बाल यौन शोषण – कैसे पहचाने और रोकें सामुदायिक संसाधन: अभिभावकों, शिक्षकों और अन्य जिम्मेदार वयस्कों के लिए तैयार दिशानिर्देश
12, Apr 2018 | Deborah Grey
बाल यौन शोषण भारत में महामारी के अनुपात पर पहुंच गया है. 2007 के एक महिला एवं बाल विकास विभाग की बाल यौन शोषण रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक दो बच्चों में से एक का यौन शोषण किया गया है. इसलिए इस खतरे को खत्म करना बेहद महत्वपूर्ण है. यहां बाल यौन शोषण को पहचानने और उसे रोकने के लिए दिशानिर्देश दिए गए हैं.
बाल यौन शोषण के प्रकार
बच्चों का यौन शोषण कई तरीकों से किया जा असकता है जो प्रत्यक्ष रूप से नज़र नहीं आता. यौन उत्पीडन को समझने और रोकने के लिए, पहले यह जानना आवश्यक है कि यौन शोषण के अतर्गत क्या कुछ कृत आते हैं:
- बच्चे के निजी अंगों (लिंग, योनि, गुदा, नितंबों, जीभ, छाती, निपल्स) को छूना, चाहे वह बच्चा कपड़े पहने हो या नहीं.
- बच्चे के कपड़े उतरवाना और / या हस्तमैथुन सहित यौन कृत्य करना
- बच्चों की लैंगिक छवियां लेना, डाउनलोड करना और / या देखना
- बच्चे से वेबकैम के सामने लैंगिक कृत्य करवाना
- बच्चे के सामने यौन कृत्यों का प्रदर्शन करना
- बच्चे को अश्लील साहित्य दिखाना
- बच्चे के साथ विषम यौन गतिविधि करना
बच्चों के अधिकार CJP के चार स्तंभों में से एक हैं. बाल यौन शोषण के खिलाफ़ हमारी जंग जारी है. आइये, आप भी हमारे साथ जुड़ कर इस संघर्ष में अपना योगदान दीजिये.
दुर्व्यवहार की कहानी बताएं
महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, 50 प्रतिशत मामलों में अपराधी बच्चे का या तो परिचित होता है या उससे शक्तिशाली और विश्वास प्राप्त कर चुका होता है. इसलिए निम्नलिखित लक्षणों के प्रति जागरूक होना महत्वपूर्ण है:
शोषण से बचना: यौन शोषण का यह सबसे सामान्य और सशक्त संकेत है. अक्सर अपराधी वह व्यक्ति होता है जो बच्चे को स्नान कराने या बच्चे को बाथरूम ले जाने पर जोर देता है. यहाँ सबसे अधिक संभावना है जहां उत्पीड़न होता है.
संकेत देना: जब बच्चे अक्सर उत्पीड़न को व्यक्त करने के लिए सही शब्दावली के साथ सशक्त नहीं होते हैं, तो वे अपने माता-पिता की को संकेत देते हैं इस उम्मीद से कि वे समझ जायेंगे या एक विश्वसनीय वयस्क उन्हें समझ सकेगा. यह आमतौर पर बहुत ही सूक्ष्म संकेत होते हैं जैसे यौन उत्पीड़क की उपस्थिति में एक विश्वसनीय वयस्क के पीछे छिपने का प्रयत्न करना. कभी-कभी बच्चा किसी विशेष वयस्क के प्रति अपनी अप्रसन्नता दर्शाता है. इन शिकायतों को कभी भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए.
स्कूल में प्रदर्शन पर असर: उत्पीड़ित बच्चों को अक्सर उनकी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित में बहुत तकलीफ होती है. वे अपराधबोध या शर्म की वजह से अपनी भावनाओं को आंतरिक रूप देते हैं, हालांकि यौन उत्पीड़न कभी उत्तरजीवी की गलती नहीं होती है. यह उनके पढ़ाई के प्रदर्शन पर नकारात्मक असर डालता है.
आत्महत्या: यौन उत्पीड़न से प्रभावित बच्चे अक्सर कई तरह से स्वयं को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं, ये सिर्फ स्वयं को काटने, कलाई को रेतने, खुद को जलाने या उच्चाई से कूदने, जहरीले पदार्थ खाने या पीने आदि तक सीमित नहीं होता.
शारीरिक परिवर्तन: बच्चे को स्वास्थ सम्बंधित समस्यायों का सामना करना पड़ सकता है, जो निजी भागों में पीड़ा और संक्रमण, यौन संचारित बीमारियों, गर्भावस्था आदि तक सीमित नहीं है.
मनोवैज्ञानिक परिवर्तन: बच्चा स्पष्ट रूप से अलग व्यवहार करने लगता है. आम तौर पर बहिर्मुखी बच्चा अचानक चुप हो सकता है या फिर एक शर्मीला या शांत बच्चा अचानक बहुत आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित कर सकता है. कुछ बच्चों को सोने और खाने में परेशानी हो सकती है, और कुछ बच्चे बिस्तर गीला करना भी शुरू कर सकते हैं. कुछ बच्चों को बुरे सपने भी आते हैं.
अनुचित यौन व्यवहार: उत्पीड़ित बच्चों को अक्सर अपनी उम्र के प्रतिकूल यौन व्यवहार करने लगते हैं, जैसे कि बहुत कम उम्र में हस्तमैथुन या बड़े बच्चों और वयस्कों के प्रति यौनिक संकेत करना. वे स्पष्ट रूप से यौनिक भाषा भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
यौन उत्पीड़न को कैसे रोकें
धारणा बनाये बिना सुनें: बच्चे अक्सर उत्पीड़न के बारे में बात करते हैं लेकिन उन शब्दों में बहुत स्पष्टता नहीं होती. इसलिए यदि कोई बच्चा कहता है कि एक कोई ख़ास चाचा हमेशा उसके नितम्बों के साथ खेलता है या उसे पैरों के बीच गुदगुदी करता है, तो उसे बच्चे की अत्यधिक सक्रिय कल्पना के रूप में खारिज नहीं करें.
उत्पीड़क का सामना करें: उत्पीड़क का सामना करें और अधिकारियों को उनकी शिकायत दर्ज कराने से डरें मत. यदि इस तरह के राक्षसों को सामने लाने के बजाय इस तरह के व्यवहार को जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो यह परिवार के लिए ज्यादा बड़ी शर्म की बात है. सुनिश्चित करें कि आपका बच्चा जानता है कि आप उसके पक्ष में हैं और अपराधी को दंडित कराने से डरें नहीं.
लैंगिकता की शिक्षा: उचित आयु के हिसाब से यौन शिक्षा संभव और आवश्यक है. तीन वर्ष की आयु से बच्चों को अपने निजी भागों के सही नामों को सिखाया जाना चाहिए और उन्हें बताना चाहिए कि वहां छूने की अनुमति किसी को भी नहीं है. अगर कोई जबरन उन्हें छूता है, तो बच्चे को तुरंत आपको बताने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
शारीरिक संपर्क की सीमाएं निर्धारित करना: बच्चे खिलौने नहीं हैं. वे दोस्तों और पड़ोसियों को दिखाने के लिए नहीं हैं. कभी भी किसी बच्चे को गले लगने, चुंबन लेने, किसी वयस्क के नजदीक सोने या नृत्य न करने के लिए ज़बरदस्ती ना करें. इसके अलावा, कभी भी किसी वयस्क को बच्चे के प्रेमी या प्रेमिका के रूप में देखें या संबोधित न करें.
पड़ोस पर नज़र रखें: अजनबियों पर नजर रखने के लिए पड़ोसियों द्वारा समितियां तैयार करना बुद्धिमानी है, खासकर उन बच्चों के साथ बातचीत करने वालों पर नज़र रखने के लिए जैसे कि आया, टॉफी या कॉमिक बुक विक्रेता, स्कूल का बस कंडक्टर आदि.
आत्मविश्वास बनाएँ: आपके बच्चे को आप पर भरोसा होना चाहिए और आप अपने विश्वास को सिर्फ बातों से नहीं, कार्यों से बनाये रखने का प्रयत्न करें. अपने बच्चे को दिखाएं कि आप उनकी सीमाओं का सम्मान करते हुए उन पर भरोसा करते हैं. घुसपैठ करने वाले माता-पिता जो अपने बच्चे की गोपनीयता का सम्मान नहीं करते अक्सर बच्चों को हिंसक वयस्कों तक ले जाते हैं जो बच्चे को अपनी गोपनीयता देने के नाम पर मानसिक रूप से प्रभावित करके और अंततः यौन शोषण करने के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में सक्षम हो जाते हैं.
हार न मानें: एक बच्चे का यौन शोषण होने के बावजूद जीवन का आगे बढ़ना संभव है. इसके लिए सिर्फ हमारी बात ना सुनें, बाल यौन शोषण के उत्तरजीवी हरीश अय्यर को सुनें.
*** फ़ीचर छवि अमीर रिज़वी द्वारा
*** अनुवाद सौजन्य सदफ़ जाफ़र