गाँधी जी के नमक आंदोलन पर भी गर्मागर्म चर्चा होती जिसकी शुरुआत उन्ही बातों से होती जो उन्होंने अपने बड़ों को कहते हुए सुनी होती। एकाएक उनके नियमित मिलने की जगह और समय पर व्यवधान पैदा होने लगा। वक्त और हवा में कुछ और तैरने लगा था। जो अनिष्टसूचक था और नफरत तथा हिंसा की दहलीज तक ले जाता था। इससे पहले लाला के परिवार वालों ने उससे कभी नहीं पूछा था की तुम्हारे दोस्त कौन हैं? वे किस जगह मिलते हैं और वे आपस में क्या बाते करते हैं, वगैरह वगैरह। एक दिन जब दोनों मिले कबीर आंसू भरकर रोने लगा। अपने दोस्त से मिलने आते हुए रास्ते में उसे पांच छह लोगों ने रोका और उसे घूंसो से मारा था। उन घूंसो से कही ज्यादा उसे उन के शब्दों से चोट पहुंची। उन्होंने उसे डांट कर कहा साले तू अभी तक हमारी सड़कों पर घूमने की जुर्रत करता है जब की तू गद्दार है और पाकिस्तान की मांग करता हैं।
मैं कही जाना नहीं चाहता लाला। ग्यारह साल का कबीर बार बार कह रहा था.. क्या हम लोगों ने यह प्रतिज्ञा नहीं की थी की हम शादी करने तक एक साथ रहेंगे ? गुस्सा तो लाला को भी आ रहा था पर वह अपने दोस्त को भरसक दिलासा देता रहा। फिर वह छिपा हुआ और अंदर ही अंदर सुलगता तनाव एक दिन फुट पड़ा। वह आजादी आ रही थी जिस का सपना हर बूढ़े और बच्चे ने देखा था तथा जिसके लिए नेताओं ने भी संघर्ष किया था। पर उसके साथ ही आया था कुर नरसंहार। कबीर और उसके परिवार वाले डरे हुए थे। वायसराय के महल में विभाजन की रेखा जैसे खून से खींच दी गयी थी और वह अंबाला से गुजरती थी जिस के कारण इस क्षेत्र में रहने वाले मुस्लिमों को चाहें वे इसे चाहें या न चाहें पाकिस्तान नामक एक नये देश में जाकर रहना था।
कबीर के परिवार को भी यह जगह छोड़ने की इच्छा नहीं थी। कबीर और लाला डरे हुए थे और उनके दिन टूट रहे थे, की ऐसे हालात और घटनाओं के कारण जिन पर उनका वश नहीं था। एक अंधेरी रात को लाला ने अपने दरवाजे पर किसी की दस्तक सुनी। कबीर था कांपता हुआ। वह डर कर अपने दोस्त के पास सुरक्षा और पनाह लेने आया था। कबीर के घर पर लगातार हमले हो रहे थे, धमकिया दी जा रही थी और उसके परिवार वालो को लगने लगा था की उनकी जिंदगी और उनकी बेटियों की अस्मत पर अब खतरा मंडरा रहा हैं। कबीर ने याचना भरी निगाह से लाला की तरफ देखा एक क्षण तक चुप रहने के बाद लाला कुछ तय कर के अपने पिता के पलंग की तरफ गया और शांति से उसने अपनी बात उनके सामने रखी। उसे डर था की वे उसकी बात सुन के गुस्से से आगबबूला हो उठेंगे पर वे चुप रहे। काफी देर के बाद उन्होंने अपने बेटे की तरफ देखा। फिर उन्होंने सिर्फ सिर हिला दिया।
लाला के घर में कबीर के परिवार ने दिल दहलाने वाली तीन रातें और चार दिन बिताये। हवा में जहर बढ़ता जा रहा था और खतरा अब बचाने वालों को भी लगने लगा था। दोनों परिवारों के बुजुर्गों की बीच चौथी रात लंबी बहस हुई जिसके बाद कबीर के घर वालों ने अपना सब साज-सामान बांध लिया। तीन ट्रंकों और छह बंडलों के साथ उन्हें कबीर का बड़ा भाई स्टेशन छोड़ आया। पर इससे पहले लाला और कबीर को अकेले में बात करने को पंद्रह मिनट दिए गए। पर उन के मुँह से एक भी शब्द नहीं निकला। बस दोनों दोस्त एक दूसरे का हाथ कस कर थामे रहे। आखिर बचा ही क्या था अब कहने को?
प्रश्न (१) आपको जो कहानी सुनाई गयी आपको उस का क्या मकसद लगता हैं ?
प्रश्न (२) यह बातें क्यों उभरती हैं ?
प्रश्न (३) उस समय वह भारत के किस कोने में घटी ?
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