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CJP की मदद से 78 वर्षीय बेवा फ़जीरन ने भारतीय नागरिकता साबित की

फ़जीरन NRC से उपजे नागरिकता संकट के कठिन दौर में संदिग्ध विदेशी (Suspected Foreigner) घोषित होने के बाद ज़िन्दगी के अंधेरे दौर में जीवन बसर कर रही थीं जब CJP ने उम्मीद की रौशनी बनकर उनके सामने क़ानूनी मदद की पेशकश की और आख़िर में उन्होंने अपना भारतीय होना साबित कर लिया. 

असम में जारी नागरिकता की लड़ाई के खाते में CJP रोज़ाना गहरे पेचीदा मामलों के तार सुलझाती है, इसी कड़ी में फ़जीरन के केस में हासिल जीत कई मायनों में अहम और हौसला बढ़ाने वाली है. फ़जीरन नेसा को फ़ारेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigner’s Tribunal) ने संदिग्ध विदेशी का नोटिस जारी किया गया था, फिर CJP ने मामले की बागडोर संभाली और अब उन्होंने ट्रिब्यूनल के सामने अपनी नागिरकता साबित कर ली है. 

हफ्ते दर हफ्ते, हर एक दिन, हमारी संस्था सिटिज़न्स फॉर पीस एण्ड जस्टिस (CJP) की असम टीम जिसमें सामुदायिक वॉलेन्टियर, जिला स्तर के वॉलेन्टियर संगठनकर्ता एवं वकील शामिल हैं, राज्य में नागरिकता से उपजे मानवीय संकट से त्रस्त सैंकड़ों व्यक्तियों व परिवारों को कानूनी सलाह, काउंसिलिंग एवं मुकदमे लड़ने को वकील मुहैया करा रही है। हमारे जमीनी स्तर पर किए काम ने यह सुनिश्चित किया है कि 12,00,000 लोगों ने NRC (2017-2019) की सूची में शामिल होने के लिए फॉर्म भरे व पिछले एक साल में ही हमने 52 लोगों को असम के कुख्यात बंदी शिविरों से छुड़वाया है। हमारी साहसी टीम हर महीने 72-96 परिवारों को कानूनी सलाह की मदद पहुंचा रही है। हमारी जिला स्तर की लीगल टीम महीने दर महीने 25 विदेशी ट्राइब्यूनल मुकदमों पर काम कर रही है। जमीन से जुटाए गए ये आँकड़े ही CJP को गुवाहाटी हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक अदालतों में इन लोगों की ओर से हस्तक्षेप करने में सहायता करते हैं। यह कार्य हमारे उद्देश्य में विश्वास रखने वाले आप जैसे नागरिकों की सहायता से ही संभव है। हमारा नारा है- सबके लिए बराबर अधिकार। #HelpCJPHelpAssam. हमें अपना सहियोग दें।

अविभाजित भारत में 1944 में जन्मी 78 साल की फ़ज़ीरन इस समय बेवा हैं. वो स्वर्गीय ढ़ांडा शेख़ व सबीरन नेसा की पुत्री हैं. उनके भाई सैय्यद अली और हाजरत अली भी अब दुनिया में नहीं हैं. 1962 में स्वर्गीय नासिर अली से उनका विवाह हुआ था. 1997 से वो असम के बांगेगांव ज़िले में मौजूद हपाचारा गांव में रहती हैं. साल 2022 के फ़रवरी महीने में उनकी पहले से ख़स्ताहाल ज़िन्दगी में एक नया तूफान आ गया जब बांगेगांव ज़िले के फ़ारेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigner’s Tribunal) नंबर 1 की बार्डर पुलिस ने उन्हें एक नोटिस सौंपकर संदिग्ध विदेशी क़रार कर दिया. बेसहारा बुज़ुर्ग फ़जीरन पहले से ही बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने की रोज़ाना की लड़ाई से जूझ रही थीं. दो वक़्त रोटी के इंतज़ाम में मशग़ूल फ़ज़ीरन के लिए काग़ज़ जुटा पाना और क़ानूनी दांवपेंच को समझ पाना बड़ी चुनौती थी. ऐसे में CJP की असम टीम ने उनकी हिम्मत टूटने नहीं दी और उन्हें पेशी के दौरान मज़बूत पक्ष रखने के लिए तैयार किया. इस तरह कड़े प्रयासों के एवज़ जीत की एक और बेमिसाल कहानी CJP के खाते में दर्ज हुई.`

फ़ज़ीरन का मामला अपनी तरह का कोई अकेला मामला नहीं है. इसी तर्ज़ पर फ़ारेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigner’s Tribunal) ने लखन दास को भी नोटिस जारी किया था जिन्होंने CJP की अगुवाई में बहरहाल अपनी नागरिकता साबित कर ली है. असम में फ़ारेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigner’s Tribunal)  ने ऐसे कई लोगों को संदिग्ध विदेशी और विदेशी के नोटिस के ज़रिए बेबुनियाद आरोपों का निशाना बनाया है. ऐसे नोटिस आर्थिक बोझ डालने के अलावा सामाजिक तौर पर भी हताश करने वाले होते हैं. बहुत बार बाढ़ या दूसरी प्राकृतिक आपदाओं में घर और संपत्ति खोने के बाद नागिरकता का संकट उन्हें दोहरी मुशकिल में डाल देता है.   

बता दें कि फ़जीरन पर 2004 में नागरिकता का केस दर्ज हुआ था, जिसके क़रीब 18 साल बाद उन्हें 2022 में नोटिस जारी किया गया. आरोपों के बेबुनियाद होने के अलावा यह केस फ़ारेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigner’s Tribunal) की लचर और लेटलतीफ़ कार्यशैली को भी कटघरे में रखता है. फ़जीरन नेसा ने 1984 में अपने पति को खो दिया था. 1979-1985 के असम आंदोलन (Assam Movement) की मार उनके लिए काफ़ी कड़वे तजुरबों का अध्याय है. इस दौरान अतिवादी गिरोहों ने उनका घर आग में जला दिया था और उन्हें अस्थाई कैंप में पनाह लेनी पड़ी. बेघर होने के बाद  दोबारा हालात सुधरने पर उन्होंने फिर अपने गांव मे घर बना लिया. 

ग़रीबी और बीमारी की मार के बीच एक लंबा अरसा गुज़ारने के बाद नागरिकता के संकट का शिकार होना उनके लिए एक हौसला पस्त करने वाली घटना थी. CJP की टीम से बात करते हुए उन्होंने कहा कि – ‘ये मेरे लिए बेहद दुखदायी था, बाबा!’  फज़ीरन ने लागातार वोटर के तौर पर अपनी मौजूदगी दर्ज की है. CJP की लीगल टीम के सदस्य देवन अब्दुर्ररहीम और सोहीदुर्ररहमान ने उनके काग़ज़ात की समीक्षा कर पक्ष रखने में पूरी मदद की. नागरिकता संकट (Citizenship Crisis) की मानसिक यातनाओं के बीच CJP की रौशनी में उन्होंने इस हालात का डटकर मुकाबला किया और 16 दिसंबर 2022 को उन्हें बांगेगांव फ़ॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने आख़िरकार भारतीय नागरिक घोषित कर दिया. 

फ़जीरन इस जीत से बेहद ख़ुश हैं. उन्होंने CJP के प्रयासों के लिए दिल खोलकर आभार जताया है. असम आंदोलन के ख़तरनाक दौर को याद करने के दौरान इंसानी जज़्बे के नाज़ुक लम्हे में CJP ने उनकी ख़ुशी और अतीत के दुख में शिरकत की. असम आंदोलन (Assam Movement) के दौर को याद करते हुए उन्होंने कहा कि –  ‘वो चुनाव का दिन था, हमने सुना कि पिछले कुछ दिनों में कुछ घर जलाए गए हैं. मेरे शौहर और कुछ रिश्तेदार दूसरी सुरक्षित जगहों पर जाना चाहते थे, लेकिन मैं धान की फ़सल और गायों की वजह से घर नहीं छेड़ना चाहती थी. लेकिन अगले ही दिन जब दंगाईयों नें इस इलाक़े के बहुत से घरों को जला दिया तो मुझे अपने और अपने बच्चों के जीवन के ख़ातिर घर से भागना पड़ा. गृहस्थी छूटी, भ्रम टूट गए. वहां से भागने के बाद क़रीब एक महीने हमने कैंप में गुज़ारे!’

जीवन के उन कठिन हालात को याद करते हुए फ़जीरन ने टीन की तरफ़ इशारा करते हुए कहा – ‘ये टीन की चादरें हैं. बाद में हमें सरकार की तरफ़ से 2,000 रूपए की 3 दर्जन टीन मिली लेकिन ये हमारे पुनर्वास के लिए काफ़ी नहीं थीं. जब हमने घर छोड़ा तो हमने 5-6 कमरे छोड़े, हमने सुरक्षित रखे गए धान और चावल की फसलें भी छोड़ीं, हमारे पास बहुत सारा फ़र्नीचर भी था, लेकिन एक ही झटके में सब ख़त्म हो गया. सबकुछ जलकर राख हो गया!’

ज़ाहिर है कि तिनका-तिनका जोड़कर तैयार किए गए घर को नफ़रत की आग में खो देने का दुख छोटा नहीं होता है. अपनों की मौत का दुख, बेघर होने का सदमा और फिर अपने ही देश में संदिग्ध विदेशी क़रार दिए जाने का हादसा! ख़तरनाक तजुरबों के समय को याद करते हुए फ़ज़ीरन कहती हैं –

‘उस समय बहुत से लोग मारे गए थे, हमारे इलाक़े में भी एक आदमी की नृशंस हत्या हुई थी. उसके मुंह में कपड़ा भरकर, रस्सियों से हाथ बांधकर उसके दोनों पैर काट दिए गए थे. जब इस साल फ़रवरी में मुझे नोटिस मिला तो इस अतीत की वजह से मैं डर गई थी.’ 

कुछ देर पसरी ख़ामोशी के बाद उन्होंने फिर वर्तमान का जायज़ा लिया और एक मीठी मुस्कान उनके चेहरे पर फैल गई – 

‘आज आप इस पेपर और इस दावे के साथ आए हैं कि अब कोई मुझे बांग्लादेशी नहीं कहेगा, मैं इस बात को लेकर काफ़ी तसल्ली में हूं.’ 

‘मैं अल्लाह से दुआ करूंगी कि वो तुमपर मेहरबान रहे बाबा! और तुम सब इसी तरह लोगों के लिए काम करना जारी रखो.’ 

फ़जीरन बी, लखन दास, नुरूलइस्लाम, मुमताज़ बेगम!  CJP ने तमाम चुनौतियों और अंधेरों के बीच असम के नागरिकता संकट में बेसहारा लोगों की हर मुमकिन तरीक़े से लगातार मदद की है. संघर्ष की कड़ी में CJP ने जीत की ऐसी अनेक कहानियां भी बटोरी हैं जिनसे आगे रास्ता साफ़ होता है- 

फ़ारेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigner’s Tribunal) के आदेश को यहां पढ़ा जा सकता है-

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