पिछले कुछ महीनो में पूरे देश में, एक सुनियोजित तरीके से सांप्रदायिक तनाव को बढाया गया है. हेट स्पीच से लेकर हिंसा और सरकारी तंत्र का या तो चुप बैठना या बुलडोज़र लेकर निकल जाना आम बात होता जा रहा है. राजनैतिक फायदे के लिए सांप्रदायिकता की आग को हवा दी जा रही है.
यह सारे घटनाक्रम आपको सांप्रदायिकताऔर नफरत की पूरी कड़ी बताते है की कैसे दि कश्मीर फाइल्स से लेकर धर्मसंसद, रामनवमी से लेकर हनुमान जयंती के जुलूसो तक की सारी पटकथा नफरत की बुनियाद पर ही रखी गयी है? एक खास समुदाय को निशाना बनाया गया, यहाँ तक की उनका नरसंहार किये जाने की बाते तक आम हो चली हो जैसे.
पिछले महीने देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई में भी नफरती कार्यक्रम चलाये जाने की शुरुआत हुई, मुद्दा बना अज़ान और लाउडस्पीकर, दो समुदायों के बीच क्यों हमेशा राजनेता ज़हर घोलने का काम करने पर उतारू है? पर यह शहर अपने इतिहास को नहीं भूलता, लोगों ने अहद किया की फिर यहाँ माहोल को ख़राब नहीं होने दिया जायेगा, मोहल्ला/ एकता कमिटियो को स्थापित और पुर्नजीवित किये जाने के उद्देश्य से नागरिको ने एक-दूसरे का हाथ और मजबूती से थामा.
पिछले महीने हुई सांप्रदायिक हिंसा को ध्यान में रखते हुए , फेक न्यूज़/अफवाहों और हिंसा से प्रेरित नफ़रत से भरे बयानों के ढेर के बीच, सीजेपी ने मोहल्ला समितियों को पुनः जीवित करने की जरुरत महसूस की। असल में, जब सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस (सीजेपी) के संस्थापक 90 के दशक से ही इस मुहीम को चलाने में आगे रहे और फिरसे उन्होंने ऐसी पहल की जाने की करने की जिम्मेदारी महसूस की.
मोहल्ला समितियां न केवल सांप्रदायिक हिंसा की रोकथाम करती है बल्कि हमारे अपने मोहल्ला, बस्तियों में शांति और सुरक्षा बनाए रखने में भी मदद करती हैं, जिससे अक्सर हाशिए पर रह रहें समूहों और उत्पीडन झेल रहे अल्पसंख्यकों की रक्षा होती है, साथ ही ऐसी समितियां गलत सूचना और अफवाहों के फैलने से रोकने में भी मुख्य भूमिका निभाते हैं। राजनीतिक ताकतों द्वारा चलाये जा रहे विभाजनकारी मॉडल को देखते हुए, ये मोहल्ला समितियां स्थानीय नागरिकों द्वारा संचालित एक प्रतिकार योजना की पेशकश करती हैं। आम जन मानस में आपसी प्रेम और विश्वास को बढाती है. हर समूह,वर्ग,समुदाय ऐसी समितियों के माध्यम से एक–दूसरे को जानता समझता है साथ ही एक–दूसरे की धार्मिक–सांकृतिक मान्यताओ से वाकिफ़ होता हैऔर एक-दूसरे की मान्यताओ के प्रति सम्मान करना सीखता है. सबसे जरुरी तथ्य यह है की ऐसी समितिया/ कमिटियाँ संवाद के रास्ते को खोलती है. दो समुदायों के बीच यह संवाद विभाजनकारी ताकतों को सबसे ज्यादा चोट करता है. और समाज में चैन, अमन,शांति स्थापित करता है.
सीजेपी की पहल
सीजेपी पिछले 30 सालो से साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ता आ रहा है, हालिया माहोल को देखते हुए हेट हटाओ की मुहीम को चलाये जाने को जरुरी समझा.
पूरे देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती नफ़रत और अपराधों ने चिंताएं बढ़ायी, तथाकथित धर्मसंसदों में भारत के मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार के आह्वान किया.
सीजेपी ने कई स्तरों पर हस्तक्षेप किया था, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), उत्तराखंड और मुंबई पुलिस आयुक्त को शिकायत दर्ज करते हुए, उनसे शिकायतों में नामित अपराधियों के खिलाफ आपराधिक कानून के तहत और अधिक कड़े प्रावधान लागू करने का आग्रह किया था. हम बहुसंख्यक समुदाय से अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफ़रत से भरे अपराधों पर अपनी चुप्पी तोड़ने का आग्रह करने वाली एक सार्वजनिक याचिका भी लेकर आए.
सीजेपी उन संगठन में से एक था, जिन्होंने मोहल्ला समितियों के जरिये नागरिक आंदोलन को फिर से जगाने में सक्रिय भूमिका निभाई, जहां प्रत्येक मोहल्लो के निवासियों के प्रतिनिधि पुलिस, अग्निशमन विभाग, नगरपालिका जैसे स्थानीय अधिकारियों के साथ संपर्क और संचार स्थापित करने और बनाए रखने में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। कर्नाटक और पुणे से इफ्तार और अंतर–धार्मिक सभा के विचार उधार लिए गये जो पूरे मुंबई में खूब फले–फूले।
सीजेपी की इस पहल के बाद सामूहिक प्रयास तेज हुए, भारतीय ईसाई महिला आंदोलन (ICWM) के सदस्यों के समर्थन से अप्रैल 16 को राम नवमी के जुलूसो से उपजी हिंसा और नफरत का प्रतिरोध करने के लिए 90 से अधिक प्रतिनिधियों में भागीदारी सुनिश्चित की जिसमे सामुदायिक समूहों, ट्रेड यूनियनों, नारीवादी समूहों, अल्पसंख्यक समूहों और मूल मोहल्ला कमेटी मूवमेंट ट्रस्ट (एमसीएमटी) जोकि शहर के कुछ हिस्सों में अभी भी सक्रिय है ने भाग लिया. आईपीएस सुरेश खोपड़े , मोहल्ला कमिटी के जनक , भिवंडी मॉडल के चलते ही जब मुंबई शहर में दंगे हो रहे थे तभी भिवंडी एकदम शांत था, वह इस मीटिंग में शामिल हुए और मुंबई के लिए उपयुक्त मोहल्ला कमिटियों के बनाये जाने की रूपरेखा में हमारा सहयोग कर रहे है.
इस मीटिंग में मुंबई पुलिस कमिश्नर संजय पांडे भी शामिल हुए, जिन्हें आज भी लोग 1992 के मुंबई दंगे में उनके धारावी में किये उत्कृष्ट काम के लिए याद करते है , उनका सन्देश स्पस्ट था की पुलिस आमजन के लिए जवाबदेह है, जनता की नौकर है, शांति बनाना और लोगो की जान बचाना उनका काम है, और आम जनता के पास अधिकार है और नागरिक अपने इन अधिकारों की मांग पुलिस से कभी भी कर सकते है.
इस मीटिंग का मकसद एकजुटता के साथ सभी अंतर–धार्मिक नागरिको को एकसाथ लाना, एक स्थायी नागरिक पहल जैसे मोहल्ला / एकता समितियां, फर्जी खबरों के खिलाफ प्रशिक्षण और सोशल मीडिया पर नफरत या हर दिन सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए अभियान, प्रेम भाईचारे और संवाद के लिए हर रोज कुछ घंटे समर्पित करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
निर्णायक कदम
इस पहल कि शुरुआत का श्रेय सेवानिवृत आईपीएस अधिकारी सुरेश खोपड़े जी को जाता है 1984 में भिवंडी के कमिश्नर के पद पर रहते हुए उन्होंने एक बड़ा दंगा देखा, दंगे की जाँच करने के दौरान उन्हें जो अनुभव हुआ उससे मोहल्ला कमिटी का जन्म हुआ , मूल्यता केंद्र में उन्हें यह समस्या महसूस हुई की दंगो में पडोसी ही पडोसी की जान का प्यासा बन गया था और दूसरा इसमें वह समूह शामिल थे जिसमे आए दिन विभिन्न मतभेदों के चलते एक दूसरे से लड़ते झगड़ते रहने की घटनाए आम थी. खोपड़े जी ने इन्ही मुद्दों को चिन्हित करके मोहल्ला कमिटी बनाये जाने पर काम करना शुरू किया पूरे भिवंडी में उनके द्वारा ऐसी 70 कमिटियों की जरुरत महसूस की गयी, यह पुरे टाउन को कवर कर रही थी जिसमे वह सभी सूमह एवं समुदाय के लोग बराबर शामिल थे जिनके यहाँ पर किसी न किस रूप में झगड़े फसाद होते ही थे, सुरेश जी ने उन सभी लोगो की उनकी बनायीं मोहल्ला कमिटी में शामिल किया था जिसमें हिन्दू–मुस्लिम ,दलित–ब्राह्मण , शिया–सुन्नी ऐसे लोग जो आपसी फसाद का कारण बने हुए थे. कमिटियों को बनाते समय यह खास ध्यान दिया गया था की समाज के सभी वर्गों को उसमे शामिल किया जाना जरुरी है, ताकि लोग एकदूसरे को भली–भाँति जान सके, जो पूर्वाग्रह थे वो आपस में मिलकर ख़तम हो सके, पुलिस और आम जनता के रिश्ते को दोस्ताना व्यवहार में पिरोया जा सके. इस पूरी प्रक्रिया का सकारात्मक असर यह हुआ की सब एकदूसरे से अच्छी तरह परिचित हो गए जो पूर्वाग्रह थे वो लगातार होते रहने वाली मीटिंग के जरिए दूर होने लगे, दुश्मनी की भावना अब आपसी जान-पहचान और दोस्ती में बदलने लगी. इसका नतीजा यह निकला की जब 1992 के दंगो में सब जल रहा था तब भिवंडी चेन और सुकून से आपसी भाईचारे को और आगे ले जा रहा था
16 अप्रैल की मीटिंग
खोपड़े जी की बात सुनने के बाद, परचम के संस्थापक सबा ने कहा कि पुरानी गलतियों को सुधारने के लिए अतीत में समितियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करना और सीखना महत्वपूर्ण है। इसी तरह, टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस की प्रोफेसर ब्रिनेल डिसूजा ने कहा कि विश्वविद्यालयों को भी ऐसे समूहों में शामिल होना चाहिए। हैदर इमाम ने इस सांप्रदायिक विभाजन को दूर करने के लिए पुलिस हस्तक्षेप का आह्वान किया। अधिवक्ता और पीयूसीएल सदस्य लारा जेसानी ने कहा कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को शामिल किया जाना चाहिए, जबकि पीयूसीएल के एक अन्य सदस्य और मानवाधिकार अधिवक्ता मिहिर देसाई ने सांप्रदायिक विभाजन को प्रोत्साहित करने वाले कर्मियों से बचने के लिए मोहल्ला समितियों की आवश्यकता पर बल दिया। मौलाना आजाद विचार मंच के अध्यक्ष हुसैन दलवई ने इन मोहल्ला समितियों में राजनेताओं को शामिल करने की आवश्यकता पर बात की। इसी तरह, माकपा नेता विवेक मोंटेरो ने कहा कि मोहल्ला समितियों को भी राजनीति में निवेश करना चाहिए और बाद में मेहनतकश मजदूरों को भी बैठकों में लाने का वादा किया।
जब आईपीएस अधिकारियों को “सांप्रदायिक सद्भाव” प्रशिक्षण देने की सिफारिश की गई, तो मुंबई पुलिस आयुक्त संजय पांडे ने लोगों से भारतीय आपराधिक कानून में कमियों को याद रखने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि संविधान अम्बेडकर द्वारा बनाया गया, जबकि आईपीसी और सीआरपीसी की धाराएं ब्रिटिश हुकूमत द्वारा बनाई गई थीं। धारा 151 और अन्य अभी भी ब्रिटिश समय के कानून हैं.
अन्य मीटिंग
पहली बैठक के बाद, सेतलवाड़, बॉम्बे कैथोलिक सभा (बीसीएस) के डॉल्फ़ी डिसूजा, कामगार संरक्षण सम्मान संघ (केएसएसएसएस) के अहमद और बिलाल खान ने 21 अप्रैल को मुलाकात की ताकि विभिन्न नागरिक पहलों को विकसित करने के लिए उठाए जा सकने वाले कदमों की रूपरेखा तैयार की जा सके। “हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि हमें एक साथ काम करना है, प्रयासों को बढ़ाना है, प्रतिस्थापित नहीं करना है, बल्कि अपने साझा अनुभवों के आधार पर एक–दूसरे के काम को मजबूत करना है। [मोहल्ला समितियों के] ऐसे काम करने वालों का समर्थन और पुनर्परिभाषित करके, हमें उनकी ताकत बढ़ानी चाहिए, ” सेतलवाड़ ने कहा।
इसी तरह, बिलाल खान ने समाज के सभी वर्गों विशेषकर मुंबई के सभी हिस्सों में असंगठित श्रमिकों के साथ काम करने की आवश्यकता पर बल दिया।
सर्व सहमती मीटिंग में पास हुए कुछ उसूल / सिद्धांत
मोहल्ला एकता कमिटी में जो भी कार्य होंगे ,सबकी बुनियाद में यह सिद्धांत होंगे. अभी सिर्फ यह एक रूप–रेखा है.
- भारतीय संविधान के मूल्यों संविधान को आधार मानते हुए मोहल्ला कमिटियो का काम किया जाना .
- शांति अहिंसा और अमन की भावना को साथ लेकर चलना मुख्य बिंदु होगा
- विवाद नहीं संवाद
- विवधता में एकता
- बंधुत्व
- सबकी आवाज ,पहचान,नुमाइंदगी प्रतिनिधित्व
यह सभी बिंदु मोहल्ला कमिटी के वो बिंदु होंगे जिनके साथ किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं किया जा सकता .
युवा समूहों, ट्रेड यूनियनों के साथ गहन बातचीत और प्रशिक्षण अब पूरे मुंबई में आयोजित किए जा रहे हैं। पूर्वाग्रह और नफरत से निपटने में तीन दशकों के अपने अनुभव के आधार पर, सीजेपी कई मॉड्यूलर हस्तक्षेपों को फिर से डिजाइन कर रहा है।
21 अप्रैल , चेम्बूर
इसके तुरंत बाद, संविधान संवर्धन समिति (चेंबूर) ने एक बैठक का आयोजन किया, जिसमें इस बात पर चर्चा की गई कि कैसे सत्तारूढ़ शासन ने एक विशेष समुदाय और उनके दैनिक धार्मिक अभ्यास को लक्षित किया है। लोगों ने अपने–अपने इलाकों को सांप्रदायिक आग से बचाने की बात जोर–शोर से की। वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और सदस्यों ने इस भेदभावपूर्ण भावना से युवाओं को बचाने की बात कही।
यहां भी मुबई पुलिस आयुक्त संजय पांडेय ने नागरिकों से जुड़कर शहर की एकता की रक्षा करने का आश्वासन दिया. “मुंबई पुलिस आम नागरिकों के साथ है और पूरी तरह से दंगाइयों के खिलाफ है। मैं आम लोगों को पूरी तरह से आश्वस्त करना चाहता हूं कि आम जनता को बिल्कुल भी डरना नहीं चाहिए.
22 अप्रैल की मीटिंग की अन्य तस्वीरे
22 अप्रैल बांद्रा पूर्व खेरनगर स्थित पुरषोत्तम हाई स्कूल में भी बैठक जारी रहीं। शांति बनाए रखने के लक्ष्य के साथ, कुछ मुस्लिम सदस्यों ने हाल के लाउडस्पीकर विवाद में मुसलमानों और मस्जिदों की भूमिका के बारे में भी बात की। हुसैन दलवई ने 26 बांद्रा पूर्व मस्जिदों के 80 ट्रस्टियों और निर्मल नगर थाने के अधिकारियों से बात की. ट्रस्टियों ने सर्वसम्मति से लाउडस्पीकरों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन करने का संकल्प लिया। यानी रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं करना।
बदले में, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने सभी को आश्वासन दिया कि सभी धर्मों के लोगों की रक्षा करेंगे यह देश सबका है यहाँ सब लोग साथ रहे है और आगे भी साथ रहेंगे। बैठक में शामिल सेतलवाड़ ने फोन के जरिए घरों में घुस रही नफरत के जवाब के तौर पर संविधान के मूल्यों को आत्मसात करने की बात कही.
हुसैन दलवई ने कहा, “हर एक व्यक्ति यहां से निकलकर मौलाना आजाद और गांधी बनकर जाएगा और दंगों को रोकने का संदेश फैलाएगा।“
25 मई, जुहू
कुछ दिनों बाद, 25 अप्रैल को सीजेपी ऑफिस, सीजेपी ने महाराष्ट्र ऐप–आधारित ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष प्रशांत सावरदेकर से मुलाकात की। ग्रेटर मुंबई और महाराष्ट्र में सक्रिय यूनियन बेहतर काम करने की स्थिति के लिए ओला और उबर कैब, स्विगी और जोमैटो ऐप के कर्मचारियों को संगठित कर रही है। सेतलवाड़ ने न केवल मोहल्ला समितियों में बल्कि नफरत की राजनीति से पैदा हुए विभाजन का मुकाबला करने में यूनियन कार्यकर्ताओं के महत्व के बारे में बात की। “जब तक समाज के सभी वर्ग शामिल नहीं होंगे, इसे [शांति के लिए संघर्ष] बनाए रखना उतना ही मुश्किल होगा। ] यूनियन के अध्यक्ष प्रशांत सावरदेकर यूनियन सभी समुदायों के होने को गर्व के साथ देखा और सबकी लडाई , सब साथ मिलकर लड़ने की बात कही.
1 मई, वडाला
अप्प बेस्ड ट्रांसपोट वर्कर यूनियन इफ्तार पार्टी की कुछ तस्वीरे
यूनियन द्वारा अपने यूनियन के सदस्यों के लिए 1 मई (श्रम दिवस) पर आयोजित एक इफ्तार पार्टी को सीजेपी द्वारा सक्रिय रूप से समर्थन दिया गया था। सावरदेकर ने कहा कि मुंबई में 10,000 से अधिक ओला और उबर ड्राइवर हैं, जिनमें से 70 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम ड्राइवर हैं और लगभग 350 ड्राइवर महिलाएं हैं। इनमें से कई सदस्य मजदूर दिवस पर इफ्तार मनाने आए थे।
मानखुर्द, भीम नगर ,युवा मंथन ग्रुप के साथ हुई मीटिंग
29 अप्रैल
मानखुर्द भीमनगर बस्ती
अंत में, 29 अप्रैल को युवा मंथन के साथ एक और बैठक हुई, जो जागरूकता अभियान चलाता है। संगठन के 30 से अधिक समूह मानखुर्द, भिवंडी और गोवंडी में पिछले चार वर्षों से काम कर रहे हैं।
युवा मंथन पिछले 4 वर्षो से युवाओं के साथ युवाओं के मुद्दे पर युवाओं के ही माध्यम से जागरूकता अभियान चलाता है.
युवा मंथन भीम नगर ग्रुप के युवाओं ने अपने ढंग से साम्प्रदायिकता पर कार्य किये जाने की बात की, उन्होंने बोला की जैसे सोशल मीडिया पर विडियो चलती है हम भी रील्स बनायेंगे जहा हिन्दू मुस्लिम प्रेम के उदाहरण होंगे, साथ ही इसपर एक नुक्कड़ नाटक बनायेंगे जिसको अपने बस्ती से लेकर दूसरी बस्तियों में दिखाने जायेंगे.अपनी बस्ती को ऐसा बनायेंगे की बाकि सभी बस्तिया भी हमारी बस्तियों जैसा होना चाहे इसके साथ साथ उन सभी मुद्दों पर अपनी बात कहेंगे जिन जरुरी मुद्दों को हिन्दू मुस्लिम की सांप्रदायिक राजनीती के पीछे छुपा दिए जा रहे है. जैसे की हमारी बस्ती को तोड़ने का नोटिस भेजा गया है हम इसके लिए लडाई लड़ रहे है. रोज़गार स्वास्थ और शिक्षा जैसे बुनियादी मुद्दे को उठाना नहीं छोड़ेंगे.
तीस्ता जी ने आपसी सहयोग और संवाद की बात को रखा, उनके अनुसार हम सबको साथ मिलके काम करने की जरुरत है , साथ ही अपनी बस्तियों में सभी लोगो के साथ आपसी संवाद किये जाना बहुत जरुरी है.
सद्भाव के आह्वान पर मुंबई का उत्साहजनक जवाब
मानखुर्द
सीजेपी की सक्रिय बैठकों और नफरत को दूर करने की पहल के जवाब में, मानखुर्द के निवासियों ने 28 अप्रैल को एक इफ्तार पार्टी मनाई। यह वही क्षेत्र है जहां रामनवमी के दौरान हिंदुत्व चरमपंथियों के हाथों हिंसा देखी गई थी।
मानखुर्द ट्रांजिट कैंप में पार्टी आयोजित करने के लिए एक युवा समुदाय ने एक साथ पैसा जमा किया। धर्मनिरपेक्ष एकता के प्रदर्शन के रूप में हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी एक साथ आए। इफ्तार के बाद लोगों ने साईं भंडारे में हिस्सा लिया। आयोजकों ने स्थानीय कार्यकर्ताओं और जरूरतमंदों की मदद करने वाले और इलाके की बुनियादी सुविधाओं के लिए लड़ने वाले लोगों को भी सम्मानित किया।
इफ्तार के लिए सभी धर्मों के लोग एक टेबल पर बैठे। इस घटना ने निवासियों के प्रचलित सह–अस्तित्व को भी चित्रित किया जो अक्सर रमज़ान के दौरान एक–दूसरे के घरों में जाते हैं। इसके अलावा, 16 अप्रैल की बैठक के दौरान, आयुक्त संजय पांडे ने वादा किया था कि मानखुर्द में फिर से कोई हिंसक घटना नहीं होगी। वह उनकी बात पर खरे उतरे.
लोग इस शांति और एकता को बनाए रखने में सफल होंगे। लेकिन जो हुआ उसका दुख हमेशा रहेगा । “हालांकि, कल हर मस्जिद वाली गलियों में पुलिस गश्त कर रही थी और लोग जश्न मना रहे थे, मुझे अच्छा लगा, ”कार्यकर्ता और हिंसा की गवाह रही जमीला बेगम ने कहा।
बांद्रा में सेंट पीटर्स चर्च ने एक इंटरफेथ इफ्तार पार्टी की तस्वीरे
बांद्रा
28 अप्रैल बांद्रा में सेंट पीटर्स चर्च ने एक इंटरफेथ इफ्तार पार्टी का आयोजन किया। प्रधान पुजारी के अनुसार, लक्ष्य आपसी सद्भाव को बढ़ाना और लक्षित हिंसा के खिलाफ मुस्लिम समुदाय के साथ खड़ा होना था
प्रधान पुजारी ने कहा, “हम सब एक साथ हैं, हर धर्म शांति और भाईचारे के साथ रहने की बात करता है, हमें मानवता पर भरोसा करना है और एक–दूसरे के साथ चलना है, एक–दूसरे को बेहतर तरीके से जानना है और सुख–दुख साझा करना है।“
पुरुषों और महिलाओं ने एक साथ एक विशेष प्रार्थना भी की। कुछ महिलाओं ने विभिन्न धर्मों के लोगों के साथ मिलकर नमाज अदा की। कई युवाओं ने भाईचारे का संदेश फैलाने के लिए शांति का संदेश भी लिखा।
मलाड में हुए इफ्तार की तस्वीरे
मलाड
अगले दिन, जॉइनिंग डॉट्स ने भी मलाड में एक इंटरफेथ इफ्तार का आयोजन किया।
नफरत नहीं सद्भाव फैलाओ
जमीनी स्तर पर व्यापक काम के अलावा, सीजेपी ने पैम्फलेट बनाने के लिए भी काम किया, जिसमें मोहल्ला समितियां बनाने, फेक न्यूज और नफरत से निपटने के तरीके, हर दिन सद्भाव के उदाहरणों को पकड़ने और फैलाने के तरीके पर रणनीति साझा की गई।
इसके अलावा, सीजेपी ने नफरत से लड़ने के तरीके के बारे में एक और पैम्फलेट प्रसारित किया। अपने नारे ‘हेट हर्ट्स, हार्मनी वर्क्स‘ पर काम करते हुए, सीजेपी ने अपनी लिखित सामग्री में अपनी प्रस्तावना में स्पष्ट भारतीय संवैधानिक दृष्टि की गारंटी की मांग की।
सीजेपी के अपने अनुभव के हिसाब से वह नफरत और अफवाहों की पहचान को छ:बिन्दुयो में रख के बताया है :
एक दूसरे में विश्वास करना, हेरफेर के प्रति सावधानी, संविधान में विश्वास,भय और क्रोध से मुक्त एक शांत मन, स्थानीय मोहल्ला समितियां, रोजमर्रा की सद्भाव की छवियों को कैप्चर करना।
इन सबके माध्यम से, सीजेपी का उद्देश्य, एक ही विचार व्यक्त करता है: नफरत को पहचाना जा सकता है और इसे रोका जा सकता है।
यहां यह बताया गया है कि आप कैसे मदद कर सकते हैं
सीजेपी नफरत को पहचानने और रोकने के लिए आम भारतीय पर निर्भर है। हम आपसे नीचे सूचीबद्ध दिए हमारे विभिन्न सामुदायिक संसाधनों का अध्ययन करने का आग्रह करते हैं ताकि प्रभावी कार्रवाई करने और सद्भाव की एक स्थायी संस्कृति लाने के लिए सही ज्ञान के साथ खुद को सशक्त बनाया जा सके।
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