गौ-संरक्षण के नाम पर हो रही हिंसा के कारण बहुत ही तेज़ी से सामाजिक सौहार्द बिगड़ता जा रहा है. ऐसे में देश के अलग अलग राज्यों में अलग अलग गौ-संरक्षण कानूनों की जानकारी होना आवश्यक है. कानून ने कथित तौर पर न्यायिक और संस्थागत, दोनों ही पृष्ठभूमियों के अंतर्गत गौ-रक्षक और हत्या कर देने वाली भीड़ (लिंच-मॉब्स) को निर्दोष साबित करने का रास्ता खोल कर एक तरह से हत्याओं को बढ़ावा दिया है.
गौ-हत्या के खिलाफ आये कानूनों ने स्थानीय पुलिस और “गौ-रक्षकों” के बीच एक तरीके का मेलजोल बनाने का काम किया है, जिसका अंजाम देशभर में गाय के नाम पर होने वाली हत्याएं हैं. जिन राज्यों में यह कानून जितना सख्त है, वहां भीड़ द्वारा हत्याओं के मामले उतने ही ज़्यादा हैं- 9 मामले हरियाणा में, 8 उत्तर प्रदेश में, 6 झारखण्ड में और 5 दिल्ली और गुजरात, दोनों में. ये हत्याएं देश भर की गाय के नाम पर हुई हत्याओं का 54% हैं. सिवाय कर्नाटक के जहाँ किसी अन्य राज्यों की अपक्षा में इतने सख्त कानून नहीं हैं परन्तु हत्याएं हुई हैं.
इन्हीं सब की कारणों से CJP गौ-रक्षा से सम्बंधित सभी अनुचित, कठोर, भेदभावपूर्ण और बुरे कानूनों को तत्काल निरस्त करने की मांग कर रहा है. गाय के नाम पर हो रही हिंसा की जांच के लिए हमारे अभियान का समर्थन करें तथा CJP के सदस्य बनें.
गौ-रक्षा के नाम पर, एक पूरी तरह से वैध आर्थिक गतिविधि को गंभीर अपराध बना दिया गया है, जैसे बीफ़ का परिवहन, बिक्री करना या गौ-मांस रखने को भी अपराध बना कर, बीफ़ खाने वाले लोगों को भी अपराधी घोषित किया जा रहा है. गौ-हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने वाले इन कानूनों ने बहुत ही भयंकर रूप से गौ-मांस का सेवन/खपत करने वालों को अपराधी बना दिया है.
गोमांस की खपत को प्रतिबंधित करने के लिए कोई संवैधानिक जनादेश नहीं है, न कि उसके परिवहन, खरीदने-बेचने पर
संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को शामिल किया गया जो राज्यों को “नस्लों को संरक्षित करने और सुधारने, और गायों और बछड़ों तथा वन्यजीवों के संरक्षण का आदेश देता है” तथा अपने दायरे तक सीमित है. पहली बात, यह केवल मवेशियों की हत्या से सम्बंधित है, न ही किसी और कृत्यों से सम्बंधित. दूसरा, इस तरह के रोकथाम का उद्देश्य केवल “कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक रूप से व्यवस्थित करना” है, न कि महज़ प्रतिबन्ध लगाना. पूर्ण रूप से गौ-हत्या और गौ-मांस के सेवन पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग हमेशा उच्च-जाति के हिन्दू वर्गों द्वारा ही की जाती है, जो कि विधानसभा में हुई बहस के दौरान ही खारिज कर दी गई थी.
यह अपराधीकरण एक क्रम के अनुसार किया जा रहा है. पहले बीफ के सेवन को आपराध बताया गया तथा बीफ खाने वालों को अपराधी के रूप में दिखाया जाने लगा. मुख्य रूप से मुसलमान, परन्तु दलित, ईसाई और आदिवासी वर्ग भी इससे अछूते नहीं रहे. अपने को ऊच्च जाती का मानने वाले गाय-भक्तों और बीफ़ खाने वाली जातियों के बीच भेदभाव और मतभेद की ऐतिहासिक विभाजन रेखा रही है.
मवेशियों के परिवहन का आपराधिकरण
झारखण्ड: बीफ़ के परिवहन, बिक्री या रखने और यहाँ तक कि अपमान और अपराध करने के प्रयास में न्यूनतम एक साल का और अधिकतम दस सालों तक का कठोर कारावास.
राजस्थान: “अपराध” पांच साल तक के कारावास का आह्वान करता है
उत्तर प्रदेश: बीफ/ मवेशियों के परिवहन या बिक्री में सात साल की सख्त सज़ा और केवल अपराध करने के प्रयास करने से साढ़े तीन साल तक की जेल हो सकती है.
उत्तराखंड: परिवहन में कम से कम तीन और अधिकतम सात साल का सख्त कारावास हो सकता है
गुजरात: परिवहन और यहां तक कि बीफ़ को रखने के लिए तीन साल तक कारावास दिया जाता है
हरियाणा: बीफ़ की बिक्री पर तीन साल और पांच साल तक न्यूनतम कठोर कारावास शामिल है
गोवा और पंजाब: बीफ़ के परिवहन और बिक्री के लिए दो साल का कारावास शामिल है
दिल्ली, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में यह अपराध एक साल के कारावास द्वारा दंडनीय है.
निजी तौर पर (गैर-कानूनी रूप से) बने गुट सशक्त हुए हैं
“… 2015 गाय संरक्षण कानूनों की धारा 16 और 17 (कई राज्यों में – नीचे दिए गए विस्तृत व्याख्या को पढ़ें) राज्य के कठोर मवेशी कानूनों को लागू करने में मदद करने के लिए निजी गुटों को सशक्त करती है. महाराष्ट्र और गुजरात में भी यही मामला है. हरियाणा गौ-सेवा आयोग को राज्य में गौ-रक्षा के कानून पर निगरानी रखने के लिए स्थापित किया गया और ऐसे सदस्यों को शामिल किया गया जिनमें गौ-रक्षा के नाम पर हमला करने के संगीन आरोप हैं.
मवेशी तस्करी की जांच के लिए STF तैनात
सितम्बर, 2016 में मीडिया रिपोर्टों द्वारा यह पता चला कि हरियाणा पुलिस ने राज्य भर के जिलों में एक स्पेशल टास्क फ़ोर्स (STF) का गठन किया था जो पश्चिमी और दक्षिणी उत्तर प्रदेश के आसपास हरियाणा राज्य की सीमाओं पर और कुछ प्रमुख राजमार्गों पर तैनात की गयी – जीटी रोड सोनीपत, पानीपत, करनाल और कुरुक्षेत्र; गुरुग्राम, मेवात और पवाल को जोड़ने वाला मानेसर-पलवाल एक्सप्रेसवे, मथुरा और आगरा को जोड़ने वाला NH-2; गुरुग्राम, रेवाड़ी और राजस्थान सीमा के कुछ हिस्सों को जोड़ने वाला NH-8 इत्यादि. गौ-रक्षा-दल द्वारा की हत्याओं के मामलों की सूचना इन्ही इलाकों आईं हैं.
धारा 4 – सक्षम प्राधिकारी की नियुक्ति: इस अधिनियम के तहत, सरकार इस अधिसूचना द्वारा किसी व्यक्ति विशेष या किसी गुट को स्थानीय क्षेत्र में देख-रेख और कानून लागू करवाने वाले सक्षम प्राधिकारी के र्रोप में नियुक्त कर सकती है.
निर्दोष साबित करने का बोझ
कई राज्यों में इस क़ानून के तहत किसी पर गैर-जमानती आरोप लगाते ही उसे दोषी करार कर दिया जाता है, और निर्दोष व्यक्ति पर ही अपने आप को निर्दोष साबित करने का बोझ मँढ़ दिया जाता है. जहां बीफ़ को रखना मना है, वहां भले ही बीफ़ कितनी ही कम मात्रा में रखा हो, चाहे वो बिक्री के लिए रखा हो या नहीं, उसे अपराध की श्रेणी में ही डाल दिया जाता है. गौ-हत्या को लेकर जितने भी प्रावधान हैं वे कठोर से अत्यंत कठोर बनाए जा रहे हैं.
बिना लिंचिंग वाले राज्य
अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, केरल और सिक्किम जैसे राज्य जहां इन गौ-हत्या को प्रतिबंधित करने के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है, वहां इस प्रकार की कोई लिंचिंग की घटना नहीं हुई है, और न ही इस प्रकार की घटना की कोई सूचना मिली है.
राज्य जहां निषेध (पूर्ण या आंशिक दोनों) केवल मवेशियों की हत्या के लिए ही सीमित है, वहां सूचित की गई घटनाओं की संख्या केवल 12 थी. तुलनात्मक रूप से, जिन राज्यों में 63 घटनाओं में से 84 मामले या 84% घटनाएं हुईं, वहां कटाई, परिवहन, बिक्री, खरीद और बीफ़ को रखना भी आपराधिक हैं.
इन कानूनों को सरल भाषा में यहाँ पढ़ा जा सकता है:
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