जानिए शिक्षण प्रणाली की एक अनूठी पहल ‘ख़ोज’

पिछले तीन दशकों से लोगों के बीच गलतफहमी और अलगाव ज़्यादा बढ़ गया है। जिसकी वजह से हमारे कस्बों, शहरों और गाँवों में हिंसा फैल गयी है। समुदायों के बीच बच्चे सबसे ज़्यादा पीड़ित हुए हैं। युवा मन इस हिंसा की वास्तविकता को देखते हुए बड़ा हुआ है। मीडिया, ख़ासतौर से टेलीविजन के माध्यम से अस्वाभाविक रूप से हिंसा की तस्वीर को हमारे जीवन में परोस रहा है। हम टेलीविजन देखते वक़्त हिंसा के शब्दों और तस्वीरों को देखने के लिए मजबूर होते हैं। उसके प्रभाव से दूसरे लोगों के बारे में हमारा नतीजा और हमारी सोच बदल जाती है। दिमाग पर बढ़ते इन टकरावों के असर से चिंतित किसी भी ज़िम्मेदार वयस्क या शिक्षा प्रणाली के लिए यह महत्वपूर्ण हो गया है कि हम अपने युवाओं को रचनात्मक रूप से इन स्थितियों का सामना करने और उससे निपटने के लिए तैयार करें।

पिछले 26 वर्षों में हमने ‘खोज’ में यही प्रयास किया है। हम कक्षाओं और स्कूलों में एक संवेदनशील और रचनात्मक रूप से डिज़ाइन किया गया पाठ्यक्रम पढ़ाते हैं जो प्रश्नों के माध्यम से मुद्दों से अवगत कराता है। यह युवाओं को, उनके शिक्षकों और माता-पिता को उन मुद्दों का सामना करने के प्रति सजग करता है। हमने स्थान और परिस्थिति की सीमा में आगे बढ़ने के लिए असहमति और पूछताछ के साथ युवा दिमागों को खोलने की कोशिश की है। जो अपने आसपास के मसलों के बारे में सोचते हैं और एक दूसरे से साझा करते हैं। युवाओं और वयस्कों के दिमागी खुराक के लिए यह बेहद ख़ास प्रक्रिया है।

खोज शिक्षा के क्षेत्र में एक अनूठी पहल है जो बच्चों को विविधताशांति और सद्भाव को समझने का अवसर देती है। हम छात्रों को ज्ञान और निर्णय लेने के प्रति उनके दृष्टिकोण में आलोचनात्मक होना सिखाते हैं। हम बच्चों को उनके पाठ्यक्रम की संकीर्ण सीमाओं से परे जाने के लिए प्रोत्साहित करते हैंऔर कक्षा के भीतर सीखने और साझा करने के खुले वातावरण को बढ़ावा देते हैं। हमारी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुखद बनाने के लिए हम बहुलवाद और समावेशी होने पर ज़ोर देते है। इसीलिए इसके लिए लड़ा जाना जरुरी है। खोज को भारत भर में सभी वर्गों के छात्रों तक ले जाने में मदद करने के लिए अभी डोनेट करें। आपका सहयोग ख़ोज प्रोग्राम को अधिक से अधिक बच्चों और स्कूलों तक पहुँचने में मदद करेगा.

चित्रों, पेंटिंग, रंग और रेखाचित्रों के माध्यम से वास्तविक भावनाओं (यहाँ तक कि नाराजगी) को व्यक्त किया जाता हैं।

खोज प्रोग्राम के अंतगर्त सेल्फ पोट्रेट बनाते हुए बच्चों की तस्वीरें यहाँ देख सकते है

खोज से हमारा उद्देश्य सामाजिक अध्ययन के शिक्षण के लिए एक वैकल्पिक नज़रिया विकसित करना और साथ ही इसकी पाठ्य-सामग्री को मौलिक रूप से बदलना है। हम चर्चा के विषयों के बारे में बताते हैं इससे बच्चे उत्सुक होते हैं और शिक्षक से प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित होते हैं

हमारा तरीका

  • रचनात्मक तरीके से बच्चे की भावनात्मक दुनिया से जुड़ना।

  • सामाजिक अध्ययन और इतिहास शिक्षण के लिए नई (बहु-आयामी), इंटरैक्टिव शिक्षण तकनीकों का उपयोग करना।

  • छात्रों को प्रश्न पूछने और पूछताछ करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु विवेकपूर्ण और रचनात्मक अभ्यासों का उपयोग करना, सैद्धांतिक ज्ञान की उपेक्षा न करते हुए व्यावहारिक दिशा-निर्देशों को प्रोत्साहित करना।

  • खोज ख़बर के माध्यम से हम मीडिया अध्ययन और मीडिया क्रिटिक्स (आलोचना) की अवधारणा के बारे में बताना। वाद-संवाद के रूप में इस योग्यता (स्किल) को सब में विकसित करना आवश्यक है।

  • व्यक्तिगत, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में टकराव वाले मुद्दों पर जोर देना और उस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए टकराव से संबंधित शिक्षा का दिशानिर्देश करना।

  • इसके पीछे का विचार यह है कि हम अपनी वर्तमान सामाजिक वास्तविकताओं को देखते हुए टकराव के समाधान के लिए युवाओं को ताकत और रणनीति प्रदान करें।

खोज की राह

  • युवाओं को सिखाना कि कैसे सोचना चाहिए, क्या नहीं सोचना चाहिए।

  • टकराव के मसलों को वाद-विवाद या संवाद में बदलना।

हमारे पाठ्यक्रम में भौतिक, ऐतिहासिक और रचनात्मक रूप से दक्षिण एशियाई क्षेत्र का मुद्दा हमेशा से प्रमुख रहा है. हम इस बात को मसहूस करते हैं कि देश के अच्छे स्कूल भारत के पड़ोसियों, दक्षिण एशिया के देशों के बारे में बहुत कम जानकारी देते हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, बर्मा, अफगानिस्तान, हमारे बच्चे इन देशों के बारे में क्या जानते हैं?

ऐतिहासिक प्रष्टभूमि

खोज, की शुरुआत 1994 में बॉम्बे के एक दर्दनाक ऐतिहासिक दौर के बाद हुई थी। उसके बाद खोज प्रोजेक्ट महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश और दिल्ली के छह दर्जन से अधिक स्कूलों में फैल गया। खोज ने अभी तक 56 हज़ार बच्चों तक अपनी पहुँच बनायी जिसमे 850 स्कूल और 1300 शिक्षक शामिल है.

देश की धर्मनिरपेक्ष बहुलतावादी संस्कृति के लिए लिए खोज शिक्षण प्रोग्राम अपने आप में एक अनोखा शिक्षण प्रोग्राम है जो 10 से 13 साल के कक्षा पांचवी से सातवी तक के बच्चों को एक व्यस्क इन्सान की तरह सोचने को तैयार करे ताकि संवैधानिक मूल्यों को भी बच्चे समझ सके और अपने जीवन में उसे उतार सके.

खोज की विषय-वस्तु

सत्र 1 – युवाओं के दुनिया की खोज।

सत्र 2 –खुद की तस्वीर से समस्या-समाधान।

सत्र 3 –मेरे बाल अधिकार।

सत्र 4 –मानवीय वेदना।

सत्र 5 – समानता की समझ।

सत्र 6 –अपने शहर और गाँव को जानो।

सत्र 7 –अतीत, वर्तमान और भविष्य।

सत्र 8 – नागरिक शास्त्र को समझना।

सत्र 9 –मानवीय गरिमा।

सत्र 10 – मेरा ईश्वर।

सत्र 11 – विश्व के धर्म।

सत्र 12 – हमारे विश्वासों की एक झलक।

सत्र 13-14- न्याय और समानता।

खोज की शुरुआत जिन भी कारणों से हुए उसके केन्द्र में मूलतया यही एक बात रही की कैसे भी आने वाली पीढ़ी के लिए हम ऐसा समाज न बनाये. हम एक-दूसरे की बातो से अनजान न रहे. हम यानि इस देश में मौजूद सभी धार्मिक मान्यतायों को मानने वाले लोग एक-दूसरे के पडोसी एक-दूसरे के साथी कामगार.

ऐसी सभी मान्यताये सभी धारणाएं जो हमे एक-दूसरे साथ रहते हुए भी एक-दूसरे पर संदेह करने की वजह बने हमे उन्हें कम से कम आने वाली पीढ़ियों के अन्दर नहीं दाखिल होने देना  या बच्चों के अन्दर ऐसी भावना विकसित होने से पहले ही उसकी रोकथाम की जाये.

खोज शिक्षण प्रोग्राम की अनूठी फिल्ड ट्रिप

इसी को ध्यान में रखते हुए हमने खोज शिक्षण प्रोग्राम में एक ऐसी अनोखी फिल्ड ट्रिप भी तैयार की है जिसमे सभी स्कूल बच्चों को किसी ऐतिहासिक इमारत या किसी म्यूजियम के भ्रमण पर ले जाने की जगह हम उन्हें एक साथ मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा, गिरजा घर ले जाते है और सभी बच्चों को वहा सवाल पूछने की पूरी छुट होती है. इस ट्रिप का सीधा सा उद्देश्य यही है की वह सिर्फ अपने धर्म और उससे जुडी मान्यतायों को ही न जाने, बल्कि अपने सहपाठी जो की उसके साथ उसकी क्लास में पढता है लेकिन उसका धर्म अलग है. वह एक-दूसरे के धार्मिक मामलो को भी जाने और ऐसा करते हुए एक-दूसरे के साथ आम जीवन में सहज हो सके. दूर कही से आई अफवाह या टीवी, मोबाइल फोन के जरिये पहुँच रही गलत जानकारियों का शिकार न हो , एकदूसरे के प्रति बन चुकी गलत धारणाओं से खुद को दूर कर सके और यह सब उनके जीवन के शुरुआती सालो में हो जाने से वह आगे के जीवन में एक सही साथी, दोस्त, पडोसी और बेहतर नागरिक के तौर पर उभरें.

खोज फिल्ड ट्रिप: मंदिर,मस्जिद, गुरूद्वारे गिरजाघर पर जाते बच्चों की कुछ तस्वीरें

ऊपर दी गयी खोज की विषय वस्तु के माध्यम से विद्यालयों में काम करते हुए हम ऐसे नागरिक समाज की नीव रखना चाहते है जो अपने से भिन्न समुदायों न केवल बर्दास्त कर सके बल्कि उन्हें स्वीकार कर सके और  सहिष्णु हो सके.

खोज के माध्यम से हमने कैलंडर के सभी जरुरी दिनों को इसलिए ही चिन्हित कर रखा है ताकि उसके बहाने से हम बच्चों को हमारे इतिहास के बारें में साथ ही साथ अपने बुजुर्गो के बारे में बता सके.

मुंबई महानगर पालिका के एक स्कूल में गाँधी जयंती मानते हुए बच्चे

YouTube player

हम संघर्षो से हासिल अधिकारों को पाने की प्रक्रिया के बारे में उन्हें अवगत करा सके. कि कैसे अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस अस्तित्व में आया, अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस का सन्दर्भ क्या है? इसके ऐतिहासिक और सामाजिक, राजनैतिक मायने क्या है ?

कोविड महामारी के समय में ऑनलाइन माध्यम से बच्चो ने मनाया अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस

अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मानते हुए ख़ोज प्रोग्राम के बच्चे

एक दोस्ताना माहौल में जीवंत चर्चा और बहस के माध्यम से सहिष्णुता, समानता और गैर-भेदभाव और विविधता जैसी शिक्षण अवधारणाएं जहां छात्र विभिन्न दृष्टिकोणों की सराहना और सम्मान करना सीखते हैं।

ऐसी समाज की नीव रखना जहा बच्चे और बाकि सभी समाजिक वर्गीकरण के लोग एक साथ चैन और अमन से रह सके और एक-दूसरे के सभी रीति-रिवाजो का सम्मान करते हुए एक-दूसरे के सह अस्तित्व को बनाये रखें.

खोज के पुरे पाठ्यक्रम में आपको देखने को मिलेगा की कैसे बच्चों के साथ हम उन्हें सहजता के साथ उनके जीवन के रोजमर्रा के सवालो में सोचने और खुद से उसके जवाब खोजने पर तैयार कर रहे है.

खोज शिक्षण प्रोग्राम  पिछले 26 सालो से देशभर में चलाया जा रहा है. इसको चलाये जाने के उद्देश्य से अब आप भलीभाति अवगत हो चुके हो तो आप भी इस मुहीम का हिस्सा बन सकते है तो हमसे जुड़िये, हमे इस प्रोग्राम को सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में अधिक से अधिक पहुँचाना चाहते है. साथ ही इस तरह के हस्तक्षेप में जिसको भी एक वालंटियर के तौर पर साथ आना हो तो वह भी हमसे जुड़ सकते है.

हमसे जुड़ने के लिए यहाँ संपर्क करें

[email protected]

[email protected]

https://cjp.org.in/khoj/

Related:

KHOJ children celebrating Women’s Day

KHOJ celebrates International Human Rights Day

KHOJ celebrates the life and teachings of Gandhi

Related

फिल्मों के जरिए बच्चों को ज़िन्दगी की सीख दे रही सीजेपी खोज

फिल्मों के जरिए बच्चों को ज़िन्दगी की सीख दे रही सीजेपी खोज

खोज प्रकल्प के अंतर्गत बच्चे, सामाजिक सौहार्द, गैर-बराबरी, सामाजिक न्याय जैसे गंभीर मुद्दों को फिल्मों के माध्यम से समझ रहे हैं | पिछले तीन दशकों से लोगों के बीच गलतफहमी और अलगाव ज़्यादा बढ़ गया है। जिसकी वजह से हमारे कस्बों, शहरों और गाँवों में नफरत और हिंसा फैल रही...

क्या आप जानते है बच्चें आखिर क्या सोच रहें है ?

क्या आप जानते है बच्चें आखिर क्या सोच रहें है ?

हमारे आसपास, देश में जो कुछ भी घट रहा है उसका असर बच्चों पर पड़ रहा है, यह सबको पता है पर क्या आप जानते है बच्चें क्या सोचते है? क्यों सोचते है? और जैसा भी सोच रहे है उसके पीछे के क्या कारण हो सकते हैं ? हमने यह सवाल 12 साल की मून से पूछा, उनके अनुसार उन्हें क्या पसंद...

KHOJ celebrates Bapu in Mumbai school

KHOJ celebrates Bapu in Mumbai school

On Gandhi Jayanti, KHOJ's students celebrated by performing in front of an audience, at a BMC school. Watch this video for a peek into their performances. https://youtu.be/ScBjqemrVHY   Related: An Introduction to KHOJ KHOJ: Self Portrait and Problem Solving...