सेमिनार में लिए मुख्य वक्ता के तौर पर रूपरेखा वर्मा (पूर्व कुलपति, लखनऊ विश्वविद्यालय) प्रोफेसर चौथी राम यादव (पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग बीएचयू), नौदिप कौर (मजदूर नेता, मजदूर अधिकार संगठन), विश्वविजय (एडवोकेट, इलाहाबाद), डॉ राहुल मौर्य (दर्शनशास्त्र विभाग, सहायक प्रोफेसर, बीएचयू) को बुलाया गया था।

सेमिनार में तकरीबन 250 छात्र-छात्राएं व नागरिक समाज के लोग शामिल हुए। वक्ताओं के अलावा कार्यक्रम में डॉ विध्यांचल यादव (हिंदी विभाग, बीएचयू), डॉ महेंद्र प्रसाद कुशवाहा (हिंदी विभाग, बीएचयू), इलाहाबाद से दस्तक पत्रिका की संपादक और मानवाधिकार कार्यकर्ता सीमा आज़ाद, बनारस के ऐपवा संगठन से कुसुम वर्मा और स्मिता बागड़े, भैयालाल यादव (सेवानिवृत प्रधानाध्यापक), आर डी सिंह, समाजवादी जन परिषद से अफलातून, राजेंद्र चौधरी भी मौजूद थे। सेमिनार सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक चली, जिसके बाद डीएसडब्ल्यू से लेकर लंका गेट, बीएचयू तक क्रांतिकारी गीतों और नारों के साथ पैदल मार्च निकाला गया।

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कार्यक्रम की शुरुआत क्रांतिकारी गीतों से हुई। फिर पहले वक्ता के तौर पर बीएचयू के दर्शनशास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ राहुल मौर्य ने कहा कि आज़ादी का स्वाद आज तक बहुत लोगों को नहीं मिली है और 1947 में केवल सत्ता की अदला-बदली हुई है। भगत सिंह के बारे में बात रखते हुए कहा कि हमें भगत सिंह से सीख लेते हुए अपने सभी विश्वासों व धारणाओं के प्रति आलोचनात्मक नज़रिया रखना चाहिए और अपने विचारों में जड़ता से बचना चाहिए। साथ ही उन्होंने वर्तमान दौर की गला काट प्रतियोगिता को योग्यता का परीक्षण न मानते हुए इसे व्यवस्था की तंगहाली बताया जिसमें शिक्षा या रोज़गार न मिल पाना किसी व्यक्ति विशेष का दोष नहीं, बल्कि सरकार की पूर्ण नाकामी है। डॉ राहुल ने शिक्षा पर बढ़ते साम्राज्यवाद के प्रभाव को बेहद चिंताजनक बताया और सभी से अपील करते हुए अपनी बात ‘लड़ो पढ़ाई पढ़ने को, पढ़ो समाज बदलने को’ नारे से खत्म की।

अगले वक्ता के रूप में मजदूर अधिकार संगठन की नेता नौदीप कौर ने कुंडली उद्योग क्षेत्र में यूपी बिहार से आए प्रवासी मजदूरों की बदहाल हालत और महिला मजदूरों के साथ ठेकेदारों व मालिकों द्वारा हो रहे यौन उत्पीड़न के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “समाज के परिवर्तन के अगुआ मजदूर और युवा ही हैं। जिनके दुश्मन वर्तमान व्यव्स्था के पोषक तथा साम्राज्यवादियों की दलाल ये सरकारें हैं। भगत सिंह की जयंती मनाने का मतलब है कि वर्तमान समाज की जो दर्दनाक स्थिति है जिसमें मजदूर, किसान, महिलाएं तथा हर वर्ग परेशान है, उनकी मुक्ति के लिए संघर्ष की लड़ाई में शामिल होना।”

दर्शनशास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर प्रमोद बागड़े ने अपनी बात रखते हुए कहा कि भगत सिंह के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि उस समय थे। आज नवउदारवाद और मनुवादी फासीवाद का गठजोड़ जनता पर हमला कर रहा है। उन्होंने बताया कि भगत सिंह ने यह क्रांतिकारी बात कही थी कि अछूत ही देश के असली सर्वहारा है और उनको उठ खड़े हो कर इस निज़ाम को बदल देना चाहिए। उन्होंने अपनी अंतिम बात में कहा कि जब तक हमारे अंदर एक आलोचनात्मक दृष्टि नहीं होगी, हम एक अच्छे इंसान नहीं बन सकते हैं।

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कार्यक्रम की एक और मुख्य वक्ता प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा, जो लखनऊ यूनिवर्सिटी की पूर्व कुलपति रही हैं, वे कुछ अपरिहार्य कामों के कारण कार्यक्रम में नहीं आ सकीं। परंतु उन्होंने कार्यक्रम के लिए अपना एक छोटा मगर जोशीला संदेश भेजा। जिसमें उन्होंने बताया कि किस तरीके से अभी का दौर एक अंधेरे का दौर है, जिसमें गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, सांप्रदायिकता बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे दौर में यदि भगत सिंह होते तो वे जनसैलाब को एकजुट कर इस शोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ़ संघर्ष में जाते। आज यही हम सबको करने की जरूरत है।

इंकलाबी छात्र मोर्चा, इलाहाबाद के सहसचिव देवेंद्र आज़ाद ने अपनी बात रखते हुए इलाहाबाद की 400% फीस वृद्धि के खिलाफ चल रहे आंदोलन के बारे में बताया। उन्होंने NEP-2020, बिरला-अंबानी रिपोर्ट, यूजीसी में बदलाव, WTO-GATS की बात करते हुए शिक्षा के निजीकरण, बाजारीकरण व भगवाकरण के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि कैसे पूंजीपतियों और साम्राज्यवादियों द्वारा देश की शिक्षा, स्वास्थ्य सहित सभी मूलभूत चीजों को बेचा जा रहा है।

इंकलाबी छात्र मोर्चा के संस्थापक और अधिवक्ता विश्वविजय ने अपने वक्तव्य में भगत सिंह के लेखों के माध्यम से आज की परिस्थितियों और संघर्ष की जरूरतों पर बात रखी। उन्होंने भगत सिंह के लेख “विद्यार्थी और राजनीति” पर चर्चा की। भगतसिंह के “सांप्रदायिक दंगे और उसका इलाज” लेख के ज़रिए उन्होंने बताया कि आज भारत में दो समुदायों के बीच दंगे नहीं होते, बल्कि राज्य द्वारा एक समुदाय विशेष पर दमन किया जा रहा है। इसके बाद उनके लेख ” अछूत समस्या” के माध्यम से उन्होंने समाज में व्याप्त घिनौनी जाति व्यवस्था के बारे में बताया। उनके लेख “बम का दर्शन” के माध्यम से बताया कि हिंसा वह है जो सरकार द्वारा आदिवासियों की जल जंगल जमीन को लूट कर की जा रही है और अन्याय के खिलाफ लड़ना हिंसा नहीं होता। 1947 से जो व्यवस्था है, वो सामंतों और साम्राज्यवादियों की दलाली कर रही है। उन्होंने भगत सिंह के जज्बे से प्रेरणा लेने को कहा जो कोर्ट में बोले थे कि इंकलाब का मतलब ऐसा आमूल परिवर्तन जिससे एक इंसान दूसरे का शोषण न कर सके। अंत में उन्होंने भगत सिंह की लिखें लेखों को पढ़कर उनके विचारों को ज़मीन पर लागू करने की अपील की।

उसके बाद सभी वक्ताओं को भगत सिंह के सुंदर पोस्टर भेंट किए गए और कविता पाठ हुआ, जिसमें संगठन के सदस्यों ने जनपक्षीय कविताएं सुनाईं।

आखिर में भगतसिंह छात्र मोर्चा की अध्यक्ष आकांक्षा आज़ाद ने अपनी बात रखी जिसमें उन्होंने बीएचयू के हालातों के बारे में बताया। आजाद ने कहा, “बीएचयू में गुंडागर्दी, लड़कियों के साथ छेड़खानी बढ़ती जा रही है और इन मामलों पर बीएचयू प्रशासन सहित पुलिस, न्यायालय, कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है।” बीएचयू के इतिहास में हुए आंदोलनों के बारे में बताया, जिसमें विशेषकर 2017 का लड़कियों का आंदोलन था। बीएचयू प्रशासन के दोहरे चरित्र के बारे में भी बताया जो लगातार बीसीएम को कार्यक्रम, प्रदर्शन करने से अलग-अलग तरीके से रोकता आया है। उन्होंने बताया कि तमाम शिक्षण संस्थानों को निजीकरण का हमला सहना पड़ रहा है। जिसके कारण सभी विश्वविद्यालयों में फीस वृद्धि हो रही है और इसका विरोध करने पर स्टूडेंट्स पर दमन किया जा रहा है। उन्होंने स्टूडेंट्स को क्रांतिकारी राजनीति करने और संगठन से जुड़ने की भी अपील की।

सभा का समापन सेमिनार की अध्यक्षता कर रहे प्रो चौथीराम यादव ने किया। उन्होंने सभी वक्ताओं के भाषण के बारे में बोलते हुए कहा कि पूरे सेमिनार हॉल का माहौल उनके भाषणों से जोश से भर गया है। उन्होंने भगत सिंह की जीवनी के बारे में बताया कि 2 साल के भीतर ही उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े दार्शनिकों को पढ़ लिया था। आज जो लोग भगत सिंह के वारिस हैं, वे लोग आज जेल में बंद हैं जैसे राजनैतिक कैदी रहे सुधा भारद्वाज, स्टेन स्वामी, जीएन साईबाबा और वरवरा राव। भगत सिंह ने अपने समय में ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष लड़ा था, उन्होंने उनकी तुलना लोकमान्य तिलक से की जिन्होंने कहा था कि हल चलाने वाले लोगों को पढ़ने की जरूरत नहीं है। इसी तरह उन्होंने ऐसे बुद्धिजीवियों पर भी वार किया जो जनता के लिए तो बोलते हैं लेकिन साथ ही अपना कोई ऐशो आराम नहीं छोड़ना चाहते। आखिर में उन्होंने बताया कि भगत सिंह ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया था। वे सभी मुद्दों को अपने संगठन के बैनर तले लाना चाहते थे, उनका एक बहुत ही व्यापक दायरा था। भगत सिंह के असली वारिस आज के नौजवान हैं और भगत सिंह छात्र मोर्चा भी उसी कड़ी में उनके सपने को आगे लेकर जा रहा है।

कार्यक्रम के दौरान कई जोशीले क्रांतिकारी गीत गाए गए जैसे “ए भगत सिंह तू जिंदा है”, “सूली चढ़कर वीर भगत ने”, “मसाले लेकर चलना कि जब तक रात बाकी है” आदि, जिनको सुनकर श्रोतागण में भी उत्साह भर गया और वे भी साथ में गीतों को दोहराते रहे। सेमिनार में संगठन द्वारा भगतसिंह से संबंधित, पितृसत्ता व जाति व्यवस्था से संबंधित मुद्दों पर अनेक पोस्टर लगाए गए थे, जो हॉल की खूबसूरती को बढ़ाने का काम कर रहे थे। इसके अलावा सेमिनार में भगत सिंह, अंबेडकर की लिखी पुस्तकों, प्रगतिशील पत्रिकाओं व संगठन के दस्तावेजों का भी स्टॉल लगाया गया था।

सेमिनार के बाद कार्यक्रम स्थल से लेकर बीएचयू मुख्य द्वार तक मार्च निकालकर कार्यक्रम का समापन किया गया। मार्च के दौरान मुख्य द्वार पर भारी संख्या में पुलिस ने बीएचयू से बाहर जाने से रोकने की कोशिश की, परंतु फिर भी सबने बाहर जा कर क्रांतिकारी गीत गाये और जनता को संबोधित करते हुए भगत सिंह के बारे में बताया। कार्यक्रम के समापन पर सब लोगों ने भगत सिंह के सपने को आगे ले जाने का संकल्प लिया।

बीएचयू प्रशासन ने इस कार्यक्रम को रोकने और इसमें रूकावट डालने का भरसक प्रयास किया परंतु भगतसिंह छात्र मोर्चा के सदस्यों के जज्बे के कारण उन्हें हर बार झुकना पड़ा। सबसे पहले कार्यक्रम आयोजित करने के लिए संगठन को हॉल अलॉट करने में प्रशासन आनाकानी कर रहा था। एक हफ्ते तक दौड़ भाग करने के बाद हॉल अलॉट हो पाया। इससे पहले भी प्रशासन भगतसिंह छात्र मोर्चा को हॉल अलॉट नहीं करता था। लगभग डेढ़ साल पहले अपने सम्मेलन के लिए हॉल अलॉट करा भी लिया गया था लेकिन अंतिम समय में प्रशासन द्वारा कैंसल कर दिया गया। पिछले साल नवंबर में मानवाधिकार दिवस पर भी भगतसिंह छात्र मोर्चा को हॉल देने से साफ़ इंकार कर दिया था। वहीं दूसरी तरफ़ हम देखते हैं कि कैंपस में धड़ल्ले से भाजपा–संघ से जुड़े कार्यक्रम होते रहते हैं, ऐसे कार्यक्रम जिनमें सांप्रदायिकता और इस मनुवादी व्यवस्था का जहर घोलकर पिलाया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों को प्रशासन द्वारा पूरा स्पेस दिया जाता है, परंतु तर्कशील और क्रांतिकारी विचारों से जुड़े कार्यक्रमों को वे अलग-अलग हथकंडों से दबाते रहे हैं। इस बार भी हॉल देने के बाद कार्यक्रम के बैनर पर भी प्रशासन ने रोक लगाते हुए भगतसिंह छात्र मोर्चा से कहा कि वह बैनर को तभी लगाने देंगे जब वह उसमें से “इंकलाब जिंदाबाद”, “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” व संगठन के नाम “भगतसिंह छात्र मोर्चा” को हटा देंगे। ये बिल्कुल अलोकतांत्रिक तरीका है और इस बात से यह साबित होता है कि भगत सिंह के दिए गए इन नारों और उनके विचारों पर चलने वाले संगठन से प्रशासन व इस व्यवस्था को डर है कि कहीं लोग भगत सिंह से प्रभावित होकर अन्याय के खिलाफ आवाज ना उठाने लगें। परंतु भगतसिंह छात्र मोर्चा ने इसका विरोध किया और अपना बैनर भी लगाया। कार्यक्रम के दौरान भी प्रशासन लगातार भगतसिंह छात्र मोर्चा को परेशान करता रहा और उन्होंने भगतसिंह छात्र मोर्चा को हॉल के बाहर लगे उनके के लाल झंडों को हटाने की धमकी दी और कहा कि ना हटाने पर वे दोबारा हमें कभी हॉल नहीं देंगे। जबकि दूसरी तरफ संघ के कार्यक्रम में पूरे कैंपस में वे लोग खुले आम भगवा झंडा लगाते हैं और उन्हें कोई रोकटोक नहीं। भगतसिंह छात्र मोर्चा इसका भी डट कर सामना किया और प्रोग्राम खत्म होने तक झंडे नहीं हटाए। भगतसिंह छात्र मोर्चा प्रशासन के इस दोहरे चरित्र की कड़ी निन्दा करता है और इस अन्याय के खिलाफ़ हमेशा संघर्षशील रहेगा।

 

फ़ज़लुर रहमान अंसारी से मिलें

Fazlur Rehman Grassroots Fellow

एक बुनकर और सामाजिक कार्यकर्ता फजलुर रहमान अंसारी उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। वर्षों से, वह बुनकरों के समुदाय से संबंधित मुद्दों को उठाते रहे हैं। उन्होंने नागरिकों और कुशल शिल्पकारों के रूप में अपने मानवाधिकारों की मांग करने में समुदाय का नेतृत्व किया है जो इस क्षेत्र की हस्तशिल्प और विरासत को जीवित रखते हैं।

 

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