नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स (NRC) प्राधिकरण ने 26 जून को एक लाख से अधिक उन लोगों की सूची ज़ारी की, जिन्हें NRC से अपवर्जित किया गया है। जिसके अगले ही दिन, CJP वरिष्ठ वकीलों और पत्रकारों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ असम में ज़मीनी हालात का जायज़ा लेने पहुंची। साथ ही, CJP ने भारतीय मूल के नागरिकों की मदद करने के लिए रणनीति तैयार की,विशेष रूप से जो लोग हाशिए पर हैं और जो आर्थिक रूप से इतने कमज़ोर हैं, कि अपने दावों की यातनापूर्ण प्रक्रिया को झेलने, और FT के समक्ष सुनवाई को आगे बढ़ाने में भी असमर्थ हैं।
प्रतिनिधिमंडल में उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर देसाई, सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर, वरिष्ठ पत्रकार कल्पना शर्मा के साथ वरिष्ठ पत्रकार व CJP सचिव तीस्ता सेतलवाड़ भी शामिल थीं। टीम ने असम के कई प्रमुख बुद्धिजीवियों, वकीलों और नागरिक समाज के सदस्यों को भी अपने साथ शामिल किया। इनमें गौहाटी विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर अब्दुल मन्नान, अधिवक्ता मृण्मय दत्ता व शाइजुद्दीन अहमद और मानवाधिकार कार्यकर्ता मोतीउर रहमान, अब्दुर रहमान सिकदर और अब्दुल बातिन खंडुरकर भी थे।
NRC ड्राफ्ट में 40 लाख लोगों को शामिल नहीं किया गया था, जिनमें से अधिकतर लोग सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों से हैं। गुजरात में कानूनी सहायता प्रदान करने के अपने पुराने अनुभवों से प्रेरित होकर CJP ने अब NRC प्रभावित लोगों की मदद के लिए कदम उठाया है। CJP परिणाम उन्मुख वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की टीम के साथ यह सुनिश्चित करेगी कि बुरी तरह प्रभावित जिलों में से 18 जिलों के प्रभावित लोगों को अपना दावा दाखिल करते समय उचित अवसर प्राप्त हो सके। CJP के इस प्रयास में आपके योगदान से कानूनी टीम की लागत, यात्रा,प्रलेखीकरण और तकनीकी खर्चों का भुकतान किया जाएगा। कृप्या प्रभावित लोगों की मदद के लिए यहाँ योगदान करें।
हमारे दल ने राज्य के तीन सबसे प्रभावित जिलों, मोरीगांव, नागांव और चिरांग, का जायज़ा लिया और NRC व FT से प्रभावित कई लोगों से मुलाकात की। एक गाँव से दूसरे गाँव जाकर हमने उन डरे और सहमे लोगों से भी मुलाकात की, जिन्होंने बारिश से बचाने के लिए अपने कीमती दस्तावेज़ों प्लास्टिक की थैलियों में रखा था, जिनकी आँखों से दहशत झलक रही थी, वे हमें अपनी हालत के बारे में बताते हुए अक्सर फूट-फूट कर रोने लगते थे!
चिरांग जिले के बिजनी गाँव में, हमारी मुलाकात एक रिक्शा चालक, बिस्वनाथ दास से हुई, जिसकी 70 वर्षीय माँ, पारबोती, कोकराझार के डिटेंशन कैंप में 2साल 8 महीने से क़ैद हैं। जबकि चार महीनों में वे सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार रिहाई के पात्र होंगी, जिसके अनुसार अगर व्यक्ति तीन साल डिटेंशन कैंप में गुज़ार लेता है तो उसे रिहा कर दिया जाना चाहिए, परंतु बिस्वनाथ दास को उसकी माँ के बिगड़ते स्वास्थ को लेकर डर है कि रिहाई तक वे शायद जीवित ही न रहे। पारबोती को इसलिए विदेशी घोषित कर दिया गया था क्योंकि वे अपने आप को अपने पिता की पुत्री होने का सबूत नहीं जुटा पाई थीं, आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों की विवाहित महिलाओं के लिए यह एक आम समस्या है।
मोरीगांव के हंचारा गाँव में हमने ऐसी कई और महिलाओं से मुलाकात की। उन सभी के हालात बेहद खराब हैं – उनमें से कुछ गृहिणी हैं, कुछ दिहाड़ी मजदूर और कुछ लोगों के घरों में काम करती हैं, तो कुछ वृद्ध या विधवा भी हैं। इन महिलाओं के पास शायद ही कभी जन्म प्रमाण पत्र रहा होगा, क्योंकि इनमें से ज़्यादातर अस्पतालों में पैदा नहीं हुई हैं। वे अनपढ़ हैं और इसी कारण उनके पास स्कूल छोड़ने का प्रमाणपत्र भी नहीं है। इतना ही नहीं, कम उम्र में उनकी शादी कर दी जाती है और इसलिए जिस गाँव में पति का परिवार रहता है, वहीं के मतदाता सूची में उनका नाम दर्ज कर दिया जाता है। परंतु, पंचायत सचिव द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र एक ठोस सबूत के रूप में मान्य नहीं है, जिस कारण अपनी दावों की विश्वसनीयता साबित करने के लिए इन्हें अन्य मज़बूत दस्तावेज़ों की ज़रूरत पड़ती है।
हमने अपने दौरे में यह भी पाया कि नई निष्कासित सूची को लेकर लोगों में कई प्रकार के असमंजस हैं। हम एक ऐसे युवक से मिले जो सूची में नाम न आने के कारण निराश था, परंतु हमने उसे समझाया कि यह उन लोगों की सूची है, जिन्हें NRC से बाहर रखा गया है। यह समझने के बाद उसने यह महसूस किया कि वह कितना भाग्यशाली है कि उसका नाम 26 जून को प्रकाशित निष्कासित सूची में शामिल नहीं हुआ।
हमारे प्रतिनिधिमंडल ने इस बात पर मंथन किया कि असम में भारतीय मूल के नागरिकों की मदद के लिए सबसे बेहतर तरीके क्या हो सकते हैं? ताकि असम समझौते की मूल उद्देश्य को पूरा किया जा सके। जिसके बाद हम निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंचे:
- FT प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता है
- मीडिया को FT से जुड़े मामलों को कवर करने की अनुमति दी जानी चाहिए
- FT सुनवाई प्रक्रिया के दौरान एक सहायक को प्रभावित व्यक्ति के साथ उपस्थित होने और उसकी मदद करने के लिए अनुमति मिलनी चाहिए
- “अनुमानित पिता”, “अनुमानित भाई” आदि जैसे शब्दों से दूर रहने के लिए DNA टेस्ट का प्रावधान होना चाहिए
- सबूत पेश करने का ज़िम्मा प्रभावित व्यक्ति पर होने के बावजूद साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों को मानना चाहिए
- प्रशासन को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि इस प्रकार के कानूनी दस्तावेज़ केवल संपन्न परिवार वाले ही रख पाते हैं, आर्थिक रूप से कमज़ोर व अशिक्षित लोगों के लिए इन दस्तावेज़ों को पहचानना और उनके पास इनका होना अत्यंत कठिन होता है
CJP ने यह निर्णय लिया है कि 31 जुलाई 2019 को प्रकाशित होने वाली अंतिम NRC सूची से अपवर्जित हो सकने वाले लोगों के साथ साथ FT सुनवाई में शामिल होने वाले लोगों की मदद के लिए कानून की जानकारी रखने वालों की टीम तैयार करेगी। हमारा लक्ष्य NRC मसौदे से सबसे बुरी तरह प्रभावित जिलों में ज्यादा से ज्यादा संख्या में कानूनी सहायता मुहैया करते हुए लोगों की मदद करना है।
इस दौरे के बारे में बात करते हुए, अधिवक्ता मिहिर देसाई ने कहा, “हम मोरीगांव, नागांव और चिरांग में कई लोगों से मिले और उन सभी का कहना था – कि वे कई दशकों से अपने क्षेत्रों के निवासी हैं और फिर भी जिस आधार पर उन्हें ‘विदेशी’ घोषित किया गया है, वह आधार और NRC से संबंधित प्रक्रिया उन्हें अनुचित प्रतीत होती है। हमने FT के सदस्यों के अनुभवहीन होने के आरोपों को भी सुना है, जिन पर अधिक से अधिक लोगों को विदेशी घोषित करने का दबाव है। यह सब FT की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर संदेह का सवाल खड़ा करता है।“
अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने कहा, “हमारी यात्रा के दौरान हमने पाया कि आर्थिक रूप से कमज़ोर और हाशिए पर के लोगों को NRC से इसलिए निष्कासित किया गया है, क्योंकि उनके पास उचित दस्तावेज और अपने दावों को साबित करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है। लोगों में कानून और उससे जुड़ी प्रक्रियाओं को भी लेकर बहुत सीमित समझ है। साथ ही, हमने यह भी पाया कि,इसके कारण महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।”
CJP की सचिव तीस्ता सेतलवाड़ ने पूरे दौरे के अनुभव को सारांक्षित करते हुए कहा, “हमारा मानना है कि NRC केंद्राध्यक्षों और FT द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने की जल्दबाजी में निष्पक्ष दिशा-निर्देशों को अनदेखा किया जा रहा है, और वर्तमान प्रक्रिया के कारण हाशिए पर के लोगों व समुदाय के लिए भारी मानवीय संकट व बदहाली की स्थिती उत्पन्न हो गई है। अब यह जरूरी हो गया है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के मानवीय निर्देशों को सख्ती से लागू किया जाए। हम आशा करते हैं कि न्यायपालिका और कार्यपालिका, दोनों को असम में चल रहे व उभरते संकट की भयावहता का एहसास होगा और वे उचित रूप से कदम उठाएंगे।”
असम में CJP के राज्य कॉर्डिनेटर, ज़मेसर अली, इस दौरे पर कहते हैं, “यह एक महत्वपूर्ण यात्रा थी और इसने असम में प्रभावित लोगों को उम्मीद दी है। हम साल भर से अधिक समय से अथक प्रयास कर रहे हैं, और अब अधिक से अधिक संख्या में लोगों की सहायता के लिए अपनी रणनीति को और असरदार बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अब हम सभी लोकतांत्रिक और मानवाधिकार रक्षकों और संगठनों से अनुरोध करते हैं कि वे हमारी उम्मीद और इंसाफ़ की तलाश में शामिल हों।”
अनुवाद सौजन्य – साक्षी मिश्रा
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