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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के शहादत दिवस पर बनारस के अस्सी घाट पर कविता पाठ और पोस्टर प्रदर्शनी का आयोजन  

दिनांक 30/01/2023 को अस्सी घाट पर समाज सृजन के कला मार्ग विद्या आश्रम द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को याद करते हुए समकालीन हिंदी और अन्य भाषाओं में आजादी के आंदोलन के समय देश-दुनिया के अखबारों, पत्रिकाओं में उन पर छपे तमाम कार्टूनों की प्रदर्शनी लगाई गई। भारत की आज़ादी के लिए हुए आन्दोलन के दौरान अंतर्राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित गांधीजी पर बनाये व्यंग्य चित्र इस प्रदर्शनी में शामिल किये गए. नवजीवन प्रकाशन मंदिर अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित ‘गांधीजी व्यंग्यचित्र संग्रह’ नामक पुस्तक में ये सभी चित्र प्रकाशित किये गए हैं. इन चित्रों में गांधीजी के समर्थक और विरोधी दोनों भाव प्रकट करने वाले कलाकारों द्वारा बनाए गए कार्टून हैं. गाँधी जी के शहादत दिवस पर इनके फोटो प्रिंट लेकर उन्हें हलके रंगों से भर कर यहाँ पेश किया गया. 

“ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन सारे देश में फैल गया इसके चलते विशेषरूप से खाड़ी के चलते सूती कपड़े का आयात बहुत गिर गया, ब्रिटिश कपड़ा मिलें बंद होने लगीं लंदन के डेली मेल अखबार ने लिखा इस चित्र में भारतीय जनता का प्रतिनिधित्व करते हुए गांधी जी विदेशी कपड़े का प्रलोभन को छोड़ते हुए अपनी शक्ति की ताकत को दिखा रहे हैं.”

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बनारस में आयोजित इस कार्यक्रम में देश के मशहूर कवियों की कविताएं नज़्मों को पढ़ा गया जिसमें मुनीजा रफीक खान ने महात्मा गांधी की हत्या के तुरंत बाद काशी में ही लिखी गई नज़ीर बनारसी की यह नज्म पढ़ी.

 तिरे मातम में शामिल हैं ज़मीन ओ आसमाँ वाले 

अहिंसा के पुजारी सोग में हैं दो जहाँ वाले 

तिरा अरमान पूरा होगा ऐ अम्न-ओ-अमाँ वाले 

तिरे झंडे के नीचे आएँगे सारे जहाँ वाले 

मिरे बूढ़े बहादुर इस बुढ़ापे में जवाँ-मर्दी 

निशाँ गोली के सीने पर हैं गोली के निशाँ वाले 

उसी को मार डाला जिस ने सर ऊँचा किया सब का 

न क्यूँ ग़ैरत से सर नीचा करें हिन्दोस्ताँ वाले 

मिरे गाँधी ज़मीं वालों ने तेरी क़द्र जब कम की 

उठा कर ले गए तुझ को ज़मीं से आसमाँ वाले 

ज़मीं पर जिन का मातम है फ़लक पर धूम है उन की 

ज़रा सी देर में देखो कहाँ पहुँचे कहाँ वाले 

पहुँचता धूम से मंज़िल पे अपना कारवाँ अब तक 

अगर दुश्मन न होते कारवाँ के कारवाँ वाले 

सुनेगा ऐ ‘नज़ीर’ अब कौन मज़लूमों की फ़रियादें 

फ़ुग़ाँ ले कर कहाँ जाएँगे अब आह-ओ-फ़ुग़ाँ वाले

इसके बाद पारमीता जी ने गांधी पर लिखी सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता का पाठ किया इसी प्रकार एकता शेखर ने कवि राम दयाल वर्मा की गांधी चौराहा नाम की कविता का पाठ किया. सानिया, प्रेमलता जी, रामजनम, चित्रा सहस्रबुद्धे, लक्ष्मण मौर्या, अंजू, कृष्ण कुमार क्रांति, हरिश्चन्द्र बिंद, ने अलग अलग कवियों की कविताओं का पाठ किया. 

कार्यक्रम का संचालन पारमीता ने किया और अध्यक्षता मशहूर गांधीवादी अरुण जी ने की.

कार्यक्रम में सुनील सहस्रबुद्धे, कमलेश राजभर , मोहम्मद अलीम ,सर्विंद पटेल,दीपिका शाहनी,मोहम्मद अहमद,फजलुर्रहमान अंसारी,धनंजय, इंदु, रवि शेखर, नीरज, कुनाल,प्रवाल सिंह,शिवराज,सचिनंद, अमरनाथ,आदि लोग शामिल रहे 

 यूं तो हर साल 30 जनवरी को गांधी जी की पुण्यतिथि देश विदेश में मनाई जाती है.

 वाराणसी में स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालयों में भी मनाते ही हैं लेकिन लोकविद्या आश्रम, सारनाथ के समाज सृजन कार्यक्रम के तहत कुछ अलग ढंग से गांधी को याद किया गया.

समाज सृजन के कला मंच द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में महात्मा गांधी पर बने कुछ व्यंग्य चित्रों की प्रदर्शनी और गांधी जी के समकालीन कवियों द्वारा रचित कविताओं का पाठ किया गया. व्यंग्य चित्र गांधी जी की मृत्यु से पहले अखबारों में छपे हुए थे, जो भारत, दक्षिण अफ्रीका और लंदन के गोलमेज सम्मेलन के समय के थे. 

व्यंग्य चित्र दर्शा रहे थे कि एक निहत्थे और शरीर से कमजोर व्यक्ति के सामने ब्रिटेन की सशस्त्र सत्ता लाचार है. गांधी जी की अहिंसक सत्याग्रह की प्रक्रिया कितनी कारगर और प्रभावशाली थी इसका अंदाजा व्यंग्य चित्रों की जुबानी समझा जा सकता था. 

 

समकालीन कवियों द्वारा रचित कविताएं गांधी जी के बारे में एहसास दिला रही थीं कि  बापू मौजूद हैं. कुछ कविताएं मरणोपरांत शून्य के उभर जाने को भी बता रही थीं. एक मलयाली भाषा से अनुदित कविता भी पढ़ी गई.

इस कविता को एक प्रौढ़ महिला के रूप में कवि ने पेश किया था; 

जो बापू के दर्शनार्थ उनके आश्रम में गई है. बापू सूत कात रहे हैं, चश्मे के अंदर से कनाखियों से देखते हुए उस पर कुछ सवाल दागते हैं, जो श्रम मूलक कामों से जुड़े हुए थे. कविता रूपी महिला भी उसका जवाब देती है कि मैं भी कभी तरूणी थी, सुंदर थी और राजभवनों की शोभा बढ़ाती थी, तब मुझमें लयदारी, ताल, संगीत, नृत्य सब थे. लोग बेहद आकर्षित होते थे, लोग झूम जाते थे. अब तो मैं शुष्क, नीरस हूं. गांधी जी ने उसे किसान और कारीगर समाजों के बीच जाने को कहा और उसके बाद कविता किसान समाज में पहुंच कर लहलहा उठी, हरियाली से सराबोर हो गई, धान्य से परिपूर्ण हुई. कारीगर के यहां उसका श्रृंगार हुआ. इस तरह सजने संवरने के बाद फिर से खिलखिला उठी. 

मलयाली कविता में प्रदर्शित भाव गांधी जी की सलाह, उपदेश अंगीकार करने के बाद जीवन शुष्क और नीरस नहीं रह जाता. उसमें नवजीवन का संचार होता है, नए सृजन का एहसास होता है. कविता के माध्यम से सम्पूर्ण समाज में नवजागरण का अंकुर फूट चला है. गांधी जी के स्वाधीनता संग्राम में आने पर जो अनोखा चमत्कार हुआ था, उसे यह कविता सटीक तरीके से निरूपित कर रही थी. ठीक इसी प्रकार यह आयोजन, नए समाज के सृजन का संदेश दे रहा था, पुण्यतिथि को सहादत दिवस न मानकर “नए समाज का सृजन दिवस” के रूप में मानने का आग्रह कर रहा था.

 श्रीमती चित्रा सहस्रबुद्धे जी ने आयोजन के उद्देश्य के बारे में बताते हुए नेता नहीं कलाकार बनने का आह्वान किया. कलाकार को नेता से ऊंचा आसन देते हुए उसकी सृजन क्षमता को रेखांकित किया.

आज के समय में समाज सृजन की आवश्यकता है और इसके लिए नया मनुष्य भी गढ़ने की जरूरत पड़ेगी, तभी नये भारतीय समाज तथा नये वैश्विक समाज के निर्माण की राह खुलेगी.

फ़ज़लुर रहमान अंसारी से मिलें

एक बुनकर और सामाजिक कार्यकर्ता फजलुर रहमान अंसारी उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले हैं। वर्षों से, वह बुनकरों के समुदाय से संबंधित मुद्दों को उठाते रहे हैं। उन्होंने नागरिकों और कुशल शिल्पकारों के रूप में अपने मानवाधिकारों की मांग करने में समुदाय का नेतृत्व किया है जो इस क्षेत्र की हस्तशिल्प और विरासत को जीवित रखते हैं।

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