असम का मानवीय संकट पूरे भारत में फैलने के लिए तैयार है। सत्ताधारी पार्टी लगातार धमकी दे रही है कि NRC को देशभर में लागू किया जाएगा। इसके जरिए सत्ताधारियों के मंसूबे भी साफ हो रहे हैं कि वे क्या करना चाहते हैं। इस आसन्न तबाही के प्रभावों को पहचानते हुए सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) और पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (PUCL) असम में नागरिकता संकट से प्रभावित लोगों के पक्ष में एकजुटता व्यक्त करने के लिए बैठकों की एक श्रृंखला आयोजित करने के लिए एक साथ आए हैं। इस तरह की पहली बैठक शुक्रवार 11 अक्टूबर को मुंबई में आयोजित की गई।
सीजेपी असम में दो साल से काम कर रही है। 1000 से अधिक स्वयंसेवकों, मोटिवेटर्स और सामुदायिक स्वयंसेवकों की हमारी टीम फाइनल ड्राफ्ट से बाहर रखे गए नागरिकों की मदद कर रही है। इसके साथ ही
NRC की यातनापूर्ण प्रक्रिया से लड़ने में उनकी मदद कर रही है।
इस एकजुटता बैठक में NRC और नागरिकता संकट से प्रभावित लोगों ने अपनी कहानियों को साझा किया।
सुब्रत डे के परिवार को, जिन्हें मई 2018 में गोलपारा हिरासत शिविर में रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाया गया था, ने अपनी दिल दहला देने वाली आपबीती सुनाई। सुब्रत की मां ओनिमा ने कहा, “मेरी बहू और मैं कपड़े के थैले बनाते और बेचते हैं। हमारी दैनिक कमाई 48 रुपये है। ”सुब्रत के बेटे बिकी जो अपने पिता की मृत्यु के समय 12 वीं कक्षा में पढ़ रहे थे, बैठक में मौजूद थे। एनआरसी की त्रासदी ने उन्हें अपनी शिक्षा छोड़ने और एक दर्जी के प्रशिक्षु के रूप में काम करने के लिए मजबूर कर दिया है।
हसन अली ने पिछले साल आत्महत्या का प्रयास किया था जब उनका नाम जुलाई 2018 में प्रकाशित एनआरसी के मसौदे से बाहर रखा गया था। हसन अली ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, “मेरे दोस्तों ने मुझे समय के साथ बचा लिया, लेकिन सीजेपी ने मुझमे एक उम्मीद जगाई। सीजेपी के अथक प्रयासों के कारण ही हमें पता चला कि नागरिक सेवा केंद्र के कर्मियों ने मेरे वैध दस्तावेजों को डी वोटर के दस्तावेजों के ढेर में डाल दिया था!”
गोपाल दास ने भी सीजेपी को धन्यवाद दिया कि पिछले साल ड्राफ्ट से हटाए जाने के बाद सीजेपी ने उनके पूरे परिवार को एनआरसी में शामिल करने में मदद की। उन्होंने बताया, “मेरे पिता और मेरी पत्नी के दादा के नाम एक समान हैं। अधिकारियों को लगा कि हम नकली दस्तावेजों का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन सीजेपी ने सुनवाई प्रक्रिया में हमारी मदद की, और अब मेरे पूरे परिवार को अंतिम एनआरसी में शामिल कर लिया है।”
एनआरसी के अंतिम ड्राफ्ट के प्रकाशन के बाद CJP की असम में नागरिकों की मदद करने के लिए अधिक ध्यान केंद्रित करने की योजना है। अब, हम फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल्स (FT) के समक्ष अपनी नागरिकता की रक्षा के लिए अंतिम NRC से छूटे हुए लोगों की मदद कर रहे हैं। यह मदद पैरालीगल्स को FT में जाने से पहले लोगों को प्रशिक्षित कर की जा रही है।
असम की स्थिति के बारे में बात करते हुए, सीजेपी सचिव तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा, “नागरिकता के मुद्दे पर एनआरसी के जरिए ‘डी’ वोटर या ‘संदिग्ध विदेशियों’ के रूप में देश के सामने मानवीय संकट उत्पन्न हुआ है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण भी है कि सरकार और नौकरशाही, ने किस तरह से अपने ही लोगों को पूरी तरह से धोखा दिया है। दस्तावेज़ की शक्ति का उपयोग किसी व्यक्ति के अस्तित्व को एक भारतीय या विदेशी के रूप में स्थापित करने के लिए किया जा रहा है। विदेशी ट्रिब्यूनल अनप्रोफेशनल तरीके से काम करता नजर आ रहा है। सबसे बुरी तरह प्रभावित लोग वे हैं जो ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित और हाशिए के समुदायों से हैं। इनमे से कई लोग बेघर हैं, और प्रभावित लोगों में 69 प्रतिशत महिलाएं हैं।”
PUCL एक प्रतिष्ठित मानवाधिकार संगठन है जो नागरिक अधिकारों की पहलों में सबसे आगे है। पीयूसीएल की महाराष्ट्र इकाई के संयोजक, वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर देसाई भी सीजेपी के अनुरोध पर असम गए थे ताकि लोगों की दुर्दशा को देख सकें और रचनात्मक व प्रभावी समाधान निकाल सकें। एडवोकेट देसाई ने जुलाई 2019 में CJP की “एम्पॉवरिंग असम” पहल के तहत 100 से अधिक पैरालीगल्स के प्रशिक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
नागरिकता के मुद्दे के बारे में बोलते हुए एडवोकेट देसाई ने कहा, “स्वतंत्रता से पहले किसी राष्ट्र या सल्तनत के निवासियों के कर्तव्य तो परिभाषित थे, परन्तु अधिकार केवल नाम मात्र ही थे। संविधान ने नागरिकों की हैसियत बदल कर, अधिकारों से सशक्त कर दिया, जिनके पास न केवल मतदान और मौलिक अधिकार हैं, बल्कि सभी कल्याणकारी योजनाओं तक उनकी पहुंच है। भारतीय नागरिकता कानून, जो मुख्य रूप से जन्म पर आधारित है, 1980 के दशक के बाद से विशेष रूप से असम के लिए अलग कानून में बदल गया है, जहां राज्य में प्रवेश की तारीख नागरिकता निर्धारित करती है।”
इस एकजुटता बैठक का समर्थन अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ (AIDWA), अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS), अखिल भारतीय मिल्ली परिषद, सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म, डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (DYFI), फोरम अगेंस्ट ऑप्रेसन ऑफ विमन (FAOW), मानवाधिकार कानून नेटवर्क (HRLN), भारतीय ईसाई महिला आंदोलन (ICWM), भारतीय सामाजिक कार्य मंच (INSAF), इंडियन मुस्लिम्स फॉर सेक्युलर डेमोक्रेसी (IMSD), जन स्वास्थ्य अभियान, जिमी फाउंडेशन, LABIA – ए क्वीर फेमिनिस्ट LBT कलेक्टिव, नेशनल एलायंस ऑफ़ पीपुल्स मूवमेंट्स (NAPM), नॉर्थ ईस्ट कलेक्टिव, पुलिस रिफॉर्म वॉच, रिवोल्यूशनरी वर्कर्स पार्टी ऑफ़ इंडिया (RWPI), सलोका (Saloka) व कई अन्य संगठनों ने किया।
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