“वनाधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत निवास व आजीविका हेतु वनोत्पादों पर निर्भर प्रदेश के अनुसूचित जनजाति एवं परंपरागत वन निवासियों को उनके अधिकार दिलाए जायेंगे, साथ ही सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचाकर विकास की मुख्यधारा में शामिल किया जाएगा।“
23 जनवरी को, उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर सोनभद्र, चंदौली और मिर्जापुर के जिलाधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक कर, स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री समाज कल्याण, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण, असीम अरुण ने ट्वीट कर जानकारी दी कि 22,897 पात्रों को वन अधिकार दिलाने के क्रियान्वयन में आ रही समस्याओं के निराकरण हेतु सोनभद्र, चंदौली व मिर्जापुर के जिलाधिकारियों के साथ वीसी कर समीक्षा की और वन निवासियों के प्रस्तावों पर जनपदों द्वारा प्राप्त समस्त दावों का अवलोकन कर सम्यक निर्णय लेने के लिए निर्देशित किया। देर आए दुरस्त आए, की तर्ज पर लोगों ने इसका स्वागत करते हुए कहा कि 2009 से उनके दावे जमा हैं। सामुदायिक दावों को भी 5 साल होने को हैं। सरकार को वनाधिकार कानून के तहत तत्काल मान्यता देनी चाहिए। लेकिन याद रहे कि उन्हें पट्टा नहीं, टांगिया वन गावों की तर्ज पर वनाधिकार कानून के तहत मालिकाना हक चाहिए।
आदिवासियों और पारंपरिक वनवासियों के भूमि और आजीविका अधिकारों में से एक कार्रवाई करना है। सीजेपी, मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों पर कार्रवाई करने में अपनी विशेषज्ञता के साथ इस मुद्दे पर सक्रिय रहा है। सीजेपी 2017 से ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल्स (AIUFWP) के साथ भागीदारी में अदालती कार्रवाई कर रहा है। दोनों संगठनों की संयुक्त कार्रवाई में आदिवासी नेताओं की पैरवी और वन अधिकार अधिनियम, 2006 का बचाव करना शामिल है। हम लाखों वन निवासियों और आदिवासियों के साथ खड़े हैं जिनके जीवन और आजीविका को खतरा है। कृपया यहां दान करके हमारे प्रयासों का समर्थन करें।
स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री असीम अरुण ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा 15 नवम्बर को जनजाति गौरव दिवस के अवसर पर परम्परागत वन निवासियों को भूमि अधिकार संबंधी प्रमाण पत्र वितरित करने के साथ ही वन अधिकार के प्रस्तावों पर तेजी से कार्यवाही किए जाने के निर्देश दिए गए थे। उसी कड़ी में वनाधिकार दावों की समीक्षा की गई है। 22,897 पात्रों को जल्द अधिकार मुहैया कराए जाएंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मंत्री ने कहा कि आजीविका हेतु वनोत्पादों पर निर्भर प्रदेश के अनुसूचित जनजाति एवं परंपरागत वन निवासियों को उनके अधिकार दिलाए जायेंगे, साथ ही सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचाकर विकास की मुख्यधारा में शामिल किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री ने 15 नवम्बर को जनजाति गौरव दिवस के अवसर पर परम्परागत वन निवासियों को भूमि अधिकार संबंधी प्रमाण पत्र वितरित करने के साथ ही वन अधिकार के प्रस्तावों पर तेजी से कार्यवाही किए जाने के निर्देश दिए थे। जिसकी निरंतर समीक्षा की जा रही है एवं अभी भी क्रियान्वयन के स्तर पर आ रही समस्याओं के निराकरण के लिए समाज कल्याण विभाग व वन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से वन मंत्री डॉ अरुण कुमार सक्सेना, समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण, व संजीव कुमार गोंड, राज्य मंत्री समाज कल्याण की उपस्थिति में सोनभद्र, चंदौली व मिर्जापुर के जिलाधिकारियों के साथ निदेशालय सभाकक्ष में वीसी के माध्यम से समीक्षा बैठक की गई।
बैठक में वनाधिकार अधिनियम 2006 के तहत अधिकार दिलाए जाने के संबध में निर्णय लिया गया कि वन निवासियों के प्रस्तावों पर जनपदों द्वारा प्राप्त समस्त दावों का अवलोकन कर सम्यक निर्णय किए जाएं। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि दिनांक 13 दिसम्बर 2005 से पूर्व तीन पीढ़ियों अथवा 75 वर्ष तक प्राथमिक रूप से वन, वनभूमि या वनोत्पादों पर निर्भर पात्र व्यक्तियों को उनके व्यक्तिगत एवं सामुदायिक अधिकार प्राप्त हो सकें एवं कोई भी पात्र व्यक्ति वन अधिकारों से वंचित न होने पाए। बैठक में डॉ हरिओम, प्रमुख सचिव समाज कल्याण, आशीष तिवारी, सचिव वन, पवन कुमार निदेशक तथा राज्य स्तरीय समिति सदस्य आनंद व देवनारायण खरवार के साथ संबंधित जनपद के जिलाधिकारी, डीएफओ व समाज कल्याण अधिकारी शामिल हुए।
उधर, देर आए दुरस्त आए की तर्ज पर लोगों ने मंत्री की पहल का स्वागत करते हुए कहा है कि 2009 से उनके दावे जमा हैं। सामुदायिक दावों को भी 5 साल होने को हैं। सरकार को वनाधिकार कानून के तहत तत्काल मान्यता देनी चाहिए। लेकिन याद रहे कि उन्हें पट्टा नहीं, टांगिया वन गावों की तर्ज पर वनाधिकार कानून के तहत मालिकाना हक चाहिए।
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन की अध्यक्ष सुकालो गोंड ने कहा कि सोनभद्र की ही बात करें तो उनके करीब 30 हजार दावे 2009 से जमा हैं। सोनभद्र व चंदौली के 25 गावों के सामुदायिक दावे भी 2018 में जमा किए गए थे लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। सरकार को तत्काल कदम उठाने चाहिए और वनाधिकार कानून के तहत वन भूमि पर लोगों के (व्यक्तिगत और सामुदायिक) अधिकारों को मान्यता प्रदान करनी चाहिए। लेकिन सरकार की मंशा चीजों को लटकाने की ही दिखती है। दूसरा, उन्हें अधिकार पत्र चाहिए पट्टा प्रमाण पत्र नहीं चाहिए।
अधिकार पत्र चाहिए, पट्टा नहीं: सुकालो
सुकालो कहती हैं कि वनाधिकार कानून में जमीन और जंगल के लघु वन उपज पर मालिकाना हक सुनिश्चित है। अधिकार पत्र का प्रारूप भी तय है। सरकार द्वारा वनाधिकार कानून के नाम पर पिछले दिनों कुछ लोगों को जो पट्टा वितरण किया गया है वह वनाधिकार कानून की मंशा के परस्पर विरोधी है। वनाधिकार कानून में पट्टा कोई चीज नहीं है। कहा, पट्टा अस्थाई होता है, खारिज किया जा सकता है लेकिन अधिकार पत्र मालिकाना हक देता है जो स्थाई और वंशानुगत होता है। दूसरा, जिस प्रारूप पर यह पट्टा दिया गया है उसमें लिखा है कि लाभार्थी के आवेदन पर एसडीएम द्वारा स्वीकृति दी गई है जबकि वनाधिकार कानून में आवेदन और स्वीकृति नहीं होती है, वनाधिकार के तहत दावा किया जाता है और जिलाधिकारी द्वारा उसे मान्यता प्रदान करते हुए, अधिकार पत्र दिया जाता है। इससे साफ जाहिर होता है कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री द्वारा सोनभद्र में वनाधिकार के नाम जो कार्यक्रम किया गया था वह पट्टा वितरण का कार्यक्रम था।
सुकालो के अनुसार, 15 नवंबर जनजातीय गौरव दिवस पर मुख्यमंत्री के सोनभद्र आगमन पर वह, मामले को लेकर, उनसे मिलना चाहती थीं और समुदाय की तरफ से उन्हें वनाधिकार से संबंधित ज्ञापन देना चाहती थीं। लेकिन सरकारी अधिकारी और स्थानीय मंत्री का पर्दाफाश न हो सके, इसके लिए पुलिस द्वारा उसे, पूरा दिन थाने में बिठाकर रखा गया था।
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