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CJP ने एक और महिला की भारतीय नागरिकता बहाल कराने में मदद की

असम में हाशिए पर बसर कर रहे तबक़े लगातार फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की चपेट में हैं. 2019 की NRC लिस्ट से 19 लाख लोगों के बेदख़ल होने के बाद यह चुनौती और भी विकराल हो गई है. इसी कड़ी में नागरिकता का हक़ हासिल करने के संघर्ष में CJP ने एक और कामयाबी दर्ज की है. असम के गोलपाड़ा ज़िले की अजीबुन नेसा ने FT से ‘संदिग्ध विदेशी’ का नोटिस जारी होने के बाद CJP की मदद से दोबारा भारतीय नागरिकता हासिल कर ली है. 

क़रीब 68 साल की बुज़ुर्ग महिला अजीबुन नेसा स्वर्गीय अब्दुल शेख़ और मोतीजान बेवा की पुत्री हैं. उनका ताल्लुक़ मुसलमानों के गोरिया समुदाय है जिनकी शिनाख़्त असम के मूल निवासी ‘खिलौंजिया समुदाय’ के तौर पर भी की जाती है. उनका जन्म और परवरिश असम के गोलपाड़ा ज़िले के मातिया रेवेन्यू सर्किल के दाबपारा नामक गांव में हुई है. 

हफ्ते दर हफ्ते, हर एक दिन, हमारी संस्था सिटिज़न्स फॉर पीस एण्ड जस्टिस (CJP) की असम टीम जिसमें सामुदायिक वॉलेन्टियर, जिला स्तर के वॉलेन्टियर संगठनकर्ता एवं वकील शामिल हैं, राज्य में नागरिकता से उपजे मानवीय संकट से त्रस्त सैंकड़ों व्यक्तियों व परिवारों को कानूनी सलाह, काउंसिलिंग एवं मुकदमे लड़ने को वकील मुहैया करा रही है। हमारे जमीनी स्तर पर किए काम ने यह सुनिश्चित किया है कि 12,00,000 लोगों ने NRC (2017-2019) की सूची में शामिल होने के लिए फॉर्म भरे व पिछले एक साल में ही हमने 52 लोगों को असम के कुख्यात बंदी शिविरों से छुड़वाया है। हमारी साहसी टीम हर महीने 72-96 परिवारों को कानूनी सलाह की मदद पहुंचा रही है। हमारी जिला स्तर की लीगल टीम महीने दर महीने 25 विदेशी ट्राइब्यूनल मुकदमों पर काम कर रही है। जमीन से जुटाए गए ये आँकड़े ही CJP को गुवाहाटी हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक अदालतों में इन लोगों की ओर से हस्तक्षेप करने में सहायता करते हैं। यह कार्य हमारे उद्देश्य में विश्वास रखने वाले आप जैसे नागरिकों की सहायता से ही संभव है। हमारा नारा है- सबके लिए बराबर अधिकार। #HelpCJPHelpAssam. हमें अपना सहियोग दें।

अजीबुन का मामला काफ़ी घुमावदार रहा है. सबसे पहले अजीबुन नेसा को गोलपाड़ा बॉर्डर पुलिस की तरफ़ से सबइंस्पेक्टर ने नोटिस जारी किया था. जांच-प्रक्रिया के दौरान काग़ज़ात जमा न करने के कारण वो संदेह के घेरे में थीं. केस की जटिलता को देखते हुए गोलापाड़ा बार्डर पुलिस के सबइंस्पेक्टर (SI) ने उनके मामले को गोलापाड़ा बॉर्डर पुलिस सुपरिटेंडेंट (SP) को सौंप दिया. पुलिस सुपरिटेंडेंट ने पेचीदगी से बचते हुए केस को IM(D)T ट्रिब्यूनल के हवाले कर दिया. आख़िर में ये सिलसिला गोलपाड़ा फ़ारेनेर्स ट्रिब्यूनल पर आकर ठहरा. यहां गोलापाड़ा ट्रिब्यूनल नंबर-2 ने उनके मामले की जांच-परख की और आख़िर में उनके नाम संदिग्ध विदेशी का नोटिस जारी किया गया. 

अजीबुन नेसा पर आरोप था कि उन्होंने 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 के बीच अवैध तरीक़े से भारत में प्रवेश किया है. दलील का कोई आधार न होने के बावजूद उन्हें कड़ी मशक़्क़त का सामना करना पड़ा. सरकारी रिकार्ड के मुताबिक़, अजीबुन, उनके पिता अब्दुल शेख़ और दादा रहमतुल्ला सबका जन्म गोलपाड़ा ज़िले के मातिया रेवेन्यू सर्किल के अंतर्गत दाबपारा गांव में हुआ था.

ग़रीबी के बोझ तले दबी और बुनियादी ज़रूरतों के लिए संघर्षरत अजीबुन ने CJP टीम के सामने अपनी मुश्किल पेश करते हुए कहा- मैं फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की तरफ़ से नोटिस मिलने के बाद से काफ़ी फ़िक्रमंद थी. यहां सबसे बड़े शरणार्थी कैंप हैं. लोगों ने मुझे बताया  कि बहुत सी बुज़ुर्ग महिलाएं यहां विभिन्न जेलों में क़ैद हैं और उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है. इस नोटिस ने मेरी नींदें उड़ा रखी थी!’ 

आभार जताते हुए उन्होंने कहा- 

फिर भी मुझे काफ़ी राहत मिली जब CJP ने क़ानूनी लड़ाई लड़ने में मेरी मदद की और हालात को गंभीरता से सुलझाने का प्रयास किया. 

सामाजिक तानेबाने और ग़रीबी के कारण अजीबुन नेसा का बचपन से अब तक का समय काफ़ी संघर्ष में गुज़रा. बुढ़ापे के दौर में FT का नोटिस उनके लिए बड़ी चुनौती थी. उनके पिता अब्दुल श़ेख़ ने अपनी पहली पत्नी की मौत के बाद अजीबुन की मां मोतीजान से दूसरा विवाह किया था. अभावों में पली- बढ़ी मोतीजान मानसिक तौर पर अस्वस्थ थी इसलिए गांव के लोग उन्हें बुरी पगली कहकर पुकारते थे. फिर सिर्फ़ 21 साल की उम्र में अजीबुन नेसा का विवाह असम के गोलपाड़ा ज़िले के मातिया पुलिस स्टेशन में स्थित बामुनपुरा गांव के तौसिफ़ शेख़ से कर दिया गया था. हालांकि उनके पास ट्रिब्यूनल के सामने पेश करने के लिए पर्याप्त काग़ज़ात थे लेकिन क़ानूनी दांव- पेंच समझना और अपना पक्ष रखना उनके लिए आसान नहीं था. CJP की लीगल टीम के वकीलों ने मुशकिल दौर में मामले की बागडोर संभाली और सुनवाई के दौरान उनके मामले की मज़बूत पैरवी की. 

फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में केस की सुनवाई के दौरान अजीबुन का लिखित बयान भी कारगार साबित हुआ. इसके अलावा उनके पिता, दादी और सौतेली मां के नामों के साथ 1951 NRC के दस्तावेज़ों ने भी रास्ता आसान किया. अजीबुन नेसा की तरफ़ से CJP ने 6 मई, 1954 की एक परचेज़ डीड और 29 नवंबर, 1961 की टी-स्टेट की खतौनी भी जमा की जिसमें उनके पिता का नाम दर्ज था. इसके अलावा 1966, 1971, 1979, 1985 और 1997 की वोटर लिस्ट ने भी उनके हक़ में ताक़तवर दस्तावेज़ थे. CJP ने क़रीब दो महीने उनके केस पर काम किया, कड़ी मेहनत रंग लाई और अजीबुन को भारतीय नागरिक घोषित कर दिया गया.

अजीबुन नेसा की जीत FT के ठंड़े बस्ते में पड़े ऐसे अनगिनत अनसुलझे मामलों के सामने मिसाल की तरह है जो नागरिकता के संकट से जन्मे हैं. बहरहाल संघर्ष के लंबे दौर के बाद हासिल जीत पर जब CJP ने उन्हें FT के निर्णय की कॉपी सौंपी तो वो काफ़ी ख़ुश थीं. CJP टीम का घर में मुस्कुराकर स्वागत करते हुए उन्होंने कहा-

अल्लाह तुम लोगों पर मेहरबान रहे! मैं दुआ करती हूं कि CJP बेसहारा लोगों के लिए लड़ना और मदद करना जारी रखें.’  

मौजूदा सरकार को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा- सरकार को संदिग्ध कहकर ग़रीब लोगों को तंग करना और उनपर मुक़दमा दर्ज करना बंद करना चाहिए!’ 

असम में फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने अजीबुन नेसा की तर्ज़ पर अनेक लोगों को बेबुनियाद हवाले देकर कटघरे में खड़ा किया है. CJP अपनी सक्रिय असम टीम के साथ उन्हें इस संकट से बाहर लाने की दिशा में लगातार काम कर रही है. मनोवैज्ञानिक और क़ानूनी मदद से हासिल सफलता की ऐसी कहानियां अंधेरे दौर में उम्मीद के जुगनू की तरह हमारा रास्ता रौशन कर रही हैं.     

FT के निर्णय की पूरी कॉपी यहां पढ़ें –

 

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