राम लखन की कहानी

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वह एक सर्द सुबह थी| जाड़े की धूप और बादलों के बीच आंखमिचौली चल रही थी| इस लिए मौसम सर्द तो था ही पर खुश्क भी था| जब राम लखन लखनऊ के अपने छोटे से घर से स्कूटर धोने के लिए बाहर निकला तो उसने आसमान पर नजर डाली तो उस वक्त उसके मन में कुछ और ख्याल आ रहे थे| बच्चों को तो स्कूल पहुंचाना था लेकिन कल लौटते समय जो उसने चीखते हुए लाउडस्पीकरों से सुना था वह याद करके वह बेचैन हो उठा|

उसके मन में सवाल उभरने लगा की क्या आज बच्चों को स्कूल भेजना ठीक होगा? उसने न भेजना ही ठिक समझा| वक्त बड़ा नाजुक चल रहा था| चौक पर उसने पागलों की तरह चिल्लाते और खून के लिए प्यासे लोगों को देखा था| उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था| ये लोग अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनाने के लिए खून क्यों बहाना चाहते हैं? इन विचारों को लिये हुए राम अपने काम पर निकल पड़ा| उसने खाना खा लिया था और चलते समय अपनी पत्नी गिरिजा और बच्चों से विदा भी ले ली थी पर तमाम रास्ते पिछली शाम देखने उन वहशी लोगों और लाउडस्पीकरों से कही गयी बातों को सोच कर उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी| एक ही सांस में भगवान राम का नाम और बदला लेने तथा मरने मारने की बात कह कर आखिर वे हासिल क्या करना चाहते हैं? वह अपने विचारों में खोया हुआ ही था कि एक मोड़ पर दूसरी ओर से आती हुई जीप ने उसके स्कूटर को धक्का मारा| वह सड़क के दूसरी तरफ जा गिरा और दर्द से तब तक कराहता रहा जब तक कि राहगीरों ने उसे उठा कर अस्पताल ना पहुंचा दिया|

नीम बेहोशी की हालत में उसकी आंखों के सामने उसके चिंताग्रस्त बच्चों और पत्नि के चेहरे जब दिखाई दिये तो उसने देखा की वे घबराये और पीले पड़े हुए थे| फीकी मुस्कुराहट से उन्हें तसल्ली देते हुए उसने उन्हें अपने पास ही बने रहने को कहा| राम के अगले दो दिन बड़ी तकलीफ में गुजरे| उसके स्वस्थ होने की प्रार्थना करते हुए वह अपने प्रियजनों को देखता तो उसे उनके चेहरों पर दुःख और डर की छाया दिखाई देती| न जाने क्यों उसे लगने लगा था कि वह बच नहीं पायेगा| जैसे कि जिंदगी उसके हाथों से फिसलती जा रही थी| उसने खींच कर अपने बच्चों को छाती से लगा लिया| तभी उसे ख्याल आया कि वह अपने पीछे उनके लिए क्या छोड़े जा रहा हैं? कैसी होंगी उन की आगे की जिंदगी? क्या इतनी ही मारकाट और अव्यवस्था रहेगी हमेशा? इन दिनों में भी जब मौत उसे नजदीक लग रही थी उसके मन से वे विचार नहीं निकल पा रहे थे जो एक्सीडेंट से पहले शाम से उसके मन में घर कर गये थे|

दो दिन बाद राम मर गया| उसने अपने पीछे एक वसीयत छोड़ी| जो कुछ उसने जोड़ा था वह सब तो बेशक उसने अपनी बीवी और बच्चों के लिए छोड़ा था पर वसीयत में कुछ और भी था| उसने लिखा था की उसकी दोनों किडनियां किसी जरूरतमंद को दे दी जायें पर एक मुसलमान और दूसरी सिख को|

प्रश्न (१) आपको जो कहानी सुनाई उसका क्या मकसद लगता हैं?
प्रश्न (२) यह बातें क्यों उभरती हैं?
प्रश्न (३ ) उस समय वह भारत के किस कोने में घटी?
प्रश्न (४) राम लखन एक हिन्दु धर्म का व्यक्ति था परन्तु फिर भी उसने अपनी एक किडनी मुसलमान और एक किडनी सिख को क्यों दी?
प्रश्न (५) इस कहानी पर हम कैसे नाटक कर सकते हैं? यह आप लोग ही बताओं?

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