नागरिकता संकट के बीच सुकूर ने फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigners’ Tribunal) के सामने अपनी नागरिकता साबित कर ली है. उनकी कहानी ऐसे लोगों के लिए तसल्लीबख़्श है जो अभी संदिग्ध विदेशी (Suspected foreigner) या विदेशी का नोटिस मिलने के बाद संघर्षों से दो-चार हो रहे हैं. सुकूर का जन्म और परवरिश हिंदुस्तान में हुई है. वो स्वर्गीय अब्दुल जलील शेख़ और मारीजान नेसा के पुत्र हैं. 1981 में असम के बंगाईगांव ज़िले में मानिकपुर पुलिस स्टेशन के कवाड़ी नंबर -2 नामी गांव में जन्मे सुकूर ग़रीब और पिछड़े तबक़े से नाता रखते हैं. FT की तरफ़ से ‘संदिग्ध विदेशी’ का नोटिस जारी होने के बाद उनपर मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा था.
सुकूर के दादा काइया शेख़ और पिता का जन्म भी इसी गांव में हुआ था. वोटर के तौर पर भी वो सक्रिय रहे हैं लेकिन उनका नाम चुनाव अधिकारी की जांच के बाद ही इलेक्टोरल रोल (Electoral Roll) पर दर्ज हो सका है. माता-पिता की भारतीय नागरिकता के कारण उन्हें जन्म से भारतीय नागरिकता हासिल है. सुकुर अपने माता-पिता की इकलौती औलाद हैं और भारतीय संविधान और क़ानून के तहत नागरिक अधिकार और सुरक्षा के दायरे में आते हैं.
हफ्ते दर हफ्ते, हर एक दिन, हमारी संस्था सिटिज़न्स फॉर पीस एण्ड जस्टिस (CJP) की असम टीम जिसमें सामुदायिक वॉलेन्टियर, जिला स्तर के वॉलेन्टियर संगठनकर्ता एवं वकील शामिल हैं, राज्य में नागरिकता से उपजे मानवीय संकट से त्रस्त सैंकड़ों व्यक्तियों व परिवारों को कानूनी सलाह, काउंसिलिंग एवं मुकदमे लड़ने को वकील मुहैया करा रही है। हमारे जमीनी स्तर पर किए काम ने यह सुनिश्चित किया है कि 12,00,000 लोगों ने NRC (2017-2019) की सूची में शामिल होने के लिए फॉर्म भरे व पिछले एक साल में ही हमने 52 लोगों को असम के कुख्यात बंदी शिविरों से छुड़वाया है। हमारी साहसी टीम हर महीने 72-96 परिवारों को कानूनी सलाह की मदद पहुंचा रही है। हमारी जिला स्तर की लीगल टीम महीने दर महीने 25 विदेशी ट्राइब्यूनल मुकदमों पर काम कर रही है। जमीन से जुटाए गए ये आँकड़े ही CJP को गुवाहाटी हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक अदालतों में इन लोगों की ओर से हस्तक्षेप करने में सहायता करते हैं। यह कार्य हमारे उद्देश्य में विश्वास रखने वाले आप जैसे नागरिकों की सहायता से ही संभव है। हमारा नारा है- सबके लिए बराबर अधिकार। #HelpCJPHelpAssam. हमें अपना सहियोग दें।
सुकूर अली का परिवार और हालात
असम में नगरिकता-संकट ने हाशिए पर जीवन बसर कर रहे गरीब और कमज़ोर तबक़े को अपना पहला निशाना बनाया है. सुकूर अली का परिवार आर्थिक और सामाजिक तौर पर सबसे निचले पायदान पर है. दो वक्त की रोटी के इंतज़ाम के लिए वह दर-बदर ठोकर खाकर भीख मांगने को मजबूर हैं. सुकूर अली ने CJP को सूचित किया उन्हें फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigners’ Tribunal) ने नोटिस जारी कर संदिग्ध विदेशी घोषित किया है.
ग़ौरतलब है कि सुकूर का नाम NRC लिस्ट में पहले से दर्ज है. सुकुर अली मानसिक और शारिरिक रूप से अपंग हैं, उनकी 80 वर्षीय मां मारीजान बेगम भी अपने बेटे की ही तरह अपाहिज हैं हालांकि ठीक काग़ज़ात के अभाव में मानसिक हालात की तस्वीर साफ़ नहीं हो पाई है.
उनके परिवार में उनकी मां के अलावा उनकी पत्नी और दो संतान हैं. CJP टीम जब हालात का जायज़ा लेने के लिए घर पहुंची तो उनकी पत्नी जमीला खातून अपनी 2 साल की बेटी की देखभाल में व्यस्त थीं और उनकी माता धीमी आंच पर खाना बना रही थीं जबकि सुकूर अली रोज़ाना की तरह अपने परिवार का पेट पालने के लिए भीख के मक़सद से घर से बाहर थे. CJP टीम से मुख़ातिब होकर उनकी पत्नी जमीला ने कहा – ‘वह सुबह घर से चले गए थे, अभी तक वापस नहीं आए हैं.’ सुकूर अली के परिवार के लिए बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करना भी एक मुश्किल भरा काम है, ऐसे में फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल का नोटिस उनके लिए किसी क़हर से कम नहीं था. घर के हालात का जायज़ा लेने के क्रम में CJP की भेंट सुकूर अली के पड़ोसियों से भी हुई. इन मददगार पड़ोसियों ने भी सुकूर अली की ग़रीबी का हवाला देते हुए CJP से मामले की पैरवी की गुज़ारिश की.
CJP के सहारे से मिली राहत
CJP ने इस बेसहारा परिवार का सहारा बनकर उन्हें इस मुश्किल से उबारने का बीड़ा उठाया. फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigners’ Tribunal) ने नोटिस जारी करते हुए कहा था कि सुकूर अली ने पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से आकर शरण ली है. इस तरह संदिग्ध विदेशी के तमग़े से निजात पाना सुकूर के लिए एक नई मुसीबत बन गया.
ग़ौरतलब है कि इस मामले पर जांच अधिकारी ने जांच-प्रक्रिया का ज़िम्मेदारी से पालन नहीं किया. जांच अधिकारी ने विपक्ष की दलीलों पर एकतरफ़ा कारवाई करते हुए बिना पड़ताल के नोटिस जारी कर दिया. जांच- अधिकारी (Investigative Officer) ने सुकूर या विपक्ष में से किसी के घर का दौरा नहीं किया. जांच अधिकारी ने उनके ख़िलाफ़ बयान देने वालों से न तो कोई सवाल किया न ही उनकी नागरिकता का सबूत मांगा गया.
फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के सामने केस दायर करते हुए CJP ने उनकी जन्म से हासिल नागरिकता के पहलू पर ज़ोर दिया. FT के सामने सुकूर के मामले की पैरवी करते हुए CJP ने कहा कि –
‘इस केस रिकॉर्ड के साथ जुड़े गवाहों के नाम कुछ और नहीं बल्कि सिर्फ़ दूसरे पक्ष के ख़िलाफ़ ग़लत केस दर्ज करने की कोशिश हैं. ‘
लापरवाही का तानाशाही रवैय्या अख़्तियार करते हुए जांच अधिकारी ने विपक्ष को न तो हाज़िरी लगाने के लिए कहा और न ही किसी तरह के काग़ज़ात की मांग की और सुकूर अली की नागरिकता को कटघरे में खड़ा कर दिया गया.
क़ानूनी लड़ाई
सुकूर अली का नाम पहले से NRC लिस्ट में शामिल था. इसके अलावा सुकूर अली की माता का नाम 1966 की वोटर लिस्ट में मौजूद हैं और वो मतदाता भी हैं.
सुकूर की ज़मीन अलबत्ता पारिवारिक विवाद में किसी रिश्तेदार ने हड़प ली है. पड़ोसियों की गुज़ारिश के बावजूद वो किसी तरह से ज़मीन के काग़ज़ात की फ़ोटोकॉपी देने के लिए राज़ी नहीं थे. केस सुलझाते हुए CJP ने इस मामले में गांव वालों से भी सुकूर का साथ देने की अपील की. नतीजतन गांव के बहुत से लोगों ने केस सुलझाने के दौरान CJP से बात की. इसी सिलसिले में इलाक़े के जाने-माने रिटायर्ड टीचर रहीम अली ने सुकूर के मामले पर बोलते हुए कहा कि – ‘ये बेहद बदक़िस्मती की बात है, मैं आपकी हर मुमकिन मदद करने की कोशिश करूंगा.’
CJP टीम ने फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigners’ Tribunal) के सामने प्राथमिक स्तर की सुनवाई के दौरान जमानती मुहैय्या कराने में भी सुकूर अली मदद की. जमानती ने ट्रिब्यूनल में काग़ज़ात को ठीक क्रम में पेश किया. पति की मौत के बाद सुकूर की मां ने काग़ज़ात में कुछ जगहों पर उपनाम बदलकर ‘मारीजान नेसा’ से ‘मारीजान बेवा’ कर लिया था, CJP ने इन छोटी-छोटी पेचीदगियों से लड़ते हुए सुकूर के केस की पैरवी की. इस दौरान अनेक सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाकर दस्तावेज़ दुरुस्त कराने में भी CJP की भूमिका अहम रही.
जीत की क़ीमत-
सुकूर की भारतीय नागरिकता साबित होने से कुछ दिन पहले ही उनकी बीमार मां मारीजान बेवा का देहांत हो गया था. CJP ने जब सुकूर की पत्नी को ट्रिब्यूनल के फ़ैसले की कॉपी सौंपी तो वह भावुक थीं. उन्होंने कहा-
‘हमारा कोई नहीं है. मेरे शौहर जिस्मानी और ज़हनी तौर पर अपाहिज हैं. हालांकि उन्हें देखकर लगता है कि वो सेहतमंद हैं लेकिन वो न तो बातों को समान्य ढंग से समझ सकते हैं न ही ठीक ढंग से बात कर सकते हैं.’
‘उनके दिन भर भीख मांगने के बाद भी मैं और मेरे बच्चे ठीक ढंग से भोजन नहीं हासिल कर पाते हैं, मेरी सासू मां की हाल ही में मौत हो गई है. इस बीच सिर्फ़ अल्लाह ही जानता है कि इस केस की वजह से हमें किस तरह की फ़िक्र और मुश्किलों से दो-चार होना पड़ा है.’उन्होंने सहयोग करने के लिए CJP टीम का आभार जताते हुए कहा – ‘हमारा सहयोग करने के लिए आपका बेहद शुक्रिया.’
सुकूर के केस में कामयाबी का परचम लहराने के बावजूद भी नागरिकता संकट की चुनौतियां कम नहीं हुई हैं. ट्रिब्यूनल हर रोज़ हाशिए पर बसर कर रहे बेसहारा लोगों को बेबुनियाद आरोपों के कटघरे में खड़ा करके मुशकिल में डाल रहा है. उपनाम, भाषा और नकली गवाहियों के कारण अनगिनत लोगों की नागरिकता ख़तरों से जूझ रही है. CJP क़ानूनी और मनोवैज्ञानिक मदद के साथ नागरिकता के संघर्षों से दो-चार हो रहे लोगों के लिए लगातार सक्रिय है. चुनौतियां हावी हैं पर हौसला बाक़ी है.
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