अतिवादी समूहों द्वारा (पारंपरिक) त्रिशूल बांटने की बढ़ती घटनाओं के बीच, कईयों ने खुले तौर से सोशल मीडिया पर घोषणा की कि वे उन्हें तलवारें भेज रहे हैं जो धर्म रक्षा के लिए उनका उपयोग करना चाहते हैं। शायद, पीछे मुड़कर देखने-समझने की जरूरत है कि सांप्रदायिक सौहार्द पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। वहीं इस सब (हथियार रखने वाले नागरिकों के विषय) की बाबत देश का कानून क्या कहता है, को भी देखना होगा।
हथियारों से संबंधित कानून और नियम
हथियार रखने और उसका उपयोग करने से संबंधित प्रावधान मुख्य रूप से आर्म्स एक्ट-1959 और आर्म्स रूल्स-1962 में शामिल हैं। आर्म्स एक्ट की धारा 2 (1) (सी) में “हथियारों” को परिभाषित किया गया है। उसके अनुसार, “अपराध या रक्षा के लिए हथियार के रूप में डिजाइन वस्तु जिसमें आग्नेयास्त्र, तेज धार वाले और अन्य घातक हथियार और उन्हें बनाने वाली मशीनरी (घरेलू या कृषि उपयोग के लिए डिज़ाइन हथियार जैसे लाठी, छड़ी व खिलौने आदि को छोड़कर) शामिल हैं। जब हथियारों के रूप में इस्तेमाल की जा सकने वाली धारदार वस्तु की बात आती है, तो अनुसूची 1- नियम 3 (V) के अनुसार, जो आग्नेयास्त्रों के अलावा अन्य हथियारों से संबंधित है।
नुकीले और घातक हथियार, अर्थात तलवार (तलवार की छड़ें सहित), खंजर, संगीन, भाले (भाला और भाला सहित); युद्ध-कुल्हाड़ी, चाकू (कृपाण और खुकरी सहित) और ऐसे अन्य हथियार जिनके ब्लेड घरेलू, कृषि, वैज्ञानिक या औद्योगिक उद्देश्यों, स्टील बैटन के अलावा 9″ या 2″ से अधिक लंबे होते हैं; “ज़िपो” और ऐसे अन्य हथियार, जिन्हें “जीवन रक्षक” कहा जाता है, हथियार बनाने के लिए मशीनरी, श्रेणी II के अलावा, और कोई भी अन्य हथियार जिसे केंद्र सरकार धारा 4 के तहत अधिसूचित कर सकती है।”
इसलिए, लोगों के हथियार रखने व लेकर चलने को कानून द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। सार्वजनिक सद्भाव को बाधित करने या भय का माहौल बनाने के लिए इस तरह के तेज धार वाले घातक हथियारों का उपयोग आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के साथ-साथ आईपीसी के तहत भी दंडनीय है। उन्हें सार्वजनिक स्थानों या सार्वजनिक परिवहन में ले जाने की अनुमति नहीं है। हालांकि, अनुच्छेद 25 (2) (बी) के तहत सिखों द्वारा धारण किए जाने वाली कृपाण (पारंपरिक खंजर) इसका एक अपवाद है।
अतिवादी समूहों द्वारा गढ़े गए बचाव के तरीके
हालांकि, दक्षिणपंथी अतिवादियों के द्वारा नुकीले सामान से संबंधित कानून में खामियों की आड़ में अपने बचाव के तरीके ढूंढ लिए गए हैं। उदाहरण के तौर पर, त्रिशूल एक नुकीली वस्तु है और इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। सामान्यतः धर्म में इसका महत्व दो प्रमुख देवी देवताओं द्वारा संचालित हथियार के रूप में होता है। हालांकि इन्हें लेकर चलने के बारे में कोई धार्मिक मान्यता (आदेश) नहीं है। उसके बावजूद, ये त्रिशूल, छोटे संस्करण में, सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों या धार्मिक सभाओं के दौरान दक्षिणपंथी समूहों द्वारा अक्सर बांटे जाते हैं।
अहमदाबाद मिरर में प्रकाशित जून 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) द्वारा 75 युवाओं को त्रिशूल बांटने के बाद, संगठन महासचिव महादेव देसाईं ने इस (कानूनी) खामी का बचाव करते हुए कहा था, “त्रिशूल प्रतिबंधित हथियारों से एक सेंटीमीटर छोटे हैं।” समूह ने अपनी स्वयं की स्वीकारोक्ति में माना कि उनके द्वारा, पिछले ढाई वर्षों में गांधीनगर जिले में, गायों की रक्षा और “लव जिहाद” से लड़ने के उद्देश्य से युवाओं को कम से कम 4,000 ऐसे हथियार बांटे गए है। उस समय, गांधीनगर बजरंग दल के अध्यक्ष शक्तिसिंह जाला ने बताया था, “हम हिंदू युवाओं की एक मजबूत इकाई बनाना चाहते हैं जो कट्टर हिंदुत्व का पालन करते हों। गांधीनगर में हमारा त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम उसी मिशन का हिस्सा था।”
त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम
पत्रकार और मानवाधिकार रक्षक तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद द्वारा 1993 से 2012 के बीच में प्रकाशित पत्रिका कम्युनलिज्म कॉम्बैट में नवंबर 2001 के अंक में त्रिशूल दीक्षा संस्कृति के आगमन का दस्तावेजीकरण किया गया था। जिसमें व्यवस्थित तौर से “लाखों ‘त्रिशूल’ बांटे जाने की बात थी। वीएचपी व बजरंग दल द्वारा इनकी आड़ में छह-आठ इंच लंबे और मारने के लिए पर्याप्त तेज” रामपुरी चाकू भी बांटे गए थे। उस समय, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी माना था कि पूरे देश में इनके द्वारा करीब 40 लाख त्रिशूल बांटे गए थे।
2003 के शुरू में विधानसभा चुनावों के दौरान इसी तरह के त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम पूरे राजस्थान में आयोजित किए गए थे। ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान भाजपा नेता प्रवीण तोगड़िया ने घोर सांप्रदायिक और भड़काऊ भाषण दिया था। द फ्रंटलाइन की एक रिपोर्ट के अनुसार, तोगड़िया ने कथित तौर पर समारोह में मौजूद लोगों से “अपने त्रिशूल उठाने और प्रतिज्ञा करने के लिए कहा था कि हम भगवान शंकर और मां दुर्गा की पूजा करेंगे, राम मंदिर का निर्माण करेंगे, पाकिस्तान को नेस्तनाबूद कर देंगे और भारत को एक “हिंदू राष्ट्र” बनाकर रहेंगे।
इस पर 13 अप्रैल 2003 को तोगडिया को गिरफ्तार कर लिया गया और धारा 121-ए के तहत मामला दर्ज किया गया। इस धारा के अनुसार, “जो कोई भी भारत के भीतर या उसके बाहर धारा 121 द्वारा दंडनीय किसी भी अपराध को करने की साजिश करता है, या आपराधिक बल या आपराधिक बल के प्रदर्शन के माध्यम से, केंद्र सरकार या किसी भी राज्य सरकार को डराने की साजिश करता है, आजीवन कारावास से, या दोनों में किसी भी प्रकार के कारावास से, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माने से दण्डनीय होगा।” दिलचस्प बात यह है कि उसी साल 8 अप्रैल को राजस्थान सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर लोगों को डबल या मल्टी-ब्लेड वाले नुकीले नुकीले हथियारों को रखने, बांटने और लेकर चलने पर रोक लगा दी थी।
खास है कि त्रिशूल दीक्षा कार्यक्रम गुजरात में अब फिर से शुरू हो गया है। 13 मार्च, 2022 की इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा ही एक समारोह उत्तर गुजरात में हिम्मतनगर के स्वामीनारायण मंदिर में आयोजित किया गया था जिसमें 5,100 लोगों को त्रिशूल दीक्षा दी गई थी। इस दौरान स्थानीय सांसद दिलीप सिंह राठौर, स्थानीय विधायक राजू चावड़ा के साथ विहिप और बजरंग दल के कई वरिष्ठ नेता उपस्थित रहे।
जनवरी 2013 में, शिवसेना ने भी आत्मरक्षा के लिए महिलाओं को बंद हो जाने वाले (कटर) चाकू वितरित किए थे। ये चाकू आकार (साइज) में प्रतिबंधों के भीतर थे, लेकिन महिलाओं को उनका उपयोग करने को प्रोत्साहित करने में नुकसान होने की संभावना ज्यादा है, क्योंकि इसके लिए महिला को, हमलावर से निकटता की आवश्यकता होगी ताकि वह आसानी से हमला कर सके। लेकिन ऐसी स्थिति में हमलावर उलटे पलटवार कर आसानी से महिला पर काबू पा सकता है और उस चाकू को महिला पर हमले के लिए इस्तेमाल कर सकता है। सर्वविदित है कि काली मिर्च स्प्रे या मिर्च पाउडर जैसी चीजें जो यौन हिंसा के अपराधियों के खिलाफ दूर से इस्तेमाल की जा सकती हैं, उन वस्तुओं (चाकू आदि) की तुलना में कहीं बेहतर हैं जिनके लिए, करीब जाकर मुकाबला करने की आवश्यकता होती है।
कुछ आध्यात्मिक नेता भी लोगों से हथियार रखने का आग्रह करते रहे हैं। सीजेपी की सहयोगी संस्था ‘सबरंग इंडिया’ ने तथ्यों का दस्तावेजीकरण किया है कि कैसे साध्वी सरस्वती ने गायों की रक्षा के लिए युवाओं से तलवारें रखने का आग्रह किया था। उल्लेखनीय है कि तलवार स्पष्ट रूप से हथियारों को रखने की अधिकतम अनुमन्य सीमा से बड़ी होती हैं, इसलिए तलवार लेकर चलना कानून के तहत दंडनीय अपराध है।
तो आप क्या कर सकते हैं?
यदि आप पारंपरिक भारतीय मूल्यों (सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व और धर्मनिरपेक्षता जैसे संवैधानिक मूल्यों) में विश्वास करते हैं, तो निसंदेह आप पीछे खड़े होकर नहीं देख सकते हैं कि आपके मित्र या यहां तक कि परिवार के सदस्य, प्रभावशाली समुदाय के नेताओं द्वारा फैलाई जाने वाली नफरत के भंवर में फंस जाएं। ऐसे मामलों में यह आप पर है कि अपने आसपास नफरत को कैसे समाप्त करते हैं।
अपने दोस्त/परिवार के सदस्य से बात करें
प्रायः, केवल संबंधित व्यक्ति से बात करने से ही तनाव दूर करने में मदद मिल जाती है। इसलिए पता करें कि उन्हें हथियार वितरण कार्यक्रम में भाग लेने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई। उनसे पूछें कि क्या है जो उन्हें असुरक्षित महसूस कराता है और चिंताओं से निपटने में आप उनकी कैसे मदद कर सकते हैं। भविष्य में इस तरह के आयोजनों में भाग लेने के लिए उनसे बात करने की कोशिश करें। साथ ही उन्हें हथियार त्यागने के लिए मनाने की कोशिश करें। उन्हें हथियार लेकर चलने के खिलाफ कानूनी प्रावधानों के बारे में सूचित करें। कई मामलों में, अच्छे स्वभाव वाले, भोले-भाले लोगों को अतिवादियों द्वारा भावनात्मक रूप से झांसे में ले लिया जाता है। आप केवल करुणा और सही कानूनी जानकारी के बल पर नुकसान कम कर सकते हैं।
सबूत इकट्ठा करें
अगर आप खुद को नुकसान पहुंचाए बिना तस्वीरें लेने या वीडियो रिकॉर्ड करने का कोई तरीका ढूंढ सकते हैं, तो इसे करें। कई बार, आपको ऐसा करने की भी आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि अधिकांश अतिवादी (चरमपंथी) समूह स्वयं सोशल मीडिया पर फोटो अपलोड और साझा करते हैं। इन पोस्ट के स्क्रीनशॉट और लिंक्स सेव करें, क्योंकि ये सबूत के तौर पर भी काम कर सकते हैं।
अधिकारियों से संपर्क करें
सभी कानूनी प्रावधानों को देखते हुए, अधिकारियों को सूचित करना सबसे सही है। आप अपने स्थानीय पुलिस स्टेशन में एक लिखित शिकायत दर्ज कर सकते हैं और उनके साथ एकत्र किए गए फोटोग्राफिक और वीडियोग्राफिक साक्ष्य साझा कर सकते हैं। अपनी शिकायत के साथ-साथ सबूत की कई प्रतियां अपने पास रखना याद रखें। सलाह दी जाती है कि वकील साथ रखकर ऐसा करें, ताकि आपके अधिकारों की रक्षा की जा सके। हालांकि, यह हमेशा संभव नहीं हो सकता है। हर कोई पुलिस को कॉल करने में सहज महसूस नहीं करता है। कभी-कभी यह दोस्तों और परिवार के प्रति प्यार और वफादारी के कारण होता है, कई बार यह व्यक्तिगत सुरक्षा चिंताओं के कारण हो सकता है। ऐसी स्थिति में आप अपने अगले वैकल्पिक कदम को उठाने का प्रयास कर सकते हैं।
सीजेपी को लिखें
आप अपने द्वारा एकत्रित की गई फोटो और वीडियो को, दिनांक और स्थान सहित, और अपनी चिंताओं (मुद्दे/सरोकार) के एक संक्षिप्त विवरण के साथ, उन मानवाधिकार समूहों के साथ साझा कर सकते हैं जिन पर आप भरोसा करते हैं। आप उन्हें इस लिंक पर क्लिक करके सीजेपी पर हमें भेज सकते हैं: https://cjp.org.in/hate-hatao#report-hate या हमें cjpindia@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं।
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