हमारे आसपास, देश में जो कुछ भी घट रहा है उसका असर बच्चों पर पड़ रहा है, यह सबको पता है पर क्या आप जानते है बच्चें क्या सोचते है? क्यों सोचते है? और जैसा भी सोच रहे है उसके पीछे के क्या कारण हो सकते हैं ?
हमने यह सवाल 12 साल की मून से पूछा, उनके अनुसार उन्हें क्या पसंद है? क्या नापसंद है? वह बताती है की “हिजाब पहनना पसंद करती है, ऐसे लोग को पसंद करते है जो हिन्दू-मुस्लिम मे भेदभाव नहीं करते है.” और उन्हें क्या नापसंद है? “मुझे बुरा तब लगता है जब मै घर से बाहर जाती हूँ और लोग मुझे गरीब और मुस्लिम होने के वजह से गन्दी नज़र से देखते है. धर्म के नाम पे झगड़ा करते है.”
खोज शिक्षा के क्षेत्र में एक अनूठी पहल है जो बच्चों को विविधता, शांति और सद्भाव को समझने का अवसर देती है। हम छात्रों को ज्ञान और निर्णय लेने के प्रति उनके दृष्टिकोण में आलोचनात्मक होना सिखाते हैं। हम बच्चों को उनके पाठ्यक्रम की संकीर्ण सीमाओं से परे जाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, और कक्षा के भीतर सीखने और साझा करने के खुले वातावरण को बढ़ावा देते हैं। हमारी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुखद बनाने के लिए हम बहुलवाद और समावेशी होने पर ज़ोर देते है। इसीलिए इसके लिए लड़ा जाना जरुरी है। खोज को भारत भर में सभी वर्गों के छात्रों तक ले जाने में मदद करने के लिए अभी डोनेट करें। आपका सहयोग ख़ोज प्रोग्राम को अधिक से अधिक बच्चों और स्कूलों तक पहुँचने में मदद करेगा.
आफरीन जिनकी उम्र 13 साल है उनके कहे अनुसार “मुझे वो लोग पसंद है जो किसी में भी भेदभाव नही करते है. मुझे खोज क्लास करने में बहुत अच्छा लगता है.”
उनको जो बिलकुल नापसंद है वो यह की “जब कोई हिन्दू या मुस्लिम मे भेदभाव करता है तो वो मुझे नही पसंद है. नकाब या हिजाब को कोई पहनने से मना करे वो मुझे नहीं पसंद है. लड़की के कपडे पहनने, पढने या कुछ भी करने के लिए मना किया जाये ये मुझे नहीं पसंद है.”
यह सभी बच्चें बनारस के एक स्थानीय स्कूल के बच्चें है, इस स्कूल में ज्यादातर बच्चें पस्मान्दा मुस्लिम समुदाय से आते है, जिनके पिता गरीब बुनकर है या फिर कारीगर है या मजदूरी करते है, कोई अपनी छोटी-मोटी किराना दुकान चलाता है. इस पृष्टभूमि से आने वाले बच्चें का इस तरह से अपनी बात बेबाकी से रखना अपने आप में बड़ी बात है.
इसी स्थानीय स्कूल में सीजेपी के खोज कार्यक्रम के तहत बच्चों के साथ विभिन्न गतिविधियों की जाती है. ये बच्चे क्लास 5th से 7th तक के होते है. ऐसे ही गतिविधि या कहे एक्सरसाइज है Likes और Dislikes सभी बच्चें इस गतिविधि के माध्यम से वह अपनी सोच को व्यक्त कर पाए.
पसंद-नापसंद एक ऐसी गतिविधि है जिसके पीछे एक उद्देश्य यह है की बच्चों के साथ बिना रोक-टोक संवाद स्थापित करना जिससे वह अपनी ख़ुशी, अपना दुःख, अपना गुस्सा आसानी से व्यक्त कर पाए यह कुछ उदाहरण उसी अभ्यास से प्राप्त हुई.
बच्चो को नहीं पसंद है लड़ाई करना और लड़का – लड़की मे भेद करना
सिटीजेन्स फॉर जस्टिस एंड पीस द्वारा संचालित खोज प्रोग्राम के सेशन ” Likes and Dislikes” मे ज़्यादातर छात्राओ ने लिखा है कि लड़का व लड़की मे होने वाले भेदभाव उन्हे नही पसंद है. कुछ बच्चो ने साफ साफ लिखा है कि उन्हे लड़ाई नहीं पसंद है और जब उनके मोहल्ले मे हिन्दू -मुसलमान का झगड़ा नहीं होता है तो उन्हे ये अच्छा लगता है यानि ये उन्हे पसंद है.
निस्बा, महज 11 साल उम्र है इनकी, वह बताती है की उन्हें हिजाब पसंद है क्यूंकि ये मज़हब का हिस्सा है. इंसानियत के नाते उन्हें गरीबो कि मदद करना पसंद है. कुछ चीज़े इन्हें बिलकुल नापसंद, वह लिखती है. “जो लोग गरीबो और मुस्लिमो के साथ गलत कर रहे है. जो लोग गरीबो को अपने पैर कि जुती समझते है. आजकल जो लोग लड़कियों के बाहर जाने पर रोक लगाते है ऐसे लोग इन्हें नहीं पसंद है.”
नेहा जिनकी उम्र महज 10 साल अपनी पसंद और नापसंद के बारे में लिखती है “लोग हमें इज्ज़त दे ये हमे पसंद है. मोहल्ले के लोग अगर आपस मे मिलजुल कर रहते है तो मुझे बहुत पसंद है. जो लोग अमीर और गरीब को एक बराबर समझते है वो लोग मुझे अच्छे लगते है.”
नेहा की नज़र में नापसंद बातें “हमारे समाज मे लड़को को इतनी छूट दी जाती है और लडकियों को अकेले घर से बाहर नहीं जाने देते है, ये नहीं पसंद है. अगर लडकियों को घर से बाहर जाना होता है तो सब लोग बोलता है रोकता है तुम्हे अब कही नही जाना है. लड़किया बाहर निकलती है तो उन्हे गंदी नज़र से जो लोग देखते है वो नहीं पसंद है.”
रुखसार, जिसकी उम्र 12 साल है “मुझे परिवार के साथ बात करना पसंद है. मुझे पढना, साईकिल चलाना और दोस्तों से बात करना पसंद है अगर मेरे पापा गुस्सा हो जाते है तो मुझे अच्छा नहीं लगता है यह बात मुझे नापसंद है.”
अयान जो की 10 साल के है वह अपनी पसंद को इस तरह से व्यक्त कर रहे है “जब मेरे मोहल्ले मे लड़ाई नहीं होती है. जब अमीर गरीब कि तारीफ करता है तो मुझे पसंद आता है. जब हिन्दू और मुसलमान मे लड़ाई नहीं होती है तब मुझे अच्छा लगता है.”
अयान के लिए यह सब बुरा तब है “जब मेरे मोहल्ले मे लड़ाई होती है तब मुझे बहोत खराब लगता है. जब अमीर गरीब को बुरा बोलता है तो मुझे नहीं पसंद आता है. जब हिन्दू और मुसलमान मे लड़ाई होती है तब मुझे नहीं अच्छा लगता है.”
बच्चों की मन की बात
‘पसंद-नापसंद’ से न सिर्फ हम बच्चों की मदद कर पाते है बल्कि यह बातें हमें भी सोचने पर मजबूर करती है की हम अपने बच्चों को कैसा माहौल दे रहे है.
तस्मिया, उम्र 10 साल, कहती है “कोई लड़ाई करता है तो हमें अच्छा लगता है. मुझे अच्छे लोग पसंद है लेकिन मुझे किसी को परेशान करना बहुत अच्छा लगता है.”
तस्मिया को नापसंद चीज़े, “हमें जाहिल लोग नहीं पसंद है. जब कोई हमें घूर कर देखता है तो हमे गुस्सा आता है.”
इस पूरी गतिविधि से कुछ ऐसे सच उजागर होते है जिसको जानने पर हैरानी होती है जैसे की तस्मिया कह रही है की “जब कोई लडाई कर रहा हो तो उसे अच्छा लगता है.” ऐसा कुछ मिलने पर खोज कार्यक्रम से जुड़े टीचर बच्चों के साथ बैठ कर ऐसे मसले की गहराई तक जाते है इसके लिए ज़रूरत पड़ने पर बच्चे के परिवार वालो से और टीचेर्स से मिलकर बात करते है और अगर कुछ ऐसा जो बच्चे के लिए सही नहीं है तो इसपर एक्सपर्ट्स से मदद ली जाती है. कोशिश रहती है कि बच्चे की नकारात्मक सोच को बदला जाये.
पिछले 26 वर्षों में हमने ‘खोज’ में यही प्रयास किया है. हम कक्षाओं और स्कूलों में एक संवेदनशील और रचनात्मक रूप से डिज़ाइन किया गया पाठ्यक्रम पढ़ाते हैं जो प्रश्नों के माध्यम से मुद्दों से अवगत कराता है. यह युवाओं को, उनके शिक्षकों और माता-पिता को उन मुद्दों का सामना करने के प्रति सजग करता है. हमने स्थान और परिस्थिति की सीमा में आगे बढ़ने के लिए असहमति और पूछताछ के साथ युवा दिमागों को खोलने की कोशिश की है. जो अपने आसपास के मसलों के बारे में सोचते हैं और एक दूसरे से साझा करते हैं. युवाओं और वयस्कों के दिमागी खुराक के लिए यह बेहद ख़ास प्रक्रिया है.
चित्रों, पेंटिंग, रंग और रेखाचित्रों के माध्यम से वास्तविक भावनाओं (यहाँ तक कि नाराजगी) को व्यक्त किया जाता हैं.
खोज से हमारा उद्देश्य सामाजिक अध्ययन के शिक्षण के लिए एक वैकल्पिक नज़रिया विकसित करना और साथ ही इसकी पाठ्य-सामग्री को मौलिक रूप से बदलना है. हम चर्चा के विषयों के बारे में बताते हैं इससे बच्चे उत्सुक होते हैं और शिक्षक से प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित होते हैं.
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