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CJP Impact- असम में दो विधवा औरतों को बांग्लादेशी के आरोप से मिला छुटकारा, नागरिकता प्रमाणित

जमीला खातून का नाता असम में बांग्लाभाषी मुसलमान समुदाय से है जबकि ऊषा वैश्य बांग्लाभाषी हिंदू तबक़े से ताल्लुक़ रखती हैं. CJP की असम टीम ने नागरिकता साबित करने के कठिन संघर्ष में इन दो विधवा औरतों को क़ानूनी और मनोवैज्ञानिक मदद मुहैय्या कराई है, जिसके नतीजे में उन्होंनें फ़ारेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigners’ Tribunal) के हताश करने वाले नोटिस से मुक्ति पाने में सफलता हासिल कर ली है. ये जीत उनकी निजी जीत होने के अलावा CJP और संवैधानिक मूल्यों की कामयाबी भी है. 

हाशिए पर जीवन बसर करने को मजबूर जमीला खातून के जीवन में तूफ़ान आ गया था जब फ़ारेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigners’ Tribunal)  ने उन्हें ‘संदिग्ध विदेशी’ का नोटिस जारी किया था. इस नोटिस के मुताबिक़ वो भारत में अवैध शरणार्थी के तौर पर रह रही थीं. चुनौती और हताशा के बीच CJP ने हक़ और इंसाफ़ की लड़ाई में उनकी अगुवाई की. 18 दिसंबर 2002 को CJP ने उन्हें फ़ैसले की कॉपी थमाई जिसके मुताबिक़ वो अब भारतीय नागरिक हैं. 2022 में ही बोंगाईगाँव गांव के फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigners’ Tribunal) ने बार्डर पुलिस के हाथों उन्हें नोटिस भेजकर नागरिकता साबित करने का फ़रमान जारी किया था. कठिन समय में CJP की लीगल टीम काग़ज दुरूस्त कराने से लेकर पेशी तक लगातार उनके साथ खड़ी थी. बुलंद हौसलों और कोशिशों के साथ आख़िर में ये साबित हो गया कि जमीला जॉयनल शेख़ औऱ मायजान बीबी की पुत्री हैं.  

हफ्ते दर हफ्ते, हर एक दिन, हमारी संस्था सिटिज़न्स फॉर पीस एण्ड जस्टिस (CJP) की असम टीम जिसमें सामुदायिक वॉलेन्टियर, जिला स्तर के वॉलेन्टियर संगठनकर्ता एवं वकील शामिल हैं, राज्य में नागरिकता से उपजे मानवीय संकट से त्रस्त सैंकड़ों व्यक्तियों व परिवारों को कानूनी सलाह, काउंसिलिंग एवं मुकदमे लड़ने को वकील मुहैया करा रही है। हमारे जमीनी स्तर पर किए काम ने यह सुनिश्चित किया है कि 12,00,000 लोगों ने NRC (2017-2019) की सूची में शामिल होने के लिए फॉर्म भरे व पिछले एक साल में ही हमने 52 लोगों को असम के कुख्यात बंदी शिविरों से छुड़वाया है। हमारी साहसी टीम हर महीने 72-96 परिवारों को कानूनी सलाह की मदद पहुंचा रही है। हमारी जिला स्तर की लीगल टीम महीने दर महीने 25 विदेशी ट्राइब्यूनल मुकदमों पर काम कर रही है। जमीन से जुटाए गए ये आँकड़े ही CJP को गुवाहाटी हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक अदालतों में इन लोगों की ओर से हस्तक्षेप करने में सहायता करते हैं। यह कार्य हमारे उद्देश्य में विश्वास रखने वाले आप जैसे नागरिकों की सहायता से ही संभव है। हमारा नारा है- सबके लिए बराबर अधिकार। #HelpCJPHelpAssam. हमें अपना सहियोग दें।

उनका जन्म 1950 में दक्षिण बिजनी के नगरझर गांव में हुआ था जो उस अविभाजित गोआलपाड़ा ज़िले का हिस्सा था और अब बोंगाईगाँव ज़िले में आता है. 1973 में उनका विवाह नयतारा बील के निवासी क़ुद्दुस अली से अविभाजित गोआलपाड़ा में हुआ था. विवाह के कुछ सालों बाद 1985 में  वो दोबारा गोआलपाड़ा ज़िले में स्थित अपने पैतृक गांव में बस गईं. फ़ारेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigners’ Tribunal) ने पेशी और सुनवाई के दौरान जमा काग़ज़ात की जांच की. CJP की लीगल टीम की तरफ़ से अब्दुर्रहीम ने जमीला का पक्ष रखा और पड़ताल के ज़रिए ये साबित हो गया कि जमीला के मातापिता का नाम 1965 की वोटर लिस्ट में दर्ज है. इस कड़ी में ट्रिब्यूनल ने उनकी ज़मीन की जमाबंदी कॉपी की भी शिनाख़्त की जिसमें जमीला का नामपट्टादारके तौर पर दर्ज है. पक्ष को मज़बूत बनाने में ग्रामपंचायत के सेक्रेट्री का पंचायत सर्टिफ़िकेट भी काफ़ी मददगार साबित हुआ जिससे जमीला स्पष्ट रूप से जॉयनल शेख़ की पुत्री प्रमाणित होती हैं

लम्बी कार्यवाही और थकाने वाले इंतज़ार के बाद हासिल जीत के साथ CJP ने भी मील का पत्थर क़ायम किया है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस त्रासदी ने उन्हें बुरी तरह प्रभावित किया है. अपने ही देश में अपने लोगों के बीच अकारण ही सवालिया निगाहों का शिकार बनना किसी अंधेरी कोठरी में रहने की याताना से कम नहीं है. एक विधवा औरत के लिए भारतीय सामाजिक बुनावट में गरिमा के साथ गुज़ारा करना आसान नहीं है, ऐसे में फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigners’ Tribunal) का एक बेबुनियाद नोटिस उसे मानसिक प्रताड़ना और आर्थिक बदहाली में धकेल देता है.   

इसी तर्ज पर बोंगाईगाँव की ऊषा वैश्य को भी फ़ारेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigners’ Tribunal) ने अपना निशाना बनाया. उनका जन्म कुसलाईगुड़ी गांव में हुआ था जो मौजूदा दौर में बोंगाईगाँव के मानिकपुर पुलिस स्टेशन में आता है. ये नोटिस भी बोंगाईगाँव के फ़ारेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigners’ Tribunal) ने बॉर्डर पुलिस के ज़रिए सौंपा था. उनके पिता आधार वैश्य भी इसी गांव के निवासी थे जिनका नाम 1966 से लेकर 2008 तक लगातार सक्रिय वोटर के तौर पर दर्ज है. आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग से ताल्लुक़ रखने वाली ऊषा का विवाह 1970 में गोपाल वैश्य से हुआ था. उनके जीवन पर असम आंदोलन का आघात भी गहरा है. आंदोलन के समय अराजक तत्वों ने उनकी छोटी सी झोंपड़ी और गृहस्थी को आग में फूंक दिया था. इस आग में ज़रूरी काग़ज़ात भी जलकर राख हो गए थे.  ऊषा कहती हैं- ‘सिवाए अपने जीवन के हम कुछ नहीं बचा पाए! हम चिल्ला रहे थे… आग! आग! आग!.. मैनें अपने बच्चों को उठाया और भाग गई! पीठ पर कुछ कपड़ों के साथ हमने यहां से दूर एक स्कूल में पनाह ली!’

आंदोलन के ख़तरनाक अनुभव को साझा करते हुए ऊषा आगे कहती हैं –

‘यहां से कुछ दूरी पर एक गांव है. पहले हम वहां शरण लेने के लिए भागे! सरकार की तरफ़ से राहत कैंप का इंतज़ाम होने से पहले कुछ स्थानीय मुसलमानों और शेख़ समुदाय के लोगों ने हमारे खाने-पीने का प्रबंध किया था!’ 

फ़िलहाल ऊषा वैश्य ने लिखित बयान, काग़जात औऱ सबूतों के साथ प्रमाणित कर लिया है कि वो जन्म से ही भारतीय नागरिकता की हक़दार हैं. ट्रिब्यूनल के सामने उन्होंने 1966 की वोटर लिस्ट जमा की है जिसमें उनके पिता का नाम साफ़ दर्ज है. इसके अलावा ट्रिब्यूनल के सदस्यों ने उनके राशन कार्ड की भी विधिवत जांच की है जिसमें ऊषा का पक्ष और भी मज़बूती से उभरकर सामने आया है. उनके केस को संभाल रहे CJP की लीगल टीम से वकील अब्दुर्हमान कहते हैं-

‘यह एक चुनौतीपूर्ण केस था. उनके पिता 1966 में वोटर थे. उनका विवाह 1970 में हुआ था लेकिन ट्रिब्यूनल के सामने पेश करने के लिए उनके पास समुचित दस्तावेज़ नहीं थे. बाद में CJP टीम की कड़ी मेहनत के एवज़ सरकारी राशन कार्ड एक ज़रिया बना जहां ऊषा वैश्य अपने पिता आधार वैश्य की पुत्री के तौर पर दर्ज हैं.’

18 दिसंबर 2022 को जब जब CJP टीम के दीवान अब्दुर्रहमान और नंदा घोष ने उन्हें निर्णय की कॉपी सौंपी तो वो काफ़ी ख़ुश थीं, प्रसन्नता से फूलकर उन्होंने कहा-  

‘मैं गोपाल (भगवान गोपाल) से प्रार्थना करती हूं कि वो तुम्हें सफल भविष्य दें! तुम्हारा संगठन तरक़्क़ी करे और बहुत से दूसरे लोगों की भी मदद करे!’ 

CJP की असम टीम ने नागरिकता संकट की हर चुनौती का डटकर मुक़ाबला किया है. संदिग्ध विदेशी, विदेशी और डी-वोटर तीनों तरह के मामले के निपटारे में हमने हाशिए पर जीवन बसर कर रहे लोगों का साथ दिया है. डिटेंशन कैंप में राहत-कार्य से लेकर घर-झोंपड़ों तक क़ानूनी और मनोवैज्ञानिक मदद पहुंचाकर CJP ने ढेरों प्रार्थनाएं बटोरी हैं. CJP की बुनियाद दरअसल इस विश्वास पर क़ायम है कि उम्मीद, हौसले, सच, जागरूकता और संघर्ष के साथ हर संकट का सामना किया जा सकता है.    

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