हैदराबाद अपने चाचा की शादी में हाजरी देने के लिए तेरह साल की लारा बहुत ही उत्साहित होकर गई थी। उसके नए कपडे और जो गहने वो पहनने वाली थी वो फूल और सबसे विशेष हाथो में मेहँदी। चाचा की होने वाली बीवी की एक झलक देखने के लिए वो तड़प रही थी। लेकिन उसको दूसरे दिन तक इंतेजार करना पड़े ऐसी अवस्था थी, क्योंकि तब सभी औरते नए कपडे पहनेगी और दुल्हन के घर उसको पहनने के लिए चमकदार और अच्छी तरह जमाये हुए कपडे भेजेंगे। उसकी नयी चाची का नाम तसनीम था। लेकिन उसके पहले चाचा ने सभी बच्चे दूसरे दिन हैदराबाद के प्राणी संग्रहालय की मुलाकात ले सके ऐसा इंतेजाम किया था। उनकी पूरी टोली बहुत ही उत्साहित हो गयी थी।
दूसरे दिन सुबह ११.०० बजे एक इंतेजार करती गाड़ी में नौ लोगो को बिठाया। उसका इंतेजाम चाचा ने किया था। सभी ने स्नान किया और सभी को नास्ता दिया गया। बच्चों को प्राणी संग्रहालय में भेजने के लिए जो गाड़ी थी उसका चालक एक बहुत प्रभावशाली वृद्ध था। जिसकी लम्बी दाढ़ी थी। वो सभी निकल पड़े और उसके बाद कुछ घंटो का वक्त बहुत आनंददायक था। उन्होंने प्राणी संग्रहालय में चलकर सब देखा और ऐसी घटनाओं को छोटी छोटी बातों को दिली यादें बना लिया। मिठाई, रंगीबेरंगी बर्फी और आइसक्रीम। कुछ ही देर में बच्चों ने इतना सारा खाया के वो और ज्यादा वो खा ही नहीं सके।
दिन आगे बढ़ा और सूरज सर पर आ गया। ऐसे ही बच्चों की बातों में सुस्ती आ गयी। इनमें से कई तो गाडी में नींद लेने लगे और सो गए। घर अभी कुछ ही दूर था। बच्चे प्यासे हुए लारा और उसके सबसे बड़े भाई को एक ख्याल आया। उन्होंने बूढ़े चालक को एक दुकान के पास रुकवाने को कहा। एक बच्चा नीचे उतरा और उसने बच्चों के लिए पानी की बोतल ली। प्यासे बच्चों ने बड़े-बड़े घूंट लेकर पानी पिया। वो गाड़ी में वापस बैठे तब तक एक दुःख दायक बात हुई। घर जाने के लिए गाड़ी चालू करने के बदले बूढ़ा चालक बच्चों को डांटने लगा। “तुम्हे इधर-उधर, यहां-वहां पानी नहीं पीना चाहिए। हम लोगो को दूकानदार के धर्म या जाती की भी खबर नहीं है?
लारा और दूसरे बच्चें अचानक सोच में पड़ गए। प्यासे बच्चों को धर्म और जाती के साथ क्या लेना देना। पानी तो पानी ही होता हैं। प्यासा इंसान पानी के सिवाय दूसरा क्या चाहे? ऐसे में पानी कहा से आया उनके लिए उसका क्या महत्त्व? बच्चे वृद्ध चालक के साथ गरमा-गरम चर्चा करने लगे।
दूसरे दिन शादी की रसमे पुरे जोश के साथ चल रही थी। सबसे अच्छी बात तो ये थी की सभी औरतो ने मेहँदी लगाई थी। मेहँदी लगाने वाली बाई को सिर्फ इस लिए ही बुलवाया गया था। बहुत से औरतों को मेहँदी लग जाने के बाद दोपहर जाते लारा मेहँदी लगाने लगी। बीच में मेहँदी वाली बहन ने इशारा करके कहा की बड़ो को बुलाकर लाये क्योंकि उनको भूक और प्यास लगी थी। लारा खुश होकर एक थाल में खाने की सभी चीज़े भर लाई और एक प्याले में शरबत भी। ये देखकर लारा की कद्र करने के बदले मेहँदी वाली बहन ने उसे कोई बड़ों को बुलाकर लाने को कहा। लारा आश्चर्यचकित हो गयी।
फिर भी वो बड़ो को बुलाकर ले आयी। यह देखकर मेहँदी वाली बहन ने मौसी से कहा की उसके लिए बाहर से नास्ता और पानी मंगवा दे। मौसी ने समझदारी पूर्वक हां कहा। लारा अचानक सोच में पड़ गयी। उसे जवाब चाहिए था। वो मौसी के पीछे भागी और उसने उनसे पूछा मगर आंटी के लिए मैं जो स्वादिष्ट खाना लेकर आई थी वो उन्होंने क्यों नहीं खाया? हमें बाहर से खाना क्यों मंगवाना पड़ रहा हैं? मौसी ने नरमाई से कहा लारा तुझे मालूम नहीं हैं मगर दुनिया की रीत रसमे अजीब व गरीब है कई बार अपनी समझ में नहीं आती। समझना मुश्किल होता हैं। ये आंटी चाचा और दादी के धर्म की नहीं है दूसरे धर्म की हैं। इसलिए इस घर में पके खाने को वो खाना नहीं चाहती। अब तुम समझी क्या?
लारा ने अपना सर हिलाया उसकी ये समझ में नहीं आया की खोराक और पानी के धर्म अलग क्यों हैं? लेकिन उसे समझने की शुरुआत हुई थी की दुनिया की रीत रसमे अलग अनसोची हैं, और उसे समझ में न आये ऐसी थी। उसे सच में ये सब देखकर फिकर हो रही थी की बड़े किस तरह से पेश आते हैं। जैसे की लोग कभी भी बदल ना नहीं चाहते या कोई सवाल पूछना नहीं चाहते।
दूसरे दिन सुबह ११.०० बजे एक इंतेजार करती गाड़ी में नौ लोगो को बिठाया। उसका इंतेजाम चाचा ने किया था। सभी ने स्नान किया और सभी को नास्ता दिया गया। बच्चों को प्राणी संग्रहालय में भेजने के लिए जो गाड़ी थी उसका चालक एक बहुत प्रभावशाली वृद्ध था। जिसकी लम्बी दाढ़ी थी। वो सभी निकल पड़े और उसके बाद कुछ घंटो का वक्त बहुत आनंददायक था। उन्होंने प्राणी संग्रहालय में चलकर सब देखा और ऐसी घटनाओं को छोटी छोटी बातों को दिली यादें बना लिया। मिठाई, रंगीबेरंगी बर्फी और आइसक्रीम। कुछ ही देर में बच्चों ने इतना सारा खाया के वो और ज्यादा वो खा ही नहीं सके।
दिन आगे बढ़ा और सूरज सर पर आ गया। ऐसे ही बच्चों की बातों में सुस्ती आ गयी। इनमें से कई तो गाडी में नींद लेने लगे और सो गए। घर अभी कुछ ही दूर था। बच्चे प्यासे हुए लारा और उसके सबसे बड़े भाई को एक ख्याल आया। उन्होंने बूढ़े चालक को एक दुकान के पास रुकवाने को कहा। एक बच्चा नीचे उतरा और उसने बच्चों के लिए पानी की बोतल ली। प्यासे बच्चों ने बड़े-बड़े घूंट लेकर पानी पिया। वो गाड़ी में वापस बैठे तब तक एक दुःख दायक बात हुई। घर जाने के लिए गाड़ी चालू करने के बदले बूढ़ा चालक बच्चों को डांटने लगा। “तुम्हे इधर-उधर, यहां-वहां पानी नहीं पीना चाहिए। हम लोगो को दूकानदार के धर्म या जाती की भी खबर नहीं है?
लारा और दूसरे बच्चें अचानक सोच में पड़ गए। प्यासे बच्चों को धर्म और जाती के साथ क्या लेना देना। पानी तो पानी ही होता हैं। प्यासा इंसान पानी के सिवाय दूसरा क्या चाहे? ऐसे में पानी कहा से आया उनके लिए उसका क्या महत्त्व? बच्चे वृद्ध चालक के साथ गरमा-गरम चर्चा करने लगे।
दूसरे दिन शादी की रसमे पुरे जोश के साथ चल रही थी। सबसे अच्छी बात तो ये थी की सभी औरतो ने मेहँदी लगाई थी। मेहँदी लगाने वाली बाई को सिर्फ इस लिए ही बुलवाया गया था। बहुत से औरतों को मेहँदी लग जाने के बाद दोपहर जाते लारा मेहँदी लगाने लगी। बीच में मेहँदी वाली बहन ने इशारा करके कहा की बड़ो को बुलाकर लाये क्योंकि उनको भूक और प्यास लगी थी। लारा खुश होकर एक थाल में खाने की सभी चीज़े भर लाई और एक प्याले में शरबत भी। ये देखकर लारा की कद्र करने के बदले मेहँदी वाली बहन ने उसे कोई बड़ों को बुलाकर लाने को कहा। लारा आश्चर्यचकित हो गयी।
फिर भी वो बड़ो को बुलाकर ले आयी। यह देखकर मेहँदी वाली बहन ने मौसी से कहा की उसके लिए बाहर से नास्ता और पानी मंगवा दे। मौसी ने समझदारी पूर्वक हां कहा। लारा अचानक सोच में पड़ गयी। उसे जवाब चाहिए था। वो मौसी के पीछे भागी और उसने उनसे पूछा मगर आंटी के लिए मैं जो स्वादिष्ट खाना लेकर आई थी वो उन्होंने क्यों नहीं खाया? हमें बाहर से खाना क्यों मंगवाना पड़ रहा हैं? मौसी ने नरमाई से कहा लारा तुझे मालूम नहीं हैं मगर दुनिया की रीत रसमे अजीब व गरीब है कई बार अपनी समझ में नहीं आती। समझना मुश्किल होता हैं। ये आंटी चाचा और दादी के धर्म की नहीं है दूसरे धर्म की हैं। इसलिए इस घर में पके खाने को वो खाना नहीं चाहती। अब तुम समझी क्या?
लारा ने अपना सर हिलाया उसकी ये समझ में नहीं आया की खोराक और पानी के धर्म अलग क्यों हैं? लेकिन उसे समझने की शुरुआत हुई थी की दुनिया की रीत रसमे अलग अनसोची हैं, और उसे समझ में न आये ऐसी थी। उसे सच में ये सब देखकर फिकर हो रही थी की बड़े किस तरह से पेश आते हैं। जैसे की लोग कभी भी बदल ना नहीं चाहते या कोई सवाल पूछना नहीं चाहते।
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