असम में गहराते नागरिकता के संकट के बीच संघर्ष की लड़ाई में CJP ने एक और जीत दर्ज की है. CJP ने क़ानूनी मदद का सहारा देकर दलित हिंदीभाषी महिला शांति बसफोर को डिटेंशन कैंप की सलाखों से रिहा कराया है. कोकाराझार डिटेंशन कैंप में क़रीब 2 साल गुज़ारने के बाद आख़िरकार शांति बसफोर ने राहत ने सांस ली है और अब वो CJP की मदद से ज़िन्दगी की नए सिरे से शुरूआत कर रही हैं. पहले से ही समाज के हाशिए पर ज़िंदगी बसर कर रहे लोगों के लिए कैंप की सलाखों से आज़ाद होने के बाद का जीवन आसान नहीं है. ऐसे में ग़रीबी, मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों से लेकर सामाजिक भेदभाव से लड़ने तक CJP ने हर क़दम पर शांति बसफोर का साथ दिया है. CJP का मानना है कि नागरिकता की लड़ाई सिर्फ़ FT (Foreigners’ Tribunal) तक ही सीमित नहीं है बल्कि दरकिनार नागरिकों को सम्मान दिलाने के साथ दोबारा समाज में शामिल कराना भी इस कड़ी का हिस्सा है. साप्ताहिक दौरों और अनेक वर्कशॉप्स के ज़रिए CJP कैंप से रिहा लोगों के जीवन बसर के विकल्पों और मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग पर लगातार काम कर रही है.
अप्रैल, 2023 में CJP की असम टीम ने शांति बसफोर के घर का दौरा किया. इस दौरान अगोमनी पुलिस स्टेशन के साप्ताहिक दौरे के दौरान असम टीम के DVM (District Voluntary Motivator) हबीबुल बेपारी और कम्यूनिटी वालंटियर (Community Volunteer) अल्पोना सरकार और सद्दाम सरकार ने शांति बसफोर के हालात और सेहत का जायज़ा लिया. इससे पहले मार्च 2023 में भी उन्होंने कैंप से रिहा होने के बाद शांति बसफोर से मुलाक़ात की थी. इसी कड़ी में टीम ने स्थानीय बाज़ार में उनके हैंडीक्राफ़्ट कारोबार का भी जायजा लिया. FT (Foreigners’ Tribunal) की तरफ़ से बेफ़िक्र होने के बाद शांति ने आधार कार्ड बनवा लिया है और राशन कार्ड मुहैय्या कराने के सिलसिले में CJP से मदद मांगी. जवाब में असम टीम ने पूरे क़ानूनी सहयोग का वादा किया.
हफ्ते दर हफ्ते, हर एक दिन, हमारी संस्था सिटिज़न्स फॉर पीस एण्ड जस्टिस (CJP) की असम टीम जिसमें सामुदायिक वॉलेन्टियर, जिला स्तर के वॉलेन्टियर संगठनकर्ता एवं वकील शामिल हैं, राज्य में नागरिकता से उपजे मानवीय संकट से त्रस्त सैंकड़ों व्यक्तियों व परिवारों को कानूनी सलाह, काउंसिलिंग एवं मुकदमे लड़ने को वकील मुहैया करा रही है। हमारे जमीनी स्तर पर किए काम ने यह सुनिश्चित किया है कि 12,00,000 लोगों ने NRC (2017-2019) की सूची में शामिल होने के लिए फॉर्म भरे व पिछले एक साल में ही हमने 52 लोगों को असम के कुख्यात बंदी शिविरों से छुड़वाया है। हमारी साहसी टीम हर महीने 72-96 परिवारों को कानूनी सलाह की मदद पहुंचा रही है। हमारी जिला स्तर की लीगल टीम महीने दर महीने 25 विदेशी ट्राइब्यूनल मुकदमों पर काम कर रही है। जमीन से जुटाए गए ये आँकड़े ही CJP को गुवाहाटी हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जैसी संवैधानिक अदालतों में इन लोगों की ओर से हस्तक्षेप करने में सहायता करते हैं। यह कार्य हमारे उद्देश्य में विश्वास रखने वाले आप जैसे नागरिकों की सहायता से ही संभव है। हमारा नारा है- सबके लिए बराबर अधिकार। #HelpCJPHelpAssam. हमें अपना सहियोग दें।
आज असम में लाखों लोग नागरिकता से बेदख़ल होने के बाद सामाजिक रूप से दरकिनार कर दिए जाते हैं. क़ानूनी लड़ाई जीतने के बाद समाज में अपनी बुनियादी अस्मिता को दोबारा हासिल करना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है. इस तरह नागरिकता की लड़ाई सिर्फ़ काग़ज़ात पेश कर नागरिकता सबित करने तक सीमित नहीं है. अपने समुदाय में दोबारा जगह को तय करना भी इस कड़ी का अनंत हिस्सा है.
[CJP की असम टीम कोविड 19 लॉकडाउन के दौरान भी शांति बसफोर के मामले पर लगातार सक्रिय रही. इस संघर्ष की बदौलत ही शांति 2021 में अपनी नागरिकता साबित कराने में कामयाब हो सकी हैं.]
2021 डिटेंशन कैंप से शांति की रिहाई की ख़ुशी में गांव और आस-पड़ोस के अनेक लोग वहां आए. इस दौरान उनकी पड़ोसी इंदरानी दास ने CJP टीम से सवाल किया- “क्या लोगों की क़ीमत सिर्फ़ वोटर के तौर पर है?” मानवता की नाज़ुक सतह खुरचने वाले इस सवाल का कोई जवाब नहीं था लेकिन इससे FT (Foreigners’ Tribunal) के नोटिस के बेबुनियाद आधार ज़रूर कटघरे में आ जाते हैं.
ग़ौरतलब है कि शांति बसफोर धुबरी, असम में अगोमनी इलाक़े के रामरायकुटी गांव की निवासी हैं. उनका जन्म और परवरिश दोनों का वास्ता पैतृक गांव रामरायकुटी की मिट्टी से है. CJP के सीनियर कम्यूनिटी वॉलंटियर (Senior Community Volunteer) हुसैन अली ने उनके डिटेंशन कैंप जाने पर गहरा अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहा था कि वह उन्हें जन्म से जानते हैं और उनके माता-पिता से भी वो शुरूआत से जुड़े रहे हैं.
उनके मामले के मद्देनज़र CJP की असम टीम के स्टेट कोआर्डिनेटर (State Coordinator) नंदा घोष ने कहा-
“हमारी टीम इस परिवार की दुर्दशा से गहरे तौर पर विचलित है. शांति के डिटेंशन कैंप जाने के बाद उनका बेटा ये सदमा सहन न कर पाने की वजह से अपना दिमाग़ी संतुलन खो चुका था. इस घटना के बाद वह गुमशुदा है और अभी तक उसे खोजा नहीं जा सका है.”
FT (Foreigners’ Tribunal) की तरफ़ से ‘विदेशी’ घोषित होने के बाद शांति बसफोर ने कोकाराझार कैंप में 2 साल से अधिक वक़्त गुज़ारा है. नागरिकता साबित करने के लिए ज़रूरी सारे काग़ज़ात होने के बावजूद उन्हें इस नोटिस की भारी क़ीमत चुकानी पड़ी है. क़ानूनी दांव-पेंच, पैसों के अभाव, तय वकील की नाकामी और दोगलेपन से जूझने के बाद आख़िर CJP के हाथों केस की बागडोर आने पर उन्होंने राहत की सांस ली. CJP ने क़ाग़ज़ सही कराने से लेकर ट्रिब्यूनल में केस की सुनवाई और डिटेंशन कैंप की रिहाई तक हर क़दम पर उनका साथ दिया है. इसके नतीजे में जून 2021 में जद्दोजेहद के लंबे सिलसिले के बाद शांति बसफोर ने आख़िर इन सलाखों से आज़ादी हासिल कर ली है. असम की ज़मीन पर जारी CJP की हक़ और इंसाफ़ की लंबी लड़ाई में ये जीत एक मामला भर है.
CJP हाशिए पर जिंदगी के बुनियादी संघर्षों से दो- चार हो रहे लोगों के लिए नागरिकता के ख़तरनाक संकट की मार को बख़ूबी समझती है. नागरिकता के हक़ के लिए CJP का बहुआयामी संघर्ष हर मुमकिन तरीक़े से बेसहारा लोगों का सहारा बनकर लड़ने के लिए अडिग है.
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