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हेट बस्टर : राष्ट्रीय गीत के संबंध में कोई प्रोटोकॉल नहीं; खड़ा होना अनिवार्य नहीं

दावा: मुजफ्फरनगर नगर पालिका बोर्ड बैठक में कुछ मुस्लिम महिला सभासदों ने राष्ट्रगान (National Anthem) गाए जाने के दौरान बैठे रहकर कर उसका अपमान किया।

पर्दाफाश: नगर पालिका बोर्ड बैठक में राष्ट्रगीत यानि वंदे मातरम गाया जा रहा था, राष्ट्रगान (जन गण मन) नहीं। अब चूंकि राष्ट्रगीत के संबंध में कोई निर्धारित प्रोटोकॉल (आचरण कोड़) नहीं है, लिहाजा इसे गाए जाने के दौरान खड़ा होना अनिवार्य नहीं है।
पिछले कई दिनों से, एक ट्वीट वायरल हो रहा है जिसमें दावा किया गया है कि मुजफ्फरनगर नगरपालिका  बोर्ड की बैठक में मौजूद चार मुस्लिम महिला सभासदों ने राष्ट्रगान का अपमान किया। दावा है कि जब अन्य सदस्य राष्ट्रगान (गाने) के लिए खड़े हुए तो यह चारों मुस्लिम महिलाएं अपनी सीट पर बैठी रहीं। खड़ी नहीं हुईं।
हालांकि, बाद में आएं इसी तरह के अन्य ट्वीट्स से साफ हुआ कि बोर्ड बैठक में जो गाया जा रहा था वह राष्ट्रगान यानि जन गण मन नहीं था, बल्कि राष्ट्रगीत यानी वंदे मातरम था। जैसा कि इस ट्वीट के साथ साझा किए गए वीडियो में भी स्पष्ट रूप से सुना जा सकता है।
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कुछ भी हो, चूंकि खड़े होने से इनकार करने वाली महिलाएं मुस्लिम थीं और ऊपर से वह बुर्का भी पहने हुए थीं, लिहाजा विवाद नियंत्रण से बाहर हो गया और जल्द ही एक सांप्रदायिक रंग ले लिया। और मुसलमानों और वंदे मातरम को लेकर सितंबर 2006 में पहली बार पनपे विवाद को वापस याद दिलाया जाने लगा।
उस समय, जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख महमूद मदनी ने दावा किया था कि मुसलमान वंदे मातरम नहीं गा सकते हैं और न ही गाना चाहिए। और इसे गाने के लिए मजबूर करने पर अदालत जाने की धमकी दी थी। उन्होंने मीडियाकर्मियों से कहा, “मुसलमान अपने आप में दृढ़ संकल्पित हैं कि वे वंदे मातरम नहीं गा सकते हैं और उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए,” उन्होंने कहा, “केंद्र ने गीत का पाठ (गायन) अनिवार्य नहीं किया है और राज्यों को भी उसका अनुसरण (पालन) करना चाहिए। अगर (जबरदस्ती) गाने के लिए मजबूर किया जाता है, तो हम शांतिपूर्ण तरीके से इसका विरोध करेंगे और इस मुद्दे को अदालत तक ले जाएंगे।”
अपनी बात का विस्तार करते हुए कि कैसे गाना (राष्ट्रगीत का गायन) गाना, इस्लामी मान्यताओं के विपरीत था, मदनी ने राष्ट्रगीत के उन छंदों की ओर इशारा किया जिसमें भारतीय देवी दुर्गा का उल्लेख है, और यह कि मुसलमानों को अल्लाह के अलावा किसी की भी पूजा करने से मना किया हुआ है। Rediff.com ने उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया, “इबादत सिरफ एक खुदा की होती है (केवल भगवान की पूजा की जाती है)। वंदे मातरम, देवी दुर्गा को श्रद्धांजलि है, इसलिए, हम इसका पाठ (गायन) नहीं कर सकते हैं।”

वंदे मातरम के संबंध में प्रोटोकॉल

धार्मिक मान्यताओं को एकतरफ रखकर सोचें तो भी यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जहां राष्ट्रगान (जन गण मन) की बात आती है, वहां प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है, लेकिन राष्ट्रगीत (वंदे मातरम्) से संबंधित ऐसा कोई प्रोटोकॉल नहीं है। नवंबर 2016 में राज्यसभा के समक्ष सरकार द्वारा किए गए एक औपचारिक प्रस्तुतीकरण में यह (तथ्य) कहा गया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद विकास महात्मे द्वारा, राष्ट्रीय गीत गाने या बजाने के नियमों के बारे में उठाए गए, एक सवाल के जवाब में, किरेन रिजिजू, जो उस समय गृह राज्य मंत्री थे, के द्वारा लिखित जवाब में कहा गया था, “सरकार ने कोई नियम नहीं बनाया है या निर्देश जारी नहीं किया है कि राष्ट्रीय गीत किन परिस्थितियों में गाया या बजाया जा सकता है।”

उत्तर यहां देखा जा सकता है:

 

कुछ महीने बाद, फरवरी 2017 में, सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में, न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनगौदर की खंडपीठ ने पाया कि यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 51ए (मौलिक कर्तव्यों) में राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज को बढ़ावा देने की आवश्यकता की बात कही गई है मगर, “यह अनुच्छेद राष्ट्रगीत का उल्लेख नहीं करता है। यह केवल राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान के संदर्भ में है। इस सब के बावजूद, जहां तक ​​राष्ट्रगीत का संबंध है, हमारा किसी बहस में पड़ने का इरादा नहीं है।” और अदालत ने भाजपा प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें वंदे मातरम को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय नीति बनाने के लिए शीर्ष अदालत से सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी। कार्यालयों, अदालतों और विधायी सदनों तथा संसद में राष्ट्रगान को अनिवार्य करने की उनकी याचिका को भी अस्वीकार कर दिया गया।

वंदे मातरम् से संबंधित ताजा जनहित याचिका

अश्विनी उपाध्याय ने एक बार फिर से कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए राष्ट्रीय गीत-वंदे मातरम को राष्ट्रगान-जन गण मन के समान दर्जा देने की मांग की है। उन्होंने इस संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका (PIL) दायर की है और केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की भी मांग की है कि सभी स्कूलों और शिक्षण संस्थाओं में प्रत्येक कार्य दिवस पर ‘जन-गण-मन’ और ‘वंदे मातरम’ बजाया और गाया जाए। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की खंडपीठ ने 26 मई को इस मामले में 6 सप्ताह के भीतर केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी है और सुनवाई की अगली तारीख 9 नवंबर है।

वंदे मातरम और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

यह गीत मूल रूप से एक कविता थी जो बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के 1882 के उपन्यास अनादमठ का हिस्सा थी, और मातृभूमि की प्रशंसा में लिखी गई थी। इसने स्वतंत्रता सेनानियों को एकजुट करने में भूमिका निभाई और यहां तक कि अंग्रेजों ने सार्वजनिक तौर से इस (गीत) के गाए जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। इस प्रकार, वंदे मातरम गाना, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ अवज्ञा का कार्य बन गया था और यह गीत, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का एक अभिन्न अंग बन गया था। इसलिए इसका एक इतिहास और संस्कृति है। वर्षों से, इसे कई अलग-अलग धुनों पर गाया गया है – स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े तेज जयघोष वाले संस्करण से लेकर हर सुबह दूरदर्शन पर बजाए जाने वाले धीमे संस्करण तक।
Image Courtesy: livehindustan.com

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