देश में एकता, समरसता और सामंजस्य बनाए रखने, संविधान में दिए अधिकारों और आज़ादी को कायम रखने की कोशिशों में, साधारण से नज़र आने वाले कुछ आम भारतीय नागरिकों ने असाधारण साहस और करुणा का परिचय दिया है. यहां कुछ ऐसे ही लोगों का ज़िक्र कर रहे हैं जो मानवाधिकार रक्षक की भूमिका में सभी के लिए आशा की किरण बने हुए हैं.
सुकालो गोंड
सुकालो गोंड एक आदिवासी वन अधिकार कार्यकर्ता हैं जो जंगल में रहने वाले लोगों के अधिकारों को बनाए रखने और उनका बचाव करने के लिए समर्पित हैं. वे उत्तर प्रदेश के सघन वन क्षेत्र सोनभद्र ज़िले से हैं, जो भारत के कुछ सबसे पुराने वन-निवासी समुदायों और जनजातियों जैसे गोंड आदिवासियों का घर है. सुकालो, ऑल-इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल (AIUFWP) की कार्यकारी समिति की सदस्य हैं, जो वन अधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाले CJP की सहायक संस्था है.
2006 में आदिवासियों को उनकी ज़मीन पर उनके मालिकाना हक़ की गारंटी देने वाला कानून, वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) पारित हुआ. अधिनियम पारित होने के बावजूद, भारत भर के वन-निवासियों को राजनेताओं, पुलिस और उद्योगपतियों की शक्तिशाली सांठगांठ ने उनके अधिकारों से वंचित रखा हुआ है, ये लोग विकास परियोजनाओं के नाम पर वन-निवासियों की वनभूमि का दोहन करना चाते हैं. पहले से ही कमज़ोर और हाशिये पर जीवन जी रहे वन-निवासियों की स्थिति बेहतर कर सकने वाले कानून, एफ़आरए के प्रभावी क्रियान्वयन को इस मिलीभगत ने रोक रखा है. वे अक्सर आदिवासियों को परेशान करते हैं, उनके ख़िलाफ़ झूठे आरोप लगाते हैं, उनका मनोबल तोड़ने की कोशिश करते हैं, तरह-तरह से धमकाते हैं, यहां तक कि फ़र्ज़ी मामले बनाकर आदिवासियों को लम्बे समय के लिए जेल तक भेज दिया जाता है. अन्याय और प्रताड़ना के जितने तरीके ये लोग अपनाते आए हैं, सुकालो गोंड के मामले अन्याय और प्रताड़ना की सारी हदें पार कर चुके हैं.
सुकालो ने भूमि और श्रम अधिकारों के लिए 100 दिवसीय राष्ट्रव्यापी अभियान के समर्थन में एक बड़ी रैली का आयोजन किया था तब उन्हें पहली बार गिरफ़्तार किया गया था. 2015 में मिर्ज़ापुर जेल में सुकालो को एक महीने के लिए रखा गया था. फिर 2018 में सुकालो और उनके दो सहयोगियों, किस्मतिया और सुखदेव गोंड को चोपण रेलवे स्टेशन से बड़े ही गुपचुप तरीके से उठा लिया गया था. ये गिरफ़्तारी तब की गई जब सुकालो व उनके साथी वन सचिव दारा सिंह चौहान के साथ एक आवश्यक बैठक कर के लौट रहे थे. इस बैठक में लिलासी गांव में आदिवासियों के खिलाफ पुलिस बर्बरता की घटनाओं के बारे में तथा स्तनपान कराने वाली माताओं और शिशुओं पर लाठियां बरसाने की वारदातों की तरफ़ वन सचिव का ध्यान आकर्षित किया गया था.
सुकालो, किस्मतिया और सुखदेव को गिरफ़्तार कर के तब तक अज्ञात जगह पर रखा गया जब तक सीजेपी और अआईयूएफ़डब्ल्यूपी ने अलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर नहीं की थी. इस याचिका के दायर होने के बाद ही पुलिस ने ये माना कि उसने गिरफ़्तारी की है. साथ ही तीनों के साथ पुलिस हिरासत में हुई उत्पीड़न की भी बात सामने आई. गिरफ़्तार किए गए मानवाधिकार कार्यकर्ता नवम्बर में ज़मानत में रिहा हुए. डराने-धमकाने की ये चाल और झूठे मामलों में फंसाकर गिरफ़्तार कर मनोबल तोड़ने की रणनीति सुकालो के दृढ़ संकल्प के सामने टिक नहीं पाई. सुकालो अपने लोगों को न्याय दिलाने के लिए संकल्पबद्ध हैं और अपनी लड़ाई मज़बूती से लड़ रही हैं.
ज़ाकिया जाफ़री
साल 2002 में गुजरात के गुलबर्ग सोसायटी में हुए भीषण जनसंहार के पीड़ितों में से ज़ाकिया जाफरी भी एक हैं. इस राज्यव्यापी हिंसा में उनके पति अहसान जाफ़री की हत्या कर दी गई थी. ज़ाकिया और उनके पति अहसान जाफ़री (जो कांग्रेस के पूर्व सांसद थे) ने हिंसा के दौरान कई मुस्लिम परिवारों को अपने घर में शरण दे रखी थी. एक समय ऐसा आया जब खून की प्यासी उन्मादी भीड़ ने उनके घर को चारों तरफ़ से घेर लिया, और सारे मुस्लिम परिवारों को भीड़ को सौंप देने की मांग करने लगे. आपके घर को घेरे, क़त्ल करने को आमादा किसी हथियारबन्द भीड़ के बीच जाना, अपनी मौत को ख़ुद गले लगाने के सामान है. ऐसे ही मुश्किल समय में, बहादुर अहसान जाफ़री भीड़ को समझाने और उनसे बात करने को आगे बढे, ये जानते हुए कि भीड़ कभी भी उनकी जान ले सकती है. उन्होंने अपना बलिदान देकर कई लोगों की जान बचा ली.
लेकिन ये सब सहते हुए भी न्याय और शान्ति के प्रति ज़ाकिया का विशवास टूटा नहीं. उस समय की राज्य सरकार में बहुत शक्तिशाली पदों पर बैठे कुछ ऐसे लोग थे जिन्होंने इस हिंसा को भड़काने और इसे फैलाने का काम किया था. प्रशासकों की घोर लापरवाही के चलते हिंसा को नहीं रोका जा सका. दोषियों की ज़िम्मेदारी तय करने के लिए ज़ाकिया ने सीजेपी के साथ मिलकर ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ मुकदमा दायर किया. 8 जून 2008 को 2000 पन्नों के दस्तावेज़ के साथ एक शिकायत दर्ज की गई. 2000 पन्नो के विस्तृत दस्तावेज़ से कई अहम तथ्य सामने आए, वो ये कि कैसे ज़िम्मेदार सरकारी महकमा हिंसा को रोक पाने में नाकाम रहा, कैसे सरकार की गलत नीतियों ने इस हिंसा की ज़मीन तैयार की. रणनीति बनाने की प्रक्रिया में शामिल घातक ख़ामियों की तारफ भी ये शिकायत इशारा करती है. तब की राज्य सरकार में शामिल लोग जो केंद्र तक पहुच चुके हैं उनके विरोध और निचली अदालतों में न्याय के नाम पर चल रहे अत्याचारपूर्ण माहौल से जूझती हुई ज़ाकिया ने इस मामले को ऊंची अदालत तक पहुचाया और अब इसकी सुनवाई देश की सर्वोच्च अदालत में होनी है.
चंद्रशेखर आज़ाद
14 सितंबर 2018 को, 15 महीने तक सलाखों के पीछे रहने के बाद, दलित नेता चंद्रशेखर आज़ाद को आखिरकार जेल से रिहा कर दिया गया. मई 2017 में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हुई दलित-ठाकुर झड़पों के दौरान हिंसा भड़काने का आरोप लगाकर आज़ाद पर 27 मामलों में मुकदमा दर्ज किया गया था. उन्हें जून 2017 में सलाखों के पीछे डाल दिया गया. सभी मामलों में जमानत हासिल करने के ठीक एक दिन बाद, उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत फिर हिरासत में ले लिया गया था.
चंद्रशेखर आज़ाद को 2015 में पहली बार परेशानी का सामना करना पड़ा, जब उन्होंने अपनी संपत्ति पर एक बोर्ड लगाया जिसमें ‘द ग्रेट चमार ऑफ़ धडकौली वेलकम यू’ लिखा था, जिससे दलितों और ठाकुरों के बीच तनाव बढ़ गया. उन्होंने इस घटना के तुरंत बाद उन्होंने एक आयोजन में भीम आर्मी के बैनर तले कई युवा दलितों को लामबंद किया. भीम आर्मी की स्थापना 2015 में शिक्षा के माध्यम से दलितों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से की गई थी. भीम आर्मी ने इस वर्ष आजाद के साथ भारत भर में कई रैलियों और कार्यक्रमों की मेजबानी करने और हाल ही में एक राष्ट्रीय छात्रसंघ का शुभारंभ करने के लिए बड़ी मात्र में समर्थन एकत्र किया है.
डॉ. कफ़ील अहमद ख़ान
अगस्त 2017 में गोरखपुर के बाबा रघुबर दास मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी के कारण 23 बच्चों की एक ही की रात में मौत हो गई. अस्पताल में एन्सेफलाइटिस वार्ड में काम करने वाले बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. कफ़ील ख़ान ने ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था करने के लिए दौड़-भाग शुरू की, उनके त्वरित प्रयासों ने कई जानें बचाई और उनके इस कार्य की काफ़ी सराहना हुई.
लेकिन 13 अगस्त 2017 को उन्हें नोडल अधिकारी के उनके पद से हटा दिया गया. सितम्बर 2017 को बच्चों की मौत के मामले में डॉ. ख़ान को गिरफ़्तार कर लिया गया औरे उनपर भ्रष्टाचार के कई आरोप भी लगा दिए गए. अगले साल अप्रैल में उन्हें ज़मानत पर रिहा किया गया.
गोरखपुर त्रासदी के दौरान दर्जनों लोगों की जान बचाने वाले डॉ. कफ़ील ख़ान आज भी न्याय के लिए लड़ रहे हैं. जुलाई में, जब उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के आवास से महज 500 मीटर की दूरी पर बाइक सवार युवकों द्वारा गोली मारने से उनका भाई गंभीर रूप से घायल हो गया था.
निलंबित बाल रोग विशेषज्ञ को दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए हर 14 दिन में अदालत के चक्कर काटने पड़ते हैं. हर दूसरे हफ्ते उन्हें अपने भाई के हमले की जाँच के लिए या नौकरी के लिए अलाहाबाद और लखनऊ के बीच यात्रा करनी पड़ती है. न उनका निलंबन रद्द किया जा रहा है और न उन्हें कहीं और सेवा देने की अनुमति दी जा रही है.
यशपाल सक्सेना
एक युवा लड़के अंकित सक्सेना की अपनी प्रेमिका के परिवार के सदस्यों द्वारा बेरहमी से हत्या कर देने के बाद, ऐसी आशंकाएं थीं कि ये मामला बिगड़कर ख़तरनाक रूप ले लेगा और स्थिति इससे भी बदतर हो आएगी. लेकिन अंकित के पिता यशपाल ने समझदारी और करुणा दिखाई, उन्होंने लोगों से इस मुद्दे को साम्प्रदायिक रूप नहीं देने और नफ़रत की बजाए प्यार फैलाने की अपील की. उनकी इस बात ने मानवता के प्रति हमारी आस्था को बहाल किया. बेटे के मारे जाने के चार महीने बाद, यशपाल सक्सेना ने दिल्ली के अपने निवास पर एक इफ्तार पार्टी का आयोजन किया जिसमें लगभग 200 लोगों ने भाग लिया. इसका आयोजन अंकित सक्सेना ट्रस्ट द्वारा किया गया था, जिसे उनके पिता ने अंतरजातीय विवाह करने वाले युवाओं को समझने, सहायता करने और शांति को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया है.
मरियम ख़ातून
मरियम ख़ातून ने 27 जून 2017 को अपने 45 वर्षीय पति अलीमुद्दीन अंसारी को एक लिंच (भीड़ की हिंसा) में खो दिया था. झारखंड के रामगढ़ जिले के बाजंद में उनके वाहन को रोककर लगभग 100 लोगों की भीड़ ने उनकी बेरहमी से पिटाई की. हमलावरों ने उनकी वैन में गोमांस ले जाने का आरोप लगाया था. भीड़ ने उन्हें उनकी वेन से बाहर खींचा और लाठी डंडो से उनकी बेरहमी से पिटाई करने लगे और उनकी कार में भी आग लगा दी.
अंसारी अपने पीछे तीन बेटियों सहित छः बच्चे छोड़ गए हैं. वे परिवार में एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे. पुलिस जांच में पाया गया कि इस योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दी गई हत्या में एक दक्षिणपंथी वर्चस्ववादी समूह के सदस्य उस हत्या में शामिल थे. इस मामले से जुड़े गवाहों को जिस तरीके से निशाना बना कर खामोश कराया जा रहा है, यहां तक की गवाहों को अदालत में सुनवाई के दौरान जिस तरह आतंकित किया जा रहा है उससे ये घटना और भी ख़तरनाक हो जाती है. अलीमुद्दीन अंसारी के भाई जलील अंसारी, जो इस मामले में एक गवाह थे, को सिर्फ़ इसलिए गवाह बनने से रोक दिया गया क्योंकि उनके पास वैध पहचान पत्र नहीं था. जब उनकी पत्नी ज़ुलेखा और अलीमुद्दीन के बेटे शाज़ाद आवश्यक दस्तावेज लेने घर वापस गए तब उनकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई, एक अज्ञात व्यक्ति ने अपने वाहन से उन्हें टक्कर मारी. इस घटना में ज़ुलेखा की मृत्यु हो गई और शाज़ाद को कई गंभीर चोटें आई हैं. अलीमुद्दीन के परिवार और दोस्तों को संदेह है कि यह ‘दुर्घटना’ महज़ एक हादसा नहीं हो सकती, ये जानबूझकर किया गया है.
मार्च 2018 में, झारखंड में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने एक स्थानीय भाजपा नेता सहित 11 लोगों को दोषी ठहराया. मरियम जैसे लोग मानवता के लिए मिसाल बन जाते हैं. इतना कुछ झेलने के बावजूद मरियम ने कहा कि वे न्याय चाहती हैं बदला नहीं. उन्होंने दोशियों के लिए मौत की सज़ा की मांग नहीं की. पत्रकार अजीत साही को दिए एक विशेष साक्षात्कार में मरियम ने कहा, “भले ही उन्होंने मेरे पति की हत्या कर दी, लेकिन मैं नहीं चाहती कि वे अपना जीवन खो दें. मैं चाहूंगी कि अदालत उन्हें आजीवन कारावास दे”.
किशोरचंद्र वांगखेम
इंफाल के पत्रकार, किशोरचंद्र वांगखेम को 26 नवंबर को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत राज्य पुलिस ने गिरफ्तार किया था. उन्हें 12 महीने के लिए जेल भेज दिया गया – अधिनियम के तहत सज़ा की ये अधिकतम अवधि है. उन्हें उनकी नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया. यह सब इसलिए क्योंकि उन्होंने मणिपुर के सीएम बीरेन सिंह को भाजपा की कठपुतली कहा.
एक स्थानीय समाचार चैनल आईएसटीवी के साथ कार्य करने वाले इस पूर्व एंकर-रिपोर्टर ने नवंबर में एक आयोजन को लेकर सत्तारूढ़ पार्टी की आलोचना की थी. उन्होंने अपने फेसबुक वीडियो में राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की निंदा की. वांगखेम ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जयंती मनाने के लिए 19 नवंबर को मणिपुर में एक समारोह आयोजित करने के लिए सिंह को मोदी और हिंदुत्व की कठपुतली कहा,उन्होंने कहा कि “झांसी की रानी का मणिपुर से कोई लेना-देना नहीं है”. उन्होंने वीडियो में पूछा कि “क्या आपको मणिपुरी राष्ट्रवाद का ज़रा भी ज्ञान है”. वीडियो के दौरान कई मौकों पर वांगखेम ने मोदी और सिंह के लिए कई तीखे शब्दों का इस्तेमाल किया, कहा कि “आओ और मुझे गिरफ्तार करो”.
वांगखेम ने कहा कि “अगर हमें सरकार के ख़िलाफ़ कुछ कहने तक की आज़ादी नहीं है तो इसका सीधा मतलब ये है कि हमारे यहां लोकतंत्र है ही नहीं है. सरकार के खिलाफ बोलने के लिए मुझे एनएसए के तहत गिरफ्तार करने जैसी कार्रवाई केवल हिटलर के समय में सोची जा सकती थी ये बात आज के दौर में बिलकुल स्वीकार्य नहीं है. मैं एनएसए के तहत नजरबंदी का जोरदार खंडन करता हूं और कहता हूं कि लोकतंत्र का यहां कोई स्थान नहीं है, ”वांगखेम ने कहा,“ जागो लोगों जागो उठो! यह एक तानाशाही शासन है, यह एक निरंकुशता है. हमें ऐसी सरकार को एकजुट होकर देश से समाप्त कर देने की ज़रुरत है”.
हादिया
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में टिप्पणी करते हुए पितृसत्तात्मक समाज के लिए यह स्पष्ट किया, कि एक वयस्क महिला की जीवन शैली और इच्छाओं का सम्मान किया जाना चाहिए, भले ही उसका निर्णय प्रचलित (और समस्याग्रस्त) सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यताओं के साथ मेल न खाते हों.
केरल की युवा मेडिकल छात्र हादिया का नाम पहले अखिला था. दिसंबर 2016 में उसने अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ शफीन जहान से शादी की और बाद में हदिया नाम रखकर इस्लाम स्वीकार किया. उनके पिता असोकन ने पुलिस से संपर्क किया और दावा किया कि उनकी बेटी को इस्लाम धर्म एक साज़िश के तहत मनवाया गया है. उनका आरोप लव जिहाद से लेकर आईएसआईएस के लिए हादिया को सेक्स स्लेव में बदलने की साजिश तक था.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने इन भयावह आरोपों की जांच शुरू कर दी, इस जांच में कहीं भी ये नहीं कहा गया कि ये एक अंतरजातीय विवाह नहीं बल्कि लव जिहाद है. जाँच के बाद इस तरह की अफवाहों पर तो विराम लग गया लेकिन जब मुस्लिम विरोधी भावना की लपटों को फैलने दिया जाता है, तो वो हमेशा ही आपदा बनकर समाप्त होती है. केरल उच्च न्यायालय ने इस शादी को दिखावा कहकर एक वयस्क महिला की पसंद और उसकी आज़ादी की अवहेलना की. अदालत ने न केवल उसकी शादी रद्द कर दी बल्कि हादिया की कस्टडी उसके परिवार को सौंप दी.
शफीन ने सर्वोच्च न्यायालय में इस फैसले को चुनौती दी और शीर्ष अदालत ने नवंबर 2017 में उसे व्यक्तिगत रूप से सुना, जहां हादिया ने अपनी बात फिर दोहराई कि उसने अपनी मर्ज़ी से शफीन के साथ शादी की है और बिना किसी दबाव के इस्लाम स्वीकार किया है. महिला की आज़ादी को ख़ारिज करने वाले पित्रसत्तात्मक समाज के चेहरे पर करार तमाचा लगाते हुए शीर्ष अदालत ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया और निर्देश दिया कि हादिया को उसकी शिक्षा पूरी करने के लिए सलेम में शिवराज होमो मेडिकल कॉलेज भेजा जाए. हादिया ने अदालत से अपने पति के साथ रहने की अनुमति मांगी और उनकी शादी बहाल कर दी गई.
सुबोध कुमार सिंह
सुबोध कुमार सिंह, मोहम्मद इखलाक लिन्चिंग मामले की जांच कर रहे एक सच्चे और ईमानदार पुलिस अधिकारी थे. शायद उन्हें इस बात का अंदेशा हो गया था कि कथित गोरक्षा के नाम पर बने इन समूहों के हाथों उनका भी अंत हो जाएगा. बुलंदशहर इलाके में एक गाय की कथित रूप से हत्या के बाद भड़की हिंसा के दौरान इस 47 वर्षीय पुलिस अधिकारी की हत्या कर दी गई थी. सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो क्लिप से पता चलता है कि सिंह की हत्या की योजना बनाई गई थी और सांप्रदायिक हिंसा का मायाजाल बुना गया वास्तविक अपराध को छुपाने के लिए.
गोहत्या के बारे में फ़ोन पर ख़बर मिलते ही सुबोध सिंह तुरन्त मौके पर पहुच गए थे. घटना स्थल पर पहुच कर वे भारी भीड़ को शांत करने की कोशिशों में जुट गए. सिंह गोहत्या के बारे में फोन करने के तुरंत बाद मौके पर पहुंचे थे. वे सियाना के उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के साथ वहां शामिल हुए, जो लाउडस्पीकर के माध्यम से घोषणा करते रहे कि गायों को मारने के दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाएगी. लेकिन हत्यारे भीड़ में ही छुपे हुए थे उन्होंने सुबोध कुमार को घेर लिया और गोली मारकर उनकी हत्या कर दी.
गगनदीप सिंह
बीते साल सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हुआ. इस वीडियो में एक सिख पुलिस अधिकारी, एक मुस्लिम युवक को बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद के हमले से बचाता नज़र आ रहा था. ये घटना उत्तराखण्ड राज्य में नैनीताल के गिरिजा ग्राम की थी.
28 वर्ष के इस पुलिस अधिकारी गगनदीप सिंह ने गुस्साई भीड़ के हमले से एक मुस्लिम युवक को बचा लिया. गुस्साई भीड़ को युवक की जान लेने पर आमादा हुआ देख कर गगनदीप ख़ुद भीड़ के बीच चले गए और अपने शरीर को ही ढाल बनाकर उससे युवक को सुरक्षित कर लिया. इस कार्य के लिए उन्होंने कोई नकद ईनाम लेने से भी मना कर दिया, ये कहते हुए कि वो सिर्फ़ अपनी ड्यूटी कर रहे थे. आज देश को गगनदीप सिंह जैसे ही नायकों की ही ज़रुरत है. डीजीपी अनिल राथूडी द्वारा स्वतंत्रता दिवस के मौके पर गगनदीप को “फ्रंटियर सर्विस रिस्पेक्ट मार्क” के सम्मान से नवाज़ा गया.
ऋचा सिंह
इलाहबाद विश्वविद्यालय की पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष ऋचा सिंह, जो अब समाजवादी पार्टी की सदस्य हैं, उनपर और उनके कई साथी छात्रों पर विश्वविद्यालय के अन्दर हमला किया गया था. सबरंग इंडिया को दिए गए एक विशेष टेलिफोनिक साक्षात्कार में रिचा सिंह ने कहा, “ हम छात्रों के बीच डर फैलाने के लिए कैंपस में बम फेंके गए थे और हमें कुलपति के खिलाफ बोलना बंद करने के लिए कहा गया था”.
इलाहबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष को 19 जून को उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) के कई उम्मीदवारों के साथ हिंदी परीक्षा के पेपर लीक हो जाने का विरोध प्रदर्शन करने के लिए गिरफ़्तार कर लिया गया और एक सार्वजनिक परिवहन बस को जलाने का आरोप भी लगाया गया.
निष्ठावान छात्र नेता ने न केवल एयूएसयू की पहली महिला अध्यक्ष होने का इतिहास रचा था, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया था कि आदित्यनाथ (मुख्यमंत्री बनने के बाद) को उनके विवादास्पद अल्पसंख्यक विरोधी विचारों के कारण परिसर से बाहर रखा जाय.
उमर ख़ालिद
प्रसिद्द छात्र नेता उमर खालिद पर 13 अगस्त को नई दिल्ली में एक ‘अज्ञात बंदूकधारी’ ने गोली चला दी थी. विडम्बना है कि ये आतंकी हमला तब हुआ जब जेएनयू संविधान भवन में लोग खौफ़ से आज़ादी नाम के कार्यक्रम में भाग लेने पहुचे थे. यह कार्यक्रम यूनाइटेड अगेंस्ट हेट नामक एक समूह द्वारा अल्पसंख्यकों, छात्रों और तर्कवादियों पर हमलों की बढ़ती संख्या को उजागर करने के लिए आयोजित किया गया था. घटना के बाद उमर ने कहा कि “देश में डर का माहौल है, और जो कोई भी सरकार के खिलाफ बोलता है, उसे इसी तरह डराने धमकाने की कोशिश की जाती है”.
जेएनयू के एक छात्र कार्यकर्ता और पीएचडी स्कॉलर उमर खालिद को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी देने के विरोध में कथित रूप से देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
अग्नेस खर्शिंग और ए. संगमा
मेघालय की एक सामाजिक कार्यकर्ता और सिविल सोसाइटी महिला संगठन (CSWO) की अध्यक्ष अग्नेस खर्शिंग और उनके सहयोगी ए. संगमा पर नवंबर में मेघालय के पूर्वी जयंतिया हिल्स के एक इलाके में संदिग्ध कोयला माफिया के सदस्यों द्वारा हमला किया गया था.
खर्शिंग ने शिलाँग के मावियोंग रिम पर खड़े कोयले से लदे ट्रकों की शिकायत दर्ज कराई जिसे बाद में पुलिस ने ज़ब्त कर लिया, इसके ठीक अगले ही दिन खर्शिंग पर ये हमला हुआ. एनजीटी के प्रतिबंध के बावजूद राज्य में चल रही कोयला खनन की अवैध गतिविधियों पर खर्शिंग मुखर होकर बोलते रहे हैं. पिछले दिनों उन्होंने खासी और जयंतिया हिल्स में प्रतिबंध के बावजूद कोयले के बड़े पैमाने पर खनन और परिवहन को उजागर किया था.
ख्याति प्राप्त प्रसिद्ध सामजिक कार्यकर्ता और उनके सहकर्मी संगमा को जानकारी मिली, कि कोयले के अवैध उत्खनन पर लगे प्रतिबन्ध के बावजूद, राज्य में कोयले का चोरी छुपे उत्खनन और परिवहन चल रहा है. वे इस सूचना का सच जानने के लिए उस इलाके का दौरा करने पहुचे थे.
संगमा और खर्शिंग प्रसिद्ध एनजीओ सिविल सोसाइटी महिला संगठन का हिस्सा हैं और अभी भी हमले के दंश से उबर रहे हैं. हमले के बाद खर्शिंग ने एक इंटरव्यू दिया था. ये साक्षात्कार यहां पढ़ा जा सकता है.