फिल्मों के जरिए बच्चों को ज़िन्दगी की सीख दे रही सीजेपी खोज

खोज प्रकल्प के अंतर्गत बच्चे, सामाजिक सौहार्द, गैर-बराबरी, सामाजिक न्याय जैसे गंभीर मुद्दों को फिल्मों के माध्यम से समझ रहे हैं |

पिछले तीन दशकों से लोगों के बीच गलतफहमी और अलगाव ज़्यादा बढ़ गया है। जिसकी वजह से हमारे कस्बों, शहरों और गाँवों में नफरत और हिंसा फैल रही है। अलग-अलग समुदायों की नफरत में बच्चे सबसे ज़्यादा पीड़ित हुए हैं।

खोज शिक्षा के क्षेत्र में एक अनूठी पहल है जो बच्चों को विविधता, शांति और सद्भाव को समझने का अवसर देती है। हम छात्रों को ज्ञान और निर्णय लेने के प्रति उनके दृष्टिकोण में आलोचनात्मक होना सिखाते हैं। हम बच्चों को उनके पाठ्यक्रम की संकीर्ण सीमाओं से परे जाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, और कक्षा के भीतर सीखने और साझा करने के खुले वातावरण को बढ़ावा देते हैं। हमारी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुखद बनाने के लिए हम बहुलवाद और समावेशी होने पर ज़ोर देते हैं। इसीलिए इसके लिए लड़ा जाना जरुरी है। खोज को भारत भर में सभी वर्गों के छात्रों तक ले जाने में मदद करने के लिए अभी डोनेट करें। आपका सहयोग ख़ोज प्रोग्राम को अधिक से अधिक बच्चों और स्कूलों तक पहुँचने में मदद करेगा.

खोज प्रकल्प – पूर्वांचल चेप्टर

सीजेपी सन 2021 से बच्चों के शिक्षा पर खोज के सेशन्स व अन्य गतिविधियों को पूर्वाञ्चल उत्तर प्रदेश के वाराणसी, गाजीपुर, जौनपूर, मऊ और आजमगढ़ में कर रही है। वाराणसी के तीन प्राइवेट विद्यालयों में खोज के क्लासेस भी चल रहे हैं।

इसके तहत खोज के बच्चों को शिक्षाप्रद व प्रेरणादायक फिल्म भी दिखाई गई।

दिखाई गयी फिल्मों का बच्चों पर कैसा असर हुआ, बच्चों की राय में फिल्मो से उन्हें क्या सन्देश मिला?

कक्षा 5वीं, 6वीं, 7वीं और 8वीं के लगभग 300 से ज़्यादा बच्चों ने विभिन्न फिल्में देखीं। फिल्म देखकर बच्चे खुश हुए और हर फिल्म से क्या सीख मिली इस पर चर्चा भी हुई। बच्चों ने हर फिल्म को अच्छे से समझा और सवालों का उत्तर दिया।

लड्डू फिल्म (ईश्वर-अल्लाह एक है) एक लघु फिल्म है जो कि 10 मिनट और 50 सेकंड की है। इस फिल्म के डायरेक्टर समीर साध्वानी एंड किशोर साध्वानी हैं। एक बहुत ही साहसी लड़के, उसके दादाजी के भोजन और एक लापता पंडित के कार्य के बारे में एक आकर्षक लघु कॉमेडी फिल्म, धर्म और दुविधाओं के उचित जवाब के बारे में है। खोज क्लास के विद्यार्थी सिद्धार्थ मौर्य ने लड्डू फिल्म से सीखी हुई बातों को सबके साथ शेयर किया। सिद्धार्थ ने बताया कि..

“भगवान ने हम सबको एक बनाया है, हम सबको मिल जुलकर रहना चाहिए. हम लोगों को भेदभाव नहीं करना चाहिए। एक दूसरे के धर्म को बुरा भला नहीं कहना चाहिए हम सब इंसान ही हैं।”

माँ अन्नपूर्णा विद्या मन्दिर के क्लास 6वीं क्लास के नैतिक विश्वकर्मा “Two solution to one problem’ (कवर फाड़ने के बाद नादर अपने दोस्त की नोटबुक लौटाता है। दोस्त को इसे ठीक करने के लिए बदला लेने या गोंद और सरलता के साथ काम करने के बीच चयन करना सोचता है।)  एक ईरानी फिल्म, जिसके डायरेक्टर अब्बास कियारोस्तमी को देख कर कहते हैं कि दोस्ती में अगर गलती होती है तो उसे सुधारना चाहिए और मिल जुल कर रहना चाहिए न कि लड़ाई करनी चाहिए | प्यार से बात करना चाहिए इस फिल्म से भी यही सीख मिलती है।”

 

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डॉ सबा यूनुस की फिल्म ‘On Communal Harmony’ देखकर माँ अन्नपूर्णा विद्या मंदिर की 6वीं क्लास की विद्या ने बताया कि “हमें किसी भी धर्म को लेकर अपने मन में कोई गलत धारणा नहीं बनानी चाहिए चाहे हिन्दू हो, मुस्लिम हो ईसाई हो या सिख हो। किसी भी सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

हर्ष इंटर कॉलेज की नाज़िया अंसारी जो कि क्लास 6वीं क्लास की छात्रा है, उनका कहना है कि “Communal Harmony फिल्म में मुस्लिम लड़की को दूसरी लड़की बुरा कहती है लेकिन जब हिन्दू लड़की को चोट लगती है और खून की ज़रूरत पड़ती है तो मुस्लिम लड़की ही खून देती है जिससे उसकी जान बचती है। इसलिए कभी किसी को बुरा भला नहीं कहना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म का हो और हमको सबका ख्याल रखना चाहिए चाहे बड़ा हो या छोटा हो।”

‘ये गुलिस्ताँ हमारा’ (विजय एक पुल के निर्माण का प्रभारी है जो भारत और चीन को जोड़ेगा। हालांकि, चीनी समुदाय ने परियोजना का पालन करने से इनकार कर दिया। उसे एक चीनी एजेंट से प्यार हो जाता है, जो उसकी मदद करता है।)  फिल्म देखने के बाद 7वीं क्लास की विद्या ने कहा कि लड़के-लड़की में भेदभाव को दिखाया गया है। फिल्म में भाई अपनी पसंद (गुलदस्ते में एक ही रंग केसरिया का फूल लगेगा) बहन से ज़बरदस्ती मनवा रहा था, जबकि बहन का कहना था कि सभी रंग के फूल गुलदस्ते में लगेंगे। पिता ने फिर बेटे को समझाया और कहा गुलदस्ते में हर रंग के फूल लगेंगे। ये समझ में आया कि सबको मिलजुल कर रहना चाहिए। लड़का-लड़की में भेदभाव नही होना चाहिए।

खोज प्रकल्प इन माध्यमों से बच्चों के विचारों के बनने में मदद कर रहा है, ऐसी गतिविधियों के जरिये ये सभी बच्चे स्वयं से यह सवाल कर पा रहे हैं, साथ ही बच्चे खुद की एक ऐसी समझ विकसित कर पा रहे हैं जो भविष्य

में उन्हें बेहतर नागरिक, एक बेहतर इन्सान बनने के लिए कारगर साबित होगा।

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