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सत्य और न्याय के लिए हमारी जंग जारी है

ये सफ़र तकरीबन 17 साल पहले शुरू हुआ था. सन 2002 गुजरात में जब नफ़रत की आग भड़काई गई, तो न्याय की उम्मीद लिए हम अदालत पहुंचे, और अदालत के अंदर और बाहर जिरह का सिलसिला शुरू हो गया, यही इस सफ़र की शुरुआत थी. ये अनुभव चुनौतीपूर्ण भी रहा और बेहद अनूठा भी. इसकी अंतर्दृष्टि, मानव अधिकार संरक्षण, विस्तार और उसके विकास के क्षेत्र में निरन्तर आगे बढ़ने के लिए, सीखते रहने और संघर्षरत रहने के हमारे संकल्प को और मज़बूत बनाती है.

सच तो ये है कि हमारे ख़िलाफ़ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने वाली, बाधा खड़ी करने वाली विपरीत प्रशासनिक परिस्थितियां होने के बावजूद भी सीजेपी ने अपने प्रयासों में काफ़ी हद तक सफलता हासिल की है, और इसके चलते रसूख़दारों के भी अपराध साबित हो पाए हैं. इन मामलों पर हमारी टीम अब भी काम कर रही है और इसका ही हासिल है कि ज़ाकिया जाफ़री मामले को जल्द ही सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सुना जाएगा. जब भी, जैसी भी ज़रुरत आई, हम मौजूद रहे. न्याय सुनिश्चित करने के लिए हम जिस संघर्ष के मार्ग पर हैं उससे हमें दूर करने के लिए कई नाकाम कोशिशें की गईं, हमपर फ़र्ज़ी मामले गढ़े गए, जबरन छापे मारे गए, क़ैद कर लेने की, हिरासत में ले कर यातनाएं देने की धमकियाँ दी गईं, तरह-तरह से डराया गया, पर हम अब भी अडिग हैं. ज़मीनी स्तर पर किए गए विभिन्न सार्थक और ज़रूरी कार्यों ने सीजेपी की बुनियाद को मज़बूत बनाया है. ज़ोर-ज़बरदस्ती से हमारा इरादा न कभी बदला है न कभी बदलेगा.

26 नवंबर 2017 यानि पिछले संविधान दिवस पर हमने अपने कार्यक्षेत्र को चार पृथक स्तंभों के तहत परिभाषित कर अपने वर्तमान कार्यक्षेत्र को रीलॉन्च किया.

अल्पसंख्यक अधिकार (विभिन्न अल्पसंख्यकों को शामिल करना; धार्मिक, जाति, जातीय, लिंग और यौन अल्पसंख्यक)

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

आपराधिक न्याय सुधार

बाल अधिकार

इन सभी बिन्दुओं पर ख़तरनाक परिस्थितयों में कार्य करने वाले मानवाधिकार रक्षकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना ही हमारे कार्य का मूल उद्देश्य है, और इस चुनौतीपूर्ण कार्य में सीजेपी सबसे आगे है. हमारा मानना है कि समाज में नफ़रत फैलाने वाली कोई भी बात (हेट स्पीच) किसी भी लोकतंत्र के लिए घातक ही होती है, ये लोकतंत्र का दुरूपयोग है.

पहले से ही, हमारे निरंतर प्रयासों और नए अभियानों ने इस क्षेत्र में स्थायी प्रभाव डाला है.

चंद्रशेखर आज़ाद को NSA के तहत क़ैद से मुक्त करने के हमारे प्रयास, वन अधिकार कानून 2006-2007 की बहाली के लिए संघर्ष करने वाले मानवाधिकार रक्षक सुकालो, किस्मतिया और सुखदेव की रिहाई के लिए किए गए हमारे प्रयास कारगर साबित हुए.

दुर्भावनापूर्ण और झूठे मुकदमे से बाहर निकलने में इन लोगों की मदद में किए जा रहे अपने प्रयास हम हमेशा जारी रखेंगे.

असम एक बहुत बड़े मानवीय संकट से जूझ रहा है. 500 लोगों की एक समर्पित कोर टीम वहां के समस्त भारतीयों को कानूनी सलाह और सहायता दे रही है, ताकि सभी के लिए राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) में दावा-आपत्ति प्रक्रिया के पर्याप्त अवसर सुनिश्चित किए जा सकें. केवल दो दिनों में बिस्वनाथ ज़िले के दूरस्थ इलाके बाघमारी मात्र से ही 10,000 दावों के फॉर्म भरे गए थे. अनेक समुदायों के लगभग पांच सौ से भी अधिक स्वयंसेवक इस प्रेरणादायक कार्य में हमारे सहयोगी बने. सीजेपी द्वारा चलाया जा रहा टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर और CJP NRC Assam App, हमारे इस काम में सहायता करने वाले तकनीकी माध्यम हैं.

सोची समझी साज़िश के तहत, समाज में नफ़रत फैलाने के उद्देश्य से किए गए अपराधों ने अप्रैल 2002 में सीजेपी की स्थापना के लिए हमें प्रेरित किया. आज घृणा का वातावरण हमें फिर से घेरने की धमकी दे रहा है. पिछले बारह वर्षों के अपने प्रेरणादायक अनुभवों के बल पर, पूरे विश्वास के साथ हम ये बात कह रहे हैं कि CJP अपने कदम पीछे नहीं हटाएगी.

चाहे वो हमारा खोज प्रोग्राम हो, जो इस बात के लिए समर्पित है कि बच्चों और युवाओं में तर्क और बातचीत के ज़रिए संवैधानिक मूल्यों के बीज बोए जा सकें, शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके, चाहे मोहल्ला समितियां बनाकर नागरिकों को अफ़वाहों, घृणा और रक्तपात जैसी चुनौतियों को रोकने के लिए प्रशिक्षण देने की हमारी कोशिश हो, अधिकारों की रक्षा के लिए सार्थक और सकारात्मक तरीके की जा रही हमारी अदालती प्रक्रियाएं हों, चाहे नफ़रत फैलाने वाले भाषणों और नफ़रतपूर्ण लेखनी की नज़दीकी निगरानी और निपटान हो. नफ़रतों को पहचानने और उन्हें रोकने के लिए जल्द ही एक विशेष हेट-हटाओ ऐप उपलब्ध कराने की भी हमारी तैयारी है… ये सबकुछ केवल और केवल हमारे दानदाताओं और हमारे दोस्तों की मदद से ही संभव हो पा रहा है.

इस संविधान दिवस पर हम आपसे अनुरोध करते हैं कि दिल खोल कर हमारी सहायता करें और इस बेहतरी की लड़ाई में हमारे साथ आएं. ये एक ऐसी लड़ाई है जिसमें चाहे कुछ भी हो जाए, अंततः हमें जीतना ही होगा.

 

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