आदिवासियों पर अत्याचार में बढ़े, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा कार्रवाई में कमी संसद के शीतकालीन सत्र में आदिवासियों पर अत्याचार के जो आंकड़े पेश किये गए हैं वे चिंताजनक हैं।

13, Feb 2023 | CJP Team

संसद के चालू सत्र के दौरान, जनजातीय मामलों के मंत्री बिश्वेश्वर टुडू ने पिछले तीन सालों में देश में आदिवासियों के खिलाफ हुए अत्याचारों और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) द्वारा की गई कार्यवाही यानी निपटाए गए मामलों से जुड़े आंकड़ों को सदन में रखा। पिछले तीन साल के राज्य/संघ के क्षेत्रवार आंकड़े इस प्रकार हैं।

 

जैसा कि ऊपर दी गई तालिका से पता चलता है, पिछले 3 सालों में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचारों को लेकर NCST द्वारा की गई कार्यवाही में साल दर साल काफी कमी आई है। 2019-2020 की अवधि के दौरान निपटाए गए मामलों की कुल संख्या 1558 थी, जो 2020-2021 की अवधि के दौरान घटकर 533 हो गई। इसमें और भी कमी आ सकती है क्योंकि 2020-21 में रिपोर्ट हुए 533 मामलों की तुलना में 2021-22 के दौरान केवल 368 मामलों का ही निपटारा किया जा सका है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि 2021-22 की अवधि के दौरान आयोग ने जिन मामलों पर कार्रवाई की उनमें सबसे ज्यादा मामले राजस्थान में (72)  रिपोर्ट किए गए थे। दूसरे और तीसरे सबसे ज्यादा मामले क्रमशः मध्य प्रदेश (46) और झारखंड  से (35) थे।

6 फरवरी, 2023 को संसद के विशेष बजट सत्र के दौरान, लोकसभा सदस्य अजय निषाद (भाजपा) ने आदिवासियों के खिलाफ हुए यानी दर्ज किए गए अत्याचारों के बारे में भी जानकारी मांगी। इस पर सरकार ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के आधार पर नवीनतम डेटा प्रदान किया, जो इस प्रकार है।

जैसा कि आदिवासियों के खिलाफ हुए अत्याचारों की संख्या का विवरण देने वाली तालिका से पता चलता है कि वर्ष 2019 में कुल 7570 मामले दर्ज किए गए थे, जो 2020 में बढ़कर 8272 और 2021 में 8802 हो गए। इस प्रकार 2019-2021 की अवधि के दौरान दर्ज मामलों की संख्या में वृद्धि देखी गई। इसमें से 2019 में केवल 741 मामले, 2020 में 347 मामले और 2021 में 548 मामलों में ही आरोप तय किए गए। महत्वपूर्ण यह भी है कि 2019 में 1148 लोगों, 2020 में 605 और 2021 में 824 लोगों को दोषी ठहराया गया। खास है कि इन सालों में सबसे ज्यादा मामले राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्यों से ही रिपोर्ट हुए हैं।

NCST द्वारा निपटाए गए मामलों की संख्या, जो साल दर साल कम होती जा रही है, के उलट, इस समान अवधि (तीन सालों) में रिपोर्ट किए जाने वाले मामलों और दर्ज किए जाने वाले मामलों की संख्या, बढ़ी है।  मामलों की बढ़ती संख्या बताती है कि भारत का आदिवासी समुदाय जिस असुरक्षित वातावरण में रह रहा है, वह चिंताजनक है।

पूरा उत्तर यहां पढ़ सकते हैं:

 

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